Holi Story in Hindi-होली की कहानी

होली का त्योहार उमंग और उत्साह का त्यौहार है. यह असत्य पर सत्य के विजय का पर्व है लेकिन इसकी पहचान अपने रंगीन उत्सवधर्मिता की वजह से पूरी दुनिया में बन गई है. पूरी दुनिया से लोग होली का त्योहार मनाने के लिए भारत आत हैं. होली का त्योहार क्यों मनाया जाता है? क्यों किया जाता है होलिका दहन? क्यों मनाई जाती है धूलण्डी? इन सब सवालों का जवाब इस लेख में देने की कोशिश की गई है.

हिंदी पंचांग के अनुसार होली का पर्व फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. इस दिन चारो ओर खुशी का माहौल होता है. शायद ही ऐसा कोई होता है जो इस त्योहार में हर्ष का अनुभव न करता हो. कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी और गुजरात से लेकर बंगाल तक भारत के हर प्रदेश में होली का पर्व बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है.

रंगों के इस त्यौहार के साथ ही ऋतु परिवर्तन भी हो जाता है. होली के दिन से सर्दियों का अंत हो गर्मी शुरु हो जाती है. दो दिन के इस रंगबिरंगे पर्व की शुरुआत पहले दिन होलिका दहन से होती है. होलिका का दहन फाल्गुन माह की पूर्णिमा को रात में या शाम के समय होता है.

अगले दिन सुबह प्रतिपदा होती है और चैत्र का महीना आरम्भ हो जाता हैं. इस दिन लोग जी भर कर एक दूजे के साथ अबीर गुलाल की होली खेलते हैं. चारों ओर माहौल खुशनुमा और रंगीन होता है.

क्यों पड़ा इस त्योहर का नाम होली?

होली शब्द होलिका से आया है. इसका संबंध दैत्यराज हिरण्यकश्यप और भक्त प्रहलाद की कहानी से है. ऐसा मानना है कि हिरण्यकश्यप अपने पिछले जन्म में भगवान विष्णु के दरबार में था लेकिन एक श्राप के कारण उसे धरती पर राक्षस के रूप में जन्म लेना पड़ा था.

हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद सदैव हिरण्यकश्यप के काम का विरोध करता था इसलिए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को मरवाने के लिए अपनी बहन होलिका को बुलाया. होलिका के साथ प्रहलाद आग में बैठ गया. परंतु विष्णुभक्त प्रहलाद का बाल भी बाँका न हुआ.

भक्त की विजय हुई और राक्षस की पराजय. उस दिन सत्य ने असत्य पर विजय घोषित कर दी. तब से लेकर आज तक होलिका दहन की स्मृति में होली का पर्व मनाया जाता  है.

होली भारत का एकमात्र ऐसा पर्व है जिसे सभी धर्मों के लोग साथ मिलकर मनाते  हैं. एक दूजे के रंग लगाते हैं और गले मिल सारे गिले शिकवे दूर करते हैं. भारत के कई राज्यों में होली के अवसर पर विशेष आयोजन किए जाते हैं. खास कर बरसाने और ब्रज की होली. पंजाब, हरियाणा, बंगाल, बिहार से लेकर नेपाल तक लोग होली का त्योहार मस्ती के साथ मनाते  हैं.

होली खेलने के लिए विदेशी सैलानी भी भारी मात्रा में भारत आते हैं. पिछले कुछ सालों में होली का प्रचलन इतना अधिक बढ़ गया है कि कई देशो में होली का त्योहार मनाया जाने लगा है.

होलिका दहन का महत्व

होली के दिन गली के कोने पर या चौराहों के मध्य लोग प्रहलाद रूपी एक लकड़ी गाड़ते हैं जिसे होली का डांडा भी कहा जाता है. फिर इसके चारो और लकड़ियां, झाड़-झंखाड़ लगाते हैं. फिर मुहूर्त के समय अनुसार महिलायें इसकी पूजा-अर्चना करती हैं और फिर उसमें आग लगा देते हैं.

आग में से प्रहलाद रूपी उस लकड़ी को निकाल लेते हैं. आग जलाने की यह प्रथा होलिका-दहन की याद दिलाती है और फिर सिलसिला शुरु होता है होली के धमाल का.  महिलाएं और पुरुष दोनों ही समूह में फाग (गीत) गाते हैं और ये दौर अगले दिन सुबह धूलण्डी को परवान चढ़ता है.

लोग एक-दूसरे के चेहरे पर रंग और गुलाल लगाते  हैं. होली की बधाइयाँ देते हैं और होली  गीतों पर  नृत्य करते हैं. हिन्दी फिल्मों के कई होली गीत भी बहुत लोकप्रिय हैं जो लोगों की जुबान पर चढ़े हुए हैं.

धूलंडी का महत्व

धूलंडी महोत्सव (रंगों का त्योहार) पूरे दिन भारत में होलिका दहन के बाद मनाया जाता है और वसंत की शुरुआत का प्रतीक है. इस दिन, युवा और बूढ़े समान रूप से रंग और पानी के साथ खेलते हैं.

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धूलंडी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, जिसकी  खुशी में गाँव वालों ने वृंदावन में होली का त्योहार मनाया था. भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला रचाई थी और अगले  दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया. तब से रंग खेलने का प्रचलन है जिसकी शुरूआत वृन्दावन से हुई थी और इसीलिये आज  भी ब्रज की होली दुनियाभर में प्रसिद्ध है.

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