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अलाउद्दीन खिलजी की जीवनी Alaauddin Khilji story in hindi
अलाउद्दीन खिलजी भारत के प्रमुख शासकों में से एक है. उसने दिल्ली सल्तनत का प्रभाव काफी हद तक बढ़ा दिया था और अपने शासनकाल में कई नये काम किए जो तब तक भारत में नहीं किए गए थे. alauddin khilji history
उसे एक शासक के बजाय एक योद्धा के रूप में ज्यादा पहचान मिली. उसका जीवन कई रहस्यों और रोमांचों से भरपूर है. उसके जीवन की एक घटना चित्तौड़ आक्रमण पर एक फिल्म पद्मावती भी बन चुकी है.
अलाउद्दीन खिलजी की संक्षिप्त जीवनी Short Biography of Alauddin Khilji
अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली पर काबिज खिलजी वंश का दूसरा और सबसे शक्तिशाली शासक था. उसका जन्म 1266 ईस्वी में हुआ. अलाउद्दीन की इच्छा थी कि वह भी सिकन्दर की तरह पूरी दुनिया को जीत ले. सिकन्दर से वह इतना प्रभावित था कि उसने अपने उप नाम में सिकन्दर को अपना लिया और कई सिक्को पर सिकन्दर नाम खुदवाया.
वह दिल्ली के पहले खिलजी शासक जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा था. जलालुद्दीन खिलजी उससे इतना प्रेम करता था कि उसने अपनी बेटी की शादी अलाउद्दीन से करके उसे अपना दामाद बना लिया.
अलाउद्दीन खिलजी अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की हत्या करके गद्दी पर बैठा. उसने कई युद्ध लड़े. चित्तौड़ पर उसने ही हमला किया था, जहां राणा रतनसिंह ने बहादुरी से उसका सामना किया और रानी पद्मावती ने 16 हजार महिलाओं के साथ जौहर किया था. 4 जनवरी 1316 को दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई.
अलाउद्दीन खिलजी का प्रारंभिक जीवन Early Life of Alauddin Khilji
अलाउद्दीन खिलजी के जीवन के प्रारंभिक वर्षों की ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है. खिलजी वंश के दिल्ली तख्त पर 1290 में स्थापित होते ही अलाउद्दीन के बारे में जानकारी मिलनी शुरू होती है. उस वक्त अलाउद्दीन का विवाह अपने चाचा की बेटी जलालुद्दीन jalaluddin khalji की बेटी से होता है. अलाउद्दीन अपने चाचा जलालुद्दीन को बहुत प्यारा था.
अपनी पत्नी और सास के साथ अच्छे रिश्ते न होने के बावजूद उसने जलालुद्दीन खिलजी के विश्वास को हमेशा बनाये रखा. उसकी सेवा से प्रसन्न होकर जलालुद्दीन खिलजी ने 1291 में उसे कारा का गवर्नर बना दिया.
दरअसल कारा के पूर्व गवर्नर मलिक छज्जू ने सुल्तान के खिलाफ विद्रोह कर दिया, जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने सफलता पूर्वक दबा दिया और इसी से खुश होकर सुल्तान ने कारा की जिम्मेदारी अपने दामाद अलाउद्दीन खिलजी को सौंप दी.
कारा में अपने शासन के दौरान अलाउद्दीन को यह समझ में आ गया कि दिल्ली का सुल्तान एक कमजोर शासक है और लोग उससे खुश नहीं है. उसे गद्दी से हटाया जा सकता है लेकिन यह काम आसान नहीं था और इस काम को करने के एक षड़यंत्र रचा गया. इसके लिए उसने पड़ोस के हिंदू राज्यों पर हमला किया.
पहला हमला 1923 में भिलसा पर किया गया. यहां मालवा के परमारों का शासन था जो पहले कई आक्रमणों के कारण कमजोर हो चुके थे. भिलसा से ढेर सारा धन बटोरने के बाद उसकी नजर दक्खन पर गई, जहां से उसे ढेरों पैसा मिलने की उम्मीद थी. अगला हमला उसने देवनागरी पर किया और जीत उसके हाथ लगी.
इस जीत से खुश होकर दिल्ली के सुल्तान ने उसे अर्ज-ए-ममालिक यानि युद्ध का मालिक का खिताब दिया. साथ ही उसे अवध की नवाबी भी मिली. साथ ही सुल्तान ने उसे ज्यादा सेना रखने की छूट भी दे दी. सुल्तान जलालुद्दीन इस जीत की बधाई देने के लिए अलाउद्दीन से मिलने के लिए ग्वालियर आया, लेकिन अलाउद्दीन जीत में मिले पैसों को लेकर कारा की तरफ कूच कर गया.
