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वोल्टेयर (voltaire) की जीवनी
वोल्टेयर (voltaire) के संबंध मे विक्टर ह्यूगो ने लिखा है-‘वोल्टेयर (voltaire) का नाम लेने सही संपूर्ण अठारहवीं शताब्दी अपने विशिष्ट गुणों के साथ हमारे सामने प्रत्यक्ष हो उठती है. एक दूसरे लेखक ने लिखा है-‘यदि हम मनुष्य का विचार इस बात से करें कि उसने अपने जीवन में क्या किया तो वोल्टेयर (voltaire) निस्संदेह आधुनिक यूरोप के सर्वश्रेष्ठ लेखक है. विधाता ने उन्हें 58 वर्ष की आयु इसलिए दी थी ताकि वे दुनिया बदल दें.
वोल्तेयर का आरंभिक जीवन
वोल्टेयर (voltaire) का जन्म सन् 1694 ईस्वी में पेरिस मे हुआ था. जन्म के साथ-साथ माता की मृत्यु हो गई. एक रूग्ण शिशु के रूप मे जन्म ग्रहण करने के कारण उनके बचने की कोई आशा नहीं थी.
बीमार होने पर भी उनमें ज्ञानार्जन की अदम्य इच्छा थी. 17 वर्ष की अवस्था में वोल्टेयर (voltaire) ने साहित्य को ही अपना जीवन बना लिया. पिता की इच्छा थी कि वे वकील बने इसलिए उन्होंने पुत्र को कानून की शिक्षा प्राप्त करने के लिए बाध्य किया.
कानून की शिक्षा समाप्त करके भी वोल्टेयर (voltaire) वकील नहीं बन सके. फ्रांस के कूटनीतिक विभाग में उन्हें एक नौकरी मिल गई और इस नौकरी के सिलसिले में उन्हें हालैंड जाना पड़ा. वहां उन्हें एक लड़की से प्रेम हो गया लेकिन उसके घरवाले इस रिश्ते से खुश नहीं थे. ऐसे में वोल्तेयर ने उनको लेकर पेरिस भाग आने का विचार करने लगे. किन्तु अधिकारियों को इसकी खबर लग गई और उन्हें पेरिस भेज दिया गया.
वोल्तेयर का साहित्य सृजन
वोल्तेयर के पिता ने उन्हें वकील बनने के लिए बाध्य किया लेकिन वॉल्तेयर ने साहित्य को ही अपनी आजीविका का साधन बनाया और पूरे तन मन से इस काम में जुट गए. वे बहुत उम्दा व्यंग्य लिखते थे जो ज्यादातर राज्य के विरूद्ध ही हुआ करता था. जिस समय 14 वे लुई की मृत्यु हुई, वोल्टेयर (voltaire) की अवस्था 21 वर्ष की थी. राजा की मृत्यु के बाद राजप्रतिनिधि ने आर्थिक कारणों से घोड़साल के आधे घोड़ों को बेच डाला.
इस पर वोल्टेयर (voltaire) ने लिखा, घोड़साल के घोड़ों को न बेचकर यदि उन गधों को जो राजसभा में भरे हुए हैं, उनमें आधे को विदा कर दिया जाता तो यह अधिक बुद्धिमानी का काम होता. वोल्टेयर (voltaire) के व्यंग्य कितने तीखे होते थे-इसका यह एक ज्वलंत उदाहरण है.
राजा के नाम से एक व्यंग्य-नाटक लिखने के अभियोग में उन्हें जेल की सजा हुई. जेल से छूटने पर उन्होंने कविता, की दो पुस्तके लिखीं. इन सब कृतियों के कारण उनकी साहित्यिक ख्याति चारों और फैल गई.
प्रकाशित होने के साथ-साथ वोल्टेयर (voltaire) की प्रत्येक पुस्तक जब्त कर ली जाती थी. इससे उनकी पुस्तकों को पढ़ने की चेष्टा करते थे. उनके लिखे नाटक दो रात्रि से अधिक अभिनीत नहीं हो पाते थे. कारण, राजाज्ञा से अभिनय बंद कर दिया जाता था. किन्तु दो रातों के अभिनय में ही दर्शक टूट पड़ते थे.
