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अरस्तु की जीवनी और उनके प्रमुख विचार
अरस्तु Aristotle सुकरात और प्लेटो की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले यूनान Greece के महान दार्शनिक एवं वैज्ञानिक थे. अरस्तु को उनके गुरुओं और उनके समकालीन दार्शनिकों के साथ पश्चिमी दर्शन की आधारशिला रखने का श्रेय जाता है.
अरस्तु को विश्व विजेता सिकंदर Alexander The Great का गुरु माना जाता है. Arastu ने राजनीति और मनोविज्ञान पर बहुत उम्दा काम किया. आज भी उनके विचारों को विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाता है.
अरस्तु की संक्षिप्त जीवनी Brief Biography of Aristotle
अरस्तु का जन्म ईसा से 384 वर्ष पहले मेसेडन साम्राज्य के एक नगर स्टागिरा में हुआ था. उनकी गिनती आज भी दर्शन, राजनीति, नीतिशास्त्र और मनोविज्ञान के महानतम विचारकों में होती है.
अरस्तु ने 17 वर्ष की उम्र में प्लेटो के विद्यालय में दाखिला लिया. 335 ईसा पूर्व में उन्होंने अपने स्कूल लाइसीयम Lyceum की शुरुआत की. तीन साल बाद सिकंदर ने इस विद्यालय में प्रवेश लिया. लाइसीयम शुरू करने के बाद Arastu ने अपना शेष जीवन का अधिकांश समय वहां पठन-पाठन और लेखन में ही गुजारा.
अरस्तु के सम्बन्ध में रोम के विद्वान सिसरो Marcus Tullius Cicero ने लिखा है कि ज्ञान-विज्ञान का ऐसा कोई भी विषय न था जिससे वह परिचित न हो. वह बहुत बड़ा ज्ञानी था और उसकी प्रतिभा बड़ी तीक्ष्ण थी. उसके विचारों मे नयापन और बुद्धि बहुत प्रखर थी. रेनन ने अरस्तु को विज्ञान का जनक बताया है.
Arastu ने तर्क शास्त्र, भौतिकी, खगोलविद्या, विकास, वायु-विज्ञान, प्रकृति विज्ञान, जन्तु-विज्ञान, सौन्दर्य शास्त्र, अलंकार शास्त्र, काव्य शास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीति, आचार-नीति शास्त्र और दर्शन इन सब विषयों पर खूब काम किया है.
अरस्तु का आरंभिक जीवन Early Life of Aristotle
अरस्तु के पिता निकोमेकस एक विद्वान चिकित्सक थे जो मेसेडन साम्राज्य के राजा आमिन्तस द्वितीय Amyntas II के दरबारी चिकित्सक थे. मेसीडोनिया के राज दरबार के साथ पिता का सम्बन्ध होने के कारण इसका विशेष प्रभाव अरस्तु के जीवन पर पड़ा.
यही कारण था कि भले ही उनके पिता निकोमेकस की मृत्यु जल्दी ही हो गई, लेकिन अरस्तु का मेसीडोनिया राजदरबार से सम्बन्ध जीवन पर्यन्त बना रहा. अरस्तु की माता फीस्टिस के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है. हालांकि माना जाता है कि अरस्तु की युवावस्था में ही उनकी मां की मृत्यु हो गई थी.
अरस्तु के पिता की मृत्यु के बाद उनकी देखभाल अरस्तु की बड़ी बहन एरिमनेस्टे के पति प्रोक्जेनस ऑफ एटेरनियस ने की. प्रोक्जेनस ने ही उन्हें 17 वर्ष की आयु में आगे की पढ़ाई के लिए एथेंस भेज दिया, जो उस वक्त उच्च शिक्षा का बड़ा केन्द्र माना जाता था.
एथेंस में Arastu की आरंभिक शिक्षा प्लेटो की एकेडमी में आरम्भ हुई. प्लेटो की दृष्टि में वह एकेडमी के सबसे मेधावी छात्र थे. अरस्तु ने 17 साल तक वहां शिक्षा प्राप्त की.
अरस्तु के गुरू प्लेटो की मृत्यु 347 ईसा पूर्व में हुई. प्लेटो के कुछ दार्शनिक सिद्धांतों से मतभेदों के चलते अरस्तु ने उनके विद्यालय के प्रमुख की भूमिका स्वीकार नहीं की. बल्कि वह, अपने मित्र माइसिया में एटेरनियस एवं एसोस के राजा हर्मियास के बुलावे पर उसके दरबार में चले गए.
