गणेश चतुर्थी पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाने वाला पर्व है। हिंदी महीनो के कैलेंडर के अनुसार भादो माह की शुक्ल पक्ष में चतुर्थी के दिन गणेश जी का जन्मदिन मनाया जाता है। इस वर्ष 19 सितम्बर 2023 को Ganesh Chaturthi पूरे देश में हर्षोउल्लास से मनाई जाएगी।
जगह-जगह प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश की पूजा होती है। लोग अपने घरों में गणेश जी की स्थापना करते हैं और सुबह नहा धोकर गणेश जी की पूजा करते हैं। भगवान श्रीगणेश की पूजा करके लाल चंदन, कपूर, नारियल, दूर्वा घास और उनके प्रिय मोदक उन्हें चढ़ाए जाते हैं।
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गणेश चतुर्थी पर कैसे करें भगवान गणेश की पूजा
मोदक और स्वादिष्ट मिष्ठान बनाकर उनका भोग लगाया जाता है और उसके बाद गणेश जी की आरती गाई जाती है तथा समस्त कष्टों को हरने की कामना की जाती है।
भगवान शिव और पार्वती के पुत्र श्री गणेश को समृद्धि और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। समस्त देवी देवताओं में यह प्रथम पूज्य हैं, रिद्धि और सिद्धि भगवान गणेश की दो पत्नियां है और शुभ और लाभ उनके दो पुत्रों के नाम हैं।
इस दिन लोग अपने घरों में किसी प्रमुख स्थान पर भगवान श्री गणेश जी की मनमोहक प्रतिमा स्थापित करते हैं। 9 दिनों तक इस प्रतिमा का पूजन किया जाता है और 9 वें दिन भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा का पानी में विसर्जन किया जाता है।
महाराष्ट्र में बनाया जाता है गणेश पांडाल
“गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ “
महाराष्ट्र सहित भारत के कई हिस्सों में बड़े-बड़े पंडाल बनते हैं. जहां विशालकाय गणेश जी की मूर्ति की स्थापना की जाती है। 9 दिन तक पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना होती है और 9 वें दिन प्रतिमा विसर्जन किया जाता है महाराष्ट्र में तो गणेश विसर्जन का दिन पूरे धूम धाम से मनाया जाता है और पुनः गणेश चतुर्थी आने के जयकारे लगाए जाते हैं “गणपति बप्पा मोरिया अगले बरस तू जल्दी आ ”
गणेश शब्द का अर्थ
गण+ईश अर्थात गण का अर्थ होता है लोग और ईश का अर्थ होता है भगवान। इसीलिए कहते हैं गणेशजी लोगों के भगवान हैं और हर कार्य करने से पहले गणेश जी को याद किया जाता है। गणेश चतुर्थी का त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है। गणेश जी के 101 नाम
गणेश पूजन की सामग्री
रोली, मोली, सिंदूर, चावल, चांदी का बर्क, गुलाब की माला, लाल चंदन, कपूर, नारियल, दूर्वा घास और मोदक का प्रयोग किया जाता है। इन सामग्रियों के साथ प्रथम पूज्य गणेश जी की अर्चना की जाती है। भगवान गणेश को लाल रंग प्रिय है इसलिए उनकी पूजा सामग्री में लाल रंग के चीजों को प्राथमिकता और महत्व दिया जाता है।
क्यों नहीं देखा जाता गणेश चतुर्थी का चंद्रमा?
