True Story of Saragarhi battle history-बैटल ऑफ सारागढ़ी

बैटल ऑफ सारागढ़ी

बैटल ऑफ सारागढ़ी जिसे सारागढ़ी की लड़ाई के नाम से भी जाना जाता है. यह लड़ाई भारतीय सिख सैनिकों के अदम्य साहस और वीरता की गाथा है. इस कहानी पर हाल ही में अक्षय कुमार की फिल्म केसरी भी प्रदर्शित हुई है. battle of saragarhi movie केसरी में इस लड़ाई का कुछ हिस्सा डाला गया है और कल्पना के आधार पर भी कुछ बातें जोड़ी गई है. यहां हम आपको बैटल आफ सारागढ़ी के बारे में सही तथ्य और सही कहानी बताने जा रहे हैं.

कब हुई थी बैटल ऑफ सारागढ़ी — सारागढ़ी बैटल हिस्ट्री

बैटल ऑफ सारागढ़ी 12 सितम्बर 1897 को सिख और ओर्खाजाई पश्तूनों के बीच लड़ी गई. सारागढ़ी एक किला है जो आज के खैबर पख्तूनवा में स्थित है. बंटवारे के बाद यह हिस्सा पाकिस्तान चला गया है. बंटवारे से पहले यह हिस्सा अंग्रेजी राज का हुआ करता था जिसे अंग्रेज नाॅर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्राविंस कहा करते थे.

इस किले की रक्षा के लिए अंग्रेज सरकार ने अपनी सेना के सिख रेजीमेंटें 21 जाट के 21 सिपाहियों को वहां नियुक्त कर रखा था. इस टुकड़ी के सरदार थे हवलदार इसर सिंह जी.

सारागढ़ी का इतिहास — हिस्ट्री ऑफ सारागढ़ी वॉर

सामना रेंज के कोहट जिले में सारागढ़ी एक छोटा सा गांव था. समय के साथ ब्रिटिश सेना ने इस गांव और आस-पास के इलाको पर अधिकार कर लिया था. इस पूरे क्षेत्र की कमान 1894 में कर्नल जेम्स कुक ने अपने हाथों में ले ली. छिटपुट संघर्ष के बाद आखिर में इस पूरे क्षेत्र में शांति स्थापित हो गई. यह शांति अगले 3 सालों तक यूं ही चलती रही.

1897 में इस क्षेत्र की रक्षा का काम 36 सिख रेजीमेंट की पांच कम्पनियों के सुपुर्द कर दिया गया. इन का कमांड अंग्रेज सेनापति लेफ्टिनेंट कर्नल जाॅन ह्युंगटन के हाथों में थी. इन कंपनीज के पास सामना हिल्स, कुरग, संगर, शतोपधर और सारागढ़ी की सुरक्षा का जिम्मा था.

इस क्षेत्र में समय-समय पर पश्तूनों के हमले होते रहते थे क्योंकि वे अंग्रेजों का शासन मानने को तैयार नहीं थे. पहले भी यह क्षेत्र लंबे समय तक अशांत रहा था. सिखों के राजा रणजीत सिंह ने इस क्षेत्र की रक्षा के लिए कई किले बनवाये थे जो अब अंग्रेजों के अधीन थे. सारागढ़ी भी उनमें से एक था. सारागढ़ी अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से बहुत महत्वपूर्ण किला था. दरअसल यह दो किलो जिन्हें फोर्ट लाॅकहार्ट और फोर्ट गुलिस्तां कहा जाता था के बीच सेतू का काम करता था. साथ ही एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित होने के कारण यह एक बेहतरीन वाॅच टावर भी था.

बैटल ऑफ सारागढ़ी हिस्ट्री — सारागढ़ी युद्ध का इतिहास

सारागढ़ी की लड़ाई को भारत की थर्मोपली भी कहा जाता है. इस लड़ाई की शुरूआत 1897 में पश्तूनों के विद्रोह के साथ शुरू हुई. दरअसल पश्तून उस क्षेत्र में अधिपत्य स्थापित करना चाहते थे. इसके लिए अफगानों ने गुल बादशाह के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल फूंका.

