Mandir Shri Nimbark Peeth – श्री निम्बार्क पीठ मंदिर की सम्पूर्ण जानकारी

निम्बार्क पीठ मंदिर निम्बार्क सम्प्रदाय से सम्बन्धित है जो चार वैष्णव सम्प्रदायों में से एक सम्प्रदाय है। इस सम्प्रदाय को हंस सम्प्रदाय, कुमार सम्प्रदाय, चतुः सन सम्प्रदाय और सनकादि सम्प्रदाय’ भी कहा जाता हैं। इस सम्प्रदाय का प्रवर्तक निम्बकाचार्य को माना जाता है।

मान्यता के अनुसार वे भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र के अवतार हैं। निम्बार्क सम्प्रदाय ‘द्वैताद्वैतवाद’ सिद्धान्त पर चलता है, इसे’भेदाभेदवाद’ भी कहा जाता है। मथुरा में स्थित ध्रुव टीले पर निम्बार्क सम्प्रदाय का प्राचीन मन्दिर बताया जाता है लेकिन इसकी मुख्य पीठ अजमेर के सलेमाबाद में स्थित मंदिर श्री निम्बार्क पीठ में स्थित है।

  • स्थान: निम्बार्क तीर्थ, सेलमाबाद
  • पूजित भगवान: श्री सर्वेश्वर प्रभु
  • जिला: अजमेर
  • जयपुर से दूरी: 120 किमी
  • वर्ष में निर्मित: 1520 (1463 ई.)
  • निकटतम हवाई अड्डा: सांगानेर, जयपुर (125 किमी)
  • निकटतम रेलवे स्टेशना: किशनगढ़ (18 किमी)

श्री निम्बार्क पीठ मंदिर में पूजित भगवान का संक्षिप्त विवरण:

श्री सर्वेश्वर प्रभु का प्रतिनिधित्व करने वाले गुंजा के आकार की शालीग्राम भगवान मूर्ति यहां स्थापित है। जिनका नित्य विधिवत तरीके से पूजन किया जाता है। यह मंदिर वैष्णव धार्मिक संप्रदाय से संबंधित है।

क्या है निम्बार्काचार्य का द्वैताद्वैत सिद्धान्त

निम्बार्काचार्य द्वारा दिए गए द्वैताद्वैत जगत और ब्रह्म दोनों को महत्व दिया गया है यानी कि द्वैत और अद्वैत दोनों। उनके अनुसार यह संसार ब्रह्म से अलग भी है और अलग नहीं भी। सत्य एक भी है और दो भी।

शंकर के अद्वैत में जगत को ब्रह्म से अभिन्न कहा गया है जबकि रामानुज के विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त में जगत को ब्रह्म से भिन्न माना गया है परन्तु दोनों की अभिन्नता इसकी प्रमुख विशेषता है।

इससे अलग निम्बार्क ने कहा कि ब्रह्म से संसार की भिन्नता तथा अभिन्नता दोनों का समान महत्व हैं। संसार परिणाम है तथा ब्रह्म कारण। कारण और परिणाम भिन्न हैं और अभिन्न भी। ब्रह्म अद्वैत है तथा संसार द्वैत। दोनों सत्य हैं।

श्री निम्बार्क पीठ मंदिर की वास्तुकला: महत्वपूर्ण स्थापत्य विशेषताएं

खेजड़ली के भाटी प्रमुख श्री श्योजी और गोपाल सिंह जी भाटी ने परम पावन श्री निम्बार्काचार्य पीठाधीश्वर श्री परशु राम-देवाचार्य जी के निर्देश पर इस पीठ की स्थापना की। मंदिर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि मुख्य द्वार में प्रवेश करते ही देवता के दर्शन होते हैं। सात सीढ़ियों को चढ़ने के बाद मुख्य प्रवेश द्वार में प्रवेश करते है। चौड़े मुख्य द्वार में दो छोटे उठे हुए द्वार हैं। यह 15वीं शताब्दी में मंदिर के मुख्य द्वार के लिए अपनाए गए स्थापत्य डिजाइनों की खासियत है।

गर्भगृह को इस तरह से बनाया गया है कि शरद पूर्णिमा के चंद्रमा की चांदनी 12.00 बजे भगवान की मूर्ति के चरण कमलों को छूती है। शरद की यह विशेष पूर्णिमा की रात (हिंदू कैलेंडर का अश्विन महीना) भगवान कृष्ण की रास लीला के साथ राधा और वृंदावन की अन्य गोपियों से जुड़ी है। शरद पूर्णिमा की यह विशेष रात में चंद्रमा के भी पूरे 16 चरण होते हैं।