मान्यता है कि गणेश चतुर्थी के दिन चांद को नहीं देखना चाहिए। कहते हैं, एक समय चांद को अपनी खूबसूरती पर बहुत घमंड हो गया था, क्योंकि चांद पर एक भी दाग नहीं था। एक दिन जब भगवान गणेश घूमते हुए चंद्रलोक पहुंचे तब चंद्रमा ने गणेश को देखा और वह जोर-जोर से हंसने लगा क्योंकि श्री गणेश का एक दांत टूटा हुआ था। चंद्रमा को श्री गणेश कुरूप लगे।
चंद्रमा ने श्री गणेश का बहुत उपहास उड़ाया, जिसके कारण क्रोधित होकर गणेश जी ने चंद्रमा को शाप दे दिया और कहा कि चंद्रदेव जिस रूप का तुम्हें इतना अभिमान है, जिसके कारण तुमने मेरा उपहास उड़ाया, जाओ मैं तुम्हें शाप देता हूं कि जो भी चंद्रदेव के दर्शन करेगा वह अपराधों में फंस जाएगा फिर वह चाहे निर्दोष ही क्यों ना हो।
यह सब देख चंद्रमा भयभीत हो गए और उन्होंने भगवान गणेश से क्षमा मांगी और शाप मुक्त करने की प्रार्थना की। चंद्रमा पूजा अर्चना करने लगे जिससे गणेश जी प्रसन्न हो गए और कहा, कि मैं तुम्हें शाम मुक्त करता हूं पर चौथ के दिन यदि कोई चांद को देखेगा, तो उस पर कलंक लगेगा। यही कारण है कि गणेश चतुर्थी के दिन लोग चांद को नहीं देखते हैं।
गणेश चतुर्थी की कथा
ऐसी मान्यता है कि भगवान शंकर स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भागवती नामक स्थान पर गए। भगवान शंकर के जाने के बाद स्नान करते समय माता पार्वती ने मिट्टी का एक पुतला बना उसमें प्राण डाल दिए और उनका नाम उन्होंने गणेश रखा।
फिर पार्वती जी ने गणेश जी से कहा कि जब तक वह स्नान ना कर लें, तब तक किसी को अंदर ना आने दें और द्वार पर ही रहें। कुछ समय बाद भगवान श्री शंकर स्नान करके वापस आए और भीतर प्रवेश करना चाहा तो गणेश जी ने उन्हें दरवाजे पर ही रोक दिया।
इस पर भगवान भोलेनाथ बहुत क्रोधित हो उठे और उन्होंने गणेश जी को चेतावनी दी। इस पर भी जब गणेश जी नहीं माने तो दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ और भगवान शंकर ने त्रिशूल से गणेश जी का सिर अलग कर दिया। जब पार्वती जी को बालक गणेश की चीख सुनाई दी, तो वो बाहर आकर देखने लगीं कि उनके पुत्र का सर धड़ से अलग पड़ा है। पार्वती जी बहुत दुखी हुईं और विलाप करने लगीं।
उन्होंने शंकर जी से कहा कि उनको उनका पुत्र हर हाल में वापस जीवित चाहिए। पार्वती जी के गुस्से को शांत करने के लिए भगवान शिव ने अपने गणों को आदेश दिया कि जाओ और धरती लोक पर जो भी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो, उस बच्चे की गर्दन ले आओ। काफी ढूंढने के बाद एक हाथी का बच्चा मिलता है, जिसकी माँ पीठ कर के सो रही होती है. वो तुरंत उस बच्चे का शीश काट कर कैलाश पर्वत पहुंच जाते हैं।
भगवान उस हाथी के सिर को गणेश जी के धड़ से जोड़ देते हैं और इस प्रकार पुत्र गणेश को दुबारा पाकर पार्वती जी प्रसन्न होती हैं और शिव जी उन्हें समस्त गणों के स्वामी की उपाधि देते हैं, इसलिए गणेश जी का नाम गणपति रखा गया।
गणेश जी से जुड़ी यह कथा भी है प्रचलित गणेश कथा के अनुसार एक दिन देवता कई समस्याओं से घिर गए थे और वह मदद मांगने भगवान शिव के पास पहुंचे। उस वक्त शिव के साथ उनके दोनों पुत्र कार्तिकेय एवं गणेश भी बैठे थे।
देवताओं की पूरी बात सुन भगवान शिव ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि आप दोनों में से कौन देवताओं का कष्ट निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय एवं गणेश दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया।
इस पर शिवजी ने दोनों की परीक्षा लेने के लिए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा, वह देवताओं की मदद करने जाएगा। भगवान शिव के वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहक मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए रवाना हो गए।
परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए, कि वह अपनी सवारी के साथ सारी पृथ्वी की परिक्रमा करने करेंगे तो बहुत समय लग जाएगा। झटपट उनके दिमाग में एक युक्ति सूझी और गणेश जी अपने स्थान पर खड़े हो अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे, तो शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।
गणेश जी ने बड़े ही शांत मन से कहा, “माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक है ।” गणेश जी के बुद्धि विवेक को देख शिव ने गणेश को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा उसके सभी कार्य सिद्ध होंगे।
गणेश जी के भजन और गीत – Ganesh ji ki Aarti
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे, संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश, जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
गणेश जी के जयकारे
- गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरिया
- गणेश जी महाराज की जय
- जय गणेश