श्री हनुमान जी से सीखें परिचय देना – Hanuman Ji Ki Prerak Kahaniyan

सभी हरिभक्तों को सादर जय श्री राम। Shri Hanuman Ji मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम के परम भक्त हैं और आज के इस युग में हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत| हनुमान जी ने देशकाल परिस्थिति के अनुसार बुद्धि, विवेक और बल तीनो का उचित प्रयोग किया तथा लंका विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

हनुमान जी की उन्हीं विवेकशीलता में से एक है “परिचय देना “। हम किसी से मिलते हैं, तो परिचय देते हैं। किन्तु किसको परिचय किस प्रकार देना है, यह हमें Hanuman ji से सीखना चाहिए।

जब श्री राम जी ने Hanuman ji को लंका जाकर सीता माँ की खोज करने के लिए भेजा, तब उन्होंने हनुमान जी से कहा, “हनुमान मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है कि तुम शीघ्र ही सीता का पता लगाकर उनसे साक्षात्कार करोगे”।

तदोपरांत श्री हनुमान जी ने प्रभु को प्रणाम कर लंका की ओर प्रस्थान किया।

|| सुरसा से परिचय ||

Shri Hanuman Ji हनुमान जी को लंका जाते हुए सुरसा नामक राक्षसी मिली। वह उड़ने वाले जीवों की परछाई को पकड़ लेती थी एवं उन्हें खा जाती थी। उसने यही छल हनुमान जी के साथ करने का सोचा, तो हनुमान जी ने अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग कर उसको पराजित किया एवं आगे की और प्रस्थान किया।

|| लंकिनी से परिचय ||

हुआ यूं कि लंकिनी नामक राक्षसनी लंका की पहरेदार थी और हनुमान जी सूक्ष्म रूप में लंका में प्रवेश करने लगे।

मसक समान रूप कपि धरि ।

लंका चलेउ सुमिर नर हरि ।।

(श्री हनुमान जी मच्छर जैसा(छोटा) रूप धारण कर और श्री राम (नर के रूप में हरि) का स्मरण कर लंका में प्रवेश करने लगे ।)

तब लंकिनी ने उन्हें रोक लिया और कहा, कि जो भी चोरी से लंका में प्रवेश करने का प्रयास करता है, मैं उसको मेरा आहार बनाती हूँ।

इतना कहने की देर थी कि Shri Hanuman Ji के एक मुष्टिका प्रहार से लंकिनी की रक्त धार बहने लगी। लंकिनी तुरन्त पहचान गई कि Hanuman ji कौन हैं ?

उसने कहा –

जब रावनहिं ब्रह्म वर दीन्हा।

चलत बिरंचि कहा मोहि चीन्हा।

बिकल होसी ते कपि के मारे।

तब जानसि निश्चर संघारे ।।

(जब रावण को ब्रह्म जी ने वर दिया था, तब उन्होंने मुझसे कहा था, कि जिस दिन किसी वानर के प्रहार से तुम विचलित हो जाओ, उस दिन समझना कि राक्षस कुल का अंत निकट है)

प्रविसी नगर कीजे सब काजा।

हृदय राखी कौशलपुर राजा ।।

इस प्रकार हनुमान जी ने अपने बल से लंकिनी को अपना परिचय दिया और लंका ने प्रवेश किया ।

|| विभीषण से परिचय ||

Shri Hanuman Ji लंका में सीता जी की खोज करने लगे। तभी उन्हें एक महल दिखाई दिया, जहाँ पर तुलसी जी का पौधा लगा था। यह देख कर उन्हें आश्चर्य हुआ, कि लंका में सज्जन व्यक्ति का वास कैसे हो सकता है ?

इतने में विभीषण श्री राम कहते हुए जाग गए। हनुमान जी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और मधुर वचन बोलने लगे। विभीषण आशचर्यचकित होकर पूछने लगे, “आप कौन हैं?, आप हरिदास हैं? आप रामदीन अनुरागी हैं?” तदोपरांत Hanuman ji ने श्री राम की कथा सुना कर अपना परिचय दिया एवं आश्वासन दिया, कि जब प्रभु ने मुझ पर कृपा की है, तो आप पर भी अवश्य करेंगे। ऐसा कह कर विभीषण के मन को शांति प्रदान की।

यहां पर हनुमान जी ने शालीनता एवं विनम्रता से अपना परिचय दिया ।

|| सीता माता से परिचय ||

विभीषण ने Shri Hanuman Ji को अशोक वाटिका का मार्ग बताया। हनुमान जी अशोक वाटिका पहुंच कर अशोक वृक्ष पर बैठ गए।

रावण वहां आकर सीता माँ को डराने लगा एवं राक्षसियों को आदेश देकर वहां से चला गया। उसके तथा त्रिजटा आदि के जाने के बाद सीता माँ एकांत में थी, तब हनुमान जी ने स्वयं माता के समक्ष जाने की जगह पहले ऊपर से मुद्रिका नीचे डाली।

सीता माँ तुरन्त मुद्रिका पहचान गईं तथा आग्रह करने लगी, कि जो भी यह मुद्रिका लाया है, वह मेरे समक्ष प्रकट हो।

