leheriya in Hindi शगुन और संस्कृति के रंगों का प्रतीक है लहरिया

लहरिया सावन के महीने में महिलाओं के लिए बहुत अहम हो जाता है. प्रकृति जब बरसात से धरती का श्रृंगार करती है तो सावन Sawan, उत्सव मेलों की सौग़ात लेकर आता है. ऐसे खुशनुमा माहौल में जब सावन का महीना ऋतुओं के यौवन काल पर होता है तो महिला पुरूषों का परिधान भी बदल जाता है. 

लहरिया राजस्थान सहित अनके राज्यों में लोक संस्कृति का अभिन्न और अटूट हिस्सा है. यह महिलाओं को एक ट्रेडिशनल लुक भी देता है. लहरिया सावन में विवाहित महिला के लिए बहुत महत्व रखता है, ये सौभाग्य और सुकून का प्रतीक भी माना जाता है. समय के साथ बहुत कुछ बदला लेकिन आज भी सावन के महीने में leheriya पहनना, झूले खाना और परम्परागत गीत गुनगुनाना बदस्तूर जारी है.

सावन के महीने में leheriya खरीदने पहने और उपहार के रूप में देने कि अब परंपरा अब शगुन का हिस्सा बन गया है. सावन में हर महिला की ख़्वाहिश होती है कि सावन के महीने में या तीज के दिन उसे उसके पति, पिता या भाई उसे लहरिया भेंट करे. लहरिया पर बहुत से लोक गीत और फ़िल्मी गीत भी बने है. leheriya को राजस्थानी ओढ़नी या दुपट्टा भी कहा जाता है. मीरा ने तो अपने पदों में भी लहरिया का ज़िक्र किया है.

कैसे हुई लहरिया पहने की शुरूआत

Lahariya लहरिया राजस्थान की एक पारंपरिक टाई एंड डाई तकनीक है. इतिहासकारों की माने तो लहरिया का उल्लेख 15वीं सदी में मिलता है. सोलहवीं सदी में अवधि के कवि जायसी ने अपने काव्य में लहरिया को जगह दी थी. जयपुर में 17वीं शताब्दी में भी leheriya के प्रचलन के अनेको उदाहरण है.

इसका इस्तेमाल राजपुताना में राजाओं की पगड़ी पर किया जाता था. 19वीं शताब्दी के अंत तक इसका इस्तेमाल राजस्थान सहित देश के अनेकों हिस्सों में होने लगा. राजस्थान का लहरिया सिर्फ कपड़े पर उकेरा गया डिजाइन या स्टाइल भर नहीं, श्रद्धा, आस्था, प्रेम और खुशनुमा माहौल के साथ यह रंग बिरंगी धारियां शगुन और संस्कृति के वो सारे रंग है जो संस्कृति के खास परिचायक है. सावन में leheriya पहनना बेहद शुभ माना गया है.

कैसे तैयार होता है लहरिया

रंगरेज़ की माने तो लहरिया हमेशा कच्चे रंग में रंगा जाता है. सावन में जब महिला कच्चे रंग के लहरिये को ओढ़ कर जाती है और पानी बरसता है और उसका रंग जिस्म पर लगता है तो उसे शुभ माना जाता है. एक समय था जब सिर्फ रानी कलर के कच्चे रंग में रंगा Lahriya डिमांड में रहता थ, लेकिन अब समय बदलने के साथ आकर्षक प्रिंट वाले लहरियों की डिमांड मार्केट में ज्यादा बढ़ी है .

सावन के महीने में लहरिया की बिक्री परवान पर होती है. लहरिये की कुर्तियां, दुपट्टे, लॉन्ग सूट, स्कर्ट, टॉप और गोटा लगे लहरिये बाजार में खूब डिमांड में रहते है.

रानी कलर का लहरिया ही क्यों रहता है डिमांड में ?

