जमशेदजी नुसीरवानजी टाटा भारत के पहले उद्योगपति थे जिन्हें ‘भारतीय उद्योग का जनक’ भी कहा जाता है। इन्हें जमशेदजी के नाम से भी जाना जाता है। जमशेदजी टाटा ने ही विश्वप्रसिद्ध औद्योगिक घराने टाटा कम्पनी समूह की स्थापना की थी।
उनसे प्रेरणा लेकर कई भारतीय उद्यमियों ने अपने व्यवसाय को देश—विदेश में फैलाया। वे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत में व्यापार समूह स्थापित करने की दिशा में काम किया। उन्होंने भारत में हैवी इंडस्ट्रीज की नींव रखी जिसे उनके पहले तक देश में स्थापित करना असंभव माना जाता था।
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जमशेदजी टाटा की संक्षिप्त जीवनी – Short Biography of Jamshed Tata
जमशेदजी टाटा आधुनिक भारत के सबसे पहले उद्योगपति थे। उन्होंने 1868 में टाटा समूह की स्थापना की थी। कपड़े के व्यापार में धाक जमाने, भारत में लौहे एवं स्टील के उद्योग की स्थापना करने वाले जमशेदजी नसरवानीजी टाटा को भारतीय उद्योगजगत का पितामह भी कहा जाता है।
उनके विचार और योजना का ही फल था कि आगे चलकर उनके पुत्रों ने भारत में बिजली उत्पादन की शुरूआत की। जमशेदजी, जिन्हें जमसेतजी टाटा भी कहा जाता है, एक दूरदृष्टा उद्यमी थे। उन्होंने ब्रिटिश काल के व्यापारियों से भी प्रतिस्पर्धा की और भारत में भारतीयों के हित के लिए उद्योगों को पनपाया।
जमशेदजी टाटा का जन्म- Birth of Jamshed ji Tata
जमशेदजी टाटा का जन्म 3 मार्च 1839 को गुजरात के तत्कालीन बडौदा राज्य के नवसारी में हुआ था। गौरतलब है कि नवसारी हजार वर्ष से भी पहले से पारसी पुरोहितों का केन्द्र रहा है। जमशेदजी के पिता नुसीरवानजी टाटा एक मामूली हैसियत के पारसी पुरोहित ही थे। जमशेदजी की माता का नाम जीवनबाई टाटा था।
जमशेदजी टाटा का आरम्भिक जीवन -Early Life of Jamshedji tata
जिस गांव मे जमशेदजी ने जन्म लिया उसमें कोई अंग्रेजी स्कूल नहीं था। उन्होंने एक गुरुजी से ही पढ़ना लिखना सीखा और थोड़ा सा हिसाब-किताब करना सीखा। उच्च शिक्षा के लिए जमशेदजी टाटा ने 1852 में मुम्बई के एलफिंस्टन कॉलेज में दाखिला लिया। सन 1858 में उन्होंने 19 वर्ष की उम्र में अपनी पढ़ाई पूरी कर ली।
इसी साल देश में सरकारी विश्वविद्यालय खुले थे और बीए, एमए की डिग्रियों की पढ़ाई शुरू हुई थी। जमशेदजी ने डिग्रियों के चक्कर में नहीं पड़कर रोजगार की तरफ मुहं किया। उनके पिता के पास थोड़ा बहुत पैसा था जिससे वह चीन के साथ रोजगार किया करते थे। जमशेदजी को काम सीखने के लिए हांगकांग भेजा गया।
टाटा का पहला ठेका – First Contract of Tata
कुछ समय बाद अंग्रेजों की अबीसीनिया के साथ लड़ाई War of Abyssinia शुरू हुई। इसके लिए बम्बई से जो अंग्रेजी पलटन भेजी गई, उसकी रसद का ठेका टाटा ने लिया। लड़ाई के लिए एक बरस का सामान लिया गया था मगर लड़ाई जल्दी खत्म होने से जमशेदजी टाटा को मुनाफा हुआ।
