देवी के नौ अवतारों की कथा
यदा-यदा दानवोत्था भविष्यति तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्
श्री दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में देवी के नौ अवतारों की कथा मिलती है. श्री दुर्गा सप्तशती के अनुसार जब-जब भी दैत्यों द्वारा उपद्रव उठेगा, तब-तब मैं अवतार लेकर शत्रुओं (दैत्यों) का संहार करूँगी. भगवती ने इस कथन की पालना भिन्न-भिन्न दुष्कर समयों पर अवतार धारण करके तथा दुष्टों का नाश करके की है. जानते हैं देवी के नौ अवतारों की कथा – महाकाली Mahakali
श्री दुर्गा सप्तशती और पौराणिक कथा के अनुसार एक बार जब पूरा संसार प्रलय से ग्रस्त हो गया था. चारों ओर पानी ही पानी दिखाई देता था. उस समय भगवान विष्णु की नाभि से एक कमल उत्पन्न हुआ. उस कमल से ब्रह्माजी निकले. इसके अलावा भगवान नारायण के कानों में से कुछ मैल भी निकला, उस मैल से कैटभ और मधु नाम के दैत्य बन गए. जब उन दैत्यों ने चारों ओर देखा तो ब्रह्मा जी के अलावा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया.
ब्रह्मा जी को देखकर वे दैत्य उन्हें मारने दौड़े. तब भयभीत हुए ब्रह्मा जी ने विष्णु भगवान की स्तुति की. स्तुति से विष्णु भगवान की आँखों में जो महामाया ब्रह्मा की योगनिद्रा के रूप में निवास करती थी, वह लोप हो गई और विष्णु भगवान की नींद खुल गई. उनके जागते ही वे दोनों दैत्य भगवान विष्णु से लड़ने लगे. इस प्रकार पांच हजार वर्ष तक युद्ध चलता रहा. अन्त में भगवान की रक्षा के लिए महामाया ने असुरों की बुद्धि को बदल दिया. तब वे असुर विष्णु भगवान से बोले- हम आपके युद्ध से प्रसन्न हैं जो चाहो वर मांग लो. भगवान ने मौका पाया और कहने लगे, यदि हमें वर देना है तो यह वर दो कि दैत्यों का नाश हो. दैत्यों ने कहा, ऐसा ही होगा. ऐसा कहते ही महाबली दैत्यों का नाश हो गया. जिसने असुरों की बुद्धि को बदला था, वह ‘महाकाली’ थी.
महालक्ष्मी Mahalaxmi
महिषासुर नाम का एक दैत्य था. उसने समस्त राजाओं को हराकर पृथ्वी और पाताल पर अपना अधिकार जमा लिया. जब देवताओं से युद्ध करने लगे तो देवता भी उससे युद्ध में हारकर भागने लगे. भागते-भागते वे भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उस दैत्य से बचने के लिये स्तुति करने लगे. देवताओं की स्तुति करने से भगवान विष्णु और शंकर जी जब प्रसन्न हुए, तब उनके शरीर से एक तेज निकला, जिसने महालक्ष्मी का रूप धारण कर लिया. इन्हीं महालक्ष्मी ने महिषासुर दैत्य को युद्ध में मारकर देवताओं का कष्ट दूर किया.
महासरस्वती Mahasarasvati
एक समय शुम्भ-निशुम्भ नाम के दो बहुत बलशाली दैत्य हुए थे. उनसे युद्ध में मनुष्य देवता तक हार गये. देवताओं ने देखा कि अब वे युद्ध में नहीं जीत सकते, तब वह स्वर्ग को छोड़कर भगवान विष्णु की स्तुति करने लगे. उस समय भगवान विष्णु के शरीर में से एक ज्योति प्रकट हुई जो कि महासरस्वती थी. महासरस्वती अत्यन्त रूपवान थीं.
उनका रूप देखकर वे दैत्य मुग्ध हो गए और अपना सुग्रीव नामक का दूत उसी देवी के पास अपनी इच्छा प्रकट करते हुए भेजा. उस दूत को देवी ने वापिस कर दिया. इसके बाद उन दोनों ने देवी को बलपूर्वक लाने के लिए अपने सेनापति धूम्राक्ष को सेना सहित भेजा, जो देवी द्वारा सेना सहित मार दिया गया. इसके बाद रक्तबीज लड़ने आया, जिसके रक्त की बूंद जमीन पर गिरने से एक वीर पैदा हुआ, वह बहुत बलवान था. उसे भी देवी ने मार गिराया. अन्त में शुम्भ-निषुम्भ स्वयं दोनों लड़ने आए और देवी के हाथों मारे गए.
