how to go dwarika puri tirth in hindi- द्वारका जी की यात्रा

चार धाम का प्रमुख तीर्थ — द्वारका के दर्शनीय स्थल

द्वारका जी जैसे अपने तीर्थों को लिए भारत पूरी दुनिया में जाना जाता है. धार्मिक पर्यटक स्थलो से समृद्ध भारत में तीर्थ यात्रा करने के लिए पूरी दुनिया से हिंदू धर्मावलम्बी यहां आते हैं. चार धाम की यात्रा का हिंदू धर्म में बहुत महत्व माना गया है. द्वारका इन चार धामों में से एक माना गया है. यह पुराणों में वर्णित सात पुरियों में एक माना गया है.

द्वारका को द्वारिका के नाम से भी संबोधित किया जाता है. यह पश्चिम भारत में समुद्र के किनारे बसा हुआ है. माना जाता है कि इस पावन नगरी को आज से हजारो साल पहले भगवान कृष्ण ने बसाया था.

द्वारका का इतिहास dwarka nagari history in hindi

द्वारिका को बसाने से पहले मथुरा कृष्ण की राजधानी थी. आखिर कृष्ण को मथुरा से हजारो मील दूर द्वारिका नगरी को बसाने की जरूरत क्यों पड़ी. इसके पीछे की कथा यह है कि कृष्ण ने मथुरा को कंस के अत्याचारो से मुक्ति दिलवाने के लिए उसका वध कर दिया. कंस का विवाह मगध नरेश जरासंध की पुत्री से हुआ था. इस तरह कंस की हत्या करके कृष्ण ने जरासंध से दुश्मनी मोल ले ली. अपने दामाद की हत्या का बदला लेने के लिए जरासंध ने मथुरा पर चढ़ाई कर दी.

पौराणिक इतिहास के अनुसार मगध नरेश जरासंध उस समय भारत वर्ष के सबसे बलवान सम्राटों मे से एक था. उसने देश के बीस हजार आठ सौ राजाओं को पकड़कर उन्हें अपना दास बना लिया था. उसने एक बड़ी फौज के साथ मथुरा को घेर लिया लेकिन कृष्ण और बलराम की वीरता के आगे उसे मूंह की खानी पड़ी. इस हार से हुये अपमान का बदला लेने के लिए वह बार-बार मथुरा पर आक्रमण करने लगा. आखिर कार मथुरा के लोग उसके आक्रमणों से तंग आ गये. कृष्ण ने अपनी प्रजा को इस मुश्किल से बाहर निकालने के लिए मथुरा छोड़ने का और एक नई राजधानी बनाने का निश्चय किया.

कृष्ण से पहले द्वारका पर एक दूसरे राजा का शासन था. उसका नाम रैवतक था. रैवतक के नाम पर आज भी द्वारका में एक पहाड़ है, जिसे रैवतक पर्वत कहा जाता है. यह भी माना जाता है कि राजा रैवतक ने अपनी पुत्री का विवाह कृष्ण के बड़े भाई बलराम से किया था.

कैसे हुआ द्वारका का निर्माण?

कृष्ण अपने रहने के लिए एक ऐसी राजधानी का निर्माण करना चाहते थे जो चारो ओर से सुरक्षित हो और देखने में उसके समान सुन्दर भवन पूरे भूलोक में कहीं न हो. इस काम को पूरा करने के लिए उन्होंने विश्वकर्मा का आवाहन किया. विश्वकर्मा जी ने देखते ही देखते समुद्र की गोद में से एक विशाल जमीन का टुकड़ा बाहर निकाला और उस पर अनुपम द्वारका का निर्माण किया.

मान्यता के अनुसार द्वारका के महल सोने और चांदी के बनाये गये थे. दीवारों पर नक्काशी का ऐसा काम किया गया था, मानों उनमें हीरे और मोती जड़े हुए हो. द्वारका की सुरक्षा के लिए चारो एक ऊंचा परकोटा बनाया गया. इस परकोटे में चार दरवाजे बनाये गये. इन्हीं दरवाजों या द्वारों की वजह से इस नगर को द्वारका का नाम दिया गया.

