अष्टावक्र गीता – Download ashtavakra gita in hindi pdf

अष्टावक्र गीता का संस्कृत—हिंदी अनुवाद

अष्टावक्र गीता को भारतीय जनमानस में बहुत पूजनीय माना जाता है. सनातन परम्परा में श्रीमद्भगवद् गीता के बाद अगर किसी गीता को सबसे ज्यादा सुना गया है तो उसका नाम अष्टावक्र गीता ही है. अष्टावक्र गीता में भी जीवन के रहस्यों को समझाने का प्रयास बहुत सरल तरीके से किया गया है.

कौन थे अष्टावक्र ऋषि?

अष्टावक्र जी को इस गीता का रचयिता माना जाता है. वे भारतीय ऋषि परम्परा के महान मुनियों में से एक थे. उनके पिता का नाम ऋषि कहोड़ था. अष्टावक्र जी की जीवनी बहुत ही रोचक और प्रेरक है.

अष्टावक्र जी के नाना का नाम उद्दालक था और वे वेदों के ज्ञाता थे. उद्दालक जी के पास कहोड़ एक शिष्य के रूप में आये और अपनी बुद्धिमता से उन्होंने अपने गुरू का हृदय जीत लिया. ​ऋषि उद्दालक ने अपनी कन्या सुजाता का विवाह कहोड़ से कर दिया.

समय के साथ सुजाता गर्भवती हो गई. एक दिन जब ऋषि कहोड़ वेदपाठ कर रहे थे तो गर्भ से अष्टावक्र जी ने अपने पिता के वेद पाठ में हुई गलती पर प्रश्न उठाया. इससे उनके पिता क्रोधित हो गये और उनको श्राप दिया कि उनके अंग आठ जगह से टेढ़े हो जायें.

उन दिनों अपनेआप को वेद का प्रकाण्ड विद्वान साबित करने के लिये शास्त्रार्थ किया जाता था और जो जीतता था, उसे यश और सम्मान मिलता था और जो हारता था, उसे अपमानित होना पड़ता था.

राजा जनक उस समय भारत वर्ष में विद्वानों के सम्मान के लिये जाने जाते थे. कहोड़ भी अपनी विद्वता का प्रदर्शन के लिये राजा जनक के दरबार में पहुंचे. उस दरबार में बंदी नाम का एक विद्वान रहता था, जो सिर्फ इसी शर्त पर शास्त्रार्थ करता था कि हारने वाले को जल समाधि लेनी होगी.

कहोड़ ने बंदी के इस शर्त को स्वीकार किया और उससे शास्त्रार्थ शुरू किया और बंदी ने कहोड़ को हरा दिया. शर्त के मुताबिक उन्हें जल समाधि लेनी पड़ी.

उधर समय के साथ अष्टावक्र का जन्म हुआ. इसी वक्त मुनि उद्दालक के यहां भी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिसका नाम श्वेतकेतु रखा गया. श्वेतकेतु और अष्टावक्र एक ही उम्र के थे. एक दिन जब अष्टावक्र जी अपने नाना की गोद में बैठे हुये थे तो श्वेतकेतु ने उन्हें यह कहते हुये गोद से उतार दिया कि वे उसके पिता की गोद में न बैठे.

अष्टावक्र जी को यह बात अच्छी नहीं लगी और उन्होंने अपनी माता से अपने पिता के बारे में जानकारी चाही. इस पर उनकी माता ने उन्हें सारी कथा कह सुनाई. अपने पिता की मृत्यु के बारे में जानकर अष्टावक्र जी श्वेतकेतू को लेकर राजा जनक के दरबार में पहुंचे और बंदी को शास्त्रार्थ के लिये आमंत्रित किया.

बंदी के प्रश्नों का उन्होंने समुचित उत्तर दिया और उसे शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया. इसके बाद जब बंदी को जब जल समाधि लेने के लिये कहा गया तो अष्टावक्र जी ने उसे माफ कर दिया. उनके पिता कहोड़ ने उन्हें दर्शन दिये और समंगा नदी में स्नान करने के लिये कहा ताकि उनका श्राप समाप्त हो जाये.

अष्टावक्र जी ने ऐसा ही किया और ऐसा करते ही उनके सारे अंग सीधे हो गये. इसके बाद अष्टावक्र जी ने राजा जनक को अष्टावक्र गीता का उपदेश दिया जिसका हिंदी अनुवाद हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं.

अष्टावक्र गीता का सार

अष्टावक्र गीता अद्वैत वेदान्त का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है. जैसे भगवत गीता में अर्जुन प्रश्न पूछते हैं और कृष्ण उत्तर देते हैं, वैसे ही अष्टावक्र गीता में जनक जी प्रश्न पूछते हैं और अष्टावक्र जी उत्तर देते हैं.

अष्टावक्र गीता ज्ञान, मुक्ति और वैराग्य के तीन प्रश्नों पर बात करता है. अष्टावक्र जी ने अपने तर्कों और उदाहरण से राजा जनक के प्रश्नों का शमन करने का प्रयास किया है.

अष्टावक्र गीता में कुल 20 अध्याय हैं. इस पुस्तक को वेदान्त का शिखर माना जाता है. वेदान्त दरअसल ज्ञानयोग की एक शाखा है. वेदान्त का आधार उपनिषद माने जाते हैं और यहां ज्ञान के माध्यम से ईश्वर और मुक्ति को प्राप्त करने का साधन किया जाता है.

अष्टावक्र गीता ज्ञान संस्कृत—हिंदी अनुवाद सहित

Astavakra Geeta हिंदी अनुवाद सभी अध्यायों के लिये लिंक प्रदान किये जा रहे हैं, इन पर क्लिक करके इन्हें पढ़ा जा सकता है. साथ ही हम आपको अष्टावक्र गीता ई पुस्तक की पीडीएफ कॉपी का लिंक भी नीचे दे रहे हैं. इस पर क्लिक करके आप इसे पीडीएफ में डाउनलोड करके भी पढ़ सकते हैं.

प्रथम अध्याय

द्वितीय अध्याय-अष्टावक्र गीता अध्याय 2

तृतीय अध्याय

चतुर्थ अध्याय

पंचम अध्याय

षष्ठ अध्याय

सप्तम अध्याय

अष्टम अध्याय

नवम अध्याय

दशम अध्याय

एकादश अध्याय

द्वादश अध्याय

त्रयोदश अध्याय

चतुर्दश अध्याय

पंचदश अध्याय

षोडश अध्याय

सप्तदश अध्याय

अष्टादश अध्याय

नवदश अध्याय

विंश अध्याय

अष्टावक्र गीता गीता प्रेस PDF

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