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लव जिहाद और भारत में दो धर्मों के बीच वैवाहिक सम्बन्ध के कानून
लव जिहाद का मामला एक बार फिर से भारत की खबरों की सुर्खियां बन रहा है। हाल ही में तनिष्क के एक विज्ञापन और निकिता तोमर हत्याकांड के बाद लव जिहाद पर एक बार फिर से चर्चा होने लगी है।
भारत में विविध धर्मों, संस्कृतियों और जातियों के लोग रहते हैं। ऐसे में यहां अंतरधार्मिक और अंतरजातीय विवाह होना एक आम बात है। समय—समय पर जरूरत के अनुसार भारतीय कानूनविदों ने इन विवाहों को धार्मिक मान्यता प्रदान करने के लिए विविध कानून बनाए है।
इन कानूनों की मदद से इस तरह के वैवाहिक जोड़े अपनी आस्थाओं और रीति-रिवाजों को मान्यता देते हुए वैवाहिक जीवन बिता सकते हैं।
love jihad kya hai कब हुआ था पहली बार लव जिहाद शब्द का प्रयोग?
love jihad meaning in hindi साल 2009 में केरल और कर्नाटक में पहली बार इस शब्द को प्रमुखता से कहा जाने लगा। केरल के रिटायर्ड जस्टिस केटी शंकरन ने माना की केरल और मैंगलोर में जबरन धर्म परिवर्तन के कुछ संकेत मिले थे। तब उन्होंने केरल सरकार को इस तरह की गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए कानूनी प्रावधान करने की बात कही थी। इसके बाद लव जिहाद टर्म को प्रमुखता के साथ यूके, म्यांमार और पाकिस्तान में भी सुना जाने लगा।
लव जिहाद के लिए कानून बनाने की पहल
उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और हरियाणा जैसे राज्य अब कानून लाने पर विचार कर रहे है। इस कानून के तरह धर्म परिवर्तन के लिए विवाह करने की मंशा को अपराधिक बनाया जाएगा और इसके तहत उचित सजा का प्रावधान किया जाएगा। हालांकि इस तरह के कानून के विरोध में आवाज इसको बनने से पहले ही उठने लगी है।
भारत के प्रमुख वैवाहिक कानून और पर्सनल लॉ
भारत में समान धर्म और दूसरे धर्मों में विवाह करने को कानूनी मान्यता देने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा भारत में विभिन्न धर्मों की सहूलियत के हिसाब से भी पर्सनल लॉ का निर्माण किया गया है, जिनमें से प्रमुख इस प्रकार है।
1. हिंदू विवाह अधिनियम 1955
2. मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937
3. भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872
4. पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम, 1936
5. विशेष विवाह अधिनियम, 1954
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 आजादी के बाद हिंदू धर्म में विवाह को कानूनी वैद्यता प्रदान करने और हिंदू विवाह की शास्त्रीय पद्धति को संहिताबद्ध करने के लिए लाया गया। इस अधिनियम ने हिंदू धर्मावलम्बी के लिए बहुविवाह प्रथा पर रोक लगाने का काम किया।
हिंदू विवाह शास्त्रीय रूप से एक संस्कार है लेकिन इस विवाह अधिनियम के धारा 13 में तलाक को जोड़कर एक कॉन्ट्रैक्ट के गुण भी शामिल कर दिए गए हैं। परम्परागत रूप में हिंदू विवाह संस्कार में तलाक का कोई स्थान नहीं है।
इस अधिनियम के अधीन एक दूसरे अधिनियम जिसे हिंदू पुनर्विवाह अधिनियम 1955 कहते हैं के तहत हिंदू धर्मावलम्बी के पुनर्विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की गई है लेकिन यह तभी लागू होता है जब या तो वर्तमान वैवाहिक पार्टनर के साथ तलाक हो गया है या फिर उसकी मृत्यु हो गई है।
हिंदू विवाह अधिनियम की विशेषता यह है कि यह शास्त्रीय परम्पराओं के साथ ही आधुनिक सुधारों को अपने साथ लेकर चल रहा है। समय के साथ इस अधिनियम में बदलाव संभव है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937
भारत में मुस्लिम धर्मावलम्बियों की वैवाहिक मान्यता मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937 के तहत प्रदान की जाती है। इसे अंग्रेज सरकार द्वारा 1937 में पास किया गया। इसी कानून के तहत उनके शादी, तलाक, विरासत और सिविल विवादो को हल किया जाता है।
भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872
यह कानून भारत सरकार द्वारा 18 जुलाई, 1972 को अधिनियमित किया गया। इसके तहत भारत में ईसाई धर्मावलम्बियों के विवाह को मान्यता प्रदान की जाती है। इस अधिनियम में विवाह के साथही तलाक या विवाह विघटन की व्यवस्था भी की गई है।
पारसी विवाह और विवाह विच्छेद अधिनियम, 1936
यह अधिनियम भारत में रहने वाले पारसी समुदाय के लोगों के विवाह को अधिनियमित करता है। इस अधिनिमय को 1936 मे तात्कालीन अंग्रेज सरकार द्वारा लाया गया था। ईसाई और हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार ही पारसी धर्मावलम्बी भी एकल विवाह की कर सकता है। इसी कानून में विवाह विच्छेद की व्यवस्था भी की गई है।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954
यह अधिनियम अंतरजातीय और अंतरधार्मिक विवाह को मान्यता प्रदान करने के लिए लाया गया था। यह अधिनियम पंजीकरण के माध्यम से विवाह को मान्यता प्रदान करता है। इसकी विशेषता है कि इसमें दोनो पक्ष अपने धर्म और जाति का परित्याग किए बिना ही वैवाहिक जीवन बिता सकते हैं।
यह अधिनियम सभी धर्मों और जातियों पर लागू होता है। इस कानून के तहत उत्तराधिकार का मामला भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम के तहत तय किया जाता है। यदि वैवाहिक दंपति हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख हो तो इसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत तय किया जाएगा।
इसमें तलाक के लिए शादी से एक वर्ष की अवधि के बाद ही आवेदन दिया जा सकता है। इस अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान करने की कोई व्यवस्था नहीं है।
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