फोन एडिक्शन कहीं आप इसके शिकार तो नहीं?

फोन एडिक्शन एक बहुत तेजी से फैलती हुई मानसिक समस्या है। ये लगभग 2004 के आसपास की बात है जब गूगल पर सेलफोन एडिक्शन जैसे सर्च की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होने लगी।

इससे पहले 1983 में जब मोटरोला ने पहला सेलफोन DynaTAC 800x 4000 डॉलर की कीमत में लॉन्च किया था तो दुनिया भर ने इसकी खुशी मनाई थी। इसमें 30 मिनट की बैटरी लाइफ थी। डिवाइस बड़ा और दिखने में अजीब था इसके बावजूद यूजर इस बात से खुश थे कि इसमें लैंडलाइन फोन की तरह तार नहीं लगे थे।

मोटरोला ने पूरे एक दशक में 100 मिलियन डॉलर खर्च करके पहला मोबाइल सेल फोन तैयार किया था। दुनिया इस बात से खुश थी कि अब चलते फिरते किसी से भी बात की जा सकती थी और वह भी किसी वायर को साथ लिए बिना। लगभग नौ साल बाद 1992 में आईबीएम सिमोन के रूप में दुनिया ने पहला टच स्क्रीन फोन देखा। ये आज के आईफोन का 1992 का वर्जन था। इस पोर्टेबल फोन में कैल्कुलेटर, ईमेल और नेटवर्क्स पर काम करने की क्षमता थी।

यह फोन कुछ ऐसा था मानो कम्प्यूटर फोन की शक्ल में बदल गया हो। 1996 में पहला फ्लिप फोन आ गया। इसके बाद लगातार मोबाइल फोन्स में अपग्रेडेशन हुआ। 2007 में स्टीव जॉब्स और एपल के उत्पाद आईफोन 1 की लॉन्चिंग को दुनिया भूल नहीं सकती। लगातार अपडेट होते मोबाइल फोन्स ने लोगों की प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ बहुत आसान बना दी थी। मनचाहे वक्त पर बात करते, तस्वीरें लेते, मैसेज, ईमेल करते यूजर्स कब मोबाइल की लत में फंस गए उन्हें पता ही नहीं चला।

हालांकि टेक्नोलॉजी एडिक्शन के कई रूप 1990 के मध्य से सामने आने लगे थे लेकिन तब तक यह लत के रूप में प्रचारित नहीं था। वर्ष 2000 आते-आते स्मार्ट फोन यूजर्स की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी होने लगी।

इसके साथ स्मार्ट फोन ओवरयूज, स्मार्टफोन एडिक्शन, मोबाइल फोन ओवरयूज या सेल फोन डिपेंडेंसी जैसे टर्म्स सुनाई देने लगे। 2018 में पैनोवा और कार्बोनेल ने एक रिव्यू प्रकाशित किया जिसमें टेक्नोलॉजी बिहेवियर व उसके समस्याग्रस्त उपयोग से जुड़ी टर्मिनोलॉजी के बारे में बताया गया था।

गेमिंग डिसऑर्डर को इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीसेज में मान्यता दे दी गई। 2019 में इस संबंध में छपे एक सिस्टमैटिक रिव्यू में ज्यादा स्क्रीन टाइम और खराब शारीरिक सेहत में संबंध पाया गया था। इसके चलते फोकस में कमी, हाइपर एक्टिविटी, आत्म सम्मान में कमी और व्यवहार संबंधी कई दिक्कतें सामने आई। कई अध्ययनों में पाया गया कि महिलाएं जहां सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल कर रही थी वहीं पुरुष वीडियो गेम्स अधिक खेल रहे थे।

2019 में निमहांस में ऐसा केस सामने आया जहां एक टीनएजर फोन पर दस से 12 घंटे बिता रहा था। इस एडिक्शन के चलते उसे चिकित्सकीय मदद की जरूरत पड़ी थी। देश, दुनिया में अब लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां फोन यूजर्स को मोबाइल से दूरी बनाने की चिकित्सकीय सलाह लेनी पड़ रही है।

स्मार्ट फोन के लंबे समय तक इस्तेमाल के चलते उन्हें कई तरह की समस्याओं और फोबिया का सामना करना पड़ रहा है। उदाहरण के तौर पर नोमोफोबिया (कहीं बाहर जाते वक्त फोन से दूर रहने का डर), टेक्स्टफ्रेनिया (मैसेज न भेज पाने या उन्हें रीसिव न कर पाने का डर), फैंटम वाइब्रेशंस ट्रस्टेड सोर्स(हर समय फोन बजते रहने की अनुभूति, जबकि वास्तविकता में वह नहीं बज रहा होता)।

अपने व्यवहार पर नियंत्रण खोना, चिंता, चिड़चिड़ाहट, नकारात्मक भावनाएं, डिप्रेशन जैसे कुछ अन्य लक्षण भी इसके अंतगर्त पाए गए। वैज्ञानिकों के अनुसार हमारे मस्तिष्क कई ऐसे पाथवेज होते हैं जो खुशी देने वाले केमिकल डोपामाइन को संचारित करते हैं। यह रसायन पुरस्कृत करने वाली घटनाओं में रीलिज होता है।