उनके नाटको के कितने ही वाक्य दर्शकों को कंठस्थ हो जाते थे. फ्रांस से बाहर वोल्टेयर (voltaire) के विरूद्ध यह भी अभियोग लगाया कि वह युवकों को नीतिभ्रष्ट करते हैं. उन दिनों फ्रांस में राजा के शासन की समालोचना करना अथवा अधिकारियों की योग्यता एवं बुद्धिमत्ता में सन्देह प्रकट करना भी नीतिहीनता मानी जाती थी.
वोल्टेयर (voltaire) का असली नाम फ्रांकई-मारी भारूई था. जिस समय वे कारागार में थे उसी समय उन्होंने अपना उपनाम वोल्टेयर (voltaire) रखा था और इसी उपनाम से कविता लिखा करते थे. कारागार में ग्यारह महीने की सजा काटने के पूर्व ही उन्होंने एक महाकाव्य की रचना कर डाली थी.
जेल से छूटते ही वोल्टेयर (voltaire) रंगमंच के लिए काम करने लगे और एक वियोगांत नाटक की रचना की. यह नाटक पेरिस में लगातार 45 रात्रि तक अभिनीत हुआ और इसे अभूतपूर्व सफलता मिली. वोल्टेयर (Voltaire) के वृद्ध पिता अपने पुत्र की कीर्ति सुनकर अभिनय देखने के लिए आए थे. अपने जिस पुत्र को उन्होंने आवारा समझ रखा था. उसकी असामान्य प्रतिभा का परिचय पाकर वे फूले नहीं समाए.
नाटक लिखकर वोल्टेयर (voltaire) ने काफी पैसा कमाया. धन का उन्होंने दुरूपयोग नहीं किया. जीवन मे धन का जो महत्त्व है उसे वे अच्छी तरह समझते थे. धनवान होने के साथ-साथ उनकी उदारता बढ़ती गई. उनके आश्रय में रहकर उनके कितने ही बंधु-बांधव उनसे सहायता पाने लगे. काव्य और नाटक के प्रकाशन से वोल्टेयर (voltaire) की प्रसिद्ध तत्कानीन अभिजात वर्ग में फैल गई थी.
अभिजात वर्ग ने उनका अपने बीच स्वागत किया और सब प्रकार से उन्हें बढ़ावा दिया. किन्तु उस वर्ग में कुछ लोग ऐसे भी थे जो वोल्टेयर (voltaire) की प्रतिष्ठा एवं प्रतिपत्ति से जलते थे. वे इस बात को नही भूल सकते थे. कि वोल्टेयर (voltaire) में प्रतिभा के सिवा और कोई ऐसा गुण या मर्यादा नहीं जिससे उन्हें अभिजार्त वर्ग में स्थान मिले.
एक दिन एक उद्यान-भोज के बाद वोल्टेयर (voltaire) ने एक चमत्कारपूर्ण भाषण किया. इस पर अभिजात वर्ग के एक व्यक्ति ने वहां की उपस्थित जनमंडली को सुनाकर कहा-‘इस तरह जोर व्याख्यान देने वाला यह नौजवान कौन है?
वोल्टेयर (voltaire) ने फौरन जबाब दिया-‘हुजूर, इस नौजवान के नाम के साथ मर्यादा की पूंछ नहीं लगी हुई है, मगर वह अपने नाम से ही सब लोगों में सम्मानित है.’ यह उत्तर सुनकर प्रश्न पूछने वाले जल-भुन गए और वोल्टेयर (voltaire) से इसका बदला लेने की ठानी.
उन्होंने वोल्टेयर (voltaire) के पीछे गुंडों को लगा दिया. साथ ही गुंडों को सावधान भी कर दिया-‘सिर पर आघात नहीं करना; उसके मस्तिष्क से अच्छी बातें निकल सकती है.’ गुंडों के प्रहार से घायल होकर लंगड़ाते हुए वोल्टेयर (voltaire) उस भद्र व्यक्ति के समक्ष उपस्थित हुए और उसे द्वन्द्व युद्ध के लिये चुनौती दी. इसके बाद वह घर चले गए और सारा दिन पिस्तौल चलाने का अभ्यास करते रहे.
