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कार्तिक पूर्णिमा पूजा का महत्व
कार्तिक के महीने में शुक्ल पक्ष के दिन की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है. हिंदी पंचाग के अनुसार शरद पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाला ये महीना धर्म कर्म के लिए विशेष महत्व रखता है.
वर्ष भर के सभी बड़े त्योहार इस महीने में ही आते है इस साल कार्तिक पूर्णिमा 4 नवंबर 2017 के दिन है कार्तिक के पूरे महीने में सूर्य उदय होने से पहले उठकर स्नान करने उगते सूर्य को अर्ध्य देने और दीपदान के साथ ही दान पुण्य का काफी महत्व होता है इस पूरे महीने में और विशेष कर कार्तिक पूर्णिमा का दिन गंगा स्नान, पुष्कर, गलता जी और अन्य धार्मिक नदियों में कार्तिक माह में सुबह सूर्य उदय से पूर्व उठकर स्नान और पूजा पाठ करने वाले व्यक्ति के सभी पाप दूर हो जाते हैं और उसे अश्वमेध यज्ञ करने जीतना फल मिलता है..
वेदों और ग्रंथो के अनुसार ऐसी मान्यता है की कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने पहला अवतार लिया था. और इसी दिन पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव ने त्रिपुरी नामक दानव का वध किया था. कार्तिक के महीने में लोग पवित्र नदियों में स्नान करने जाते हैं.
गंगा और पवित्र नदियों में स्नान करने की शुरुआत शरद पूर्णिमा से शुरु होकर कार्तिक पूर्णिमा पर खत्म होती है. इस दौरान देश के सभी पवित्र नदियों और जलाशय में अल सुबह ही भारी भीड़ हो जाती है.
कैसे करें कार्तिक पूर्णिमा पर पूजा
दीप दान
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर स्थानीय बड़े मंदिर में काफी संख्या में महिलाए दीप दान कर परिवार की सुख शांति के लिए पूजा-अर्चना और मंगल कामना करती है कार्तिक माह में महिलाएं सुबह से ही उठकर पूजा पाठ में लग जाती है कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर दीप दान की प्रथा भी है.
इस दिन महिलाएं पूजा की थाली में अगरबत्ती,फूलमाला,नारियल,चंदन,सहित अन्य पूजा सामाग्रियों को लेकर कृष्ण मंदिरो में पहुंच कर वहां विधि-विधान से पूजा-अर्चना के बाद महिलाए दीप दान करती है इस दिन श्री सत्यनारायण कहानियां पढ़ी जाती हैं और पीपल के पेड़ों, घरों और मंदिरों में रोशनी जलाई जाती हैं.
कार्तिक पूर्णिमा व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक सास-बहु ने कार्तिक स्नान करने का निश्चय किया. सास कार्तिक नहाने तीर्थ राज जाने लगी तो बहु ने भी साथ जाने की इच्छा जताई. सास ने बहु को यह कहते हुए मना कर दिया कि – अभी तुम्हारी कार्तिक नहाने की उम्र नहीं है, तुम बाद में जाना. यह कहकर सास तीर्थ चली गई.
सास के जाने के बाद बहु ने कुम्हार के यहां से तैतीस मिट्टी के कुण्ड मंगवाकर रख लिए. वह रोजाना रात्रि में एक कुण्ड में पानी भर कर रख लेती और सवेरे जल्दी उठकर स्नान कर कुण्ड को छत पर उल्टा रखकर विधि-विधान से पूजा करती. इधर एक दिन सास की नथ नहाते हुए गंगाजी में गिर गई. उधर बहु हमेशा की रह नहाते समय बोली-‘सास नहाए उण्डे, मैं नहाऊ कुण्डे’, उसी समय अचानक गंगाजी की धारा बहु के कुंड में आ गई. उसी धारा के साथ सास की नथ भी कुण्ड में आ गई.
बहु ने कुण्ड में आई नथ को देखा तो वह पहचान गई कि यह तो उसके सास की नथ है. इस तरह दोनो को नहाते हुए पूरा एक महीना बीत गया. सास जब वापस लौटकर घर आई तो बहु ने सास की खूब आवभगत की. उसी समय सास ने देखा कि उसकी गंगा में खोई हुई नथ बहू ने पहन रखी है, तो पूछा-‘यह नथ तुम्हारे पास कहां से आई?’ बहु ने पूरी घटना अपनी सास को बता दी कि कैसे उसके कुण्ड में गंगाजी की धारा आ गई थी और उसी धारा के साथ बहकर यह नथ उसके पास आई थी. सास को इस घटना पर बहुत आश्चर्य हुआ लेकिन वह चुप रही.
कार्तिक स्नान के बाद सास ने ब्राह्मणों को भोजन कराने की इच्छा व्यक्त करते हुए बहु से कहा कि- मुझे ब्राह्मणों को भोजन कराना है. इस पर बहु ने आग्रह पूर्वक सास से विनती की कि – मांजी आप चार ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहती है तो दो मेरे भी जोड़ दें, क्योंकि मैंने भी कार्तिक स्नान किया है. बहु की बात सुनकर सास ने फिर प्रश्न किया- तुम कहां कार्तिक नहाई हो? गंगा तीर्थ तो मैं जाकर आई हूं?
तब बहु ने सासु मां को छत पर लेकर जाकर वह कुण्ड दिखाए जिसमें उसने कार्तिक स्नान किया था. सास ने देखा कि मिट्टी के कुण्ड सोने के हो गए हैं. यह देखकर सास ने बहु से कहा- बहु तुम्हारा भाग्य अच्छा है, जो गंगा की धारा कुंड में आ गई. सारे कुंड सोने के हो गए. मैं अहंकारवश तीर्थ गई थी लेकिन वहां भी मुझे कुडछ नहीं मिला. तुमने सच्ची श्रद्धा और भक्ति से कार्तिक स्नान किया है, इसलिए भगवान तुम्हें इतना सबकुछ यहीं दे रहे हैं.