ओशो जिन्हें लोग आचार्य रजनीश के नाम से भी जानते हैं। ओशो ने भारतीय दर्शन को आसान बनाकर आमजन के लिए सुलभ किया। उनके प्रवचनों से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होकर उनके अनुयायी बने। उन्होंने न सिर्फ भारतीयों को बल्कि पूरी दुनिया में लोगों को प्रभावित किया और उन्हें अपना शिष्य बनाया।
उनके बनाई शिष्य परम्परा आजतक उनके उपदेशों को आमजन तक पहुंचा रही है। ओशो के विचारों ने जहां उनके लाखों समर्थक बनाएं, वहीं बड़ी संख्या में विरोधियों को भी जन्म दिया। अपने आधुनिक विचारों की वजह से उनकी आलोचना भी की गई।
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ओशो की संक्षिप्त जीवनी Short Biography of Osho
आचार्य रजनीश, भगवान रजनीश और ओशो के नाम से विख्यात भारतीय आध्यात्मिक गुरू का जन्म 11 दिसम्बर, 1931 को भारत के कुचवाड़ा में हुआ था. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने कुछ समय शिक्षण का कार्य किया और इसके बाद उन्होंने एक दिन दावा किया कि उन्हें बुद्धत्व की प्राप्ति हो गई है.
1970 में उन्होंने ध्यान की एक नई पद्धति को दुनिया के सामने रखा, जिस डायनेमिक मेडिटेशन का नाम दिया गया. अपने विवादास्पद उपदेशों और विचारों के कारण भारत का परम्परागत समाज जब उनका विरोध करने लगा तो उन्होंने आॅरेगन में अपना आश्रम बनाया और एक कम्यून की स्थापना की.
वहां भी कुछ समय के बाद उनका स्थानीय लोगों से विवाद शुरू हो गया और उन्हें अमेरिका छोड़कर वापस भारत लौटना पड़ा. भारत के पूना में उन्होंने अपना शेष जीवन बिताया और 19 जनवरी, 1990 को पूना में ही उनका स्वर्गवास हो गया.
ओशो का आरंभिक जीवन Early life of Osho
ओशो या भगवान श्री रजनीश का वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन था. उनका जन्म 11 दिसम्बर 1931 को भारत के एक छोटे से कस्बे कुचवाड़ा में हुआ. उनका बचपन उनके नाना-नानी के साथ ही बिता. बचपन से ही वे विद्रोही स्वभाव के थे. स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद उन्हें काॅलेज में अपने प्रोफेसर्श से विचित्र सवाल पूछने की वजह से दूसरी काॅलेज में शिफ्ट कर दिया गया.
पहले उन्होंनेे हितकारी काॅलेज में प्रवेश लिया लेकिन अपने शिक्षकों को परेशान करने का आरोप लगने के बाद उन्होंने दूसरे महाविद्यालय डी. एन. जैन काॅलेज में दाखिला ले लिया. दर्शन की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक शिक्षण संस्थान में व्याख्याता के तौर पर व्याख्यान देने शुरू किए और कुछ समय बाद उन्होंने घोषणा कर दी कि उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है. वे बुद्ध हो गए हैं.
ओशो कैसे बने आध्यात्मिक गुरू?
ओशो ने जल्दी ही स्वयं को एक आध्यात्मिक गुरू के तौर पर स्थापित कर लिया. इस दौरान उन्होंने पूरे भारत की यात्रा की और अपने विचारों से बड़ी संख्या में अनुयायी बनाये. उन्होंने अपने विचारों से तब के युवा समाज को उद्वेलित कर दिया. उनके विचार संभोग से समाधी तक नाम की पुस्तक में सहेजे गए जो सबसे ज्यादा बिकने वाली पुस्तकों में से एक बन गई.
रजनीश पारम्परिक भारतीय अध्यात्म के विपरीत संभोग को ज्ञान प्राप्त करने की राह में रोड़ा मानने की बजाय रास्ता मानते थे. उस वक्त के भारतीय समाज में उनका जम कर विरोध हुआ और उन्हें सेक्स गुरू तक की संज्ञा दे दी गई. पूना में उन्होंने एक आश्रम की स्थापना की. उनके भक्तों में भारत के एलिट ग्रुप के साथ ही पश्चिमी देशों के लोग बड़ी संख्या में शामिल थे.