मुख्य मंदिर के प्रांगण में संगमरमर के स्तंभ उत्कृष्ट रूप से अलंकृत हैं और उनका मध्य भाग पारदर्शी है। मंदिर चौड़ाई में अधिक फैला हुआ है। यह 42 हजार वर्ग फुट जमीन पर बना है। मंदिर 35 फीट ऊंचे और 6 फीट चौड़े प्राचीर से घिरा हुआ है।

मुख्य मंदिर तीन हिस्सों में विभाजित है, (1) केंद्र में श्री राधा माधव जी की मूर्ति (2) पीछे की ओर श्री सर्वेश्वर प्रभु (3) और बाईं ओर श्री आचार्य पंचायतन गर्भगृह। हमको यहीं से सिद्ध पीठ (सिद्ध तपस्वी का स्थान) के दर्शन भ्ज्ञी हो सकते हैं। मंदिर परिसर के भीतर स्थित आचार्य श्री महल, संत निवास, छात्रावास, श्री वेद पुस्तकालय, प्रिंटिंग प्रेस, कार्यालय, रसोई, स्टोर हाउस और बरामदा भी स्थित हैं।

मंदिर निर्माण में पीली मिट्टी, चूना पत्थर और उच्चतम गुणवत्ता का संगमरमर उपयोग में लिया गया है।

निम्बार्क पीठ मंदिर का धार्मिक पहलू

वैष्णवों के बीच सनातन वैदिक सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करना और श्री राधाकृष्ण के प्रेम की पवित्र भावनाओं को प्रेरित करना इस मंदिर का उद्देश्य है। यह भक्तों को तीव्र आनंद और भक्ति प्रेम के उत्साह का अनुभव कराता है। श्री निम्बार्क के द्वैतवादी अद्वैतवाद के दर्शन को चार वैष्णव संप्रदायों के बीच एक बहुत ही उच्च स्थान पर रखा गया है। यह प्राचीन है और वैदिक दर्शन के अनुरूप है।

श्री निम्बार्क पीठ मंदिर की अनूठी विशेषताएं

यह श्री निम्बार्क पंथ का प्रमुख आसन है जिसका चार वैष्णव पंथों में उच्च स्थान है। गर्भगृह के बाईं ओर वह स्थान है जहाँ इस पीठ के संस्थापक श्री परशुराम देवाचार्य जी ने तपस्या की थी। भक्त यहां पूजा-अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। आचार्य श्री के इस पीठ की कई शाखाएँ हैं। पीठ पर वेदों, शास्त्रों, पुराणों और धर्मों के जानकार एक प्रख्यात विद्वान रहते हैं। आचार्य श्री को सभी हिंदुओं द्वारा बहुत सम्मान दिया जाता है।

मंदिर में त्यौहार और मेले (मुख्य कार्यक्रम):

  • श्री कृष्ण जन्माष्टमी (भाद्रपद महीने के अंधेरे आधे के आठवें दिन),
  • नंद महोत्सव (भाद्रपद के अंधेरे आधे के नौवें दिन),
  • श्री गुरु पूर्णिमा (आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा),
  • अन्नकूट (कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में पहला दिन),
  • श्री निम्बार्क जयंती (कार्तिक की पूर्णिमा),
  • रथ यात्रा (आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि)।

पूजा का समय:

सुबह 5.30 से 12.00 बजे तक

शाम 5.00 बजे से रात 8.30 बजे तक

  • मंगला (ग्रीष्म: 5.30 बजे सर्दी: 6.30 बजे),
  • श्रृंगार (गर्मी: 9.00 बजे सर्दी: 9.30 बजे),
  • राज भोग (ग्रीष्मकालीन: 12.00 बजे सर्दी: 12.30 बजे),
  • संध्या (गर्मी: शाम 7.00 बजे सर्दी: शाम 6.00 बजे),
  • शयन (ग्रीष्मकाल: 8.45 बजे सर्दी: 7.45 बजे)

मंदिर के रीति-रिवाज और परंपराएं: दिन के अनुसार देवता के वेश

  1. सोमवार को सफेद
  2. मंगलवार को लाल
  3. बुधवार को हरा
  4. गुरुवार को पीला
  5. शुक्रवार को नीला
  6. शनिवार को काला
  7. रविवार को गुलाबी।

आचार्य श्री और परिचारक सफेद और पीले रंग की पोशाक पहनते हैं।

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