अमीर खुसरो की जीवनी- Amir Khusro Biography and Poetry

amir khusro in hindi- अमीर खुसरों की रचनाएं और उनकी पहेलियां

ameer khusro अमीर खुसरों जिनको तूती-ए-हिंद यानी के नाम से भी जाना जाता है. अपनी रचनाओं, पहेलियों, कहमुकरियों और सूफी गीतों के लिए जाने जाते हैं। अमीर खुसरो का पूरा नाम अमीर खुसरो दहलवी था. वैसे यह इनका साहित्यिक नाम था. अमीर खुसरों का वास्तविक नाम अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद था.

who was amir khusro

amir khusrau अमीर खुसरो को शुरू से ही कविता और शायरी का शौक़ था. अमीर खुसरों के पिता सैफुद्दीन महमूद एक सिपासालार थे लेकिन अमीर खुसरों को लड़ाई से कोई मतलब नहीं था. उन्होंने अपने समय में धर्म, जाति और लिंग से ऊपर उठकर बहुत ही सुंदर रचनाओं को जन्म दिया. इनकी एक फारसी रचना से उस समय सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी इतना खुश हुआ कि उन्हें अपना अमीर बना लिया. 

birthplace of amir khusro

अमीर खुसरो दहलवी का जन्म उत्तर-प्रदेश के एटा जिले के पटियाली गांव में हुआ था. इस गाँव को तब मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था. माना जाता है कि अमीर खुसरों के पिता अफगानिस्तान से चलकर भारत आए और दिल्ली के तत्कालीन गुलाम वंश के शासन में सिपासालार हो गए. यह भी माना जाता है कि अमीर खुसरों की मां जिनका नाम दौलत नाज था एक हिन्दु महिला थी. खुसरो के ननिहाल में गाने बजाने की परम्परा थी. माता और पिता दोनों के धर्म का असर खुसरों के जीवन पर पड़ा और वे दोनों धर्मों की इज्जत करने लगे. 

अमीर खुसरों और निजामुद्दीन औलिया

amir khusaro अमीर खुसरो के जीवन मे बड़ा ​परिवर्तन तब आया जब उनकी मुलाकात निजामुद्दीन औलिया से हुई. वे उनके इतने मुरीद हुए कि उन्होंने औलिया को अपना गुरू बना लिया और ताउम्र औलिया की सेवा ही करते रहे. औलिया की मृत्यु के बाद उन्होंने एक कविता लिखी जो बहुत प्रसिद्ध हुई. चल खुसरो घर आपणे उन्होंने अपने गुरू की मृत्यु के बाद ही लिखी थी.
aamir khusro अमीर खुसरों को देखकर एक सूफी ने कहा था कि—  
“आवरदी कसे राके दो कदम। अज़ खाकानी पेश ख्वाहिद बूद।” 
इसका मतलब था कि यह बच्चा आगे चलकर दुनिया भर में अपना नाम रोशन करेगा. फारसी भाषा की विद्वता अमीर खुसरो को अपने बड़े भाई अजीउद्दीन अली शाह से मिला, जो अरबी और फारसी के विद्वान थे. खुसरो ने अनगिनत रचनाएं कि, उनमे से उनकी सूची यहां दी जा रही है, जो वर्तमान में उपलब्ध हैं—

amir khusru अमीर खुसरो के फारसी ग्रंथ – 

तुहका-तुस-सिग्र (बचपन का तोहफा) 
वसतुल हयात : (जीवन का मध्य भाग) 
गुर्र-तुल-कमाल (शुक्ल पक्ष की पहली रात) 
बकिया नकिया (बाकी साफ) 
निहातयुल कमाल (कमाल की सीमा) 

amir khusrow अमीर खुसरो की मसनवियाँ

1. किरान-उस-सादैन (दो शुभ सितारों का मिलन) 
2. मिफ्ताहुल-फुतूह (विजयों की कुंजी) 
3. देवल रानी खिज्र खाँ या इश्किया या खिज्रनामा
4. नुह सिपेहर (नौ आसमान)
5. तुगलक नामा
6. खम्सा-ए-खुसरो 
क.हश्त-बहिश्त
ख.मतला उल अनवार
ग.शीरी व खुसरो
घ.मजनू व लैला
ञ.आइने-सिकन्दरी
7. मसनवी शिकायत नामा मोमिन परु पटियाली।