भगवान कृष्ण का द्वारिका आगमन

जब विश्वकर्मा जी ने द्वारका का निर्माण पूरा कर लिया तो उन्हांेने भगवान कृष्ण को द्वारका आने का निमंत्रण दिया. भगवान कृष्ण अपने परिवार और प्रजाजनों के साथ महीनों के सफर के बाद द्वारका पहुंचे. भगवान कृष्ण ने अपने द्वारका प्रवास के दौरान आखिरी पड़ाव जहां डाला, आज उस स्थान को मूल द्वारका कहा जाता है. माना जाता है कि यहीं पर विश्वकर्मा जी ने भगवान कृष्ण का स्वागत किया था. मूल द्वारका में बहुत सारे मंदिर है और यहां आने वाले पहले मूल द्वारका के मंदिरों का दर्शन करने के बाद ही आगे जाते हैं.

वर्तमान द्वारका भारत का एक बंदरगाह dwarka beach भी है. यहां से प्राचीन काल से व्यापार होता रहा है. बंदरगाह होने के कारण द्वारका हमेशा ही एक समृद्ध स्थान रहा है.

भगवान कृष्ण का द्वारका शासन

भगवान कृष्ण ने द्वारका में राजतंत्र स्थापित करने की जगह गणतंत्र की स्थापना की. उन्होंने स्वयं राजा बनने की जगह उग्रसेन को राजा बनाया और राज्य से सम्बन्धित महत्वपूर्ण फैसले लेने के लिए एक परिषद का गठन किया जो राज्य के हित में काम करती थी. अपनी उत्तम शासन व्यवस्था की वजह से द्वारका जल्दी ही पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गई. इस शासन व्यवस्था को आगे चलकर कई और राज्यो ने अपनाया.

द्वारका के दर्शनीय स्थल

प्रभास तीर्थ

प्रभास तीर्थ द्वारका के पास एक ऐसी जगह है, जिसको लेकर मान्यता है कि यहां महान ऋषियों ने तपस्या की है. यह भी माना जाता है कि चन्द्रमा ने यहां भारी तप किया था और उनसे खुश होकर भगवान शिव यहां प्रकट हुये थे. सोमनाथ का मंदिर उसी तप की स्मृति में निर्मित किया गया था. इसके अलावा दुर्वासा ऋषि ने यहां तप किया था.

गोमती तालाब

द्वारका के दक्षिण में एक बड़ा तालाब है जिसे गोमती तालाब कहते हैं. यह एक समुद्री ताल है और इसमें स्नान करने का बड़ा पुण्य माना जाता है. इस तालाब के नाम पर ही द्वारका को गोमती द्वारका कहा जाता है. इस गोमती तालाब पर नौ घाट बने हुए है. इनमें सरकारी घाट के पास एक कुण्ड है जिसका नाम निष्पाप कुण्ड है. यात्री सबसे पहले इसी कुण्ड में नहाकर स्वयं को निष्पाप करते हैं. यहां पर लोगों अपने पितरों का पिण्डदान और तर्पण भी करते हैं. गोमती के नौ घाटांे पर बहुत से मंदिर बने हुए हैं. सांवलिया जी का मंदिर, गोवर्धननाथ जी का मंदिर, महाप्रभु जी की बैठक बहुत प्रसिद्ध मंदिर हैं. वासुदेव घाट पर हनुमान जी का मंदिर है. सबसे आखिरी में संगम घाट आता है. यहां गोमती समुद्र में मिलती है. इस संगम पर संगम नारायणजी का बहुत सुन्दर और भव्य मंदिर स्थित है.

निष्पाप कुण्ड

गोमती के दक्षिण में पांच कुंए हैं. निष्पाप कुण्ड में नहाने के बाद तीर्थयात्री इन पांच कुंओं के पानी से कुल्ला करते है. इसके बाद ही वे रणछोड़जी के मंदिर में जाते हैं. रणछोड़ जी के मंदिर के रास्ते में कृष्ण जी, गोमती माता और महालक्ष्मी जी के मंदिर आते हैं. इन सबके दर्शन करते हुए यात्री रणछोड़ जी के मंदिर तक पहुंचते हैं.

रणछोड़ जी का मंदिर

रणछोड़जी का मंदिर द्वारका का सबसे सुंदर और सबसे बड़ा मंदिर है. भगवान कृष्ण को रण छोड़ कर भागने की वजह से रणछोड़जी भी कहा जाता है. जगत की रक्षा के लिए भगवान ने सारी लीलायें की हैं. यह कथा भी उनमें से एक है.