अरस्तु का वैवाहिक जीवन Married life of Aristotle
अरस्तु माइसिया में करीब 3 साल तक रहे, जहां उन्होंने राजा हर्मियास की भतीजी पाइथियस से शादी कर ली. पहली पत्नी पाइथियस से उनकी एक बेटी हुई.
335 ईसा पूर्व में जब अरस्तु ने माइसियम खोला, उसी साल उनकी पत्नी पाइथियस की मृत्यु हो गई. कुछ समय बाद, अरस्तु को हर्पायलिस नाम की महिला से प्रेम हो गया, जो उनके गृह नगर स्टागिरा की रहने वाली थी.
कुछ लोगों का यह भी मत है कि हर्पायलिस एक दासी थी, जो उन्हें मेसेडोनिया दरबार से मिली थी. अरस्तु ने उसे मुक्त कर उससे विवाह किया. हर्पायलिस और अरस्तु की संतानों में से एक पुत्र का नाम उन्होंने अरस्तु के पिता निकोमेकस के नाम पर रखा.
सिकंदर का शिक्षक अरस्तु Arastu as Alexander’s Teacher
मेसेडोनिया के राजा फिलिप द्वितीय के एक पुत्र उत्पन्न हुआ जो आगे चल कर सिकन्दर के रूप में विख्यात हुआ. अपने इस पुत्र के जन्म के बाद फिलिप ने अरस्तु को यह पत्र लिखा-
आपको ज्ञात हो कि मुझे एक पुत्र प्राप्त हुआ है. इसके लिये मैं देवताओं को धन्यवाद देता हूं, और वह धन्यवाद विशेष कर इसलिये कि इस बालक का जन्म आपके समय में हुआ है. मुझ आशा है कि आपसे शिक्षा प्राप्त करके वह अपने को राज्य का योग्य उत्तराधिकारी सिद्ध करेगा.
जिस समय फिलिप ने यह पत्र लिखा उस समय अरस्तु की अवस्था तीस वर्ष भी नहीं हुई थी. किन्तु इस अल्प अवस्था में ही उसकी ख्याति चारों ओर फैल गई थी.
बहरहाल, कुछ ही समय बाद सिकंदर का प्रवेश अरस्तु के विद्यालय में करवा दिया गया. अरस्तु यानी अरिस्टाटिल के जितने शिष्य थे सब उनके प्रति श्रद्धा भाव रखते थे.
अलेकजेन्डर यानी सिकंदर की श्रद्धा भी किसी से कम नहीं थी. अरिस्टाटिल की विद्वता एवं बुद्धिमत्ता का वह प्रशंसक था, किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि गुरु के वाक्य उसके लिये ईश्वर वाक्य थे.
Arastu के प्रति सिकंदर की श्रद्धा और स्नेह छात्र जीवन के बाद भी बहुत दिनों तक बना रहा. उसका कथन था- ‘‘मेरे पिता मेरे जीवनदाता हैं. अरिस्टाटिल से मुझे यह ज्ञान प्राप्त हुआ कि मनुष्योचित जीवन किस प्रकार धारण किया जाता है.’’
जिस समय अरिस्टाटिल जीवन विज्ञान सम्बन्धी अनुसंधान में लगे हुए थे अलेकजेन्डर ने उनकी सेवा मे एक हजार लोग नियुक्त किये थे. उनका काम था पशु, पक्षी और मछलियों के विशिष्ट लक्षणों और आदतों का पर्यवेक्षण करने में अरस्तु की सहायता करना. सिकन्दर उन्हें खुले हाथों से आर्थिक सहायता भी दिया करता था.
जब सिकंदर ने एशिया के लिए प्रस्थान किया, तब अरस्तु एथेन्स लौट आये. यहां आकर 50 वर्ष की अवस्था में Arastu ने एक विद्यालय खोला. विद्यार्थी वहां उस युग के प्रख्यात दार्शनिक के उपदेशों से लाभ उठाने के लिये पहुंचने लगे. वे वहां दर्शन से लेकर काव्य शास्त्र और जीव विज्ञान तक विविध विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे.
Arastu के अंतिम वर्ष Last years of Arastu
जीवन के अन्तिम वर्षों मे अरस्तु को कितनी ही जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा. सिकंदर के विरोधी एथेन्सवासी सिकंदर का पक्ष लेने के कारण अरस्तु से नाराज हो गये थे. ग्रीस के नगर राज्यों की अपेक्षा अरस्तु सारे देश की अखण्ड रचना को बेहतर समझते थे.
