स्वामी विवेकानंद के प्रेरक प्रसंग Swami Vivekananda Story in Hindi

swami vivekananda ke prerak prasang स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने हिन्दू धर्म के महत्त्व और मूल्यों को दुनिया भर में बैठे लोगों तक पहुंचाया। स्वामी जी के जीवन से जुड़े बहुत से प्रसंग ऐसे हैं, जिनसे हमें शिक्षा लेनी चाहिए और जीवन में उनका अनुसरण करना चाहिए। स्वामी जी के जीवन में घटित कुछ प्रेरक प्रसंग इस प्रकार हैं।

जाति और वर्ग के आधार पर भेदभाव न करना Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang

1888 में वे आगरा से वृन्दावन जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक आदमी चिलम पीते हुए दिखा। उन्हें भी पीने के इच्छा हुई और उन्होंने उस व्यक्ति से चिलम मांग लिया। चिलम पीने वाला व्यक्ति सकपका गया। उसने कहा कि स्वामी जी आप सन्यासी हैं और मैं वाल्मीकि समाज का हूँ। मेरा झूठा चिलम आपको नहीं पीना चाहिए।

यह सुन स्वामी जी एक बार तो वहां से जाने लगे। तभी उनके मन में ख्याल कि वे उस व्यक्ति का चिलम क्यों नहीं पी सकते हैं। क्या समाज लोगों में भेदभाव करने के लिए होता हैं ? ऐसा मन में आते ही स्वामी जी ने उस आदमी का चिलम लिया और पीने लगे। उन्होंने कहा कि वे तो संन्यास ले चुके हैं और परिवार, समाज तथा जाति के बंधनों से मुक्त हो चुके हैं। इस प्रकार स्वामी जी ने सन्देश दिया कि भगवान् के बनाये सभी इंसान एक समान हैं और उनसे किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

गुरु की सेवा का पाठ

Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang – एक बार उन्होंने देखा कि उनके गुरु की सेवा में लगा एक शिष्य गुरु की सेवा करने में रूचि नहीं दिखा रहा है और घृणा से नाक मुंह सिकोड़ रहा है। यह देख स्वामी विवेकानंद को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने उस शिष्य को को गुरु की सेवा का पाठ बढ़ने के लिए स्वंय गुरु की सेवा प्रारम्भ कर दी। वे प्रतिदिन गुरुदेव के बिस्तर के पास रखी थूकदानी जिसमे गुरु का रक्त, थूक, कफ तथा बलगम जमा होता था, उसे स्वयं साफ़ करते थे।

समस्याओं का डटकर सामना करना Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang

1883 में एक बार वे पैदल यात्रा पर स्वामी प्रेमानंद के साथ कहीं जा रहे थे। तभी बंदरों का एक बड़ा झुण्ड आ गया। बंदरों को देखते ही सारे सन्यासी घबरा कर इधर उधर भागने लगे। तभी एक बुजुर्ग सन्यासी ने चिल्लाकर कहा कि भागों मत और जहाँ हो, वहीँ खड़े हो जाओं। अगर भागे तो बन्दर तुम्हें और डराएंगे और अगर वहीँ खड़े रहे तो बन्दर अपने आप चले जायेंगे। स्वामी जी ने ऐसा ही किया और थोड़ी ही देर में बन्दर उन्हें नुक्सान पहुचाये बिना वहां से चले गए। स्वामी जी ने इससे यह सीख ली कि समस्याओं से भागने की जगह उनका डटकर सामना करना चाहिए।

कर्तव्य से विमुख न होना

Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang – विवेकानंद जी ने संन्यास तो ले लिया, लेकिन कर्तव्य के पथ से विमुख नहीं हुए। उन्होंने अपने परिवार की हमेशा मदद की। उनके चाचा के निधन के बाद चाची ने स्वामी जी के परिवार को उनके पैतृक घर से बाहर निकाल दिया था। स्वामी जी ने 14 वर्षों तक चाची के खिलाफ केस लड़ा था और फिर अपने जीवन के अंतिम शनिवार को 28 जून 1902 के दिन उन्होंने कुछ मुआवजा भरकर ये केस बंद करवाया दिया।

माता के सम्मान की सीख Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang

एक बार एक युवक ने उनसे पूछा कि माता को इतना पूज्यनीय क्यों माना जाता है ? स्वामी जी ने कहा कि तुम्हें इस बात का जवाब मैं 24 घंटे के बाद दूंगा, लेकिन तब तक तुम्हें मेरी एक बात माननी होगी। अपने पेट पर एक 5 किलो का पत्थर 24 घंटे तक बाँध के रखना होगा। युवक इस बात के लिए राजी हो गया, लेकिन थोड़ी ही देर में वह थक गया और स्वामी जी के पास वापस आकर बोला, कि उसने प्रयास किया लेकिन पत्थर के वजन से वह थक गया।

स्वामी जी ने उसे समझाया कि वह पत्थर का वजन 24 घंटे भी नहीं उठा पाया, जबकि एक माँ अपने बच्चे को 9 महीने तक पेट में ले कर घूमती है और घर का काम भी करती है। इसीलिए माँ को इतना पूज्यनीय माना जाता है।

महिलाओं का सम्मान

Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang – एक बार एक विदेशी महिला स्वामी जी के पास आई और बोली कि मैं आपके जैसा महान पुत्र चाहती हूँ। आप मुझसे विवाह कर लें ताकि मैं आपके जैसे बुद्धिमान पुत्र को जन्म दे सकूं। स्वामी जी ने उस महिला से कहा कि वे तो सन्यासी हैं और शादी नहीं कर सकते। उन्होंने महिला से कहा कि वे उन्हें अपनी माता के रूप में स्वीकार कर सकते हैं। इससे उनका का ब्रह्मचर्य भी नहीं टूटेगा और महिला को उनके जैसा पुत्र भी प्राप्त हो जायेगा। इस प्रकार स्वामी जी ने दुनिया को यह सीख दी कि सच्चा पुरुष वह होता है जो प्रत्येक स्त्री को माता के रूप में देखे।

गुरु माता से विदेश जाने की आज्ञा Swami Vivekananda Ke Prerak Prasang

जब स्वामीजी को अमेरिका जाना था तब वे गुरु माता शारदामणि के पास उनकी आज्ञा लेने पहुंचे। शारदामणि रामकृष्ण परमहंस की पत्नी थी। स्वामी जी ने गुरु माता को अपने आने का कारण बता कर उनसे अमेरिका जाने की आज्ञा मांगी और कहा कि अगर उन्होंने आज्ञा नहीं दी, तो वे नहीं जा पाएंगे।

शारदामणि ने विवेकानंद जी से कहा कि सामने जो चाकू पड़ा है वह लेकर दो। स्वामी जी ने चाकू को नोक की तरफ उठाया और गुरु माता को दे दिया। गुरु माता ने कहा कि तुम्हारे मन में हमेशा यह रहता है कि भूल से भी किसी को हानि न पहुंचे इसलिए तुमने चाकू को मूठ की बजाय नोक की तरफ से उठा कर दिया। अगर तुम चाकू को मूठ की तरफ से उठा कर मुझे देते तो मैं तुम्हे अमेरिका जाने की आज्ञा नहीं देती।

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