यहां हमेशा दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है. यहां भगवान कृष्ण की करीब 4 फुट सुदंर मूर्ति स्थापित है. यहां रणछोड़ जी एक चांदी के सिंहासन पर विराजमान है. सोने के आभूषणों से भगवान का श्रृंगार किया जाता है. भगवान यहां भी पीत या पीले वस्त्र ही धारण करते हैं. यहां भगवान कृष्ण को विष्णु अवतार में दिखाया गया है. उनके एक हाथ में गदा है, दूसरे में कमल का का फूल, एक हाथ में शंख है और एक हाथ में सुदर्शन.

मंदिर के प्रथम तल पर मां अम्बा की मूर्ति है. इस मंदिर में इस तरह की सात मंजिले है. कुल मिलाकर मंदिर की ऊंचाई एक सौ चालीस फुट से भी ज्यादा है. इस मंदिर की परिक्रमा करने की मान्यता है. यहां इसके लिए परिक्रमा पथ बना हुआ है. कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाने वाली मीराबाई ने द्वारका ने अंतिम समय इसी स्थान पर गुजारा था.

रणछोड़ जी के मंदिर के सामने एक 100 फुट ऊंचा मंदिर है. इसमें 5 मंजिले और 60 खंभे हैं. रणछोड़ जी की परिक्रमा पूरी करने के बाद इसकी परिक्रमा की जाती है. रणछोड़ जी का मंदिर के पास ही राधाजी, रूक्मिणी, सत्याभामा और जाम्बवती जी का मंदिर में दर्शनार्थी दर्शन करने के लिये जाते हैं. रणछोड़ जी के मंदिर से द्वारका नगर की परिक्रमा शुरू की जाती है. पहले गोमती के किनारे जाते हैं.

दुर्वासा जी और त्रिविक्रम जी का मंदिर

द्वारका जी में दुर्वासा जी और त्रिविक्रम जी का मंदिर भी प्रसिद्ध है, इसे देखने भी श्रद्धालु जाते हैं. यहां त्रिविक्रम जी को टीकम जी कहा जाता है. इनकी यहां बड़ी मान्यता है. इनका मंदिर बहुत सजा-धजा रहता है. मूर्ति भी बहुत आकर्षक और साज-सज्जा युक्त है.

यहां टीकमजी की कथा बहुत चाव और श्रद्धा से सुनाई जाती है. कहा जाता है कि राक्षसो के उत्पात से द्वारका को मुक्त करवाने के लिए दुर्वासा ऋषि उन्हें पाताल लोक से लाये थे.

टीकम जी ने यहां के राक्षस कुश को जमीन में गाड़ कर उस पर शिव की मूर्ति रख दी तब से यहां शिव को कुशेश्वर कहा जाता है. यहां कुशेश्वर भगवान का मंदिर है जो प्रद्युम्न जी के मंदिर के ही नजदीक स्थित है. कुशेश्वर मंदिर के पास ही छह मंदिर और है. इसमें अम्बा जी और देवकी जी का मंदिर दर्शनीय है.

गुरू शंकराचार्य का शारदा मठ

द्वारका जी में गुरू शंकराचार्य ने शारदा मठ का निर्माण किया था. शंकराचार्य ने पूरे देश में चार मठ स्थापित किये थे, शारदा मठ उन चार मठों में से एक है. शंकराचार्य ने यहां हिंदु धर्म के मूल्यों के रक्षार्थ मठ की स्थापना की.

जिसमें आज सैकड़ो साधू-सन्यासी धर्म का उपदेश करते हैं. मात्र 13 साल की उम्र में शंकराचार्य ने सारे वेद और शास्त्र पढ़ डाले थे और अठ्ठाईस साल की उम्र तक आते-आते उन्होंने सारे काम कर डाले. अल्पायु में ही उन्होंने अपनी देह का त्याग कर दिया. दूर-दूर से विद्यार्थी यहां वेद और शास्त्र की शिक्षा ग्रहण करने आते हैं.

