रामनवमी की कथा और पूजा विधि

रामनवमी भगवान राम के अवतरण दिवस का पर्व है। इसी दिन भगवान राम ने राजा दशरथ के घर जन्म लिया था और अपनी लीला से विश्व को विस्मृत कर दिया था। चैत्र शुक्ल नवमी को भगवान राम ने भगवान विष्णु के सातवें अवतार के तौर पर जन्म लिया। वाल्मिकी रामायण में उनके जन्म के सम्बन्ध में श्लोक मिलता है:

ततो यज्ञे समाप्ते तु ऋतूनां षट्समत्ययु:।
ततश्च द्वादशे मासे चैत्रे नावमिके तिथौ॥८॥
नक्षत्रेऽदितिदैवत्ये स्वोच्चसंस्थेषु पञ्चसु।
ग्रहेषु कर्कटे लग्ने वाक्पताविन्दुना सह॥६॥
प्रोद्यमाने जगन्नाथं सर्वलोकनमस्कृतम्।
कौसल्याऽजनयद्रामं सर्वलक्षणसंयुतम्॥१०॥
विष्णोरर्धं महाभागं पुत्रमैक्ष्वाकुवर्धनम्।

श्रीमद्वालमीकि रामायण, सर्ग 15 से लिये हुए उपर्युक्त श्लोको मे महाराज दशरथ द्वारा किये गए पुत्रेष्टि यज्ञ के संदर्भ से आगे का हाल दिया गया है ।

“यज्ञ के समाप्त होने पर छ ऋतुएँ और बीती अर्थात एक वर्ष बीता, बारहवें चैत्र महीने में नवमी तिथि को जब पुनर्वसु नक्षत्र था, पांच (रवि, मंगल, शनि, गुरू और शुक्र ग्रह अपने उच्च स्थान पर थे, बृहस्पति चंद्रमा के साथ थे, तब ​कर्क लग्न में कौशल्या ने अलौकिक लक्षणों से युक्त राम को जन्म दिया। वे जगन्नाथ थे और सबसे नमस्कृत थे।”

उन्हीं श्रीराम का जन्मोत्सव इस तिथि रामनवमी को सारे भारत में बड़ी श्रद्धा से मनाया जाता है। उनके पवित्र जीवन में मानव समाज को जो प्रेरणाएँ प्राप्त हुई हैं, उन्हीं से उपकृत होकर हम उनकी जन्म- तिथि को अपना सबसे बड़ा त्यौहार मानते है। इम देश के प्रत्येक प्रान्त का साहित्य उनके पावन चरित्र की गाथाओं से अलंकृत है।

हिंदी भाषा मे तो गोस्वामी श्री तुलसीदासजी ने उनकी जीवनकथा दोहे चौपाइयों और छंदो में लिखा है। उन्होंने आज ही के दिन श्री रामचरितमानस ग्रंथ की रचना प्रारम्भ की थी। इस ग्रंथ का निर्माण श्री अयोध्या में हुआ। इस ग्रंथ की भाषा, भाव और शैली इतनी चित्ताकर्षक और हृदयग्राही है कि आज एक किसान की झोपड़ी से लेकर बड़े से बड़े राजभवनों में भी उसका गान बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ होता है।

कब आती है रामनवमी?

विक्रमीय संवत्सरो मे दो नवरात्रियाँ होती है। एक चैत्रमास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक और दूसरी आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक। पहली को वांसतीय नवरात्र और दूसरी को शारदीय नवरात्र कहते हैं। इसी वांसतीय नवरात्रि के दौरान रामनवमी का महोत्सव आता है।

इस दिन पूरे भारत में रामनवमी की यात्राएं और जुलूस निकाले जाते हैं। अनेक रामभक्त इस अवसर पर प्रतिवर्ष उपवास रखकर पतितपावनी सरयू के जल में स्नान करके, भजन-कीर्तन आदि मे अपना दिवस व्यतीत करते हैं। श्रद्धालु भक्त देवमन्दिरों में या अपने अपने घरो मे ही श्रीराम का स्मरण करते हुए वाल्मीकि रामायण वा रामचरितमानस का पाठ करते हैं।