गुल बादशाह अफगान के आफरीदी कबीले का नेता था. अफगान अगर इस क्षेत्र पर कब्जा करना चाहते थे तो उन्हें क्षेत्र के तीन प्रमुख किलो जिनमें फोर्ट लाॅकहार्ट, फोर्ट सारागढ़ी और फोर्ट गुलिस्तां शामिल था को अपने कब्जे में लेना पड़ता.

योजना के तहत अफगान सरदार ने सबसे पहले फोर्ट लाॅकहार्ट पर हमला किया क्योंकि यह उनके रास्ते में पड़ने वाला पहला किला था. इस किले में कर्नल हौथटन अपनी टुकड़ी के साथ लड़ा और उसने अफगानो के हमले को नाकाम कर दिया. अफगानों को यह समझ में आया कि इस किले में लड़ाई की पूरी तैयारी है और आगे पड़ने वाले फोर्ट सारागढ़ी में सिर्फ 21 सिख सैनिक ही है, ऐसे में उन्होंने सारागढ़ी पर हमला करने का फैसला किया.

12 सितम्बर 1897 को करीब दस हजार अफगानो ने सारागढ़ी फोर्ट पर हमला किया. उस वक्त यह फोर्ट हवलदार इसर सिंह जी के नेतृत्व में इस हमले का जवाब देने की तैयारी करने लगा. सबसे नजदीक स्थित फोर्ट लाॅकहार्ट को संदेश भिजवाया गया कि किले पर हमला हुआ है लेकिन कर्नल हौथटन ने स्थिति को देखते हुए तुरंत सहायता करने में असमर्थता जता दी. ऐसे में सिर्फ एक आस बची रह गई कि संदेश फोर्ट गुलिस्तां तक भिजवाया जाये और वहां तक सहायता आने तक अफगानों को रोकने की पूरी कोशिश की जाये.

हवलदार ईसर सिंह जी जानते थे सिर्फ 21 सिपाही दस हजार अफगानियों से युद्ध नहीं जीत सकते थे लेकिन वे अपनी सेना को वह वक्त देना चाहते थे जिसमें सहायता फोर्ट सारागढ़ी तक आ जाये और किला अफगानों के हाथ में न लगे. ईसर सिंह जी ने योजना बनाई और अपनी पूरी ताकत किले के दरवाजे पर लगा दी. अफगानों ने दो बार किले का दरवाजा तोड़ने की कोशिश की लेकिन सिख सिपाहियों ने हर बार उनके हमले का नाकाम कर दिया. अफगान सिपाहियों को जल्दी ही यह बात समझ में आ गई कि किले के दरवाजे को तोड़ पाना उनके बस की बात नहीं है.

गुल बादशाह नई योजना के साथ सारागढ़ी जीतने की कोशिश करने लगा. उसकी सेना ने किले के उन सभी हिस्सों को निशाना बनाने की योजना बनाई जहां से किले की दिवार में सेंध लगाई जा सकती है. इस तरह वे दरवाज पर लड़ रहे सिख सैनिकों की ताकत को कई जगह बांट पाने में सफल होगा. इस योजना ने काम किया और शाम होते-होते एक जगह से किले की दिवार ढह गई. अब तक जो लड़ाई हथियारों और बंदूको से लड़ी जा रही थी, अब आमने-सामने की हो गई.

गुल बादशाह ने सिख सैनिकों को आत्मसमर्पण करने का प्रस्ताव दो बार भिजवाया और कहलवाया कि अगर वे हथियार डाल देते हैं तो उनकी जान बख्श दी जायेगी लेकिन हवलदार ईसर सिंह जी ने साफ इंकार कर दिया और लड़ाई जारी रखी गई. आखिर तक सिख सैनिक अफगानों से जूझते रहे. सभी सिख सैनिक शहीद हा गये. इस लड़ाई में शहीद होने वाल पहले सिख सैनिक भगवान सिंह थे और आखिरी सैनिक गुरूमुख सिंह जी थे.