शहर के पुराने रंगरेज़ कहते हैं कि लहरिया में रानी लहरिया बहुत मशहूर था. जो शाही परिवारों की राजसी महिलाओं के लिए ही था. अब हर कोई रानी रंग का leheriya धारण कर रहा है. लेकिन समय के साथ लहरिये के रंग भी बदल गए है.

रानी कलर के साथ ही ये लहरिये भी रहते है डिमांड में

पचरंगी लहरिया Pachrangi leheriya

सावन के महीने में पंचरंग लहरिया का भी अपना महत्व रहा है. भारतीय दर्शन में इंसान की बनावट पांच तत्वों से मानता है. पांच का अंक शुभ भी माना जाता है और मीरा के भक्ति रस में पंचरंग लहरिये का ज़िक्र है. आजकल के पंचरंग लहरिये के पांच रंगों को कुंदन और मीनाकारी से सजाया जाता है.

बारीक लहरिया Barik leheriya

जॉजर्ट के महीन और वजन में हल्के कपड़े पर बारीक-बारीक लाइनों से बनाया लहरिया भी खूब डिमांड में रहता है.

बंधेज लहरिया Bandhej leheriya

बंधेज की साड़ी के साथ ही बंधेज की लहरिये को भी खूब पसंद करती है. बंधेज लहरिया पीले और लाल रंग की सांड़ी होती है. जिसमे फूल पत्तियों की डिजाइन होती है. सावन के महीने में इसे पहने का अलग ही आनंद की प्राप्ति करवाता है.

गोल्डन वर्क वाला लहरिया Goldan Work leheriya

जैसे जैसे मार्केट में डिमांड बदलती जा रही है. वैसे वैसे लहरिये के लुक में भी बदलाव किया जा रहा है. कामकाजी महिलाएं और साड़ी की जगह लहरिये का सूट जींस टीशर्ट पर विभिन्न रंगो का गोल्डन वर्क किया हुआ दुपट्टा काफी प्रचलन में है.

गोटा पट्टी लहरिया Gota Patti leheriya

यू तो गोटा शुभ कार्यों का प्रतीक माना जाता है. पिछले कुछ समय से लहरिये की साड़ी में अलग-अलग डिजाइन का गोटा वर्क साड़ी की सुंदरता में चार चाँद लगा देता है. इनमे मोठड़ा, डबल धारी पचरंगा और परम्परागत पैटर्न काफी पसंद किए जाता है.

Lahariya-लहरिया
Lahariya in Hindi शगुन और संस्कृति के रंगों का प्रतीक है लहरिया

सावन का महीना और लहरिये के लिए प्रचलित लोक गीत और गाने…

लहरिया को लोक गीतों में वो ही स्थान मिला है जो श्रृंगार में आभूषणों को.

सावन का महीना पवन करे सोर… हां जियरा रे झूमे ऐसे जैसे बनमा नाचे मोर… गीतकार आनंद बक्षी का लिखा और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के सगीत से सजा ये गाना भारत की स्वर कोकिल लता मंगेशकर और गायक मुकेश के मुक्त कंठ से गया ये गीत आज में सावन के महीने में पूरे दिल से सुना और गुनगुनाया जाता है.

अब के सजन सावन में. आग लगेली बदन में घटा बरसेगी मगर तरसेगी नज़र ….. चुपके चुपके फिल्म का ये गीत भी लता जी का गाया हुआ है. जो की सावन के महीने में खूब सुनगुनाया जाता है.

सावन की रमझोल आगी झूलन की रमझोल…. झूला झूले रे…. आगी सावन की रमझोल… राजस्थान के परम्परगत गीत गायक प्रकाश माली का ये भजन/ गीत पूरे राज्य में बहुत प्रसिद्ध है.

पंच रंग चोला पहिर सखी मैं झुरमुट खेलन जाती…मीरा का पद

मारवाड़ी गीत इन लहरिया रा नोसो रूपया रोकड़ा सा… भी खूब सुना और सुनाया जाता है. इसके साथ ही सावन के महीने में महिलाये परम्परगत गीत भी गाती और गुनगुनाती है.

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