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क्यों खास है सियाचीन?
सियाचीन क्षेत्र में सन् 1984 से लेकर अब तक हिमस्खलन आने, ग्लेशियर टूटने और बड़ी ऊंचाई की परिस्थितियों में स्वस्थ्य खराब होने के नतीजे में 8 हजार से अधिक भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों की जान जा चुकी है.
यह इस विवादित क्षेत्र में कभी कभी शुरू होनेवाली लड़ाइयों के शिकारों की संख्या से अधिक होने के बावजूद भारत इसकी रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहा है. सियाचीन भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
क्या है सियाचीन?
सियाचीन पूर्वी काराकोरम रेंज पर स्थित है. यह हिमालय श्रृंखला के 35.421226°N 77.109540°E, पर स्थित है. समुद्र तल से इसकी ऊंचाई लगभग 5,753 m है. इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां तापमान सालों भर कम रहती है. यहां तापमान का पारा -50 के करीब पहुंच जाती है. अभी सियाचिन ग्लेमशियर का तापमान -30 डिग्री है.
सियाचिन ग्लेशियर का क्षेत्रफल लगभग 700 वर्ग मीटर है. उस इलाके का जलवायु बहुत ही सख्त है. सर्दियों में तापमान शून्य के नीचे 60 डिग्री सेंटिग्रेड तक गिरता है. बर्फ की परत 10 मीटर गहरी होती है.
सियाचिन ग्लेशियर को अक्सर तीसरा ध्रुव कहा जाता है. माना जाता है कि उसकी परिस्थितियाँ मानव के रहने के लिये अनुकूल नहीं हैं. लेकिन वहाँ से नियंत्रण रेखा के पार स्थित क्षेत्र पर नियंत्रण किया जा सकता है, इसलिये सियाचिन ग्लेशियर का बड़ा रणनीतिक महत्त्व है.
क्या है सियाचीन विवाद?
सियाचिन की समस्या क़रीब 21 साल पुरानी है. 1972 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद जब शिमला समझौता हुआ तो सियाचिन के एनजे-9842 नामक स्थान पर युद्ध विराम की सीमा तय हो गई. इस बिंदु के आगे के हिस्से के बारे में कुछ नहीं कहा गया. अगले कुछ वर्षों में बाक़ी के हिस्से में गतिविधियाँ होने लगीं.
पाकिस्तान ने कुछ पर्वतारोही दलों को वहाँ जाने की अनुमति भी दे दी. कहा जाता है कि पाकिस्तान के कुछ मानचित्रों में यह भाग उनके हिस्से में दिखाया गया. इससे चिंतित होकर भारत ने 1985 में ऑपरेशन मेघदूत के ज़रिए एनजे-9842 के उत्तरी हिस्से पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया.
भारत ने एनजे-9842 के जिस हिस्से पर नियंत्रण किया है, उसे सालटोरो कहते हैं. सियाचिन का उत्तरी हिस्सा-कराकोरम भारत के पास है. पश्चिम का कुछ भाग पाकिस्तान के पास है. सियाचिन का ही कुछ भाग चीन के पास भी है. एनजे-9842 ही दोनों देशों के बीच लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी वास्तविक सीमा नियंत्रण रेखा है.
यहाँ से लेह, लद्दाख और चीन के कुछ हिस्सों पर नज़र रखने में भारत को मदद मिलती है. सियाचिन विवाद को लेकर पाकिस्तान, भारत पर आरोप लगाता है कि 1989 में दोनों देशों के बीच यह सहमति हुई थी कि भारत अपनी पुरानी स्थिति पर वापस लौट जाए लेकिन भारत ने ऐसा कुछ भी नहीं किया.
पाकिस्तान का कहना है कि सियाचिन ग्लेशियर में जहां पाकिस्तानी सेना हुआ करती थी वहां भारतीय सेना ने 1984 में कब्जा कर लिया था. उस समय पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक का शासन था. पाकिस्तान तभी से कहता रहा है कि भारतीय सेना ने 1972 के शिमला समझौते और उससे पहले 1949 में हुए करांची समझौते का उलंघन किया है.
पाकिस्तान की मांग रही है कि भारतीय सेना 1972 की स्थिति पर वापस जाए और वे इलाके खाली करे जिन पर उसने कब्जा कर रखा है. भारत पाकिस्तान के आरोपों को नकारता है और इस भू—भाग को अपना अभिन्न अंग मानता है. इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच कई दौर की वार्ता हुई है लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला है.
क्यों महत्वपूर्ण है सियाचीन?
भारतीय और पाकिस्तानी सैनिक कई दशकों से इस विवादित क्षेत्र में एक दूसरे का सामना करते आये हैं. सियाचिन ग्लेशियर और कुल मिलाकर कश्मीर नियंत्रण रेखा पर दोनों पक्षों द्वारा कई बार आमने-सामने हो चुकी है.
यह ग्लेशियर काराकोरम रेंज के अंतर्गत पांच बडे ग्लेशियर्स में से सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर माना जाता है. इसकी भौगोलिक स्थिति पर ध्यान दें तो इसके एक तरफ पाकिस्तान की सीमा है, तो दूसरी ओर चीन की सीमा है.
इसे देखते हुए सियाचिन भारत के लिए एक अहम स्थान माना जाता है. यदि इस स्थान पर पाकिस्तान सेना का कब्ज़ा हो जाए तो वह चीन के साथ गठजोड़ कर सकती है. जो कि भारत के लिए घाटा साबित हो सकता है.
इसके अलावा सियाचिन की ऊंचाई से पाकिस्तान और चीन पर नज़र रखना आसान है. इसलिए इस सियाचीन भारत के लिए यह युद्धक्षेत्र बहुत ही महत्वपूर्ण है.
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