सुल्तान के अमीरों ने सुल्तान को अलाउद्दीन को लेकर आगाह भी किया लेकिन सुल्तान को अपने सिपहासालार पर भरोसा था. कारा पहुंचने के बाद अलाउद्दीन ने सुल्तान को एक माफीनामा भेजा और सुल्तान से माफी की उम्मीद में एक खत की इच्छा जाहिर की.
सुल्तान का विश्वास जीतने के बाद उसने अपनी योजना को आगे बढ़ाया और 1 हजार फौजियों की छोटी सी टुकड़ी लेकर सुल्तान से मिलने के गया और जलालुद्दीन jalal ud din khalji की हत्या कर दी. अपने चाचा की हत्या करने के बाद उसके सिर को पूरे छावनी में घुमाया गया ताकि सब लोगों को यकीन हो जाए कि दिल्ली का सुल्तान मारा गया.
अलाउद्दीन खिलजी का ताज पोशी Coronation of Alauddin Khilji
अलाउद्दीन खिलजी का वास्तविक नाम अली गुरशाप्स था लेकिन जब वह दिल्ली के सिंहासन पर बैठा तो उसने अपने आपको अलाउद्दीन वद् दीन मुहम्मद शाह अस सुल्तान की उपाधि दी.
सुल्तान बनते ही अलाउद्दीन ने प्रशासनिक व्यवस्था का विकेन्द्रीकरण किया और लोगों के काम आसानी से हो सके इसके लिए कई राजकीय अफसर और कर्मचारी नियुक्त किये और उन्हें अधिकार दिया गया.
उसने वेतन पर सेना रखने की प्रथा शुरू की और अपने सिपाहियों को माहवार वेतन देना शुरू किया. उसके शासन में आम जनता को राहत मिलनी शुरू हुई. उसने प्रशासन में भी बहुत से सुधार किये.
पहली बार बाजार मूल्य निर्धारित किया गया. जमीन सुधार किया गया और राशन प्रणाली शुरू की गई. अलाउद्दीन खिलजी के प्रशासनिक सुधारों को आगे आने वाले सुल्तानों शेर शाह सूरी और अकबर ने भी आगे बढ़ाया.
अलाउद्दीन के युद्ध Wars fought by Alauddin Khilji
अलाउद्दीन के जीवन का लंबा समय लड़ाई के मैदान में बीता. सुल्तान बनने के बाद जहां एक ओर उसने बाहर के आक्रमणकारियों को रोका वहीं दूसरी ओर अपने राज्य का विस्तार भी किया. अलाउद्दीन खिलजी के युद्धों को दो चरणों में बांटा जा सकता है.
पहला चरण जो 1297 से 1306 तक चला, उसने मंगोलों को पीछे ढकेला और उत्तर भारत में नये इलाके जीते. दूसरे चरण में उसने मारवाड़ और दक्षिण भारत में युद्ध अभियान किये. दूसरा चरण 1307 से 1313 तक चला.
अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ युद्ध Chittorgarh War
padmavati story अलाउद्दीन खिलजी का सबसे प्रसिद्ध यु़द्ध चित्तौड़ के रावल रतनसिंह के साथ हुआ. इस युद्ध को उसने रानी पद्मिनी के लिए लड़ा. इसी युद्ध में उसे गोरा-बादल की वीरता देखने को मिली.
इस युद्ध को अलाउद्दीन ने छल से जीता. इसी युद्ध ने राजपूती वीरता को इतिहास में स्थापित कर दिया. अलाउद्दीन युद्ध जीतकर भी हार गया. रानी पद्मावती जिन्हें रानी पद्मिनी भी कहा जाता है ने हजारों महिलाओं के साथ जौहर किया और राजपूत पुरूषों ने केसरिया बाना पहनकर अपने प्राणो का उत्सर्ग किया.
अलाउद्दीन का स्थापत्य Architecture of ala-ud-din khilji
अलाउद्दीन खिलजी ने बहुत से इमारतों का निर्माण करवाया. इसमें हौज-ए-अलाई, जिसे हौज खास के नाम से जाना जाता है प्रमुख है. यह एक तालाब था. उसने सिरी किले, अलाई दरवाजा और कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद का भी निर्माण करवाया.
अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु Death of Alauddin Khilji
अलाउद्दीन अपने आखिरी दिनों में बीमार रहने लगा और अपने अफसरों पर अविश्वास करने लगा. सारा शासन उसके गुलाम मलिक काफूर malik kafur के हाथ में आ गया. 4 जनवरी, 1316 को लंबी बीमारी के बाद अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई.
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