कुछ समय पहले बम्बई के रूई के कारोबार को झटका लगा था। टाटा ने इसी कारोबार को फिर से उठाया। कुछ लोगों के साथ वहीं के कल-पुरजे खरीद कर सूत कातने और कपड़ा बुनने का कारखाना खोला जिससे बहुत मुनाफा हुआ। कुछ बड़ा करने की चाहत के कारण उन्होंने इस कारखाने को भी बेच दिया।
दरअसल जमशेदजी केवल टाटा परिवार ही नहीं बल्कि देश के कारोबार जगत के लिए कुछ करना चाहते थे। विलायती कारोबारियों से टक्कर लेने के लिए उन्होंने हिंदुस्तान का पैसा बाहर जाने से रोकने के लिए सोचना शुरू किया। यह बाद मन में लेकर जमशेदजी मैनचेस्टर के कारखाने देखने इंग्लैंड गए।
जमशेदजी टाटा ने पूरी आंखें और दिमाग खोलकर यहां का दौरा किया और कपड़े का व्यापार के गुप्त भेद समझे। उनके समझ आ गया कि कपड़ा मिल ऐसी जगह खोलनी चाहिए जहां आस-पास कपास की खेती होती हो।
उन्होंने यह विचार देश में आकर फैलाया और कुछ ही दिनों में खानदेश, मध्यप्रांत और गुजरात में बहुत की मिल खुल गयी। टाटा ने भी काफी सोच विचारकर नागपुर को चुना। यहां जो कम्पनी खोली उसका नाम ‘सेंट्रल इंडियन स्पिनिंग एंड कम्पनी’ पड़ा। कारखाने का नाम ‘दी इम्प्रेस मिल’ पड़ा और 1 जनवरी 1877 को मिल शुरू हो गयी।
कई कठिनाइयां आयी लेकिन जमीनें खरीदी गईं और इमारतें खड़ी कर दी गईं। पूर्व जीआईपी रेलवे ट्रैफिक मैनेजर सरवेजनजी दादा भाई को जमशेदजी ने इम्प्रेस मिल का मैनेजर बनाया। काम अच्छा चलने लगा।
बाजार पकड़ में आ गया मगर इसके बाद भी काम सीखने के लिए टाटा जापान गए और नए विचार लेकर बम्बई लौटे। 1913 के अंत तक इस कम्पनी ने 2 करोड़ 93 लाख 45 हजार 7 रुपये का मुनाफा दिया।
टाटा में कर्मचारी हित – Employees Welfare of Tata
कर्मवीर जमशेदजी टाटा सिर्फ अपनी तरक्की से खुश नहीं थे। उन्होंने उस कर्मचारी और श्रमिक वर्ग की उन्नति को भी ध्यान में रखा जिसके बल पर वह फल-फूल रहे थे। टाटा ने कई तरह के ईनाम शुरू किए।
खेलने के स्थान बनवाए और पुस्तकालय शुरू किए। उन्होंने अप्रेंटिसी की शुरूआत की जिससे उम्मीदवार नवयुवकों को कारखाने में काम सीखने का अवसर मिला। फिर दस साल की ऐसी कामयाबी के बाद उन्होंने सूत कातने और बारीक माल का उत्पादन शुरू करने का फैसला किया।
उन्हें पता था कि लम्बे धागे की रूई से बारीका माल तैयार किया जा सकता है। उन्होंने इसके लिए एक कम्पनी खोली जिसका नाम रखा ‘स्वदेशी’। क्योंकि उनका उद्देश्य विदेशी माल को टक्कर देना था। उसी वक्त बम्बई की सबसे बड़ी मिल धमरसी नीलाम हो रही थी जिसे टाटा ने 12 लाख रुपये में खरीद डाला।
इम्प्रेस मिल की तरह इसमें भी फायदा होने लगा। टाटा ने एजेंटों का तैयार माल पर 1 पैसा फी पाउंड कमीशन देना शुरू कर दिया। इससे उनकी आय घट गयी, वे सिर्फ 6 हजार रुपये लेते थे। उनका मकसद अपनी जेब भरना नहीं बल्कि कारीगरी को बढ़ाना था।
स्वदेशी के लिए टाटा का योगदान – Tata’s Contribution for Swadeshi
टाटा ने केवल अपनी तरक्की और कर्मचारी हित के लिए ही मेहनत नहीं की। उन्होंने हिंदुस्तान के स्वदेशी उद्योग को पनपाने के लिए भी हर सम्भव कोशिश की। यहां के लोग अपना माल शंघाई और हांगकांग ‘पी एंड ओ’ के माध्यम से भेजते थे।
