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भास्कराचार्य की जीवनी-information about bhaskaracharya
भास्कराचार्य प्राचीन भारत के महान वैज्ञानिक indian mathematicians थे. उन्होंने आधुनिक विज्ञान के ढेरों रहस्यों को सैकड़ों वर्ष पहले ही सुलझा लिया था. उन्होंने भारत के प्राचीन ज्ञान में अपनी विद्वता से इजाफा किया और आज भी उनके लिखे सिद्धान्त तथा विचार प्रासंगिक है. भास्कराचार्य का जीवन बहुत ही अनूठा रहा और उन्होंने भारतीय मनीषा में आर्यभट्ट से शुरू हुई परम्परा को आगे बढ़ाया. इसरो ने उनकी याद में bhaskara satellite लांच की थी.
भास्कराचार्य अपने समय में सबसे बड़े वैज्ञानिक थे. उनके समय तक भारत विज्ञान के क्षेत्र में यूरोप के किसी भी देश से पीछे नही थे. भास्कराचार्य बारहवीं शताब्दी मे यानी आज से लगभग साढ़े आठ सौ साल पहले हुए उस समय यूरोप के इटली, स्पेन, फ्रांस आदि देषो मे पुराने यूनानी ग्रंथों का नए सिरे से अध्ययन शुरू हुआ. उसी समय यूरोप की भाषाओं में अरबी ग्रंथो के भी अनुवाद हो रहे थे. इन अरबी ग्रंथो मे कई ऐसे भारतीय ग्रंथ थे जिनका संस्कृत भाषा से अरबी में अनुवाद हुआ था.
भारत में भास्कराचार्य ज्योतिष और गणित के बारे मे ग्रंथ लिख रहे थे और उधर यूरोप मे अरबी साहित्य के माध्यम से यूरोपवाले भारते के प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का परिचय प्राप्त कर रहे थे. उसी समय यूरोप में शून्य पर आधारित भारतीय अंकपद्धति का प्रवेश हुआ था. bhaskaracharya in hindi
भास्कराचार्य का आंरभिक जीवन- bhaskaracharya information
प्राचीन भारत के अन्य वैज्ञानिको की तरह भास्कराचार्य के जीवन bhaskaracharya biography के बारे मे भी हमें बहुत अधिक जानकारी नही मिलती. उन्होंने अपनी पुस्तको मे अपने बारे मे जो दो-चार बाते लिखी हैं, उतनी ही हमें मालूम है.
भास्कराचार्य अपने ग्रंथ में जानकारी देते हैं कि उनका जन्म सहयादि पर्वत-प्रदेश में स्थित विज्जडविड गांव में हुआ था. सहयादि पर्वत आजकल के महाराष्ट्र में है, परन्तु यह विज्जडविड गांव ठीक किस स्थान पर था, इसके बारे मे आज हम यकीन के साथ कुछ नहीं कह सकते.
भास्कराचार्य bhaskaracharya mathematician का प्रमुख ग्रंथ है सिद्धात-शिरोमणि. इसमें वे बतलाते हैं कि उन्होंने 36 साल की आयु मे इस ग्रंथ की रचना की और उनका जन्म शक-संवत् 1036 में हुआ था. शक-सवत् मे 78 साल जोड देने से ईसवी सन् प्राप्त होता है. अतः भास्कराचार्य का 1114 ईस्वी मे हुआ था. 36 साल की आयु मे, अर्थात् 1150 ई में, उन्होंने अपने इस महान ग्रंथ ‘सिद्धात-शिरोमणि’ की रचना की थी. उनके पिता का नाम महेश्वर था और वे जयोतिषी थे। वे ही भास्कराचार्य के गुरू भी थे.
भास्कराचार्य का ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि- bhaskaracharya books
भास्कराचार्य के किसी भी ग्रंथ मे किसी भी राजा की स्तुति नही है. इससे पता चलता है कि वे स्वतंत्र प्रकृति के पंडित थे और उन्होंने अपने बल पर ही विज्ञान का अनुसंधान किया था. भास्कराचार्य का सिद्धांत-शिरोमणि ग्रंथ संस्कृत में है. सिद्धांत-शिरोमणि ग्रंथ पद्य शैली में लिखा गया है.
भास्कराचार्य bhaskara mathematician ने यह ग्रंथ पद्य शैली में लिखा, परंतु वे जानते थे कि उनके समय के संस्कृत जानने वाले भी इसे समझ नही पाएंगे. इसलिए उन्होंने स्वय ही अपने ग्रंथ पर टीका लिखी. अपनी इस टीका को उन्होंने ‘वासनाभाष्य’ bhaskaracharya book का नाम दिया.