उधर उस व्यक्ति ने द्वन्द्व युद्ध के भय से चुपके से अपने एक सम्बन्धी को जो राजकर्मचारी था, सूचना दे दी. वोल्टेयर (voltaire) गिरफ्तार कर लिये गये और एक बार फिर जेल में डाल दिये गये. जेल से शीघ्र ही उन्हें रिहाई मिल गई इस शर्त पर कि वे फ्रांस छोड़कर इंग्लैड चले जायं.
वोल्तेयर को देशनिकाला और अंग्रेजी साहित्य का सृजन
वोल्टेयर (voltaire) इंग्लैंड चले गये और वहां तीन वर्ष तक रहे. प्रवासकाल में उन्होने अंग्रेजी भाषा का अच्छा अभ्यास किया. न्यूटन, शेक्सपीयर और लौक की रचनाओं का मनोयोग पूर्वक अध्ययन किया. थोड़े समय के अन्दर ही उन्होंने अंगरेजी साहित्य दर्शन और विज्ञान का मंथन करके उसके सारतत्व को ग्रहण कर लिया.
अपने अनुभवों को उन्होंने ‘लेटर्स आन द इंग्लिष’ में लिपिबद्ध किया. इसकी हस्तलिखित प्रतियां मित्रमण्डली में वितरित की गई. छपाने का साहस इसलिये नहीं हुआ कि उसमें इंग्लैण्ड की प्रशंसा की गई थी और फ्रांस के अभिजात वर्ग और पुरोहित-सम्प्रदाय के अत्याचारों पर निर्मम आघात किया गया था.
इंग्लैण्ड में जिस समय वे थे, प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन की मृत्यु हुई थी. उसकी अर्थी का जो शानदार जलूस निकाला था उसे देख कर उन्हें आनन्द-मिश्रित विस्मय इसलिये हुआ कि एक वैज्ञानिक को राजकीय सम्मान प्राप्त हुआ था. अंग्रेज जाति की पार्लामेंटरी शासनपद्धति और न्यायनीति ज्ञान देख कर वोल्टेयर (voltaire) विशेष प्रभावित हुए थे.
फ्रांस में वापसी और वैवाहिक जीवन का आनंद
1729 ई० में वोल्टेयर (voltaire) को स्वदेष लौटने की अनुमति मिली. पांच वर्ष व्यतीत हो गये. इसके बाद एक ऐसी घटना हो गई जिससे पेरिस छोड़ना पड़ा. एक पुस्तक-प्रकाशक ने ‘लेटर्स आन द इंग्लिश’ की हस्तलिखित प्रति बिना उनकी अनुमति लिये छाप दी. पुस्तक के छपते ही फ्रांस के अभिजात वर्ग में तहलका मच गया.
पेरिस की पार्लामेंट ने आदेश दिया-‘खुली जगह में वोल्टेयर (voltaire) की पुस्तक जला डाली जाय. वोल्टेयर (voltaire) पहले ही ताड़ गये कि उन्हें फिर जेल की हवा खानी पड़ेगी. इसलिये चुपचाप भाग निकलने मे ही बुद्धिमानी है. किन्तु भागने के साथ-साथ उन्होंने एक नया कांड कर डाला.