बहुत से लोगों के लिए सामजिक संवाद डोपामाइन के रीलिज होने में मददगार होता है। ज्यादातर लोग अपने फोन को सामाजिक संवाद के लिए इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया एप्स पर जब वे दूसरों से जुड़ते हैं तो लगातार डोपामाइन रीलिज होने के लिए फोन को बार-बार चेक करते हैं। एेप डिजाइनर भी इसी स्ट्रैटजी पर काम करते हैं ताकि लाइक, कमेंट्स के जरिए आप बार-बार एप को विजिट करें। इस वर्चुअल खुशी के चक्कर कब आप फोन के आदी हो जाते हैं आप जान ही नहीं पाते।

क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट लीजा मेर्लो के अनुसार 70 प्रतिशत लोग सुबह उठने पर एक घंटे के भीतर फोन चेक करते हैं। 56 प्रतिशत सोने से पहले फोन चेक करते हैं। 51 प्रतिशत छुटि्टयों पर लगातार फोन देखते हैं। 44 प्रतिशत का कहना है कि अगर वे एक सप्ताह तक फोन का इस्तेमाल न करें तो वे खुद को बहुत फिक्रमंद और चिड़चिड़ा महसूस करते हैं। एक अध्ययन में पाया गया कि टीनएजर सबसे ज्यादा सेल फोन एडिक्शन से ग्रस्त होते हैं।

फोन एडिक्शन के लक्षण- Phone addiction test

आप फोन एडिक्शन के शिकार है या नहीं, यह जानने के लिए हमने एक छोटा सा टेस्ट तैयार किया है। हमने उन आठ मो​बाइल एडिक्शन सिम्पट्म्स को एक साथ लिखा है और प्रत्येक लक्षण को एक अंक दिया है। अगर आप खुद में इनमें से कुछ लक्षणों को पाते हैं तो लक्षणों की संख्या के हिसाब से अंक गिन लीजिए। अगर आपको 4 या अधिक अंक मिलते हैं तो आप इस समस्या के शिकार हैं।

  • जैसे ही आप अकेले होते हैं या बोर होते हैं आप तुरंत फोन तलाशते हैं।
  • आप रात में कई बार उठकर फोन चेक करते हैं।
  • जब कभी आपको अपना फोन नहीं मिलता तो आप चिंतित या अपसेट हो जाते हैं।
  • फोन के चलते आपका एक्सीडेंट हुआ हो या चोट लगी हो।
  • जॉब परफॉर्मेंस, प्रोजेक्ट वर्क या आपके रिश्ते फोन के इस्तेमाल से बाधित हो रहे हों।
  • फोन के इस्तेमाल की आपकी अादतों से आपके आसपास के लोग चिंतित हो रहे हों।
  • जब कभी आप फोन को कम इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं आप असफल रहते हैं।
  • परिवार और दोस्तों से आपने दूरी बना ली है।

जरूरत से ज्यादा फोन इस्तेमाल करने के साइड इफेक्ट्स

ड्राइविंग के दौरान आप खुद को टेक्स्ट करने से रोक नहीं पाते। इससे आप सड़क को नहीं देख पाते और ढंग से ड्राइव नहीं कर पाते। इस तरह का भटकाव एक दिन में नौ लोगों की मृत्यु का कारण बनता है।

  • तनाव
  • एंजाइटी
  • गुस्सा
  • डिप्रेशन
  • नींद की कमी, इन्सोमिया
  • रिश्तों में लड़ाई
  • खराब अकादमिक या पेशेवर परफॉर्मेंस

कैसे बचे फोन एडिक्शन से?

अगर आप इसके के शिकार है तो अपने आप से सवाल पूछिए कि फोन एडिक्शन का इलाज क्या है? कॉग्निटिव बिहेवरियल थैरेपी(सीबीटी) आपके विचारों, बर्ताव और इमोशंस के बीच के संबंधों को उजागर करने में मदद करती है। बिहेवियर पैटर्न को बदलने में यह प्रभावशाली थैरेपी है। सेल फोन एडिक्शन से दिमाग में होने वाले बदलावों को संतुलित करने में भी यह मददगार है। इसके लिए आपको किसी कुशल थैरेपिस्ट की मदद लेनी चाहिए।

  • ऐसे ऐप्स को हटा दें जो आपको हमेशा इंगेज रखते हैं।
  • पुश नोटिफिकेशंस और अलर्ट से मुक्ति पाने के लिए सेटिंग्स बदलें।
  • रात को सोने से एक घंटा पहले फोन दूर रख दें।
  • कुछ ऐसे बैरियर बनाएं जो आपको फोन से दूर रखते हैं। जहां फोन रखते हों वहां नोट लगाएं कि इस वक्त आप फोन क्यों देख रहे हैं। क्या इससे आपको कोई बेहतर परिणाम मिल रहा है।
  • फोन को इतनी दूर रखें जहां से वह आपको दिखाई न दें।
  • अपनी हॉबीज को वक्त दें, इससे भी स्क्रीन एक्टिविटी घटेगी।
  • लोगों से व्यक्तिगत रूप से मिलने-जुलने और बातचीत में समय बिताएं इससे भी फोन से दूरी बढ़ेगी।
  • ग्रोथ माइंडसेट अपनाएं। अपने आपको समझाएं कि आप फोन का उतना ही इस्तेमाल करेंगे जितना जरूरी है। अन्यथा यह आपको पीछे धकेलेगा।
  • फोन के इस्तेमाल को सीमित करें। इसके लिए लिमिट सेट करें और अनुशासनपूर्वक उसका पालन करें।

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