सिद्धांत-शिरोमणी siddhÄnta shiromani काफी बड़ा ग्रंथ है. यह चार भागों में बंटा हुआ है पाटीगणित या लीलावती, बीजगणित, गोलाध्याय और ग्रहगणित. पहली पुस्तक का विषय है अंकगणित. दूसरी पुस्तक का विषय नाम से ही जाहिर है कि बीजगणित है. तीसरी और चौथी पुस्तको में कालगणना और ज्योतिष की बाते हैं.
leelavathi book-लीलावती पुस्तक
पहली पुस्तक पाटीगणित ‘लीलावती’ lilavati book के नाम से ही अधिक है. बल्कि यह कहा जा सकता है कि प्राचीन भारत के वैज्ञानिक साहित्य में यही पुस्तक सबसे अधिक प्रसिद्ध हुई है. पर इस पुस्तक का यह ‘लीलावती’ नामकरण बडे कुतूहल का विषय है.
इस पुस्तक में संबोधन के रूप मे ‘लीलावती’ शब्द कई बार आया है. भास्कराचार्य लीलावती bhaskaracharya lilavati के सामने गणित के सवाल रखते हैं और वे लीलावती से इन सवालो का हल खोजने को कहते हैं.
lilavati bhaskaracharya relationship- लीलावती और भास्कराचार्य का सम्बन्ध
भास्कराचार्य कभी लीलावती की आंखों की तुलना हरिण की आंखो से करते हैं, तो कभी ‘सखी’ कहते हैं, कभी ‘बाले’ कहते हैं, तो कभी ‘प्रिये’ भी कहते है ! ऐसी हालत मे हम उलझन मे पड जाते हैं और समझ नही पाते कि लीलावती के साथ भास्कराचार्य का क्या रिश्ता था. क्या लीलावती भास्कराचार्य की प्रेमिका थी ? या कि वह उनकी पुत्री थी. फैजी जिन्होंने लीलावती का फारसी में अनुवाद किया है, उन्होंने लीलावती को भास्कराचार्य की पुत्री माना है लेकिन इसका कोई ठोस कारण नहीं दिया गया है।
लीलावती पुस्तक lilavati granth मे अंकगणित के परिकर्म समझाए गए हैं. ये सारे विषय हैं, ये सारे विषय आजकल की कक्षाओ मे पढ़ाए जाते हैं, पर लीलावती के कुछ प्रश्न काफी कठिन भी हैं. इतने कठिन कि वे बहुतो की बुद्धि को झकझोर दे सकते हैं.
भास्कराचार्य ने बीजगणित को ‘अव्यक्त गणित’ कहा है बीजगणित मे अव्यक्त यानी अज्ञात राशियों की सहायता से गणना की जाती है. आजकल इन अज्ञात राषियो के लिए हम क्ष,य जैसे अक्षरो का इस्तेमाल करते है. भास्कर के जमाने मे इन अज्ञात राषियो को ‘यावत्-तावत्’ कहते थे और इसे सक्षेप में ‘या’ लिखते थे.
पुराने जमाने में वर्गमूल के लिए आज जैसा √ चिह्नन नही था. जिस राशि का वर्गमूल जानना होता था, उसके पहले ‘क’ अक्षर लिख दिया जाता था. यह इसलिए कि उस समय वर्गमूल की क्रिया के लिए ‘करणी’ शब्द प्रचलित था. हमारे देश में भास्कर के भी बहुत जहले सरल-समीकरण, वर्ग समीकरण आदि को अच्छी तरह से जान लिया गया था. भास्कर ने अपनी दूसरी पुस्तक मे इनका बढ़िया विवेचन किया है.
आधुनिक गणित में शून्य और अनंत की धारणाओं का बड़ा महत्व है शून्य के चिह्न तथा इसके पीछे निहित गणितीय धारणा की खोज भारत में ही हुई थी. भास्कर ने गणित में शून्य के इस्तेमाल का बढ़िया विवेचन किया है. अन्त को उन्होने ‘ख-हर’ का नाम दिया था. ‘ख’ का अर्थ होता है ‘शून्य’ जिस संख्य के हर स्थान में शून्य का वह संख्या ‘ख-हर’ अर्थात् अंत होती है. इससे पता चलता है कि भास्कर को अंत से सबंधित गणित की बुनियादी बातो की अच्छी पहचान थी.
