Bhopal Gas Tragedy: क्या है उस मनहूस रात और डरावनी सुबह की कहानी ?

Bhopal Gas Tragedy दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है भोपाल गैस त्रासदी। 3 दिसम्बर 1984 को एक कैमिकल फैक्ट्री से लीक हुई जहरीली गैस ने हजारों लोगों की जान ले ली और लाखों लोगों को प्रभावित किया । आज भी पैदा होते बच्चे इस विपदा का दंश झेल रहे हैं। भोपाल गैस त्रासदी को मानव जाति और पर्यावरण को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली दुर्घटनाओं में गिना जाता है।

कैसे हुआ हादसा ? Bhopal Gas Tragedy Story in Hindi

यूनियन कार्बाइड कीटनाशक बनाने वाली अमेरिकी कंपनी थी। भोपाल में स्थित इस कम्पनी को 1969 में स्थापित किया गया था। 3 दिसम्बर की रात को फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 में कहीं से पानी का रिसाव होने लग गया। टैंक में 42 टन मिथाइल आइसोसायनाइड गैस स्टोर की हुए थी। जब गैस का संपर्क पानी से हुआ तो रासायनिक प्रतिक्रिया हुई और टैंक का तापमान 200 डिग्री तक पहुँच गया। इसके चलते टैंक में एक विस्फोट हुआ और गैस टैंक का ढक्कन खुल गया। ढक्कन खुलते ही गैस का रिसाव शुरू हो गया।

फ़ैक्ट्री का स्टॉफ रिसाव को रोकने की कोशिश कर रहा था, कि तभी खतरे का सायरन बज गया और स्टॉफ डर कर भाग गया। धीरे धीरे गैस हवा में मिलकर शहर में फैलने लगी। बदकिस्मती से हवा फैक्ट्री से शहर की ओर बह रही थी। सोते हुए लोगों को घुटन और आँखों में जलन महसूस होने लगी। घबराये लोगों ने भागना शुरू किया। लेकिन भागते हुए लोगों पर इसका और भी ज्यादा असर हुआ क्योंकि वे जोर जोर से सांस ले रहे थे और जितनी जोर से सांस ले रहे थे उतना ही जहरीली गैस उनके शरीर में जा रही थी।

अस्पताल और प्रशासन बेहाल Bhopal Gas Tragedy

देखते ही देखते अस्पतालों में भीड़ लग गई। डॉक्टर्स भी हैरान थे कि इतनी लोगों को अचानक क्या हो गया। साथ ही उन्हें ऐसी समस्या से निपटने का अनुभव ही नहीं था। बहुत से लोग सोते के सोते ही रह गए। जान बचाकर भागते लोग सड़कों और चौराहों पर मरने लगे। अस्पतालों में मरीजों और लाशों के ढेर लग गए। इंसान ही क्या, बल्कि जानवर भी अपनी जान नहीं बचा सके। सुबह पुलिस ने लाउडस्पीकर पर लोगों को चेतावनी देनी शुरू की, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

क्या थे हादसे के कारण ? Bhopal Gas Tragedy Reasons

अमेरिकी व्यवसायी वारेन एंडरसन यूनियन कार्बाइड कंपनी का चेयरमैन था। कंपनी ने शुरुआत में सभी सुरक्षा मापदंडों का ध्यान रखा। उन्हें इस बात की गंभीरता का अंदाजा था कि जरा से चूक एक बड़ी दुर्घटना को निमंत्रण दे सकती है। 10 वर्षों के बाद कंपनी ने मुनाफा बढ़ाने और खर्चों को कम करने के लिए कुछ ऐसे काम करने शुरू किये, जिनसे दुर्घटनाओं के होने की संभावनाएं बढ़ने लगी।

अनुभवी कर्मचारियों की छटनी

कम्पनी के अनुभवी कर्मचारियों का वेतन अधिक होता था। प्रबंधकों को उनका अधिक वेतन चुभने लगा। खर्चों को कम करने के लिए ऐसे अनुभवी कर्मचारियों की छटनी करनी शुरू कर दी गई। उनके स्थान पर नए और कम अनुभवी लोगों को कम वेतन पर रखना शुरू कर दिया। ऐसे कर्मचारी किसी भी विपरीत परिस्थिति को संभालने में सक्षम नहीं थे।

अंग्रेजी में मैनुअल्स

फैक्ट्री में जगह जगह सुरक्षा के लिए ध्यान में रखी जाने वाली आवश्यक बातों के मैन्युअल लगाए हुए थे। ये सभी मैनुअल्स अंग्रेजी में थे। फैक्ट्री के ज्यादातर कर्मचारी और मजदूर अंग्रेजी नहीं समझते थे। ऐसे में स्थिति बिगड़ने पर वे मैनुअल्स को समझ नहीं पाए और जरुरी कदम भी नहीं उठा पाए।