वोल्टेयर (voltaire) इस समय 24 वर्ष के थे और वे एक विवाहिता स्त्री से उन्हें प्रेम हो गया था. वोल्टेयर (voltaire) उसको साथ लेकर पेरिस से निकल पडे़. वोल्टेयर (voltaire) की प्रेमिका गणित विद्या में पारंगत थी. फ्रेंच एकैडमी से उसे भौतिक विज्ञान विषयक एक निबन्ध पर पुरस्कार मिलने वाला था. दोनों ने एक साथ रहते हुए अपने मधुमय जीवन के पन्द्रह वर्ष आनन्द से व्यतीत कर दिये. इसके बाद दोनो अलग हो गए।
वॉल्तेयर का जर्मनी प्रवास
इसके बाद वोल्टेयर (voltaire) को जर्मन सम्राट् फ्रेडरिक का निमन्त्रण मिला. निमन्त्रण के साथ तीन हजार फ्रेंक मुद्रा यात्रा-व्यय के रूप में भेजी गई थी. 1740 में वोल्टेयर (voltaire) ने बर्लिन के लिये प्रस्थान किया. फ्रेडरिक के राजप्रसाद में वह आनन्दपूर्वक रहने लगे. राजा उनके गुणों पर मुग्ध था. अपने एक पत्र में वोल्टेयर (voltaire) ने राजप्रसाद के इस जीवन की तुलना स्वर्गसुख से की है.
इसके बाद एक ऐसी घटना हो गई जिससे वोल्टेयर (voltaire) को फ्रेडरिक को जब अपनी रचना उन्होंने पढ़ सुनाई, वह बहुत प्रसन्न हुआ और रात भर हंसता रहा. राजा ने वोल्टेयर (voltaire) से अनुरोध किया कि उसे प्रकाशित न किया जाय. किन्तु तब तक वह छपने के लिये भेजी जा चुकी थी. उसे छपा हुआ देखकर राजा आग-बबूला हो उठा. राजा के क्रोध से बचने के लिये वोल्टेयर (voltaire) वहां से भाग निकले.
वोल्तेयर के साहित्य से क्रांति का सूत्रपात
जर्मनी का सिमाना पाद करके वह फ्रांस जाना ही चाहते थे जब कि उन्हें पता चला कि वे अपने देश मे निर्वासित हैं. अतः उन्हे कुछ समय तक इधर-उधर भटकना पड़ा और अन्त में स्वीटजलैंड में एक पुरानी जमींदारी खरीद कर वहीं बस गये. वोल्टेयर (voltaire) जहां रह रहे थे उसके पास ही, एक शहर में, ईसाई धर्म-पुरोहितों ने अत्यन्त निष्ठुर भाव से एक सोलह वर्ष के लड़के की हत्या कर डाली थी.
इस क्रूर हत्या का हाल जब वोल्टेयर (voltaire) को मालूम हुआ, वे बडे क्षुब्ध हुए. इसके बाद उन्होंने पुरोहितों के अत्याचार एवं धर्माधता के विरूद्ध अपनी लेखनी द्वारा व्यंग्य-बाण चलाना शुरू किया. इससे पुरोहितों के विरूद्ध जनमत संगठित होने लगा. पुरोहित वर्ग तिलमिला उठा.
वोल्टेयर (voltaire) को धन का प्रलोभन दिया गया. किन्तु संग्राम आरंभ हो चुका था. इसलिये अब उससे विरत होने की कोइ्र बात ही नहीं थी. वोल्टेयर (voltaire) की लेखन से क्रांति का विस्फोट होने लगा. एक-एक पुस्तक की लाखों प्रतियां बिकने लगीं. इस प्रकार एक और वोल्टेयर (voltaire) और दूसरी और रूसो की वाणी ने फ्रांस की राज्य-क्रांति के लिए तत्कालीन जनता में क्रांति के बीज बोए.
वोल्तेयर की मृत्यु
83 वर्ष की उम्र में मृत्यु से पूर्व वोल्टेयर (voltaire) के मन में पेरिस देखने की प्रबल इच्छा हुई. डाॅक्टरों ने सलाह दी कि यह यात्रा उनके लिये घातक सिद्ध हो सकती है. किन्तु डाॅक्टरों की सलाह न मानकर वे पेरिस के लिये चल पड़े. फ्रांसीसी सिमाना पर चुंगी विभाग के एक कर्मचारी ने उनकी गाड़ी को रोका.