भगवान राम का परिचय

श्रीराम की जीवन-गाथा से कदाचित ही कोई व्यक्ति अपरिचित होगा। उनका अवतार त्रेता युग मे अवध नरेश महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से हुआ। उनके तीन और भी छोटे सौतेले भाई थे परन्तु चारों भाइयो का प्रेम हमारे जीवन के लिए आदर्श प्रेम का प्रतीक था।

श्रीराम ने बचपन की अवस्था में ही अपने शौर्य से कई दैत्यों और राक्षसों का वध किया। महर्षि विश्वामित्र की यज्ञ रक्षा करते हुए उन्होंने विघ्नकारियो और उपद्रवी राक्षसो का दमन किया। शिव का धनुष भंग करके मिथिलापति राजा जनक की कन्या सीता के संग विवाह किया।

अयोध्या में वापस पाने पर विमाता कैकेई के हठ के कारण राज्य छोड़कर वन जाना स्वीकार किया और चौदह वर्षों का दीर्घ समय भाई लक्ष्मण और पत्नी सीता के सहित वहाँ रहते हुए व्यतीत किया। माता सीता का रावण द्वारा हरण करने के पश्चात सुग्रीव और हनुमान की सहायता से लंकापति का वध किया और असत्य पर सत्य की स्थापना की।

रामायण और रामचरित मानस में राम का चरित्र

आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने श्री रामचरित्र लिखकर संस्कृत भाषा मे प्रथम पुस्तक का निर्माण किया। यह ग्रंथ श्रीमद्वाल्मीकि रामायण के नाम से हमारे समाज मे विख्यात है। उन्होंने लिखा है- ‘रामो विग्रहवान्धर्म’ अर्थात् श्रीराम धम के मूर्तिमान स्वरूप है।

तत्कालीन समाज का चित्रण करते हुए कविवर गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने रामचरितमानस में लिखा है-

बाढ़े खल बहु चोर जुआरा। जे लंपट परधन परदारा॥
मानहिं मातु पिता नहिं देवा। साधुन्ह सन करवावहिं सेवा॥
जिन्ह के यह आचरन भवानी। ते जानेहु निसिचर सब प्रानी॥
अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी। परम सभीत धरा अकुलानी॥

ऐसे चरित्र वाले लोगो को अधिकता देखकर महर्षि विश्वामित्र को बड़ी चिंता हुई। उन्होंने महाराज दशरथ के पास जाकर समाज की इस दशा का वर्णन किया और समाज को अच्छे चरित्र का पाठ पढ़ाने की आशा से श्री राम-जैसे चरित्रवान पुत्र को माँगा।

उन्हीं श्री राम ने समाज सेवा या व्रत लेकर हिमालय से लंका तक एक ऐसे राज्य की स्थापना की जिसे हम राम राज्य के नाम से आज तक स्मरण करते हैं। उस राज्य मे कोई किसी से द्वेष नहीं करता था। सब लोग पारस्परिक प्रेम के साथ रहकर एक दूसरे को सहयोग देते थे। कोई दुखी नहीं, कोई रोगी नहीं और अन्न तथा वस्त्र हीन नहीं था। दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को सताते नहीं थे।

यही कारण है कि हजारों वर्षों का समय बीत जाने पर भी श्री राम की पुनीत स्मृति हमारे हृदय में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इतना ही नहीं, श्री राम तो हमारे जीवन में इतने समा गए हैं कि उनके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्हीं श्री राम का जन्मदिन चैत्र शुक्ला नवमी को प्रत्येक भारतीय उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाता है और इसी कारण इसे रामनवमी कहते हैं।

रामनवमी पर कैसे करें भगवान राम की पूजा?

