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चेटीचंड का महत्व और इतिहास
चेटीचंड महोत्सव को चेती चाँद और झूलेलाल जयंती के नाम से भी जाना जाता है. भारत,पाकिस्तान और सिंध सहित विश्व के अनेक देशों में जहां -जहां सिंधी समुदाय के लोग रहते है, उन जगहों पर झूलेलाल जयंती धूम-धाम से मनाई जाती है.
कई स्थानों पर भव्य मेलों का आयोजन होता हैं और शोभायात्रा निकाली जाती है. साथ ही अनको धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है.
भगवान झूलेलाल जयंती
हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष चैत्र मास की चंद्र तिथि पर वरुणावतार भगवान झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है. अंग्रेजी कलैंडर के अनुसार साल 2019 में 6 अप्रेल को वरुण देवता के अवतार भगवान झूलेलाल का जन्मपर्व को चेटीचंड के रूप में पूरे हर्षोल्लास से मनाया जाएगा.
भगवान झूलेलाल की हाथ में तलवार लिए मछली की सवारी की शोभा यात्रा में (छेज) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाये जाते हैं. मीठे चावल, छोले और शरबत का प्रसाद वितरित किया जाता है. इस दिन सिंधु सभ्यता के प्रतीक के रूप में सिंधियत दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
क्यों मनाते है चेटीचंड महोत्सव
इतिहासकारों के अनुसार सिंध के किनारे बसे सिंधी समुदाय के लोग व्यापार के लिए जब जल मार्ग से गुजरते थे तो उनको समुद्री लुटेरो सहित समुद्री तूफान, जलीय जानवरों के हमले जैसी कई विपदाओं और घटनाओं का सामना करना पड़ता था.
ऐसे में यात्रा के लिए निकलते वक्त अपने परिजनो की समुद्री रास्ते में होने वाली अनहोनी से बचाने के लिए सिंधी समुदाय की महिलाएं वरुण देवता (जल देवता) की पूजा व स्तुति करती थीं.
एक समय जब सिंध प्रदेश के ठट्ठा नगर में एक मिरखशाह नाम के राजा का राज्य हुआ करता था. वो राजा हिंदुओं पर बहुत अत्याचार करने लगा और साथ ही हिंदुओं पर दबाव डाल के उनका धर्म परिवर्तन करवाता था.
ऐसा मानना है कि एक बार राजा का अत्याचार और ज़ुल्म इतना बढ़ गया की उस राजा ने उस राज्य के सभी हिंदुओं को धर्म परिवर्तन के लिए सात दिन की मोहलत दी. इस बात के व्यथित हो कर कुछ लोग सिंधु नदी के किनारे पहुंच और वरूण देवता की उपासना करने लगे.
वरुण देवता के प्रति उनकी सच्ची भक्ति से खुश हो कर वरुण देवता ने मछली पर बैठ कर अपने दिव्य दर्शन दिए और ठट्ठा नगर वासिओं की समस्या सुनी और कहा की भक्तों तुम लोग बिलकुल ना घबराओ, मैं तुम्हारी सहायता के लिए नसरपुर में अपने भक्त रतनराय के घर माता देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा.
अपने वचन के अनुसार वरुण देवता ने भगवान झूलेलाल के रूप में जन्म लिया और अपने प्रभाव से मिरखशाह को अपनी शरण लेने मजबूर कर दिया. तब से सभी मिल-जुलकर रहने लगे.
किवंदति के अनुसार झूलेलाल भगवन वरुण के ही अवतार है. इस लिए सिंधी समुदाय के लोग के झूलेलाल जी को अपना आराध्य देव मानते और इस दिन को चेटीचंड के रूप में मनाते है.
कौन है संत झूलेलाल
विक्रम संवत 1007 सन् 951 ई. में सिंध प्रांत के नसरपुर नगर में रतनराय के घर देवकी के गर्भ से वरुणावतर ने स्वयं तेजस्वी बालक उदयचंद्र के रूप में जन्म लिया था और अपने चमत्कारों से उन्होंने लोगो को न केवल अत्याचार से मुक्ति दिलाई बल्कि लोगो को आपसी भाईचारे का पाठ भी पढ़ाया.
धर्म की रक्षा की. इस कारण उन्हे झूलेलाल,दरिया लाल, लाल साई, जिन्दा पीर, उदेरो लाल और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से भी जाना जाता है. चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं.