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जैन मुनि तरुण सागर जी के कड़वे प्रवचन
कड़वे प्रवचन- गुलाब कांटों में भी मुस्कराता है. तुम भी प्रतिकूलताओं में मुस्कराओगे तो लोग तुमसे गुलाब की तरह प्रेम करेंगे. याद रखना जिन्दा आदमी ही मुस्कराएगा. मुर्दा कभी नहीं मुस्कराता. और कुत्ता चाहे तो भी मुस्करा नहीं सकता. हंसना सिर्फ मनुष्य के भाग्य में ही है. जीवन में सुख आए तो हंस लेना लेकिन दुख आए तो हंसी में उड़ा देना.
दो दोस्त थे. दोनों आपस में बात कर रहे थे. एक दोस्त ने कहा, मेरा छोटा सा परिवार है, पत्नी, दो बच्चे और मां-बाप हैं. माता-पिता भी हमारे साथ रहते हैं. दूसरे दोस्त ने कहा, मेरा भी एक छोटा सा परिवार है. पत्नी है, दो बच्चें हैं और मां-बाप. हम अपने माता-पिता के साथ रहते हैं. दोनों वाक्यों का अर्थ एक ही है लेकिन दोनों के भावार्थ में फूल और पत्थर का फर्क है.
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– सुनने की आदत डालो क्योंकि दुनिया में कहने वालों की कमी नहीं है. अपनी बुराई सुनने की हिम्मत पैदा करो क्योंकि लोग तुम्हारी बुराई करने से बाज नहीं आएंगे. आलोचक बुरा नहीं है. वह तो जिंदगी के लिए साबुन का काम करता है. गली में दो-चार सुअर हों तो गली साफ रहती है.
लक्ष्मी पुण्याई से मिलती है. मेहनत से मिलती हो तो मजदूर के पास क्यों नहीं. बुद्धि से मिलती हो तो पंडितों के पास क्यों नहीं. जिंदगी में अच्छी संतान, सम्पत्ति और सफलता पुण्य से मिलती है. अगर आप चाहते हैं कि आपका इहलोक और परलोक सुखमय रहें तो दिन में दो पुण्य जरूर करिए.
शादी के बाद बेटे की बुद्धि बिगड़ जाती है. अतः भविष्य की सोचकर अपने बुढ़ापे के लिए कुछ बचाकर रखिए. क्या तुम्हें पता नहीं कि शादी के बाद बेटा और खादी के बाद नेता दोनों बिगड़ जाते हैं. बेटा बुढ़ापे का सहारा बनकर सेवा करेगा यह उम्मीद रखने का युग नहीं. अगर आप चाहते हैं कि बेटे-बहू के दिल में आपके लिए हमेशा प्रेम बना रहे तो शादी के बाद वे झगड़कर अलग हों, इससे पहले उन्हें खुद ही अलग कर दें.
कड़वे प्रवचन tarun sagar thought in hindi
जिंदगी में कभी दुख और पीड़ा आए तो उसे चुपचाप पी जाना. अपने दुख और दर्द दुनिया के लोगों को मत दिखाते फिरना क्योंकि वे डॉक्टर नहीं हैं जो तुम्हारी समस्या का समाधान कर दें. यह दुनिया बड़ी जालिम है. तुम्हारे दुखों को रो-रोकर पूंछेगी और फिर हंस-हंस कर दुनिया को बताती फिरेगी. अपने जख्म उन लोगों को न दिखाओ जिनके पास मरहम न हो. वे खुदगर्ज लोग मरहम लगाने के बजाय जख्मों पर नमक छिड़क देंगे. दुख आए तो घबराइए मत क्योंकि दूध के फटने से वे ही दुखी होते हैं जिन्हें छेना बनाना नहीं आता.
जीवन में सफल होना है तो चार वाक्यों को कचरे के डिब्बे में डाल दो. एक, लोग क्या कहेंगे. दो, मुझसे नहीं होगा. तीन, अभी मेरा मूड नहीं. और चार, मेरी तो किस्मत ही खराब है. ये वे चार वाक्य हैं जो आदमी को आगे नहीं बढ़ने देते. चलो, उठो, आगे बढ़ो. क्यों सुस्त पड़े हो. जो पाना है, उसे पाने के लिए पूरी ताकत झोंक दो. तुम्हें आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता.
Tarun Sagar Ji Quotes in Hindi
मृत्यु की सब सामग्री तैयार है. कफन भी तैयार है, बस बाजार से लाने की देर है. बांस और मूंज भी तैयार है, बस ऑर्डर देने की देर है. उठाने व जलाने वाले भी तैयार हैं, बस खबर करने की देर है. जलाने की जगह भी तैयार है, बस अर्थी उठने की देर है. रोने वाले भी तैयार हैं, बस ‘ चल बसे’ की खबर सुनने की देर है.
मृत्यु की सब सामग्री तैयार है, बस श्वास बंद होने की देर है. श्वास बंद होते ही आधा घंटे में सब सामग्री जुट जाएगी और घंटा भर में तो अस्थियां बिखर जाएंगी. अतः अस्थियां बिखरने से पहले जीवन में आस्था पैदा कर लेना और चिता जलने से पहले अपनी चेतना को जगा लेना. बस जीवन सार्थक हो जाएगा.
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भारत का भला महाभारत से नहीं. महाभारत और कुछ नहीं, भाई-भाई के बीच स्वार्थ की कहानी है तथा रामायण और कुछ नहीं भाई-भाई के बीच त्याग की कहानी है. क्रोध की भाषा ही महाभारत की परिभाषा है. घर में ही स्वर्ग-नर्क है. जहां बहू-बेटे अपने मां-बाप के आशीर्वाद को सौभाग्य समझते हों, वह घर स्वर्ग है तथा जहां चार जवान बेटों के होते हुए बूढ़े मां-बाप को अपना खाना खुद बनाना पड़ता हो, वह घर नर्क है.
मां उस समय सर्वाधिक अपमान महसूस करती है, जिस समय उसका बेटा पत्नी के सामने उसे डांटता है, आंखें दिखाता है. दुनिया के सभी रिश्तों में मां का रिश्ता सबसे बड़ा है क्योंकि उसकी आयु सभी रिश्तों ने नौ माह अधिक हुआ करती है. मां कैसी भी हो, अगर आप उसे सुख नहीं दे सकते तो कम से कम दुख भी न दें. अपनी जेब में मां- बाप की तस्वीर रखें क्योंकि इस तस्वीर ने तुम्हारी तकदीर बनाई है.
आजकल मैंने मीठा बोलना बंद कर दिया है. कारण यह है कि मैं मीठा बोलता हूं तो लोगों को लगता है कि जैसे मैं उन्हें सुलाने के लिए लोरी गा रहा हूं. आज समाज और देश कुंभकर्ण की भांति गहरी नींद सोया हुआ है और सोते समाज व देश को जगाने के लिए लोरी काम नहीं आती, इसके लिए तो शेर-हाथी जैसी दहाड़-चिंघाड़ चाहिए. इसलिए मैं दहाड़ता और चिंघाड़ता हूं. कड़वा बोलना मेरी प्रकृति नहीं ड्यूटी है. अगर वैद्य, संत और सचिव मीठा बोलने लगें तो समझना सेहत, समाज और देश का सत्यानाश होने वाला है.
2 Comments
Add Yours →Karva neem jese rogo ko dur karta hai vese hi apke karve pravachan jivan me mithas gholte hai
Andhkar se prakash ki or aapka margdarshan he. Aapke charno me sat sat naman