confucius biography and quotes [Hindi]-कन्फ्यूशियस की जीवनी

कन्फ्यूशियस के जीवन की रोचक घटनायें और कथन

कन्फ्यूशियस का चीन के दर्शन और धर्म पर बहुत प्रभाव था. उसके विचारों की तेज इतनी थी कि चीन हजारों सालों तक उसके बाहर कोई विचार ही नहीं सोच सका. 1912 में चीन के सम्राट ने जब राजसिंहासन छोड़ दिया और चीन में साम्यवादी सत्ता की स्थापना हुई.

तब एक सवाल सामने आया कि चीन का राजधर्म क्या होना चाहिये. बात यह थी कि पिछले दो हजार वर्ष से भी अधिक चीन में कनफूसियस द्वारा प्रवत्तित धर्म राजधर्म के रूप में मान्य था. कन्फ्यूशियस का यह प्रभाव था, चीन पर.

कन्फ्यूशियस कौन थे?

कन्फ्यूशियस का जन्म 28 सितम्बर, 551 ईसा पूर्व हुआ था. उनके पिता शू-लियांग-हाई सेना विभाग में एक उच्च पदाधिकरी थे. कन्फ्यूशियस का जन्म की कथा भी बहुत रोचक है. उनके पिता की बहुत सी पुत्रियां थी किन्तु पुत्र कोई नहीं था. सत्तर वर्ष की अवस्था में उन्होंने दूसरा विवाह किया जिससे उन्हें पुत्र-रत्न प्राप्त हुआ. प्राचीन काल के दूसरे महापुरूषों की तरह इनके जन्म को लेकर भी कितनी ही दन्तकथाएं प्रचलित हैं.

कहते है कि इनकी युवती माता ने भगवान से पुत्र के लिये प्रार्थना की और भगवान को प्रसन्न करने के लिये कितने ही अनुष्ठान किये. इसके फलस्वरूप उसे स्वप्न में देवता का दर्शन हुआ और देवता ने उसे वरदान दिया, ‘तुम्हें एक पुत्र होगा, जो बड़ा ज्ञानी होगा.’ कन्फ्यूशियस जब तीन वर्ष के थे, उनके पिता की मृत्यु हो गई. इससे उनके परिवार को आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ा. कन्फ्यूशियस पढ़ना चाहते ​थे लेकिन घर चलाने के लिये उन्हें काम करने के लिये मजबूर होना पड़ा.

कन्फ्यूशियस के जीवन की महत्वपूर्ण घटनायें

सोलह साल में उनका विवाह हुआ और इस विवाह से उन्हें एक पुत्र और दो बेटियां हुई. विवाह के कुछ समय बाद ही उन्हें एक सरकारी पद मिला. अपने काम और बुद्धिमानी की वजह से जल्दी ही वे पशुपालकों के निरीक्षक नियुक्त हो गये. 22 साल की उम्र में उन्होंने एक शिक्षण-संस्था की स्थापना करके अध्यापक एवं उपदेश का काम शुरू कर दिया.

अपने छात्रों को वे सदाचार एवं राज्य-शासन के सिद्धान्तों की व्याख्या किया करते थे. एक अध्यापक एवं प्रशासक के रूप में उनका नाम प्रसिद्ध होने लगा. इस समय से ही वे अपने मतवाद का प्रचार करने लगे और एक जननायक के रूप में प्रसिद्ध हुए.

उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया जब 517 ईसा पूर्व में लू राजपरिवार से सम्बन्ध रखने वाले दो युवक उनके शिष्य बन गये. उनके साथ कनफूसियस ने राजधानी की यात्रा की. वहां के राजकीय पुस्तकालय में उन्होंने ऐतिहासिक अनुसन्धान कार्य किया और इसके साथ-साथ संगीत भी सीखा.

संगीत उनका अति प्रिय विषय था. संगीत का प्रभाव उनके जीवन पर गम्भीर रूप में पड़ा था. मधुर स्वर सुनने में वे इतने तल्लीन हो जाते थे कि भोजन का स्वाद तक भूल जाते थे. उन्होंने जो राज्य पर शासन की जो योजना बना रखी थी उसमें संगीत का भी समावेश था.