अमीर खुसरो की गद्य रचनाएं

1. एज़ाजे खुसरवी (खुसरो के कारनामे)
2. खजाइन-उल-फुतूह या तारीखे-अलाई 
3. अफजलुल फ़वायद 
4. किस्सा चार दरवेश (कहानी संग्रह) 
5. राहतुल मुहिब्बीन 
6. इनशाए खुसरो 
7. मकाल: तारीखुल खुलफा

अमीर खुसरो की हिन्दी रचनाए 

1. खालिक बारी 
2. दीवाने हिन्दवी 
3. हालात-ए-कन्हैया

amir khusro poetry- अमीर खुसरों की पहेलियां

एक नार कुँए में रहे, वाका नीर खेत में बहे।
जो कोई वाके नीर को चाखे, फिर जीवन की आस न राखे।।
उत्तर – तलवार.
एक जानवर रंग रंगीला, बिना मारे वह रोवे।
उस के सिर पर तीन तिलाके, बिन बताए सोवे।।
उत्तर – मोर.
उज्जवल बरन अधीन तन, एक चित्त दो ध्यान।
देखत मैं तो साधु है, पर निपट पार की खान।।
उत्तर – बगुला.
बाला था जब सबको भाया, बड़ा हुआ कुछ काम न आया।
खुसरो कह दिया उसका नाव, अर्थ करो नहीं छोड़ो गाँव।।
उत्तर – दिया.
नारी से तू नर भई और श्याम बरन भई सोय।
गली-गली कूकत फिरे कोइलो-कोइलो लोय।।
उत्तर – कोयल.
एक नार तरवर से उतरी, सर पर वाके पांव
ऐसी नार कुनार को, मैं ना देखन जाँव।।
उत्तर – मैना.
गोल मटोल और छोटा-मोटा, हर दम वह तो जमीं पर लोटा।
खुसरो कहे नहीं है झूठा, जो न बूझे अकिल का खोटा।।
उत्तर – लोटा.
श्याम बरन और दाँत अनेक, लचकत जैसे नारी।
दोनों हाथ से खुसरो खींचे और कहे तू आ री।।
उत्तर – आरी. 
हाड़ की देही उज् रंग, लिपटा रहे नारी के संग।
चोरी की ना खून किया वाका सर क्यों काट लिया।
उत्तर – नाखून.
सावन भादों बहुत चलत है माघ पूस में थोरी।
अमीर खुसरो यूँ कहें तू बुझ पहेली मोरी।।
उत्तर – मोरी (नाली).
एक नारी के हैं दो बालक, दोनों एकहि रंग।
एक फिर एक ठाढ़ा रहे, फिर भी दोनों संग।
उत्तर – चक्की.
आगे-आगे बहिना आई, पीछे-पीछे भइया।
दाँत निकाले बाबा आए, बुरका ओढ़े मइया।।
उत्तर – भुट्टा.
चाम मांस वाके नहीं नेक, हाड़ मास में वाके छेद।
मोहि अचंभो आवत ऐसे, वामे जीव बसत है कैसे।।
उत्तर – पिंजड़ा.
स्याम बरन की है एक नारी, माथे ऊपर लागै प्यारी।
जो मानुस इस अरथ को खोले, कुत्ते की वह बोली बोले।।
उत्तर – आंख की भौं 

