101 Names Of Lord Shiva – शिव जी के 101 नाम

महाशिवरात्रि पर शिव जी के 101 नाम का जाप करने से होते हैं शिव प्रसन्न

शिव जी के 101 नाम जप करने से समस्त दुखो का नाश होता है. शिव जी महिमा इतनी अपरम्पार है कि उन पर सहस्त्र नामावली भी लिखी जा सकती है. हिंदी हाट शिव जी के 101 नाम को अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहा है.

शिव जी के 101 नाम @Hindihaat
महेश्वर
शिव
शंभवे
पिनाकिने
शशिशेखर
वामदेवाय
विरूपाक्ष
कपर्दी
नीललोहित
भव
शंकर
शर्व
शूलपाणी
त्रिलोकेश
खटवांगी
शितिकण्ठ
विष्णुवल्लभ
शिवाप्रिय
शिपिविष्ट
उग्र
अंबिकानाथ
कपाली
श्रीकण्ठ
कामारी
भक्तवत्सल
अंधकारसुर
सूदन
भर्ग
गंगाधर
गिरिधन्वा
ललाटाक्ष
गिरिप्रिय
कालकाल
कृत्तिवासा
कृपानिधि
पुराराति
भीम
भगवान्
परशुहस्त
प्रमथाधिप
मृगपाणी
मृत्युंजय
जटाधर
सूक्ष्मतनु
कैलाशवासी
जगद्व्यापी
कवची
जगद्गुरू
कठोर
व्योमकेश
त्रिपुरान्तक
महासेनजनक
वृषांक
चारुविक्रम
वृषभारूढ़
रुद्र
भस्मोद्धूलितविग्रह
भूतपति
सामप्रिय
स्थाणु
स्वरमयी
अहिर्बुध्न्य
त्रयीमूर्ति
दिगम्बर
अनीश्वर
अष्टमूर्ति
सर्वज्ञ
अनेकात्मा
परमात्मा
सात्विक
सोमसूर्याग्निलोचन
शुद्धविग्रह
हवि
शाश्वत
यज्ञमय
खण्डपरशु
सोम
अज
पंचवक्त्र
पाशविमोचन
सदाशिव
मृड
विश्वेश्वर
वीरभद्र
देव
गणनाथ
महादेव
आशुतोष
अव्यय
महाकाल
हरि
भगनेत्रभिद्
वैद्यनाथ
अव्यक्त
त्रिपुरारि
दक्षाध्वरहर
भोलेनाथ
हर

शिव जी के 101 नाम सम्पूर्ण

शिव चालीसा shiv Chalisa 
॥दोहा॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥

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