तब भारतीय सिनेमा के सूपर स्टार माने जाने वाले विनोद खन्ना ने अपने करिअर को छोड़ ओशो के शरण में जाने का फैसला लिया. भारतीय सिनेमा उद्योग के कई जाने-माने लोग ओशो के पूणे आश्रम के नियमित सदस्य बने. उनके अनुयायी भगवा और लाल कपड़े पहनते थे और विदेशी अनुयायियों का भी हिंदुस्तानी नामकरण किया गया था.
1970 आते-आते पूणे में छह एकड़ में फैला आश्रम अनुयायियों के लिए छोटा पड़ने लगा और उन्हें एक नये आश्रम की जरूरत पड़ी. तब तक भारत में ओशो का विरोध भी अपने चरम पर पहुंच गया था और सामान्य जनमानस उन्हें स्वीकार करने को बिल्कुल तैयार नहीं था. इसी बीच 1980 में एक घटना घटी जब एक व्यक्ति ने ओशो की हत्या करने का प्रयास किया हालांकि वह इसमें सफल नहीं हो सका.
इस विरोध से परेशान होकर ओशो ने अपने 2000 अनुयायियों के साथ भारत छोड़ दिया और अमेरिका के आरेगन शहर में 100 मील के एक रेंच का अपना आश्रम बना लिया. इस रेंच को एक शहर में बदल दिया गया और नाम रखा गया रजनीशपुरम.
वहां की स्थानीय सरकार ने इसका विरोध किया लेकिन अदालत में ओशो की जीत हुई और आश्रम को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया गया लेकिन स्थानीय सरकार के साथ ओशो की नहीं बनी और उन्हें आखिर में 1986 में आॅरेगन छोड़ एक बार फिर से भारत लौटना पड़ा.
भारत लौटने के बाद एक बार फिर उन्होंने अपने पूणे के आश्रम में उपदेश देना शुरू किया लेकिन उनका स्वास्थ्य लगातार गिरता रहा और 19 जनवरी 1990 को उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद उनके आश्रम को ओशो इंस्टीट्यूट में बदल दिया गया.
यहीं पर ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसोर्ट की भी स्थापना की गई. इस रिसोर्ट में हरे साल लाखो लोग ध्यान साधना के लिए आते हैं. इस सेंटर से जुड़े आज सैकड़ों ध्यान केन्द्र पूरे भारत में खुल चुके हैं जो ओशो के विचारों के अनुसार ध्यान साधना करवाते हैं.
Osho Quotes in hindi
यदि आप फूल पसंद करते हैं, तो इसे तोड़ो मत क्योंकि यदि आप इसे तोड़ते हैं तो यह मर जाता है और उसी क्षण उसके प्रति आपका प्रेम समाप्त हो जाता है. इसलिए यदि आप फूल पसंद करते हैं, तो उसे अपने वृक्ष के साथ होना चाहिए. प्यार अधिकार के बारे में नहीं है प्यार प्रशंसा के बारे में है.
बनो- बनने का प्रयास मत करो.
दोस्ती प्रेम का सबसे शाश्वत रूप है. यह प्रेम की पराकाष्ठा हैं जहां कोई उम्मीद नहीं की जाती, कोई शर्त नहीं लगाई जाती और जहां देने से आपको सबसे ज्यादा सुख मिलता है.
जिंदगी वहीं से शुरू होती है, जहां से डर खत्म हो जाता है.
वास्तविकता में जीने का प्रयास कीजिए और चमत्कार घटित होने दीजिए.
किसी के जैसा हो जाने के विचार को छोड़ दीजिए क्योंकि आप स्वयं उस ईश्वर की बनाई एक अनुपम कृति हैं. अपने आप को बदलने की जगह अपने आप को जानने का प्रयास कीजिए क्योंकि इसी के लिए आप इस दुनिया में भेजे गए हैं.
बार-बार में प्रेम में पड़ने से आपके अंदर का बच्चा जीवित रहता है और प्रेम परवान चढ़ने से आप उसे समझते हैं. रिश्ते में प्रेम नहीं होता है बल्कि प्रेम से रिश्ता बनता है.
रचनात्मकता अस्तित्व के साथ सबसे बड़ा विद्रोह है.
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