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मिर्ज़ा इस्माइल कौन थे ? Who is Mirza Ismail ?
Mirza Ismail एक ऐसे भारतीय राजनेता थे, जो अपनी प्रशासनिक दक्षता के कारण भारतीय रजवाड़ों की पहली पसंद हुआ करते थे। उन्होंने अंग्रेजों के समय देश की तीन बड़ी रियासतों में प्रधानमंत्री/दीवान के रूप में कार्यभार संभाला और रियासतों के विकास में अहम् भूमिका निभाई।
मिर्ज़ा इस्माइल का प्रारंभिक जीवन – Mirza Ismail Early Life
Mirza Ismail का जन्म 24 अक्टूबर 1883 में बैंगलोर के फारसी परिवार में हुआ था। इनका परिवार फारस (ईरान) से भारत में रिफ्यूजी के तौर पर आया था। मिर्ज़ा मैसूर के राजा कृष्णराय के साथ कॉलेज में पढ़ते थे और अच्छे दोस्त हुआ करते थे। 1904 में दोनों ने ग्रेजुएशन पूरा किया और मिर्ज़ा बतौर सहायक पुलिस अधीक्षक मैसूर रियासत में काम करने लगे।
मैसूर के दीवान के रूप में कार्यकाल (1926 से 1941) – What are the contribution of Sir Mirza Ismail to Mysore?
मिर्ज़ा कृष्णराजा के निजी सहायक के रूप में काम करने लगे। कृष्णराजा और मिर्ज़ा का काम करने का तरीका बहुत कुछ मिलता जुलता था। मिर्ज़ा की प्रशासनिक कुशलता से प्रभावित होकर कृष्णराजा ने मैसूर के दीवान Visvesvaraya से मिर्ज़ा को प्रशासनिक कार्य सिखाने का आग्रह किया। 1926 में Visvesvaraya की सलाह पर उन्हें मैसूर के दीवान का कार्यभार सौंप दिया गया।
दीवान के रूप में मिर्ज़ा ने बहुत से विकास कार्यो को पूरा किया। उस समय बंगलौर भी मैसूर रियासत का ही हिस्सा हुआ करता था। वहां के प्रसिद्ध टाउन हॉल को मिर्ज़ा इस्माइल ने डिज़ाइन किया था। इसी के साथ इन्होने ग्रामीण शहरों में बिजली पहुंचाने के काम को गति दी।
मिर्ज़ा ने औद्योगिक विकास को गति दी। उनके कार्यकाल में चीनी मिट्टी के बर्तनों, ग्लास, कागज, सीमेंट और बिजली के बल्ब के कारखाने स्थपित किये गए। मैसूर रियासत के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने के लिए लंदन में एक व्यापार आयुक्त भी नियुक्त किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने खादी उत्पादन केंद्र की भी शुरुआत की।
1940 में मैसूर के राजा और मिर्ज़ा के दोस्त कृष्णराजा की मृत्यु हो गई और उनके भतीजे ने राजा के रूप में मैसूर की बागडोर संभाल ली।
जयपुर के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल (1942 से 1946) – What are the contribution of Sir Mirza Ismail to Jaipur ?
मिर्ज़ा इस्माइल मैसूर के नए राजा के साथ तालमेल नहीं बैठा सके और अंत में उन्होंने दीवान के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। तब तक मिर्ज़ा के मैसूर में किये गए विकास कार्यों की धूम देश भर में मच चुकी थी। कई राजाओं ने उन्हें प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने का आग्रह किया। मिर्ज़ा ने जयपुर के राजा सवाई मानसिंह-द्वितीय के आग्रह को स्वीकार करते हुए एक साल के लिए जयपुर का प्रधानमंत्री बनना स्वीकार किया, जिसे बाद में बढ़ा कर तीन साल कर दिया गया।
जागीरदारों और ठाकुरों का विरोध
जब मिर्ज़ा इस्माइल को जयपुर का प्रधानमंत्री बनाने का फैसला लिया गया, तो राजपूत ठाकुरों और जागीरदारों ने नाराजगी जाहिर की। उन्हें एक मुस्लिम का उनकी रियासत का प्रधानमंत्री बनना स्वीकार्य नहीं था। लेकिन जयपुर के राजा सवाई मानसिंह द्वितीय ने किसी की नहीं सुनी और मिर्ज़ा की काबिलियत देखते हुए उन्हें पद पर बैठाया।
जयपुर में विकास कार्य – Mirza Ismail’s Contribution to Development of Jaipur
जयपुर का प्रसिद्ध गवर्मेंट हॉस्टल यानी आज का पुलिस कमिश्नर ऑफिस कभी मिर्ज़ा इस्माइल का ऑफिस यानी प्रधानमंत्री कार्यालय हुआ करता था। चौड़ा रास्ता के नुक्कड़ पर पहले न्यू गेट नहीं बल्कि परकोटा हुआ करता था। मिर्ज़ा ने परकोटा तुड़वा कर वहां गेट बनवा दिया और रामनिवास बाग़ के पेड़ कटवा कर वहां सड़क बनवा दी। आज यह सड़क जवाहर लाल नेहरू मार्ग के नाम से जानी जाती है।
शहर के दक्षिणी भाग का विकास
मिर्ज़ा को शहर के दक्षिणी भाग की विकास की जिम्मेदारी दी गई। उन्होंने A,B,C,D, E की स्कीमें काटी। ए. स्कीम में फतेह टिब्बा, बी. स्कीम में मेडिकल काॅलेज और गंगवाल पार्क, सी स्कीम में न्यू काॅलोनी और जालुपरा और ई स्कीम के अन्तर्गत बनीपार्क का विकास किया गया।