गुरूमुख सिंह जी तो इतनी बहादुरी से लड़े की 20 अफगान सैनिकों की जान लेने के बाद भी उन्होंने अकेले किले को बचाये रखा आखिर में अफगानों को उन पर आग का गोला फेंकना पड़ा. उनके आखिरी शब्द थे जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल। इस लड़ाई में अफगानों को अपने 600 सैनिक खोने पड़े. इस लड़ाई में अफगानों को इतना समय लग गया कि फोर्ट गुलिस्तां से सहायता फोर्ट सारागढ़ी तक पहुंच गई और 14 सितम्बर को ही फोर्ट सारागढ़ी पर वापस ब्रिटिश शासन का कब्जा हो गया. इस लड़ाई में दोनो पक्षों के कुल मिलाकर 4800 लोगों की जान गई.

सारागढ़ी की लड़ाई के शहीद

सारागढ़ी के शहीदों की वीरता की चर्चा इंग्लैण्ड तक हुई और ब्रिटिष शासन ने इन 21 सिपाहियों को सर्वोच्च सेना सम्मान आर्डर आफ मेरिट से सम्मानित किया. 12 सितम्बर को सारागढ़ी दिवस के तौर पर मनाया जाने लगा. इस वीरता की गाथा को भारतीय सेना और दुनिया के कई देशों की सेनाओं में बतौर उदाहरण सैनिकों कोे पढ़ाया जाता है. सारागढ़ी की लड़ाई की याद में पंजाब में अमृत और फिरोजपुर में गुरूदारे के साथ ही कई स्मारक बनाये गये हैं. शहीद हुये सैनिकों के नाम इस प्रकार है—
हवलदार ईसर सिंह
नायक लाल सिंह
लांस नायक चंदा सिंह
सिपाही सुंदर सिंह
सिपाही राम सिंह
सिपाही उत्तर सिंह
सिपाही साहिब सिंह
सिपाही हीरा सिंह
सिपाही दया सिंह
सिपाही जीवन सिंह
सिपाही भोला सिंह
सिपाही नारायण सिंह
सिपाही गुरूमुख सिंह
सिपाही जीवन सिंह
सिपाही गुरूमुख सिंह
सिपाही राम सिंह
सिपाही भगवान सिंह
सिपाही भगवान सिंह
सिपाही बूटा सिंह
सिपाही जीवन सिंह
सिपाही नंद सिंह

सारागढ़ी की लड़ाई पर बनी फिल्में

सारागढ़ी की लड़ाई पर कई टीवी प्रोग्राम और फिल्मे बन चुकी है. इस लड़ाई पर प्रख्यात कविता खालसा बहादुर लिखी गई है. इसके अलावा फिल्म निर्माता जय सिंह सोेहेल ने 2017 में सारागढ़ी पर एक फिल्म सारागढ़ीःद ट्रू स्टोरी नाम की डाॅक्यूमेंट्री बनाई. जिसे इस लड़ाई के 120 साल होने के अवसर पर स्टेनफोर्डशायर के नेशनल मेमोरियल एर्बोटम में प्रदर्शित किया गया.

इसके अलावा डिस्कवरी जीत पर सारागढ़ी पर 21 सरफरोश-सारागढ़ी 1897 दिखाई गई जिसमें मोहित रैना और मुकुल देव ने अभिनय किया. बाॅलीवुड भी इस कहानी को लेकर काम कर रहा है. हाल ही में अक्षय कुमार अभिनित केसरी में सारागढ़ी की लड़ाई को पर्दे पर दिखाया गया, जिसे दर्षको ने बहुत पसंद किया. इसके अलावा अजय देवगन, राजकुमार संतोषी रणदीप हुडा के साथ इसी कहानी पर फिल्म बना रहे हैं.

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