52 वर्ष की अवस्था में वे यंग-तू नगर के शासक के पद पर नियुक्त हुए, इस पर उन्होंने जो कुछ कर दिखाया वह सब के लिये विस्मजनक सिद्ध हुआ. शीघ्र ही उनकी पदोन्नति हुई और वे राज्य के उच्चतम पदों पर प्रतिष्ठित हुए. अपनी प्रतिभा और अपने दो शिष्यों की सहायता की बदौलत उन्होंने शासन-नीति में चमत्कार कर दिखाया. उनके शासन काल में सभी जगह न्याय का शासन था.

कन्फ्यूशियस ने शासन-नीति में जो सुधार किये थे वे आधुनिक काल के लिये भी समान रूप से उपयोगी है. उनमें कुछ तो आज की सामाजिक धारणाओं से भी आगे बढ़े हुए है.

उन्होंने दरिद्रों के लिये केवल भोजन का ही प्रबन्ध नहीं किया बल्कि युवकों एवं वृद्धों के लिए पृथक भोजन की भी व्यवस्था की, उन्होंने वस्तुओं का मूल्य निर्धारित कर दिया और व्यापार के विकास के लिये राजस्व का उपयोग किया.

यातायात के साधनों में उन्नति हुई, सड़कों और पुलों की मरम्मत की गयी. उन्होंने पहाड़ो में जो लुटेरे भरे हुए थे उन्हें खत्म कर दिया. सामन्तों के अधिकार नियन्त्रित किये गयें, साधारण जनों को अत्याचार से मुक्ति मिली और न्याय की दृष्टि में सब मनुष्य समान समझे गये.

कन्फ्यूशियस की यह शासन नीति यद्यपि जनता में अत्यन्त लोकप्रिय सिद्ध हुई, किन्तु राज्य में स्वार्थ वाला जो धनिक वर्ग था वह उनसे बहुत चिढ़ गया. कन्फ्यूशियस के शासन सुधार में जो लोग विघ्न डालने वाले थे वे चाहे कितने ही महान् क्यों न हों कन्फ्यूशियस उन्हें सजा देने में जरा भी आगे-पीछे नहीं करते थे.

कन्फ्यूशियस उच्च प्रशासकीय पद पर केवल तीन वर्षो तक रहे. इसके बाद तेरह साल तक वे एक राज्य से दूसरे राज्य में घूमते रहे. उन्हें आशा थी कि कोई राजा ऐसा मिल जायगा जो अपन राज्य का शासन-भार उनके ऊपर सौंपकर उन्हें यह अधिकार दे देगा कि उस राज्य को वे एक आदर्श राज्य में परिवर्तित कर डालें किन्तु उनकी यह आशा पूर्ण नही हुई.

कन्फ्यूशियस की मृत्यु

जीवन के आखिरी दिनों में कनफूसियस को अनके कठिनाइयों का समाना करना पड़ा. वे कई स्थानों में घूमते रहे. जहां-जहां वे जाते लोगों को सदाचार एवं सुशासन की सीख देते. उनका ज्यादा समय अध्ययन एवं चिन्तन में व्यतीत होता.

उनके शिष्यों की संख्या में समय के साथ बढ़ोतरी होती गई. जहां-जहां वे जाते उनके कुछ शिष्य उनके साथ हो लेते और उनके मुख से निकले हुए एक-एक शब्द को अत्यन्त मूल्यवान समझ कर संग्रहीत कर लेते. उनके शिष्यों ने ही उनके विचारों का वृहद् संग्रह किया.

अपने जीवन के आखिरी दिनों को उन्होंने लिखने और शिष्यों को पढ़ाने में व्यतीत किये. इसी समय उन्होंने अपनी एकमात्र पुस्तक की रचना की जो सम्पूर्णतया उनकी मौलिक कृति है. इस पुस्तक का नाम है. ‘‘चन चिउ किंग’’ अर्थात् बसन्त और पतझड़ इसमें 240 वर्षों की ऐतिहासिक कथाओं का संग्रह है.

कनफूसियस के महत्व का आंकलन का विचार उनके इस ग्रन्थ से नहीं बल्कि उनके उपदेशों का प्राचीन युग से लेकर अब तक चीन के ऊपर जो प्रभाव पड़ा है, उससे ही किया जा सकता है.