उनका विचार था कि अलग-अलग संप्रभु सत्ताधारी राज्यों के नहीं रहने पर जब सारा देश एक हो जायेगा, उस समय संस्कृति एवं ज्ञान-विज्ञान की और अधिक उन्नति होगी. सिकंदर को वह इस एकता के लिए बहुत जरूरी समझता था. Arastu के इस विचार का एथेन्सवासियों ने तीव्र विरोध किया.
इस बीच सिकंदर ने Arastu की एक प्रतिमा नगर के बीचों-बीच स्थापित कर दी. इससे उसके शत्रुओं की संख्या बहुत बढ़ गयी और वे उसके निर्वासन या मृत्यु के लिए षड्यन्त्र करने लगे.
इसी समय अचानक सिकंदर की मृत्यु हो गयी, सारे एथेन्स के निवासी प्रसन्न हो उठे. मेसेडन का जो राजनीतिक दल शासन कर रहा था उसे परास्त करके एथेन्स की स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी गयी.
अरस्तु की मृत्यु Death of Aristotle
सिकंदर की मृत्यु के बाद अरस्तु को लगा कि उनके लिए एथेन्स में रहना ठीक नहीं है. उनके विरुद्ध एक पुरोहित ने नास्तिकता का अभियोग लगाया. अरस्तु पर अभियोग लगाया गया कि वह लोगों को यह शिक्षा देता है कि देवताओं की प्रार्थना और उनके लिए बलिदान व्यर्थ है.
Arastu को लगने लगा कि यहां रहने से उसकी भी वही दशा होगी जो सुकरात की हुई थी. एथेंस में उस समय प्रचलित कानून के अनुसार अभियुक्त को सजा के बदले निर्वासन को चुनने का अधिकार था. इसलिए उन्होंने सजा से बचने के लिए एथेंस छोड़ देने में ही बुद्धिमानी समझी.
इस तरह Arastu एथेन्स छोड़ कर एक द्वीप पर स्थित चैलासिस चले आये. कुछ ही दिनों के बाद वह पेट की गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए और चैलासिस पहुंचने के एक साल में ही उनकी मृत्यु हो गई.
Arastu का विश्व को योगदान
अरस्तु को आज भी एक महान् दार्शनिक एवं मनीषी के रूप में पूरी दुनिया में ख्याति प्राप्त है. आचार -नीति शास्त्र, काव्य शास्त्र, राजनीति एवं अलंकार शास्त्र की केवल उसने शिक्षा ही नहीं दी बल्कि उन पर एक सम्पूर्ण नवीन दृष्टि विकसित की. उनके दर्शन ने मध्य युग के अनेक दार्शनिकों एवं विचारकों को प्रभावित किया.
परस्पर विरोधी विभिन्न दर्शनों के बीच आज भी Arastu की दार्शनिक प्रणाली मान्य समझी जाती है. ईसाई धर्मतत्त्व के भाष्यकारों ने अपनी रचनाओं में उनकी चिन्तन प्रणाली को प्रायः ज्यों का त्यों ग्रहण कर लिया है.उनकी मुख्य कृतियों का विवरण इस प्रकार है.
‘ऑरगेनन’ ग्रन्थ में तर्क शास्त्र के नियमों का निरूपण किया गया है.
रेटोनिक ग्रन्थ अलंकार शास्त्र पर उनकी एक अनुपम कृति है.
‘एथिकस’ और ‘पौलिटिक्स’ -आचार नीतिशास्त्र और राजनीति पर उनके ग्रन्थ हैं. मध्ययुग और आधुनिक काल में समान रूप से इन दो विषयों में उनके सिद्धान्तों ने राजनीतिज्ञों और दार्शनिकों का ध्यान अपनी ओर खींचा.
अरस्तु और प्लेटो के विचारों में अंतर
अपने गुरू प्लेटो के साम्यमूलक गणराज्य के विरूद्ध Arastu ने अपना मत व्यक्त किया है. वह व्यक्ति की योग्यता उसकी स्वतंत्रता एवं निजत्व को अधिक महत्व देता था. प्लेटो ने जिस आदर्श राज्य की कल्पना की थी उसमें सब लोग परस्पर एक समान होंगे.
स्त्रियों और बच्चों पर सबका अधिकार होगा. अरिस्टाटिल का कथन था कि इस प्रकार के राज्य में प्रेम में स्थिरता नहीं होगी. किसी वस्तु या व्यक्ति के प्रति वास्तविक प्रेम तभी हो सकता है, जबकि प्रेम करने वाले व्यक्ति में यह भावना हो कि वह वस्तु उसकी अपनी है.
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