बनारस के घाट- Banaras ghat Information in Hindi

बनारस के बारे में जानकारी-1

बनारस के घाट बनारस की पहचान है। बनारस जिसे वाराणसी और पुराणों में काशी के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। समुद्र तल से 253 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह शहर गंगा के किनारे स्थित है।

पुराणों में इस शहर को काशी के अलावा अविमुक्त क्षेत्र और वाराणसी भी कहा गया है। वरूणा और असी नदियों के संगम पर स्थित होने के कारण इस शहर को वाराणसी नाम मिला। उसी का अपभ्रंश बनारस हो गया है। बनारस अपने मंदिरों, पान, संगीत घराने और घाटों के लिए प्रसिद्ध है।

बनारस का ऐतिहासिक स्वरूप

बनारस भारत के प्राचीन शहरों में संभवतः सबसे सुंदर है। गंगा के किनारे बसे इस शहर की गलियां संकरी है और इमारते ऊंची है। इससे इन गलियों में चलने वाले लोगों तक धूप नहीं पहुंचती।

ज्यादातर मकान और गलियों के निर्माण के लिए पत्थर का ही उपयोग हुआ है। यहां स्थित चौखंभा मोहल्ले में ग्वालियर महाराज का पंचमहल स्थित है। इसी के पास आमर्दकेश्वर है और इससे थोड़ी दूर स्थित कोतवाली के समीप बनारस का चौक है, जिसमें एक घड़ी वाली मीनार का निर्माण करवाया गया है।

अंग्रेजी शासन के दौरान इस शहर में गिरजाघरों या चर्च का भी निर्माण किया गया है। एंग्लो इंडियन कल्चर के ये चर्च यहां बहुत है। जिनमें से सेंटमेरी चर्च सबसे बड़ा है। वाराणसी अंग्रेजों की छावनी भी हुआ करती थी। इस वजह से यहां के मुख्य रेलवे स्टेशन को बनारस केंट या वाराणसी केंट भी कहा जाता है।

बनारस की गलियों में मकान से ज्यादा मंदिर हैं और व्यक्ति की तुलना में देवमूर्तियों की संख्या कहीं ज्यादा है। समय के साथ बनारस शहर का विस्तार हो रहा है और यह काफी दूर तक फैल गया है लेकिन काशी ने अपनी प्राचीनता को बनाए रखा है और मुख्य शहर में आज भी आपको आध्यत्मिकता और हिंदू धर्म का ही साक्षात्कार होता है।

बनारस के घाट

काशी को घाटों का शहर भी कहा जाता है। यहां के हरेक गंगा घाट की अपनी कथा और महत्व है। बनारस के घाट के साथ कोई विशेष परम्परा जुड़ी हुई है। हम यहां आपको बनारस के कुछ प्रमुख घाटां की जानकारी दे रहे हैं।

1. वरूणा संगमघाट

यह घाट वरूणा नदी और गंगा नदी के संगम पर स्थित है। यह घाट काशी के अति पवित्र 5 घाटां में से एक है। बाकि 4 घाटों में पंचगंगा, मणिकर्णिका, दशाश्वमेघ और असी संगमघाट माने जाते हैं।

वरूणा संगम के पास विष्णु पादोदक तीर्थ और श्वेतद्वीप तीर्थ है। यहां भादो सुदी 12 को स्नान के लिए भारी भीड़ जमा होती है। महावारूणी पर्व के समय भी यहां काफी भीड़ होती है। यहीं पास में आदिकेशव, संगमेश्वर, आदि-संगम, आदि केशव मंदिर स्थित है।

2. राज घाट

वरूणा संगमघाट के बाद राजघाट आता है। यहां किसी समय में बनारस का बड़ा किला था। महमूद गजनवी ने इस किले को नष्ट कर दिया था। हालांकि अंग्रेजों ने इस स्थान को बसाने की कोशिश की थी लेकिन इसका पुराना स्वरूप नहीं लौट पाया।

यहां अब दो पुराने फाटक, कई पुरानी मस्जिदें और एक सिपाही लाल महम्मद खां का मकबरा है, जिसके चारों कोनों पर बुर्ज बने हुए है। किले के बीच में योगीवीर का एक छोटा सा मंदिर है, जिसे योगीवीर की मूर्ति खड़ाऊ पर चढ़ी हुई खड़ी है। इसी के पास बनारस का ऐतिहासिक डफरिन ब्रिज है। इसे अंग्रेज गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन ने इसका उद्घाटन किया था।

3. प्रहलाद घाट

प्रहलादघाट राजघाट से कुछ दूर पश्चिम दक्षिण में स्थत है। यह अपेक्षाकृत सादा घाट है। वरूणा संगम से यहां तक कोई और पक्का घाट नहीं है। प्रहलादघाट के निकट ही प्रहलादेश्वर और 56 विनायकों में से एक पिचंडील विनायक का मंदिर स्थित है।

