अरुणा आसफ अली का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लेने वाली महिलाओं में विशेष रूप से उल्लेखनीय है. वर्ष 1942 की क्रांति में जिन महिलाओं ने अपने शौर्य और साहस का परिचय दिया, उनमें अरुणा आसफ अली का नाम अग्रणी है.
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अरुणा आसफ अली की संक्षिप्त जीवनी Brief Biography of Aruna Asaf Ali
अरुणा आसफ अली भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थीं. उनका जन्म 16 जुलाई 1909 में तत्कालीन पंजाब प्रांत के कालका ( वर्तमान हरियाणा में) हुआ. युवावस्था में ही पंडित जवाहर लाल नेहरू के सम्पर्क में आईं. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आसफ अली से विवाह के बाद भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
भारत छोड़ो आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने के कारण अरुणा को हीरोइन ऑफ 1942 के तौर पर ख्याति मिली. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी लम्बे समय तक राजनीति में सक्रिय रहीं. अरुणा आसफ अली नई दिल्ली में 87 वर्ष की आयु में निधन हुआ.
अरुणा आसफ अली का आरंभिक जीवन Early life of Aruna Asaf Ali
अरुणा आसफ अली का मूल नाम अरुणा गांगुली था. इनके पिता का नाम डॉ. उपेन्द्रनाथ गांगुली था, जो बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे और तत्कालीन संयुक्त प्रांत में बस गए थे.
पिता का साया अरुणा के सिर से बचपन में ही उठ गया था, फिर भी मां अम्बालिका देवी ने इनकी पढ़ाई-लिखाई की बहुत अच्छी व्यवस्था की थी. अरुणा ने पहले लाहौर के सैक्रेड हार्ट स्कूल और उसके बाद नैनीताल के ऑल सेन्ट्स स्कूल से शिक्षा पाई.
पंडित जवाहर लाल नेहरू का परिवार गर्मियों में नैनीताल प्रवास पर आया करता था, यहीं अरुणा पंडित जी के सम्पर्क में आईं. शिक्षा प्राप्त करने के बाद अरुणा कोलकाता की गोखले स्मारक कन्या पाठशाला में अध्यापक बन गईं.
अरुणा आसफ अली का वैवाहिक जीवन Married Life of Aruna Asaf Ali
इस बीच इलाहाबाद में अरुणा की मुलाकात उनकी बहन पूर्णिमा बनर्जी के घर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वे वरिष्ठ नेता आसफ अली से हो गई. यह मुलाकात धीरे-धीरे घनिष्ठता मे बदल गई.
स्वतंत्र और साहसी विचारों की धनी अरुणा ने परिजनों के विरोध के बावजूद आसफ अली से 1928 में विवाह कर लिया, जो अरुणा से करीब 20 वर्ष बड़े थे. विवाह के बाद अरुणा का नाम बदलकर कुलसुम जमानी हो गया लेकिन उनकी ख्याति अरुणा आसफ अली के रूप में ही रही.
अरुणा आसफ अली की स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका Role of Aruna Asaf Ali in freedom movement
Aruna Asaf Ali विवाह के बाद अपने पति के साथ दिल्ली रहने लगीं और दोनों पति-पत्नी स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने लगे. अंग्रेजी शासन के विरुद्ध राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने के कारण अरुणा जी को वर्ष 1930 में एक वर्ष कैद में भी रहना पड़ा.
वर्ष 1932 में महात्मा गांधी के आह्वान पर Aruna Asaf Ali ने सत्याग्रह में सक्रिय भाग लिया, जिस कारण इन्हें फिर से छह माह के लिए जेल जाना पड़ा. जेल से लौटते ही इन्होंने फिर से राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होना शुरु कर दिया.
वर्ष 1941 में अंग्रेजों ने भारत को द्वितीय विश्व युद्ध में धकेल दिया, जिसके विरोध में महात्मा गांधी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया. Aruna Asaf Ali ने इसमें भी भाग लिया, जिसके फलस्वरूप उन्हें एक वर्ष कारावास की सजा मिली. 8 अगस्त 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बंबई अधिवेशन में अंग्रेजो भारत छोड़ो प्रस्ताव पारित किया गया.
ब्रिटिश हुकूमत ने कांग्रेस कार्य समिति के सभी सदस्यों और सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. Aruna Asaf Ali ने ब्रिटिश सरकार की अनेक बाधाओं के बावजूद 9 अगस्त 1942 को शेष अधिवेशन का संचालित किया और बम्बई के गोवालिया टैंक मैदान में झंडा फहराया. इसे ही भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत माना जाता है. गोवालिया टैंक मैदान को अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है.
9 अगस्त 1942 को Aruna Asaf Ali द्वारा झंडा फहराए जाने के बाद पुलिस ने भीड़ पर आंसू गैस, लाठी और गोली का प्रयोग किया. इस रक्तपात और दमन ने अरुणा आसफ अली के मन में आजादी की लौ और तेज कर दी. वे आम जनमानस में क्रांति का संदेश देकर भूमिगत हो गई और वेश एवं स्थान बदल-बदल कर आंदोलन में हिस्सा लेने लगीं.
