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Essay and Speech on Patriotism – देश प्रेम पर निबंध
हृदय नहीं वह पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं. देश या राष्ट्र वह भूमि है जहां व्यक्ति जन्म लेता है और विकास करता है इसीलिए देश को जन्म भूमि भी कहा गया है. भारत को भी माता के नाम से इसीलिए सम्बोधित किया जाता है. हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि माता भूमिः पुत्रो अहं पृथिव्या, यानि यह भूमि मेरी माता है और मैं इस पृथ्वी का पुत्र हूं.
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भगवान राम ने जब लंका पर विजय प्राप्त कर ली तो लक्ष्मण ने भगवान राम से कहा कि यह सोने से बनी सुन्दर लंका में निवास करना उचित होगा तो भगवान ने अपने भाई से कहा था कि-
स्वर्णमयी लंका लक्ष्मण मे न रोचते।
जननी जन्मभुमिश्च स्वर्गादपि गरियसी।।
अर्थात हे लक्ष्मण! यह सोना की लंका मुझे थोड़ी भी अच्छी नहीं लगती क्योंकि मेरी जननी जन्मभूमि मुझे स्वर्ग से भी अधिक सुंदर और महान लगती है. भारतवर्ष ऐसे ही मर्यादा पुरूषोत्तम राम की पूजा करती है जो अपनी जन्म भूमि को स्वर्ग से भी उत्तम समझते थे.
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हम जहां रहते हैं, जहां से पोषण और अन्न प्राप्त करते हैं, उस भूमि से प्रेम होना स्वभाविक ही है लेकिन भारत की बात ही निराली है. यह वह देश है जिसने सभ्यता का ज्ञान दुनिया को दिया. यह वह भूमि है जिसके पास गौरवशाली इतिहास है और शक्तिशाली वर्तमान.
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इसी भूमि से निकले बुद्ध की शिक्षा से आज भी पूरा चीन आंदोलित है. बुद्ध का ज्ञान मलेशिया, इंडोनेशिया और सुमात्रा के लोगों को आज भी ज्ञान का पथ दिखा रहा है. यह वह भूमि है जहां ज्ञान के कई पुंजो ने जन्म लिया. गुरूनानक, कबीर, रैदास और नागार्जुन जैसे विद्वानों ने अपने ज्ञान सूत्र से समाज को आंदोलित किया. ऐसे देश से किसे प्रेम नहीं होगा.
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एनीबेसेंट, भगीनी निवेदिता और रूडयार्ड किपलिंग जैसे हजारो विदेशी नाम है जो इसी धरती पर कदम रखने के बाद यहीं के होकर रह गये. भारत के आखिरी अंग्रेज वायसराय लाॅर्ड माउंटबेटन को तो इस धरती से इतना प्रेम था कि उन्होंने अपनी पौत्री का नाम ही इंडिया रख दिया.
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इस धरती के अध्यात्म से जब विवेकानंद निकले तो विश्व धर्म सम्मेलन में उनके भाषण से पूरा पश्चिम प्रभावित हुआ और भारत के इस साधु ने पूरे पश्चिम को राह दिखाई. भारत भूमि ऐसे रत्नों की खान है.
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एक समय था जब पूरी दुनिया में भारत के कला और विज्ञान की तूती बोला करती थी. दुनिया भर में भारत के बने सामान की भारी मांग थी और पूरी दूनिया से भारत व्यापार किया करता था.
इस उन्नती ने भारत को सोने की चिड़िया बना दिया और विदेशी ताकतों की बुरी नजर और लालच ने इस सोने की चिड़िया को अपना गुलाम बना लिया. गुलामी के इस दौर से उस राष्ट्र प्रेम ने ही आजादी दिलाई.
लाखो देश प्रेमियों ने देश को आजाद कराने के लिए अपना जीवन होम कर दिया तब जाकर इस देश में स्वतंत्रता का सूर्य चमका. यह देश प्रेम ही था जिसकी वजह से भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाकउल्ला खां ने हंसते-हंसते अपने प्राण त्याग दिए.
आज भारत आजाद है और हम उन्नती कर रहे हैं तो इसके पीछे भी देश प्रेम ही प्रमुख कारण है. देश भक्तों ने देश की उन्नती और विकास के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया. इसरो के वैज्ञानिकों ने दिन-रात एक करके भारत को अंतरिक्ष विज्ञान का सिरमौर बना दिया तो श्रमिकों ने अपने खून-पसीने से यहां के उद्योग धंधों को विकसित किया.
भारत ही नहीं कोई भी देश बिना राष्ट्रभक्तों के आगे नहीं बढ़ सकता. एक व्यक्ति एक सिपाही बनकर जितनी देश की सेवा करता है, ठीक उसी तरह शिक्षक बनकर भी कर सकता है. एक व्यक्ति अपनी भावना से ही देश बनाता है और बिना देश प्रेम की भावना के देश का कोई अस्तित्व नहीं है. कवि कहता है-
जिसको न निज गौरव तथा निज देश का कुछ ध्यान है।
वह नर नहीं है पशु निरा है और मृतक समान है।।
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