भास्कर के लगभग चार सौ साल बाद यूरोप के महान वैज्ञानिक आइजेक न्यूटन और लाइबनिट्ज ने इसी धारणा को आगे बढ़ाकर एक नए प्रकार के गणित को जन्म दिया था. इस नए गणित को कलन-गणित (कैल्कुलस) कहते हैं. कलन-गणित आज एक अत्यंत उपयोगी विज्ञान है. भास्कर के बाद यदि उनकी जैसी प्रखर प्रतिभावाले पंडित हमारे देश मे पैदा होते तो इस गणित शाखा का निर्माण हमारे देश मे भी हो सकता था.
भास्कराचार्य एक ऊंचे दर्जे के ज्योतिषी भी थे. सिद्धांत-शिरोमणि ग्रंथ की दो पुस्तको मे ज्योतिष की चर्चा है. तब तो ज्योतिष शास्त्र ने बहुत तरक्की की है. आधुनिक ज्योतिष के सामने भास्कराचार्य के समय का ज्योतिष-ज्ञान फीका नजर आता है. भास्कर के समय मे दूरबीन-जैसे आधुनिक ज्योतिषयत्र नही थे. ग्रह-नक्षत्रो की सही-सही दूरियाॅ जानने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं था. फिर हमारे पुराने ज्योतिषियो को ग्रह-नक्षत्रो की गतिविधियो का अच्छा ज्ञान था.
आकाश मे ग्रह-नक्षत्रो की गतियों और स्थितियों को जानने के लिए कई प्रकार के ज्योतिष-यंत्रो का इस्तेमाल होता था. भास्कर ने अपने ग्रंथ के एक प्रकरण मे इन ज्योतिष-यंत्रो की जानकारी दी है.
भास्कर के सिद्धांत-शिरोमणी ग्रंथ में फलित-ज्योतिष की कोई चर्चा नही. पर भास्कर जब बूढ़े हुए तो उन्होंने करण-कुतूहल नाम से एक पुस्तक लिखी. जिस पुस्तक मे पंचाग बनाने के तरीके बतलाए जाते हैं इसी कारण ग्रंथ कहते हैं. भास्कर की यह पुस्तक भी पंचाग बनाने के तरीके बतलाने के लिए लिखी गई थी. पंचाग के साथ फलित-ज्योतिष भी मिला रहता है. भास्कर ने अपनी यह पुस्तक 68 साल की उम्र मे लिखी थी.
भास्कराचार्य की मृत्यु
हम नही जानते कि भास्कर की मृत्यु किस साल हुई, परंतु 68 साल की आयु मे करण-कुतूहल जैसे कठिन ग्रंथ को उन्होंने लिखा, तो पता चलता है कि उस उम्र मे भी उनके शरीर और दिमाग मे कोई थकावट नही आई थी. कुछ स्रोत मानते हैं कि 1185 ईस्वी में उनकी मृत्यु हुई है लेकिन इसके बारे में ठीक-ठीक कुछ नहीं कहा जा सकता है।
bhaskaracharya contribution- भास्कराचार्य का योगदान
भास्कर केवल वैज्ञानिक ही नही थे. वे उच्च कोटि के कवि भी थे. उन्होंने अपने ग्रंथ मे गणित के सवालो के साथ-साथ प्रकृति के सौंदर्य का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है. भास्कराचार्य निस्संदेह एक महान गणितज्ञ थे. भारत में उनके ग्रंथो का बड़ा आदर हुआ और उन पर अनके टीकाएं लिखी गई.
फैजी ने 1587 ई में लीलावती का फारसी मे अनुवाद किया था. शाहजहां के दरबार के अताउल्लाह रसीदी ने 1634 मे भास्कर के बीजगणित का फारसी मे अनुवाद किया. ईस्ट इंडिया कपनी के अधिकारी एडवर्ड स्ट्रेची ने 1813 ई मे पहली बार भास्कर के बीजगणित का फारसी से अंग्रेजी मे अनुवाद किया था.
फिर जे. टेलर ने 1816 ई मे लीलावती का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया. परंतु लीलावती और बीजगणित का मूल संस्कृत से अंग्रेजी मे पहली बार प्रामाणिक अनुवाद हेनी थाॅमस कोलब्रूक ने 1817 ई मे किया. अब भास्कराचार्य के ग्रंथो के हिंदी मे भी कई अनुवाद उपलब्ध हैं.
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