amir khusro shayari

एक गुनी ने यह गुन कीना, हरियल पिंजरे में दे दीना।
देखा जादूगर का हाल, डाले हरा निकाले लाल।
उत्तर – पान.
एक थाल मोतियों से भरा, सबके सर पर औंधा धरा।
चारों ओर वह थाली फिरे, मोती उससे एक न गिरे।
उत्तर – आसमान.
गोरी सुन्दर पातली, केहर काले रंग।
ग्यारह देवर छोड़ कर चली जेठ के संग।।
उत्तर – अहरह की दाल.
ऊपर से एक रंग हो और भीतर चित्तीदार।
सो प्यारी बातें करे फिकर अनोखी नार।।
उत्तर – सुपारी.
बाल नुचे कपड़े फटे मोती लिए उतार।
यह बिपदा कैसी बनी जो नंगी कर दई नार।।
उत्तर – भुट्टा (छल्ली).
चार अंगुल का पेड़, सवा मन का फ्ता।
फल लागे अलग अलग, पक जाए इकट्ठा।।
उत्तर – कुम्हार की चाक.
अचरज बंगला एक बनाया, बाँस न बल्ला बंधन धने। 
ऊपर नींव तरे घर छाया, कहे खुसरो घर कैसे बने।।
उत्तर – बयाँ का घोंसला.
माटी रौदूँ चक धर्रूँ, फेर्रूँ बारम्बर।
चातुर हो तो जान ले मेरी जात गँवार।।
उत्तर – कुम्हार.

amir khusro poetry in hindi- अमीर खुसरो की कहमुकरियाँ 

आठ अंगुल का है व असली, वाके हड्डी न वाके पसली।
लटाधारी गुरु का चेला, ऐ सखी साजन न सखी केला।।
वो आवे तब शादी होवे, उस बिन दूजा और न कोय।
मीठे लागे वाके बोल, ऐ सखी साजन न सखी ढोल।।
सगरी रैन गले में डाला, रंग रुप सब देखा भाला।
भोर भई तब दिया उतार, ऐ सखी साजन न सखी हार।।
घर आवे मुख घेरे-फेरे, दें दुहाई मन को हरें,
कभू करत है मीठे बैन, कभी करत है रुखे नैंन।
ऐसा जग में कोऊ होता, ऐ सखी साजन न सखी तोता।।
“नीला कंठ और पहिरे हरा, सीस मुकुट नीचे वह खड़ा।
देखत घटा अलापै जोर, ऐ सखी साजन न सखी मोर।।”
“आप जले औ मोय जलावे, पी पी कर मोहे मुँह आवे।
एक मैं अब मार्रूँ मुक्का, ऐ सखी साजन न सखी हुक्का।।
आठ प्रहर मेरे संग रहे, मीठी प्यारी बातें करे।
श्याम बरन और राती नैंना, ऐ सखी साजन न सखी मैंना।।
बरसा-बरस वह देस में आवे, मुँह से मुँह लाग रस प्यावे।
वा खातिर मैं खरचे दाम, ऐ सखी साजन न सखी आम।।
सगरी रैन मोरे संग जागा, भोर भई तब बिछुड़न लागा।
वाके बिछुड़त फाटे हिया, ऐ सखी साजन न सखी दिया।।
नित मेरे घर आवत है, रात गए फिर जावत है।
मानस फसत काऊ के फंदा, ऐ सखी साजन न सखी चंदा।।

khusro dariya prem ka खुसरो के दोहे

खुसरो दरिया प्रेम का उल्टी वाकी धार।
जो उतरा सो डूब गया जो डूबा सो पार।।
गोरी सोवै सेज पर मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने रैन भई चहुँ देस।।
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पीउ को दोउ भए एक रंग।।
श्याम सेत गोरी लिये जनमत भई अनीत।
एक पल में फिर जात है जोगी काके मीत।।
वो गए बालम वो गए नदियो किनार।
आपे पार उतर गए हम तो रहे मजधार।।
भाई रे मल्लाहो हमको पार उतार।
हाथ को देऊँगी मँुदरी गले को देऊँ हार।।
देख मैं अपने हाल को रोऊँ ज़ार–ओ–ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत हैं हम हैं औगुनहार।।
चकवा चकवी दो जने उनको मारे न कोय।
ओह मारे करतार कै रैनविछौही होय।।
सेज सूनी देख के रोऊँ दिन–रैन।
पिया–पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन।।
ताजी खूटा देस में कसबे पड़ी पुकार।
दरवाजे देते रह गए निकस गए उसा पार।।
खुसरो बाज़ी प्रेम की मैं खेलूं पी के संग।
जीत गयी तो पिया मोरे हारी पिया के संग।।
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