कर्मचारी यह देखना चाहता था कि उस गाड़ी पर कोई चीज गैरकानूनी ढंग से तो नहीं ले जाई जा रही है. इसके बदले उसे एक अतिवृद्ध पुरूष को उस पर बैठे हुए देखा. कर्मचारी के प्रश्न के उत्तर मे वोल्टेयर (voltaire) ने कहा-‘गाड़ी में एकमात्र मुझे छोड़कर और कोई गैरकानूनी चीज नहीं है.’ कर्मचारी ने उन्हें पहचाना. उनकी गाड़ी पेरिस पहुंची उस समय तक उनकी दश खराब हो चुकी थी.
पेरिस में उनका एक राजा जैसा उनका स्वागत हुआ. यह सब देखकर लुई सोलहवां ईर्ष्या से जल उठा. इतने दिनों के बाद वोल्टेयर (voltaire) के देशवासियों ने उनका यथोचित सम्मान किया.
मृत्यु के पूर्व उन्होंने अपना एक वक्तव्य अपने सेक्रेटरी के हाथ में दिया. उसमें लिखा हुआ था-‘मैं ईश्वर की उपासना करते हुए, अपने मित्रों से पे्रम करते हुए, शत्रुओं के प्रति किसी प्रकार का घृणाभाव मन में नहीं धारणा करते हुए और अन्धविष्वास को घृणित समझते हुए मृृत्यु का आलिंगन करता हूं.
30 मई 1778 ईस्वी को जब उनकी मृत्यु हुई, पेरिस के धर्म पुरोहितों ने ईसाई धर्म के अनुसार उनकी अंत्येष्टि-क्रिया करना स्वीकार नहीं किया. इसलिये उनके शव को नगर के बाहर एक गांव में दफनाया गया. इसके बाद 1791 ई० में जब फ्रांस के विजयी विद्रोही दत्ता ने राजा लुई की हत्या की उस समय वोल्टेयर (voltaire) के मृत शरीर को कब्र से निकाल कर बाहर लाया गया.
एक विराट जुलूस में एक लाख स्त्री-पुरूष सम्मिलित थे और 6 लाख स्त्री-पुरूष राजमार्ग के दोनों और खडे होकर यह हृदय देख रहे थे. शव वाहन पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था-‘मनुष्य के मन को वोल्टेयर (voltaire) से बड़ा बल मिला, इन्होंने स्वतन्त्रता के लिए हमें प्रेरित किया.
Voltaire quotes – वोल्तेयर के कोट्स
quotes by voltaire– तुम्हारी बातों से मेरा मतभेद हो सकता है लेकिन तुम्हारे कहने के अधिकार की मैं अपने प्राण देकर भी रक्षा करूंगा।
‘मैने एक परिणीता स्त्री को अपनी प्रेमिका बनाया. अब एक अन्य व्यक्ति ने उसके ऊपर अपना अधिकार जमाया है. संसार में यही व्यवस्था होती है. एक कील दूसरी कील को निकाल-बाहर कर देती है, यही दुनिया का रवैया है।
मैं जिस रूप में स्वाधीन विचार करता हूं उसी रूप में अपने विचारों को लिपिबद्ध करता हूं.
‘धर्म को राजनीति और कानून के क्षेत्र से पृथक् करो.
‘किसी काम में नहीं लगे रहना और जीवित नहीं रहना एक ही बात है ‘आलसी के सिवा और सब लोग अच्छे हैं.’
संसार में जीवन के भार को वहन करने के लिये यह आवश्यक है कि निरन्तर अपने को व्यस्त रखा जाय. ज्यों-ज्यों मेरी अवस्था बढ़ती जाती है त्यों-त्यों काम करना मैं अपने लिये जरूरी समझता हूं. अन्त में यह जीवन का चरम आनन्द बन जाता है. यदि तुम आत्महत्या नहीं करना चाहते हो तो हमेशा कुछ करते रहो.’
‘मैं ईश्वर की उपासना करते हुए, अपने मित्रों से प्रेम करते हुए, शत्रुओं के प्रति किसी प्रकार का घृणाभाव मन में नहीं धारणा करते हुए और अन्धविश्वास को घृणित समझते हुए मृृत्यु का आलिंगन करता हूं.
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