उनकी मृत्यु के दो सौ वर्ष बाद एक सुधारवादी चीनी सम्राट् ने अपनी शक्ति एवं प्रभुत्व के बल पर चीन से कनफूसियस के सारे प्रभाव को निषिचह्न कर देने का प्रयत्न किया. उसने आचार्य की सारी कृतियों को जला दिया और उनके सिद्धान्तों को मानने वाले प्रत्येक विद्वान को मरवा डाला. किन्तु फिर भी वह सफल नहीं हुआ.

जीवन के अन्तिम दिनों में उनकी पत्नी का देहान्त हो गया. कुछ समय बाद उनके पुत्र की भी मृत्यु हो गई लेकिन इस दुख को भी वे धैर्य के साथ सह गये. आखिर में उन्होंने 11 अप्रेल 479 ईसापूर्व इस दुनिया को अलविदा कह दिया. वे तो चले गये लेकिन उनका बनाया धर्म शास्त्र और उपदेश अमर हो गये

कन्फ्यूशियस के कथन

परिपूर्ण मनुष्यत्व जिसके जीवन का लक्ष्य है वह कभी इन्द्रिय तृप्ति के लिये काम नहीं करेगा.

एक सदाचारी व्यक्ति कभी भी व्यक्तिगत सुख-भोग और आराम की इच्छा नही करेगा सब विषयों में वह काम करेगा, किसी के साथ बातचीत करते समय वह अत्यन्त सावधान और सचेत बना रहेगा.

एक सदाचारी व्यक्ति दोषों से अपने को मुक्त करेगा. वह अपने जीवन को इस प्रकार अनुशासित करता है वही सच्चे अर्थ में ज्ञानी कहा जा सकता है.

जब तुम्हारी और कोई ध्यान नहीं देता तब क्या तुम क्रोध करते हो ? यदि नहीं करते तभी समझना होगा कि परिपूर्ण मनुष्यत्व तुमने प्राप्त किया है.

निश्छलता और दृढ़ आत्मविश्वास, मनुष्यत्व लाभ के यही दो सोपान हैं.

जिस समय तुम्हें अपने अन्दर कोई दोष या त्रुटि मालूम पड़े उसका परित्याग करने में भय या शंका नहीं होनी चाहिये.

बुरा व्यक्ति कौन है? वह जो सत्य को जानता है, किन्तु जीवन में बरतता नही. यदि सच्चे अर्थ में मनुष्य बनना चाहते हो तो बुराई का परित्याग करना ही होगा.

श्रेष्ठ व्यक्ति का लक्षण क्या है? जो क्षण भर के लिये भी धर्मविरोधी आचरण नहीं करता और घोर विपत्ति के समय में भी जो दृढ़ भाव से धर्म का आश्रय ग्रहण किये रहता है.

श्रेष्ठ व्यक्ति मितभाषी, संयमी एवं कर्मशील बनने की इच्छा करेगा. श्रेष्ठ व्यक्ति कभी सही पथ से विचलित नहीं होगा.

सर्वागींण मनुष्यत्व की साधना के लिये शरीर, वाक् और मन से सत्य को ग्रहण करना होगा.

सत्य को जो जानते हैं वे कभी भी उन लोगों की बराबरी नहीं कर सकते जो सत्य के अनुरागी हैं, और सत्य से जो प्रेम करते है, वे उनके बराबर नहीं है जिन्हें सत्य के पालन में आनन्द मिलता है.

सत्य को केवल बुद्धि के द्वारा जानने से काम नहीं चलेगा, उसके प्रति आन्तरिक अनुराग होना चाहिए और उसका आश्रय करके परम आनन्द प्राप्त करना चाहिये.

श्रद्धा जब सीमा को पार कर जाती है तब वह बाह्म आडम्बर का रूप धारण कर लेती है.

सतर्कता जब सीमा का अतिक्रमण कर जाती है तब वह भीरूता बन जाती है.

शक्ति जब सीमा का पार कर जाती है तब वह अद्वितीय बन जाती है और निश्छलता जब सीमा से बढ़ जाती है तब वह रूढ़ता बन जाती है.

जब मनुष्य मात्रा या सन्तुलन का ज्ञान खो बैठता है तब उसका जीवन सामञजस्यहीन बन जाता है.

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