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गोवर्धन पूजन विधि, कथा और अनकूट All About Govardhan Pooja & Annakoot Festival In Hindi
ऐसे करे गोवेर्धन पूजा Govardhan Pooja
कुछ लोग दिवाली के दूसरे दिन सवेरे और कुछ लोग शाम के समय गोवर्धन की पूजा करते हैं कई जगह घरों के आगे गोबर से मानव के शरीर आकार का गोवर्धन बनाया जाता है कुछ जगह पर्वत कि आकृति बनाकर इसकी पूजा की जाती है
दिवाली के दिन जिस थाली से लक्ष्मी जी का पूजन करते हैं उस थाली में एक दीपक लेकर आए और वह जला हुआ दीपक गोवर्धन में रखें रोली से टीका करें व मोली चढ़ाएं लक्ष्मी पूजन में जो दो गन्ने रखे जाते हैं उनके ऊपर का भाग तोड़कर गोवर्धन में सजा एक कटोरी दही लाएं और गोवर्धन के बीचो-बीच डाल दें.
इसके अलावा मिठाई फल दूध आदि चढ़ाये कुछ स्थानों पर दिवाली पूजा में बची सामग्री से भी पूजा की जाती है पूजा करें गोवर्धन के परिक्रमा लगाएं व गीत गाये,महिलाये व पुरुष दोनों ही इसकी पूजा करते है लोकाचार में ऐसा मानना है की गोवर्धन पूजा से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते है.
गोवर्धन पूजा की कथा Story of Govardhan Pooja
भगवान कृष्ण ने देखा कि उनकी मां और सभी ब्रजवासी एक पूजा की तैयारी कर रहे है यह सब देख कर वे यशोदा मां और ब्रजवासीओं से पूछने लगे कि आप सब किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं तब माता यशोदा ने बताया कि वह सब इंद्र की पूजा की तैयारी कर रहे हैं इस पर श्रीकृष्ण ने पूछा हम सब इंद्र की पूजा क्यों करते हैं तब मां यशोदा ने बताया कि इंद्र वर्षा करते हैं और उसी वर्षा के कारण हम अन्न उगा पाते हैं और हमारी गायों को घास खाने को मिलती है.
यह सुनकर कृष्ण ने कहा कि हमारी गाय तो गोवर्धन पर्वत पर चरती हैं और बादल भी उन्ही से टकरा कर बरसते है तो हमारे लिए वही पूजनीय होना चाहिए ना की इंद्र वो तो बहूत घमंडी है क्योंकि बृजवासी श्री कृष्ण की लीलाओं को जानते थे और उनका बहुत सम्मान करते थे इसलिए सभी ने कृष्ण की बात को मानते हुए इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा की जब यह बात इंद्र को पता चली तो इंद्र बहुत ही क्रोधित हो उठे और उन्होंने श्रीकृष्ण और ब्रजवासियो को सबक सिखाने के लिए ब्रज के ऊपर भारी तूफान और बारिश शुरू कर दी.
धीरे-धीरे बारिश बाढ़ का रूप लेने लगी सभी बृजवासी भयभीत होने लगे और उन्हें लगा कि हम ने कृष्ण की बात मान इंद्रदेव को नाराज कर दिया है और वह सर्वनाश कर देंगे इस पर श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली के सहारे गोवर्धन पर्वत को ऊपर उठा दिया और समस्त बृजवासी गाय व अन्य जानवर गोवर्धन पर्वत की शरण में आ गए यह देख इंद्रदेव का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने वर्षा की गति और तेज कर दी सात दिन तक इंद्रदेव लगातार रात और दिन मुसलाधार वर्षा करते रहे और सातों दिन तक भगवान श्री कृष्ण अपनी एक उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाए रखा और अपनी लीलाओं से ब्रजवासियों को और गायों को बारिश के प्रकोप से बचाए रखा
सात दिन बीत जाने के बाद इंद्र को यह एहसास हो गया की श्री कृष्ण कोई साधारण मनुष्य नहीं वह तो स्वयं साक्षात विष्णु के अवतार हैं इतना पता चलते ही इंद्रदेव श्रीकृष्ण के पास जाकर उनसे क्षमा याचना करने लगे और माफी मांगी और इसके बाद देवराज इंद्र ने श्री कृष्ण की और गोवेर्धन पर्वत की पूजा की और उन्हें भोग लगाया कहते हैं तभी से गोवर्धन पूजा की परंपरा आज तक कायम है मान्यता है कि इस दिन गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं इसलिए दिवाली के अगले दिन लोग गोवर्धन पर्वत की पूजा करते हैं और अनकूट बनाते है.