ब्रिटिश सरकार का गुप्तचर विभाग लाख कोशिशें करने के बाद भी उन्हें नहीं ढूंढ़ पाया, आखिर सरकार ने उनकी निजी सम्पत्ति नीलाम कर दी. अरुणा की गिरफ्तारी के लिए उन पर पांच हजार रुपए के पुरस्कार की घोषणा की गई. 9 अगस्त 1942 से 26 जनवरी, 1946 तक Aruna Asaf Ali को गिरफ्तार करने का हुक्मनामा जारी रहा, लेकिन वे ब्रिटिश सरकार की पकड़ में नहीं आईं.
द ग्रैंड ओल्ड लेडी अरुणा आसफ अली The Grand Old Lady Aruna Asaf Ali
वर्ष 1946 में Aruna Asaf Ali के विरुद्ध सरकार ने अपने आदेश वापस लिए. वे भूमिगत जीवन त्याग कर प्रकट हो गईं. देश में उनका भव्य स्वागत हुआ. कलकत्ता और दिल्ली में अरुणा आसफ अली ने अपने स्वागत में आयोजित सभाओं में ऐतिहासिक भाषण दिए.
दिल्ली में उन्होंने कहा- ‘भारत की स्वतंत्रता के संबंध में ब्रिटेन से कोई समझौता नहीं हो सकता. भारत अपनी स्वतंत्रता ब्रिटेन से छीनकर ग्रहण करेगा. समझौते के दिन बीत गए. हम तो स्वतंत्रता के लिए युद्ध क्षेत्र में ब्रिटेन से मोर्चा लेंगे. शत्रु के पराजित हो जाने के बाद ही समझौता हो सकता है.
हिंदुओं और मुस्लिमों की संयुक्त मांग के समक्ष ब्रिटिश साम्राज्यवाद को झुकना होगा. हम भारतीय स्वतंत्रता की भीख मांगने नहीं जाएंगे.’ Aruna Asaf Ali को उनके साहस व बहादुरी के कारण ‘हीरोइन ऑफ 1942’ और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की ‘ग्रैंड ओल्ड लेडी’ के नाम से जाना जाता है.
अरुणा आसफ अली का राजनीतिक जीवन Political Life of Aruna Asaf Ali
15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ. Aruna Asaf Ali दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं. वर्ष 1947-48 में उन्होंने दिल्ली में शरणार्थियों की समस्या को दूर करने के लिए जी-जान लगा दी.
आर्थिक नीतियों पर भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू से सैद्धांतिक विरोध होने के कारण वे कांग्रेस से अलग हो गईं और वर्ष 1948 में आचार्य नरेन्द्रदेव की सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं. 1950 में अरुणा आसफ अली भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल हो गईं.
1953 में पति आसफ अली के निधन से अरुणा जी को निजी जीवन में गहरा धक्का लगा. 1954 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महिला इकाई नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन बनाई.
1956 में उन्होंने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी छोड़ दी. इस दौरान वर्ष 1958 में अरुणा आसफ अली दिल्ली की पहली मेयर चुनी गईं. मई 1964 में पं. जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद अरुणा आसफ अली फिर से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुईं और प्रगतिशील विचारों को बढ़ावा देने के लिए काम करने लगीं.
इसके बाद उन्होंने राजनीतिक गतिविधियों में भाग नहीं लिया. आपातकाल के विरोध में होने के बावजूद अरुणा आसफ अली इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की भी करीबी रहीं.
अरुणा आसफ अली की मृत्यु Death of Aruna Asaf Ali
अरुणा आसफ अली का 29 जुलाई 1996 को लम्बी बीमारी के बाद नई दिल्ली में 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया.
सामाजिक कार्यों में योगदान Social Contribution
Aruna Asaf Ali की सामाजिक कार्यों में गहरी रुचि थी. अरुणा जी भारत-रूस संस्कृति संस्था की सदस्य बनीं और दोनों देशों की मित्रता बढ़ाने में सहयोग दिया. दिल्ली में इन्होंने सरस्वती भवन की स्थापना भी की, जो संस्था गरीब और असहाय महिलाओं की शिक्षा से जुड़ी रही.
दिल्ली के प्रतिष्ठित लेडी इर्विन कॉलेज की स्थापना भी अरुणा के प्रयासों से ही हुई. अरुणा ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस की उपाध्यक्ष भी रहीं. Aruna Asaf Ali दैनिक अंग्रेजी समाचार पत्र ‘पैट्रियाट’ और साप्ताहिक अंग्रेजी पत्रिका ‘लिंक’ की संस्थापक अध्यक्ष भी रहीं.
भूमिगत रहने के दौरान Aruna Asaf Ali ने राम मनोहर लोहिया के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ का सम्पादन किया.
पुरस्कार एवं सम्मान
- 1964 में अंतरराष्ट्रीय लेनिन शांति पुरस्कार प्रदान किया गया.
- 1991 में अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए जवाहरलाल नेहरू अवार्ड प्रदान किया गया.
- 1992 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
- 1997 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया.
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