4. नया घाट

प्रहलाद घाट से आगे दक्षिण में पत्थर का एक और घाट बना है। यह दूसरे घाटों की तुलना में अपेक्षाकृत बाद में बना इसलिए इसे नया घाट भी कहा जाता है। हालांकि यह भी काफी पुराना है।

इसे शाहाबाद के चैनपुर भभुआ के बाबू नरसिंह दयाल ने बनाया था। यहीं से आगे बढ़ने पर तेलिया नाला मिलता है, बरसात का पानी यहीं से होकर गंगाजी में गिरता है। तेलिया नाला और त्रिलोचन घाट के बीच गोलाघाट पर भृगुकेशव स्थित है।

5. त्रिलोचन घाट

तेलिया नाले से आगे त्रिविष्टप तीर्थ है जो त्रिलोचन घाट के नाम से प्रसिद्ध हे। यहां वैशाख मास में विशेष कर वैशाख शुक्ल तृतीया को स्नान के लिए भीड़ होती है। घाट के उत्तर में काशी के 42 लिंगों में से एक हिरण्यगर्भेश्वर लिंग और काशी के 56 विनायकों में से एक प्रणवविनायक स्थित हैं।

यहीं पास में शांतनेश्वर भी स्थित हैं। यहां के प्रमुख मंदिरों में त्रिलोचन शिव मंदिर का उच्च स्थान है। इस मंदिर में काशी के 42 लिंगों में से एक त्रिलोचन शिव स्थापित हैं। इसी मंदिर में वाराणसी देवी का एक मंदिर है और वहीं पर काशी के 56 विनायकों में से एक उदंडगुण्ड विनायक भी विराजे हुए हैं।

त्रिलोचन घाट के पास ही अष्ट महालिंगों में से एक नर्मदेश्वर और 42 लिंगों में से एक आदि महादेव भी स्थित है। यहां पर शिव के आपको 100 साल से पुराने कई मंदिर स्थित है। यहां 56 विनायकों में से एक और विनायक मोदकप्रिय विनायक भी पास ही में स्थापित हैं।

आदि महादेव से थोड़ा आगे बढ़ने पर अष्ठ महालिंगों में दूसरे पार्वतीश्वर के दर्शन आपको होंगे। पाठन दरवाजे के पास अष्टमहाभैरवों में से एक संहारभैरव भी यहां निवास करते हैं।

6. महथा घाट

त्रिलोचन घाट के आगे बढ़ने पर महथा घाट मिलता है। पत्थर से बांधे गए इस घाट नर नारायण का मंदिर स्थित है। मंदिर प्राचीन है और इसका निर्माण चरणों में हुआ है। यहां पौष मास की पूर्णिमा को मेला लगता है और स्नान करने वालो की भीड़ लगती है। माना जाता है कि पौष मास में नर नारायण मंदिर में दर्शन करने बद्रीकाश्रम तीर्थ यात्रा का फल प्राप्त होता है।

7. गाय घाट

महथाघाट से आगे गंगा में निकली हुई भूमि पर पत्थर से बना हुआ गायघाट है। इसे गोप्रेक्ष तीर्थ भी कहा जाता है। इसी घाट के नजदीक ही हनुमान जी के मंदिर में काशी की 9 गौरियों में एक मुखनिर्मालिका गौरी का मंदिर स्थित है। यहां दर्शन की भीड़ लगी रहती है।

8. लाल घाट

लाल घाट को गोपीगोविंद तीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। इस पक्के घाट पर अगहन की पूर्णिमा को मेला लगता है और स्नान करने वालों की भीड़ एकत्रित होती है। घाट पर एक मंदिर में गौरीशंकर नाम के प्रसिद्ध 42 लिंगों में एक गोपेक्षेश्वर शिवलिंग और गोपी गोविंद का मंदिर स्थित है।

9. सीतला घाट

लाल घाट के बाद सीतला घाट आता है। इस घाट का नाम यहां स्थित सीतला माता के मंदिर पर पड़ा है। यहां स्थित सीतला की पूजा करने दूर-दूर से लोग आते हैं। सीतला निकलने पर बच्चों के लिए मन्नत मांगने वालों की भी यहां अच्छी खासी संख्या रहती है।

10. राजमंदिर घाट

माना जाता है कि इस घाट पर राजा निवास करते थे और उनकी पूजा के लिए यहां एक मंदिर का निर्माण करवाया गया था। इसी वजह से इस घाट को राजमंदिर घाट कहा जाता है। यहां एक हनुमान जी का मंदिर स्थित है, इस मंदिर में भगवान लक्ष्मीनृसिंह की एक मूर्ति स्थापित है।

11. ब्रह्म घाट

यह बनारस के सबसे पुराने घाटों में से एक है। इस घाट के नष्ट हो जाने पर इसकी मरम्मत बाजीराव पेशवा ने करवाई थी। इस घाट पर ब्रह्मेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है यहीं पास में दत्तात्रेय भगवान का मंदिर स्थित है। इस मंदिर में भगवान दत्तात्रेय की 6 भुजा वाली मूर्ति स्थापित है। यह मंदिर शताब्दियों पुराना है।