भगवान राम की पूजा के लिए सबसे पहले पूजा सामग्री जुटा लेना चाहिए। रामजी की पूजा के लिए निम्न सामग्री की आवश्यकता होती है:

  • चौकी
  • राम दरबार
  • लाल कपड़ा
  • अक्षत या कच्चे चावल जो खंडित न हो
  • तुलसी पत्र
  • दीपक
  • घी
  • फूल
  • चंदन
  • रोली
  • मोली
  • मिठाई

सबसे पहले चौकी पर लाल कपड़ा बिछा कर रामदरबार स्थापित करें। इसके बाद रामदरबार के सामने स्वास्तिक का निशान अक्षत की सहायता से बनाकर उस पर दीपक स्थापित करें। इसके बाद भगवान राम का माता सीता परिवार सहित आवाहन करें और भगवान राम का ध्यान मंत्र पढ़े।

भगवान राम ध्यान मंत्र

ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम,
लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम!
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे,
रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः!

अर्थ: आपदा हरने वाले सभी सम्पदाओं को प्रदान करने वाले और सभी को प्रिय लगने वाले भगवान श्री राम को मैं बारम्बार प्रणाम करता हूं। उनके अनेक नाम है कोई उन्हें श्रीराम कहता है को कोई रामभद्र तो कोई रामचंद्र कहता। मैं विविध नामों से पुकारे जाने वाले नाथों के नाथ रघुनाथ सीतापति को नमन करता हूं।

इसके बाद भगवान को प्रसाद और पुष्प अर्पित करें। तुलसीदल को चरणामृत और प्रसाद में जरूर डालें। हाथ में अक्षत लें और एक श्लोकी रामायण का पाठ कर अक्षत को अर्पित करें।

एक श्लोकी रामायण

आदौ राम तपोवनादि गमनं, हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदीहीहरणं जटायुमरणं, सुग्रीवसंभाषणम्।
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं, लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्‌ रावण कुम्भकर्ण हननम्‌, एतद्धि रामायणम्।

भावार्थ :- श्रीराम वनवास गए, वहां उन्होने स्वर्ण मृग का वध किया। रावण ने सीताजी का हरण कर लिया, जटायु रावण के हाथों मारा गया। श्रीराम और सुग्रीव की मित्रता हुई। श्रीराम ने बालि का वध किया। समुद्र पार किया। लंका का दहन किया। इसके बाद रावण और कुंभकर्ण का वध किया।

अक्षत को भगवान के श्रीचरणों में अर्पित करे। भगवान को धन्यवाद ज्ञापित करें। इसके बाद रामायण जी की आरती गाकर दीप से भगवान की अर्चना करे। आरती समाप्त हो जाने के बाद जल से आचमन कर पूजा सम्पूर्ण करें।

रामायण जी की आरती

आरती श्री रामायण जी की
कीरति कलित ललित सिया पी की

गावत ब्राह्मादिक मुनि नारद
बालमीक विज्ञान विशारद
शुक सनकादि शेष अरु शारद
बरनि पवनसुत कीरति नीकी

आरती श्री रामायण जी की
कीरति कलित ललित सिया पी की

गावत वेद पुरान अष्टदस
छओं शास्त्र सब ग्रन्थन को रस
मुनि-मन धन सन्तन को सरबस
सार अंश सम्मत सबही की

आरती श्री रामायण जी की
कीरति कलित ललित सिया पी की

गावत सन्तत शम्भू भवानी
अरु घट सम्भव मुनि विज्ञानी
व्यास आदि कविबर्ज बखानी
कागभुषुण्डि गरुड़ के ही की

आरती श्री रामायण जी की
कीरति कलित ललित सिया पी की

कलिमल हरनि विषय रस फीकी
सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की
दलन रोग भव मूरि अमी की
तात मात सब विधि तुलसी की

आरती श्री रामायण जी की
कीरति कलित ललित सिया पी की

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