कूलिंग प्लांट का बंद होना

फैक्ट्री के टैंक के तापमान को नियंत्रित रखने वाले कूलिंग प्लांट को बिजली का बिल बचाने के लिए बंद रखा जाता था, जो कि सुरक्षा मानकों के विरुद्ध था। अगर दुर्घटना वाले दिन प्लांट चालू होता तो गैस का रिसाव नहीं होता और हजारों लोगों की जान बच जाती।

कैसे भागा आरोपी हिंदुस्तान से ? Bhopal Gas Tragedy Accused Warren Anderson

दुर्घटना के 4 दिन बाद 7 दिसंबर को कम्पनी का चेयरमैन वारेन एंडरसन भोपाल पहुंचा और वहां पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। लेकिन जल्दी ही 25 हजार रूपये की जमानत पर उसे रिहा कर दिया गया। रातों रात उसे सरकारी विमान से दिल्ली पहुँचाया गया। उस समय मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह और देश के प्रधानमंत्री थे राजीव गाँधी। लाल बत्ती वाली नीली अम्बेसडर से एंडरसन को रनवे पर खड़े हवाई जहाज तक पहुँचाया गया। उस समय खुद डीएम और एसपी उसे छोड़ने प्लेन तक आए।

Warren Anderson Escape दिल्ली आने के बाद एंडरसन अमेरिका के राजदूत के घर पर रुका। कुछ दिनों के बाद वह वहां से मुंबई होता हुआ अमेरिका निकल गया। सीआईए के दस्तावेजों के मुताबिक एंडरसन की रिहाई के आदेश राजीव गाँधी सरकार ने दिए थे और अमेरिका के दबाव में एंडरसन को भारत से निकलने में मदद की गई थी।

तत्कालीन एविएशन डायरेक्टर आर एस सोढ़ी ने बताया था कि दिल्ली से एक फ़ोन पर उन्हें एंडरसन के लिए एक सरकारी विमान तैयार रखने के लिए कहा गया था। हालाँकि बाद में अर्जुन सिंह ने एक पुस्तक में इस बात का खंडन किया लेकिन घटनाक्रम तो इसी और संकेत देता है कि एंडरसन को बचाने के लिए पूरे सिस्टम ने जान लगा दी थी। 1992 में एंडरसन को भगौड़ा घोषित कर दिया गया।

कितने लोग हुए प्रभावित ? Bhopal Gas Tragedy Casualty

सरकारी आधिकारिक रिपोर्ट के अनुसार 3787 लोग इस हादसे में मारे गए थे, लेकिन अलग अलग मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर यह कहा जाता है कि मरने वाले लोगों की संख्या 15 से 20 हजार के बीच रही है। इसके अलावा लगभग 5 लाख लोग इससे प्रभावित हुए थे। यह वे लोग थे जो गैस का शिकार होकर मरे तो नहीं, लेकिन जीवन भर के लिए अपंग हो गए या किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो गए। आज भी भोपाल के उन परिवारों में बच्चे कई बार किसी विकलांगता के साथ पैदा हो रहे हैं।

मुआवज़ा या मजाक ? Bhopal Gas Tragedy Compensation

2010 में भोपाल की निचली अदालत ने यूनियन कार्बाइड के 7 अधिकारियों को दोषी माना लेकिन उन्हें तुरंत जमानत पर रिहा भी कर दिया। इसके पहले 1989 में यूनियन कार्बाइड गलती मानते हुए मुआवजा देने को भी तैयार हो गई थी।

मुआवजे की राशि 715 करोड़ रूपये तय की गई। सुनने में यह राशि बहुत बड़ी लगती है, लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक (जो कि असली हताहतों की संख्या से बहुत कम है ) 3787 मृतकों और 5 लाख प्रभावित लोगों में बराबर बांटने पर प्रति व्यक्ति केवल 12410 रूपये का मुआवजा दिया जाना तय किया गया। हादसे के इतने साल बाद इंसान की जान की कीमत यूनियन कार्बाइड ने सिर्फ 12410 रूपये आंकी।

मुख्य आरोपी की मृत्यु ? Warren Anderson Death

आरोपी वारेन एंडरसन दोबारा कभी भारत नहीं आया। अमेरिकी सरकार ने भी कभी उसे भारत को सौंपने के बारे में बात नहीं की। आरोपी ने अपना पूरा जीवन अमेरिका में अपनी आलीशान कोठी में बहुत आराम से गुजारा। 29 सितंबर 2014 को 92 साल की उम्र में फ्लोरिडा के नर्सिंग होम में एंडरसन ने आखिरी साँस ली। अमेरिका ने काफी समय तक इस बात को छुपा के रखा। अंतत: बिना सजा पाए हजारों लोगों की मौत का गुनहगार एंडरसन दुनिया से चला गया।

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