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भारत से लौटने के बाद क्या हुआ सिकन्दर का?
सिकन्दर का भारत अभियान
उसकी सेना के सामने सबसे बड़ा सवाल था कि 4 मील चौड़ी गंगा नदी को कैसे पार किया जाए. गंगा और हिमायल ने हमेशा भारत आने वाले आक्रमणकारियों का रास्ता रोका है. साथ ही गंगा के पार उसे भारत के सम्राट नन्द से भिड़ना था, जिसके पास इतनी विशाल सेना थी कि उसकी किवदंतियों से ही मेसिडोनियन फौज की नींद उड़ी हुई थी.
अपनी सेना के गिरे हुए मनोबल और अपने प्रति बढ़ते रोष को देखकर सिकन्दर नाराज हो गया और खुद को अपने तंबू मे बंद कर लिया. फौज को कहलवा दिया गया कि जब तक वे लड़ने के लिए तैयार नहीं होंगे, सिकन्दर तंबू से बाहर नहीं आएगा. आखिर सिकन्दर की सेना ने उसके दृढ़ निश्चय के आगे हार मानी और लड़ाई के लिए नदी पार कर ली.
सिकन्दर और भारतीय राजाओं का संघर्ष
सिकन्दर का आगे का अभियान बहुत मुश्किलों से भरा रहा और छोटे-छोटे शहरों में भी उसे भारी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा. मालियन शहर पर हमले के दौरान तो सिकन्दर बुरी तरह घायल हो गया और खबर फैल गई कि सिकन्दर मारा जा चुका है लेकिन चिकित्सकों ने उसकी जान बचा ली.
उसकी गति इतनी धीमी हो गई कि हिंद महासागर तक पहुंचने में उसे 7 महीने से ज्यादा का समय लग गया. सामने विशाल समन्दर को पार करना मुश्किल था तो सिकंदर ने गेडरोशियन जंगल के रास्ते आगे बढ़ने की योजना बनाई.
आज तक कोई भी सेना इस जंगल से जिंदा बाहर नहीं निकली थी लेकिन सिकन्दर को तो चुनौतियों पसंद थी और सबके मना करने के बावजूद उसने जंगले से ही आगे बढ़ने की अपनी योजना में कोई बदलाव नहीं किया. जंगल का रास्ता बहुत मुश्किल साबित हुआ. सिकंदर को बहुत सारा धन पीछे छोड़ना पड़ा.
पानी की कमी और बीमारों को भी मरने के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया गया. इसी बीच भारत में मानसून आ गया और जंगल की बाढ़ ने सिकन्दर को बहुत नुकसान पहुंचाया. जंगल से बाहर निकलने पर उसकी फौज एक चौथाई रह गई.
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सिकन्दर का मोहभंग
इतने विद्रोहों के बावजूद सिकंदर के मनोबल में कोई कमी नहीं आई और उसने एशिया के बाद अफ्रिका अभियान पर निकल पड़ा लेकिन बीच में एक ऐसी घटना हो गई जिसने सिकन्दर की जिंदगी को बदल दिया. ईरान के संस्थापक साइरस की कब्र कुछ बदमाशों ने लूट ली. ईरान और मिस्र जैसे देशों में राजाओं की कब्र के साथ कीमती माल असबाब भी दफनाए जाने की प्रथा रही थी. जिसकी वजह से ये कब्रे लुटेरो के निशाने पर रहती थी. साइरस ने इसी वजह से अपनी कब्र पर एक वाक्य लिखवाया था-
“मैं साइरस हूं, इस महान ईरान साम्राज्य का संस्थापक, आपसे गुजारिश करता हूं कि आप कम से कम इस मिट्टी को न लूटे जिसने मेरे शरीर को ढका हुआ है. “
सिकन्दर जब साइरस की कब्र पर पहुंचा और इन शब्दों को पढ़ा तो उसे एहसास हो गया कि जीवन और प्रसिद्धि दोनों क्षण भंगुर हैं। इसके बाद सिकन्दर ने अपने विश्व अभियान को रोक दिया और आनंद का जीवन व्यतीत करने लगा. उसने सूसा के राजा डेरियस की बेटी स्टारिरा से उसने विवाह किया और अपने शासन पर ध्यान देने लगा. इसी बीच उसका सबसे अच्छा दोस्त हिफिएशटन बुखार से मर गया और सिकंदर शोक के सागर मे डूब गया.
अपने परम मित्र की मौत से सिकंदर बौखला गया और उसने अपने ही लोगों पर अत्याचार शुरू कर दिया. सबसे पहले उसने उस डाॅक्टर को मरवा दिया जिसने उसके मित्र का इलाज किया था, इसके बाद उसने एक शहर कोसिया में बिना किसी कारण के कत्लेआम किया जो उसके जीवन पर एक धब्बे की तरह है.
उसने अपने दोस्त को दफनाने के लिए बेहतरीन ताबूत बनाया और यूनान के सबसे अच्छे वास्तुकार से उसकी कब्र तैयार करवाई. अपने जीवन के आखिरी दौर में आते-आते उसमें ईश्वर और रिश्तों से विश्वास खत्म हो चुका था और वह अप्राकृतिक शक्तियों की तरफ आकर्षित हो चुका था.
बहुत से लोग मानने लगे थे कि अकेलेपन ने सिकंदर को मानसिक तौर पर बीमार कर दिया था. उसके दरबार मंे योद्धाओं की जगह अब पुजारियों ने ले ली थी जो अजीबोगरीब भविष्यवाणियां करते रहते थे.
Sikandar Mahan Death इसी पागलपन के बीच सिकन्दर बेतहाशा शराब पीने लगे और इसी कारण 10 जून, 323 ईसा पूर्व को सिकन्दर की मृत्यु हो गई और एक विश्व विजेता इस दुनिया से खाली हाथ अपने कब्र की ओर रूखसत हो गया.
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