अजमेरी गेट से रेलवे स्टेशन तक नई सड़क का निर्माण करवाया, जिसे आज मिर्ज़ा इस्माइल रोड (एम आई रोड) कहा जाता है। एक बड़े चौराहे का निर्माण करवा कर उसके चारों और शहर के बड़े रईसों जयपुरिया, ठोलिया, कासलीवाल परिवारों के भवनों को बंगलौर की तर्ज पर बनाया गया और इसका नाम पांच बत्ती रखा गया।
मेडिकल कॉलेज की स्थापना – SMS Medical College Foundation
जयपुर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना का श्रेय भी मिर्ज़ा को ही जाता है। मिर्ज़ा की पहुँच तत्कालीन वायसराय लार्ड लेवल तक थी। मिर्ज़ा ने उन्हें जयपुर आ कर मेडिकल कॉलेज की नींव रखने के लिए मना लिया। उन्होंने स्वास्थ्य सेवाओं का स्तर सुधारने के लिए मैसूर के फेमस जर्मन डॉक्टर हेलिग को बुलवा लिया, जिन्होंने जयपुर का सवाई मानसिंह अस्पताल संभाला। उस समय अस्पताल का नाम लेडी हार्डिग हुआ करता था।
विश्वविद्यालय की स्थापना – Rajasthan University Foundation
राजस्थान विश्वविद्यालय की स्थापना में मिर्ज़ा इस्माइल का अहम् योगदान रहा है। पहले इसे राजपुताना यूनिवर्सिटी भी कहा जाता था। मिर्ज़ा ने मैसूर के प्रसिद्ध शिक्षाविद डॉ जे सी रोलो से निवेदन किया और उन्हें जयपुर आने के लिए मनाया। इसके बाद दोनों ने यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए प्रयास शुरू किये। आज जयपुर की राजस्थान यूनिवर्सिटी को दुनिया भर में नाम है और देश विदेश से विद्यार्थी यहाँ पढ़ने आते हैं।
मिर्ज़ा इस्माइल का विरोध
जहाँ एक ओर मिर्ज़ा इस्माइल के विकास कार्यों की सभी ओर प्रशंसा हो रही थी, वहीं कुछ बुद्धिजीवी उनसे नाखुश भी थे। मिर्ज़ा इस्माइल द्वारा रामनिवास बाग़ के पेड़ कटवा देने पर दरबार स्कूल के एक अध्यापक हरि शास्त्री ने एक कविता लिखी जो पूरे जयपुर में प्रसिद्ध हो गई।
‘आछो लायो राजा मान, यो मैसूरी उॅट
रामनिवास बाग का, चर गयो चारो कूट’
इसके बाद शास्त्री को सस्पेंड कर दिया गया, लेकिन जयपुर छोड़ कर जाते समय बड़ा दिल दिखाते हुए मिर्ज़ा उन्हें फिर से बहाल कर गए।
मिर्ज़ा के सामने युवक ने मारी खुद को गोली
मिर्ज़ा के सामने एक बार एक अत्यंत दुखद घटना घटी। एक बार जब वे अपने ऑफिस में काम कर रहे थे, तभी एक सिख युवक उनके कमरे में आया और उनसे जयपुर सिविल सर्विस में नौकरी देने का निवेदन किया, ताकि नौकरी पाकर वह अपनी प्रेमिका से शादी कर सके।
मिर्ज़ा ने असमर्थता जताते हुए कहा कि अगर वह जयपुर का होता तो वे महाराजा से उसकी नौकरी के लिए बात कर सकते थे। इस पर निराश युवक ने जेब से रिवॉल्वर निकाली और कनपटी पर रखकर खुद को गोली मार ली। उसके पर्स में से उसकी प्रेमिका की तस्वीर मिली, लेकिन वह युवक कहाँ से आया था और कौन था इसका पता नहीं चल सका ।
हैदराबाद के दीवान के रूप में कार्यकाल (1946 से 1947) – Diwan of Hyderabad
मोहमद अली जिन्ना चाहते थे कि मिर्ज़ा उनके साथ पाकिस्तान चले जाएं और पाकिस्तान के निर्माण में मदद करें, लेकिन मिर्ज़ा ने बता दिया कि वे बंटवारे के पक्ष में नहीं हैं। इसी बात को साबित करने के लिए उन्होंने 1946 में हैदराबाद के दीवान का पद स्वीकार किया और हैदराबाद चले गए।
हैदराबाद के भारत में विलय पर मिर्ज़ा ने निज़ाम मीर उस्मान अली खान के पक्ष को भारत सरकार के सामने बहुत अच्छे से रखा। लेकिन जब उन्होंने देखा कि निज़ाम धीरे धीरे भारत में विलय के विरुद्ध जा रहा है और उग्रवाद का सहारा लेने की योजना बना रहा है, तो उन्होंने दीवान के पद से इस्तीफ़ा दे दिया।
मिर्ज़ा इस्माइल का परिवार – Sir Mirza Ismail Family
मिर्ज़ा इस्माइल ने अपना आखिरी समय बंगलौर में बिताया और 1959 में उनका निधन हो गया। उनके परिवार में उनकी बेगम के अलावा दो बेटियां और एक बेटा था।
पत्नी – जीबुन्देह बेगम शिराज़ी
बच्चे – मिर्ज़ा हुमायूं, शाह ताज बेगम, गौहर ताज बेगम
जयपुर, मैसूर और हैदराबाद के विकास में मिर्ज़ा इस्माइल के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। इनके कार्योँ से प्रभावित होकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें KCIE और OBE से सम्मानित किया था।
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1 Comment
Add Yours →एक बेहद सटीक चित्रण है