जब श्री राम जी ने Hanuman ji को लंका जाकर सीता माँ की खोज करने को कहा, तब उन्होंने हनुमान जी को बता दिया था- “हनुमान मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है कि तुम शीघ्र ही सीता का पता लगा लोगे। लेकिन तुम्हे बताना चाहूंगा, कि सीता एक वानर का चित्र देख कर भी डर जाती हैं। तुम तो अतुलितबलधामं, हेमशैलाभदेहम हो”।

तब श्री हनुमान जी ने कहा, “प्रभु आपका आशीर्वाद है साथ, तो सब अच्छा होगा”।

हनुमान जी नीचे उतर आए।

तब हनुमंत निकट चली गयउ।

फिरि बैठी मन विस्मय भयउ।।

(श्री राम जी के कथानुसार सीता जी वानर को देख कर विस्मित हो गईं तथा मुंह एक ओर कर के बैठ गईं।)

अब हनुमान जी को ऐसा परिचय देंना था, जिससे माँ को पूर्ण विश्वास हो जाये, कि हनुमान जी ही श्री राम के दूत हैं ।

हनुमान जी ने कितना सुंदर परिचय दिया और बोले –

रामदूत मैं मातु जानकी।

सत्य सपथ करुनानिधान की ।।

(हे माता सीता, मैं करुनानिधान की शपथ लेता हूँ, कि मैं रामदूत ही हूँ)

अब Shri Hanuman Ji ने करुणनिधान ही क्यों कहा? वे भगवान के दूसरे नाम राघव, रघुराज, श्रीराम आदि भी ले सकते थे। आइये इसके पीछे का रहस्य जानते हैं |

जब सीता माता धनुष यज्ञ से पूर्व माता पार्वती की पूजन कर रहीं थीं, तब माता पार्वती  ने प्रसन्न होकर माता सीता को वर दिया था।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।

माता गौरी ने श्री राम को करुनानिधान सम्बोधित किया था।

निसंदेह इतनी राज़ की बात श्री राम का कोई ख़ास दूत ही जान सकता है। इसलिए हनुमान जी ने कहा, कि मैं करुनानिधान का दूत हूँ |

सीता माता तुरंत पहचान गई, कि ये रामदूत है।

इस तरह हनुमान जी ने सीता जी रामदूत के रूप में परिचय दिया।

||रावण को परिचय ||

जब नागपाश में  बंधकर Shri Hanuman Ji रावण की सभा में पहुंचे, तो इस प्रकार निर्भय थे, जैसे गरुड़ नागों के बीच में।

देखि प्रताप न कपि मन संका |

जिमि अहिगन महं  गरुड़ असंका  ||

(रावण Hanuman ji को देख कर पहले बहुत हँसा तथा अपशब्द कहने लगा। इसने मेरे बेटे को मारा है। ऐसा याद आने पर उसने क्रोध भरे स्वर में 6 प्रश्न किये।

  1. कपि तुम कौन  हो?
  2. किसके बल से तुमने वाटिका में नाश किया?
  3. क्या तुमने मेरा यश अपने कानों से नहीं सुना है?
  4. तुम बहुत अशंक (निडर ) खड़े हुए हो?
  5. किस अपराध के कारण तुमने राक्षसों को मारा ?
  6. क्या तुम्हे अपने प्राण जाने का भय नहीं है?

अब हनुमान जी से सीखिए कि इतने प्रश्नों का उत्तर साथ में अपने प्रभु का गुणगान करते हुए अपना संक्षिप्त परिचय कैसे दिया जाता है ? हनुमान जी कहते हैं –

  • रावण सुन, जिनका बल पाकर माया सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के समूह की रचना करती  है,
  • जिनके बल से ब्रह्मा विष्णु महेश सृष्टि का सृजन, पालन तथा संहार करते हैं,
  • जिनके बल से शेषनाग समस्त ब्रह्माण्ड को सर पर धारण करते हैं,
  • जो देवताओं की रक्षा के लिए विविध शरीर धारण करते हैं तथा तुम जैसे मूर्खों को शिक्षा देने वाले हैं,
  • जिन्होंने शिवजी के कठोर धनुष को तोड़ा एवं समस्त राजाओं का घमण्ड चूर किया,
  • जिन्होंने बलशाली खर, दूसन, त्रिसिरा को मार डाला,
  • जिनके लेशमात्र बल से तुमने समस्त जग को जीत लिया और जिनकी प्रिय पत्नी को तुम हर लाये हो, मैं उन्हीं का दूत हूँ ।

इस प्रकार हनुमान जी ने श्री राम का यशगान करते हुए अपना परिचय दिया||

तो मित्रों किस समय, किसको, किस प्रकार से अपना परिचय देना है, यह बहुत ही विवेक का कार्य है। हमें हनुमान जी को अपना प्रेरणास्त्रोत बना कर उनके बताए मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए।

।। जय जय सियाराम।।

आयुष्य नागर
(लेखक धार्मिक वक्ता एवं हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं )

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