हिंदुस्तान में बढ़ती मिलों की संख्या देखकर इस कम्पनी ने अपने स्टीमरों का किराया बढ़ा दिया। इससे मिलवाले घबराने लगे। जमशेदजी जापान गए और एक स्टीमर कम्पनी से कम किराये का समझौता किया।
इससे घबराकर पी एंड ओ ने ही अपना किराया 13 गुणा कम कर दिया। इससे यहां कि व्यापारियों को बड़ा फायदा हुआ। जमशेदजी टाटा का काम करने का तरीका ऐसा था कि जिससे यहां कि सरकार और यहां की प्रजा, दोनों ही उनसे खुश रहते थे। धीरे-धीरे, इम्प्रेस मिल और स्वदेशी का नाम विदेशों में भी फैलने लगा।
टाटा और लौह उद्योग – Tata and Steel Industry of India
जमशेदजी टाटा सोचते थे कि किस तरह भारत में लौहे का काम शुरू किया जाए। टाटा ने अपने खर्च पर विशेषज्ञों से सर्वे कराया। उन्हें पता चला कि मोरभंज में लोहा निकलने की सम्भावना है। इसके बाद जमशेद जी ने काम शुरू कर दियां मोरभंज रियासत ने सहायता का वादा किया।
बंगाल नागपुर रेलवे ने किराया कम करने का आश्वासन दिया। और भारत सरकार ने हर साल 20 हजार टन माल खरीदने की जिम्मेदारी ली। इसके बाद टाटा ने 1907 में 2 करोड़ 31 लाख रुपये की पूंजी से ‘टाटा आइरन एंड स्टील कम्पनी’ की स्थापना की। कहा जाता है कि लगभग 15 हजार आदमी इसमें काम करते थे।
इस कम्पनी के पूर्णत: कायम होने से पहले ही जमशेदजी चल बसे थे मगर उनके पुत्रों ने इसे पूरी तरह कायम किया। जापान, स्कॉटलैंड, इटली और फिलीपींस जैसे कई देश इसका माल लेते थे। साल दर साल मुनाफा बढ़ता गया और देश का पैसा बाहर जाने से बचने लगा।
जमशेदजी टाटा और बिजली उत्पादन – Jamsetji and Hydro-Power
जमशेदजी ने जो भी कारोबार शुरू किए, वो देशहित में थे। कपड़ा मिल और लौह उद्योग के बाद उन्होंने पानी से बिजली बनाने का विचार पैदा किया। कई इंजीनियरों के साथ बिजली उत्पादन प्लांट की रूपरेखा तैयार की।
उनके जीते-जी तो बिजली पैदा नहीं हो सकी लेकिन जिस विचार की नींव उन्होंने पैदा की थी उसे उनके पुत्रों ने पूरा किया। 1911 में इस इमारत की नींव पड़ी और इस काम के लिए 2 करोड़ रूपये इकट्ठे किए गए। इस काम में देशी रजवाड़ों ने भी मदद की। उनके पुत्र दोराबजी टाटा ने इस काम को आगे बढ़ाया।
जमशेदजी टाटा की मृत्यु – Death of Jamshedji Tata
कर्मयोगी, दानवीर, दयासागर, दीनबंधु और कर्मवीर जैसे कई नामों से पहचाने जाने वाले जमशेदजी ने अपनी जिंदगी में जो काम किए वो आज के आधुनिक भारत का आधार बने। उन्होंने किशोरवय से ही अपनी परिश्रम से जो धन कमाया, वह राष्ट्रहित और परोपकार में ही लगाया।
सन 1903 के अंत में जमशेदजी बीमार पड़ गए। मार्च 1904 में उनकी पत्नी Wife of Jamshedji Tata हीराबाई दबू का देहांत हो गया। इसके कुछ ही दिनों बाद भारतीय उद्योग के पितामह जमशेदजी टाटा का 13 मई 1904 में जर्मनी के एक शहर में देहांत हो गया।
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