योगमाया Yogmaya
जब कंस ने वसुदेव-देवकी के छः पुत्रों का वध कर दिया था और सातवें में शेषनाग बलराम जी आये, जो रोहिणी के गर्भ में प्रवेश होकर प्रकट हुए, तब आठवां जन्म कृष्ण का हुआ. साथ ही गोकुल में यशोदा जी गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ जो वसुदेव जी द्वारा कृष्ण के बदले मथुरा में लाई गई थी.
जब कंश ने कन्या-स्वरूपा उस योगमाया को मारने के लिए पटकना चाहा तो वह हाथ से छूट गई और आकाश में जाकर देवी का रूप धारण कर लिया. आगे चलकर इसी योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर आदि शक्तिशाली असुरों का संहार करवाया.
रक्त-दन्तिका Rakt-Dantika
एक बार वैप्रचित्त नाम के असुर ने बहुत से कुकर्म करके पृथ्वी को व्याकुल कर दिया. उसने मनुष्य ही नहीं बल्कि देवताओं तक को बहुत दुख दिया. देवताओं और पृथ्वी की प्रार्थना पर उस समय देवी ने रक्तदन्तिका नाम से अवतार लिया और वैप्रचित्ति आदि असुरों का मान-मर्दन कर डाला. भयंकर दैत्यों को भक्षण करते समय देवी के दांत अनार के फूल के समान लाल हो गए. इसी कारण से इनका नाम रक्त-दन्तिका विख्यात हुआ.
शाकम्भरी Shakambhari
एक समय पृथ्वी पर लगातार सौ वर्ष तक वर्षा ही नहीं हुई. इस कारण चारों और हाहाकार मच गया. सभी जीव भूख और प्यास से व्याकुल हो मरने लगे. उस समय मुनियों ने मिलकर देवी भगवती की उपासना की. तब जगदम्बा ने शाकंभरी नाम से स्त्री रूप में अवतार लिया और उनकी कृपा से जल की वर्षा हुई, जिससे पृथ्वी के समस्त जीवों को जीवनदान प्राप्त हुआ. वृष्टि न होने के पहले तक देवी ने प्राणों की रक्षा में समर्थ शाकों द्वारा सम्पूर्ण जगत का भरण-पोषण किया, जिससे ‘शाकंभरी’ नाम प्रसिद्ध हुआ.
श्री दुर्गा Shri Durga
एक समय भारतवर्ष में दुर्गम नाम का राक्षस हुआ. उसके डर से पृथ्वी ही नहीं, स्वर्ग और पाताल में निवास करने वाले लोग भी भयभीत रहते थे. ऐसी विपत्ति के समय में भगवान की शक्ति ने दुर्गा के नाम से अवतार लिया और दुर्गम राक्षस को मार कर ब्राह्मणों हरिभक्तों की रक्षा की. दुर्गम राक्षस को मारने के कारण ही तीनों लोकों में इनका नाम दुर्गा प्रसिद्ध हो गया.
भ्रामरी Bhramari
एक बार महा-अत्याचारी अरूण नाम का एक असुर पैदा हुआ. उसने स्वर्ग में जाकर उपद्रव करना शुरू कर दिया. देवताओं की पत्नियों का सतीत्व नष्ट करने की कुचेष्टा करने लगा. अपने सतीत्व की रक्षा के लिए देव-पत्नियों ने भौरों का रूप धारण कर लिया और दुर्गा देवी की प्रार्थना करने लगीं. देव-पत्नियों को दुःखी जानकर माता दुर्गा ने भ्रामरी का रूप धारण करके उस असुर को उसकी सेना सहित मार डाला और देव-पत्नियों के सतीत्व की रक्षा की.
चामुण्डा(चण्डिका) Chamunda
एक बार पृथ्वी पर चण्ड मुण्ड नाम के दो राक्षस पैदा हुए. वे दोनों इतने बलवान थे कि संसार में अपना राज्य फैला लिया और स्वर्ग के देवताओं को हराकर वहां भी अपना अधिकार जमा लिया. इस कारण, देवता बहुत दुःखी हुए और देवी की स्तुति करने लगे. तब देवी चंडिका के रूप में अवतरित हुई और चण्ड-मुण्ड नामक राक्षसों को मारकर संसार का दुःख दूर किया. देवताओं का गया स्वर्ग पुनः उन्हें दिया. इस प्रकार चारों ओर सुख का राज्य छा गया. चण्ड तथा मुण्ड का वध करने के कारण इस अवतार में देवी को चामुण्डा और चंडी कहा गया.