बेट द्वारका bet dwarka

बेट द्वारका के दर्शन के बिना द्वारका का तीर्थ पूर्ण नहीं माना जाता है. बेट द्वारका तक जमीन और पानी दोनों रास्तों से पहुंचा जा सकता है. जमीन के रास्ते जाने पर गोपी तालाब पड़ता है. यहां की जमीन का रंग पीला है. तालाब में भी पीले रंग की मिट्टी मिलती है. इस मिट्टी को भगवान के पीत वस्त्रो से जुड़ा मानकर बहतु ही पवित्र समझा जाता है. इसे चंदन की तरह माथे पर लगाया जाता है. इस मिट्टी को गोपीचंदन भी कहा जाता है.

गोपी तालाब से तीन मील आगे नागेश्वर शिव मंदिर स्थित है. यात्री यहां भी दर्शन करते हैं. बेट द्वारका कुल सात मील लंबा पथरीला द्वीप है. बेट द्वारका में ही भगवान कृष्ण ने अपने प्रिय भक्त नरसी भगत की हुण्डी भरी थी. बेट द्वारका में हनुमान जी का बहुत प्रसिद्ध मंदिर है. यह एक ऊंचे टीले पर स्थित है जिसे हनुमान टीला कहा जाता है.

बेट द्वारिका पर ही भगवान कृष्ण के लिए निर्मित पांच महल दिखाई देते हैं. यहां का पहला महल श्रीकृष्ण महल कहलाता है. यह सभी महलों में सबसे बड़ा और आकर्षक है. इसके पास ही उनकी रानियों सत्यभामा और जाम्वन्ती के महल है. अन्य दो महल जो थोड़ी दूरी पर है, उन्हें रूक्मिणी और राधा महल कहा जाता है. यहां की शिल्पकला दर्शनीय है और भगवान और उनकी रानियों का बहुत अद्भुत श्रृंगार किया जाता है.

बेट द्वारका में रणछोड़ तालाब, रत्न तालाब, कचैरी तालाब जैसे कई तालाब है. इनमें से रणछोड़ तालाब सबसे बड़ा है. इनमें नहाने के लिए घाट बने हुए है. यहां बहुतायत में मंदिर बने हुए है. यहां से करीब दो किलोमीटर पर शंख तालाब स्थित है, जिसमें श्रद्धालु स्नान करने के बाद शंख नारायण मंदिर में दर्शन लाभ उठाते हैं.

सोमनाथ पट्टन

बेट द्वारका से समुद्र के रास्ते जाने पर विरावल नाम का बंदरगाह पड़ता है. इसके पूरब में एक कस्बा स्थित है जिसे सोमनाथ पट्टन कहा जाता है. कस्बे से तीन मील की दूरी पर हिरण्य, सरस्वती और कपिला नदियों का संगम स्थित है. इस संगम के पास ही भगवान कृष्ण का अंतिम संस्कार किया गया था. सोमनाथ पट्टन को भगवान सोमनाथ के ऐतिहासिक मंदिर के लिए जाना जाता है. इसी मंदिर को महमूद गजनवी ने तोड़ा था. इस मंदिर का पुनर्निमाण भारत सरकार ने करवाया है. यह भव्य और साफ-सुथरा है.

वाण तीर्थ

सोमनाथ पट्टन कस्बे से एक मील दूरी पर वाण तीर्थ स्थित है. मान्यता है कि इसी स्थान प एक शिकारी के वाण से भगवान कृष्ण के पैर में घाव हुआ और उन्होंने परम धाम गमन किया था. यहां वैशाख माह में बड़ा मेला लगता है. कुछ लोग यह भी मानते हैं कि भगवान कृष्ण को तीर बाण तीर्थ में न लगकर भालपुर नामक स्थान पर लगा जो यहां से थोड़ी और दूर पर स्थित है. यहां पद्यकुण्ड नाम का एक तालाब है, जहां भगवान ने अपने पैरो के खून को धोया था. तीर्थ यात्री इस कुण्ड में भी स्नान करते हैं.

जलमग्न द्वारका नगरी dwarka underwater

समय के साथ इस बात के साक्ष्य भी मिले है ​कि भगवान कृष्ण की बनाई द्वारका नगरी का कुछ हिस्सा समुद्र में डूब गया. समुद्र विज्ञानियों ने नगर की दिवारों और भवनों के अवशेष समुद्र में खोज निकाले है. इन की कार्बन डेटिंग से भी यह प्रमाणित होता है कि यह नगरी हजारो साल पहले स्थापित की गई थी और समय के साथ समुद्र का जलस्तर बढ़ने की वजह से समुद्र में समा गई.

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