मकर संक्रांति Makar Sakranti Pooja Vidhi

मकर संक्रांति जिसे उत्तर भारत में सकरात, खिचड़ी और दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से मनाया जाता है, ब्रह्मांडीय घटना को केन्द्र में रखकर मनाया जाने वाला दुनिया का एकमात्र त्यौहार है। इस त्यौहार को मनाने की विधियां देश भर में अलग अलग है लेकिन इनके पीछे कारण एक ही है.

क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति?

मकर संक्रांति प्रतिवर्ष पौष मास के चतुर्थी को शुक्ल पक्ष में आती है। मकर संक्रांति नए साल का पहला शुभ अवसर माना जाता है क्योंकि इसी दिन भगवान सूर्य मकर रेखा को पार कर उत्तरी गोलार्ध में प्रवेश करते हैं। मकर संक्रांति के दिन से कर्क संक्रांति तक का यह समय उत्तरायण व् उत्तरी क्रान्ति के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सौर घटना है जिसे उत्सव के तौर पर मनाया जाता है।

मकर संक्रांति के दिन किसान अपनी अच्छी फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देता है। भगवान का आशीर्वाद बनाए रखने के लिए वह अपनी उपज का प्रसाद बनाकर उत्सव मनाता है। यही वजह है कि इस त्योहार पर तिल, मूंगफली और गुड़ की प्रधानता रहती है क्योंकि यह ये सभी उत्पाद मौसमी फसलों से सम्बन्धित है।

क्या है मकर संक्रांति का शाब्दिक अर्थ?

मकर संक्रांति में मकर शब्द मकर राशि को दर्शाता हैं और संक्रांति का तात्पर्य संक्रमण को इंगित करना है। जिसका शाब्दिक विश्लेषण हैं कि इस दिन सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं।

सकरात के दिन सूर्य खगोलीय पथ का चक्कर लगाते हुए मकर राशि में संक्रमण अर्थात प्रवेश करते है। यह दिन भारत में वसंत ऋतु के आने का भी प्रतीक माना जाता है।

मकर संक्रांति से जुड़ी पौराणिक कहानियां

मकर संक्रांति का वर्णन हिंदु पुराणों में मिलता है। इसके सम्बन्ध में एक कथा का वर्णन महाभारत में भी मिलता है। इस कथा के अनुसार भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान था। जब वे शरशैय्या पर थे और उन्हें अपने प्राण त्यागने के लिए मकर संक्रांति का समय ही चुना।

इसके अलावा एक और कथा का वर्णन मिलता है​ जिसके अनुसार भगवान शिव ने इसी दिन भगवान विष्णु को आत्मज्ञान प्रदान किया था। भगवान कृष्ण ने भी अपने उपदेश में कहा था कि इस​ दिन जो अपने प्राण त्यागता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन असुरों का वध किया था और उनके शीश मंदर पर्वत में गाड़ दिए थे, उस विजय की खुशी में भी मकर संक्रांति मनाई जाती है।

मकर संक्रांति तिथि के दिन कैसे करें सूर्य की आराधना?

भगवान सूर्य को ज्योतिष में ग्रहों में प्रधान माना गया है। इन्हें शुभ फल कारक माना जाता है। ये प्रत्यक्ष देव हैं इसलिए इनकी आराधना से शीघ्र लाभ प्राप्त होता है। मकर संक्रांति भगवान सूर्य की पूजा का उत्तम दिन है। इस दिन भगवान भास्कर की पूजा करने से सुख और शांति का संचार होता है। भगवान सूर्य की आराधना मंत्रों और नैवैद्य के माध्यम से की जानी चाहिए।

पूजा के लिए समर्पण के लिए शुद्ध जल, भगवान भास्कर के प्रिय लाल रंग के फूल, दान देने के लिए लाल वस्त्र और विविध पूजा सामग्री जैसे धूप, दीप और प्रसाद की व्यवस्था कर लेनी चाहिए।

यह पूजा घर के कक्ष के स्थान पर प्रत्यक्ष भगवान सूर्य की रश्मियों को साक्षात कर खुले स्थान पर करें तो श्रेयस्कर रहेगा। सबसे पहले भगवान सूर्य की आराधना प्रथम मंत्र से करें।

ऊँ सूर्याय नमः

इसके बाद नवग्रह पाठ से सूर्य का पौराणिक मंत्र का उच्चारण करें:

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम।
तमोडरि सर्वपापघ्नं प्रणतोडस्मि दिवाकरम्।

अर्थात जो जपा पुष्प के समान अरुणिमा वाले महान तेज से सम्पन्न अंधकार के विनाशक सभी पापों को दूर करने वाले तथा जो महर्षि कश्यम के पुत्र हैं, उन भगवान सूर्य को मैं नमस्कार करता हूं।

भगवान सूर्य को नमस्कार करने के पश्चात सूर्य गायत्री मंत्र के माध्यम से उनकी महिमा का वर्णन करें।

ॐ भास्कराय विद्महे दिवाकराय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
ॐ भास्कराय विद्महे महातेजाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
ॐ आदित्याय विद्महे सहस्र किरणाय धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
ॐ अदित्याय विद्महे दिवाकराय धीमही। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।
ॐ अश्वध्वजाय विद्महे पासहस्थाया धीमहि। तन्नो सूर्य: प्रचोदयात।
ॐ आदित्याय विद्महे प्रभाकराय। धीमहि तन्नो सूर्य प्रचोदयात्।
ॐ सप्त तुरंगाय विद्महे सहस्र किरणाय धीमहि। तन्नो रविः प्रचोदयात्।

इसके बाद सूर्य को नमस्कार करते हुए उन्हें जल अर्पित करें और पुष्प और प्रसाद का भोग चढ़ाएं। इसके बाद सूर्य भगवान से प्रार्थना करें के वे आपकी पूजा को स्वीकार करें।

मकर संक्रांति में दान और स्नान का महत्व

सकरात में दान और स्नान का बहुत महत्व माना गया है। इस दिन गंगा में स्नान करने के लिए दूर—दूर से भक्त आते हैं। इस दिन लगने वाला गंगा सागर मेला बहुत प्रसिद्ध है। अगर आप घर पर ही गंगा स्नान का लाभ उठाना चाहते हैं तो स्नान से पहले इस मंत्र का जाप करें

गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति.
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु.

सकरात के दिन स्नान के बाद दान करने का महत्व है। इस दिन आप अपनी शक्ति के अनुसार किसी जरूरतमंद को अन्न, वस्त्र और धन का दान करें।

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