12. दुर्गा घाट

इस घाट पर भगवान नृसिंह का प्रख्यात मंदिर स्थित है। यहां स्थित नृसिंह को खर्व नृसिंह कहा जाता है। वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को इस मंदिर में पूजा करने वालो की भीड़ लगी रहती है।

इसी घाट के पास काशी की 9 दुर्गाओं में से ब्रह्मचारिणी दुर्गा का मंदिर स्थित है। संभवतः इस मंदिर की वजह से ही इस घाट को अपना नाम मिला है। इस मंदिर के पास ग्वालियर के दिवान रहे दिनकर राय द्वारा बनवाया गया राममंदिर है। यह मंदिर भी रमणीक और दर्शनीय है।

13. पंचगंगा घाट

यह घाट काशी के पांच अति पवित्र घाटों में से एक है। माना जाता है कि यहां 4 नदियां गुप्त रहकर गंगा में मिलती है, इसीलिए इस घाट को पंचगंगा घाट कहा जाता है। इन नदियों में किरण, धूतपापा, सरस्वती, गंगा और यमुना का जिक्र किया गया है।

पंचगंगा में ही विष्णुकांची तीर्थ और विंदु तीर्थ है। इस घाट का निर्माण करीब 400 साल पहले आमेर के राजा मानसिंह ने करवाया था। घाट के कोने में पत्थर का बना एक दीप शिखर है, जिसपर करीब एक हजार दिप रखने के लिए स्थान बने है।

उत्सव के समय इस दीप शिखर का वैभव देखते ही बनता है जब इसमें हजार दीपक प्रज्वलित होते हैं। पूरे कार्तिक मास के दौरान यहां स्नान करने वालों की भीड़ लगी रहती है।

पंचगंगा घाट पर ही बिंदुमाधव का मंदिर स्थित है। नारायण के स्वरूप बिंदुमाधव की सुंदर शंख, चक्र, गदा और पद्म वाली मूर्ति स्थापित है। इसी घाट पर आपको पंचगंगेश्वर महादेव के दर्शन होंगे। इन्हें लोग दधिकल्पेश्वर कहकर भी पुकारते हैं।

14. माधवराय घाट

कुछ लोग इसे पंचगंगा घाट का ही हिस्सा मानते है। यहां औरंगजेब की बनवाई एक मस्जिद है। इस मस्जिद का निर्माण बिंदुमाधव जी के प्राचीन मंदिर की सामग्री से करवाई गई है। इसी मंदिर के पीछे द्वारिकाधीश जी का मंदिर है। यहां भगवान कृष्ण और राधा जी की पूजा होती है।

15. लक्ष्मणबाला घाट

लक्ष्मणबाला घाट पूना के बाजीराव पेशवा द्वारा बनवाया गया था। यहां उन्होंने लक्ष्मणबाला मंदिर का निर्माण भी करवाया। लक्ष्मबाला मंदिर से पूर्व की ओर त्रेताराम मंदिर स्थित है। यहीं पर काशी के अष्ट महालिंगों में से एक गभस्तीश्वर शिवलिंग और 9 गौरियों में से एक मंगलागौरी भी विराजमान हैं। इसी घाट पर द्वादश आदित्यों में से एक मयूखादित्य और 56 विनायकों में से एक मित्र विनायक भी स्थित हैं। ग्वालियर के दिवान बालाजी पन्त ने यहां जठार का मंदिर निर्मित करवाया है।

16. राम घाट

राम घाट का निर्माण जयपुर महाराज ने करीब 300 साल पहले करवाया था। इस घाट को रामतीर्थ माना जाता है और रामनवमी को यहां बड़ा मेला लगता है। यहां के मंदिर में रामजानकी का सुंदर विग्रह स्थापित है। राम घाट पर काशी के 56 विनायकों में एक काल विनायक और आनंदभैरव के मंदिर भी स्थित है।

17. अग्नीश्वर घाट

बनारस का यह घाट दूसरे घाटों की तुलना में बहुत सादा बना हुआ है। इसे पूना के अंतिम पेशवा बाजीराव ने बनवाया था। घाट पर अग्नीश्वर शिव और काशी के 42 लिंगों में से एक उपशांत शिव के मंदिर स्थित हैं।

18. भोसले घाट

भोसले घाट का निर्माण नागपुर के राजपरिवार ने करवाया था, उन्हीं के उपनाम के आधार पर इस घाट को भोसले घाट कहा जाता है। यह गंगा कि किनारे स्थित सबसे बढ़िया घाटो में से एक है। इसी घाट के मंदिर में नागेश्वर और 56 विनायाकों में से नागेश विनायक निवास करते हैं। भोसले परिवार ने यहां एक लक्ष्मीनारायण मंदिर का निर्माण भी करवाया है।

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