मार्क जुकरबर्ग एक कम्प्यूटर प्रोग्रामर व इंटरनेट आंत्रप्रेन्योर हैं, जिन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म फेसबुक की स्थापना की है. वे आज दुनियाभर की युवाओं के लिए रोल मॉडल है. फेसबुक के बाद वे मेटा के सीईओ और चेयरमैन बन चुके है. उनका जीवन और उनकी सफलता की कहानी किसी परिकथा से कम नहीं है.
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मार्क जुकरबर्ग संक्षिप्त जीवनी – Short Biography of Mark Zuckerberg
मार्क एलियट जुकरबर्ग, अमरीका के कम्प्यूटर प्रोग्रामर और इंटरनेट आंत्रप्रेन्योर हैं. सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक के को-फाउंडर के तौर पर इन्हें पूरी दुनिया जानती है. वर्तमान में मार्क जुकरबर्ग मेटा के चेयरमैन और मुख्य कार्यकारी अधिकारी का पद संभाल रहे हैं. नवम्बर, 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार मार्क जुकरबर्ग की कुल सम्पत्ति 11610 करोड़ अमरीकन डॉलर आंकी गई थी.
फोर्ब्स की सूची के अनुसार वह विश्व के पांचवें सबसे अमीर शख्स हैं. जुकरबर्ग को पूरा विश्व फेसबुक के सह संस्थापक के तौर पर जानता है. उन्होंने फरवरी, 2004 में हावर्ड यूनिवर्सिटी के डॉरमेट्री रूम में सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक को लांच किया था.
इस खोज में उनके यूनिवर्सिटी के सहपाठी और रूममेट सहयोगी रहे, जिनमें एडुअर्डो सेवेरिन, एंड्रयू मैकोलम, डस्टिन मोस्कोविट्ज व क्रिस ह्युजेज शामिल हैं.
अपनी यूनिवर्सिटी में प्रयोग के बाद इस ग्रुप ने फेसबुक को दूसरे कॉलेज कैम्पस में भी शुरू किया. लोगों में फेसबुक का क्रेज दिनोंदिन बढ़ता रहा और वर्ष 2012 तक इसके करोड़ों यूजर्स बने.
हालांकि इस दौरान मार्क जुकरबर्ग को अपने सहयोगियों के साथ शेयर्स को लेकर कई विवादों का सामना भी करना पड़ा लेकिन इस सबसे उबरकर वह टाइम मैग्जीन की विश्व के सौ सबसे शक्तिशाली लोगों की सूची में जगह बनाने में सफल रहे.
मार्क जुकरबर्ग का आरंभिक जीवन
वर्ष 1984 में न्यूयार्क के व्हाईट प्लेंस में मार्क जुकरबर्ग का जन्म हुआ. उनकी मां कारेन मनोचिकित्सक थीं, जबकि पिता एडवर्ड जुकरबर्ग दंतचिकिस्तक थे. परिवार में मार्क के अलावा उनकी तीन बहनें रांडी, डोना व एरिली भी हैं. बचपन से ही मार्क पढ़ाई में बहुत होशियार थे, यही कारण था कि उन्हें स्थानीय स्कूल से न्यू हैम्पशर स्थित बड़े स्कूल में स्थानांतरित करना पड़ा.
वहां उन्होंने विज्ञान व सांस्कृतिक विषय में कई पुरस्कार जीते. युवावस्था में मार्क जुकरबर्ग ने जॉन हॉपकिंस सेंटर फोर टैलेंटेड यूथ समर कैम्प में भी शिरकत की. मार्क फ्रेंच, हिब्रू, लैटिन और ग्रीक भाषा पढ़ना और लिखना जानते हैं. उनकी रूचि खेलों में भी रही, वह अपनी कॉलेज की तलवारबाजी टीम के कप्तान रहे हैं.
कम्प्यूटर व सॉफ्टवेयर में रुझान
मार्क जुकरबर्ग जब मिडिल स्कूल में थे वे तभी से कम्प्यूटर का प्रयोग करने लगे थे और सॉफ्टवेयर की भी बेसिक जानकारी उन्होंने हासिल कर ली थी. उनके पिता ने उन्हें 1990 में ही बेसिक प्रोगामिंग सिखा दी थी और बाद में एक सॉफ्टवेयर डवलपर डेविड न्यूमेन को उन्हें ट्यूशन पढ़ाने के लिए नियुक्त कर दिया था.
जब मार्क हाई स्कूल में थे तभी उन्होंने नजदीक ही स्थित मर्सी कॉलेज से सॉफ्टवेयर से जुड़ा कोर्स किया और घर से दंतचिकित्सा का अभ्यास करने वाले अपने पिता के लिए एक सॉफ्टवेयर प्रोग्राम बनाया, जिसे उन्होंने जुकनेट नाम दिया.
इस प्रोग्राम के जरिए घर और डेंटल क्लीनिक के कम्प्यूटर्स पर कम्यूनिकेट किया जा सकता था. यह इंस्टेंट मैसेंजर का शुरुआती प्रारूप था जो कि आगामी सालों में जाकर काफी उपयोगी साबित हुआ.
फीलिपींस के एक पत्रकार और फिल्म निर्माता जोस एंओनियो वर्गास ने एक बार कहा था, कुछ बच्चे कम्प्यूटर गेम्स खेलते हैं, लेकिन मार्क उन्हें बनाते हैं. मार्क ने भी एक साक्षात्कार में कहा था, मैं ऐसे दोस्तों से घिरा हुआ था जो प्रतिभा के धनी थे, वे कुछ न कुछ परिकल्पना करते रहते थे और उसका स्कैच बनाते थे और मैं उन पर कम्प्यूटर गेम तैयार करता था.
हावर्ड यूनिवर्सिटी में आने से पहले ही मार्क जुकरबर्ग कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के क्षेत्र में महारथ हासिल कर चुके थे. उनकी विलक्षण प्रतिभा के सभी कायल थे. उन्होंने यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी व कम्प्यूटर साइंस की पढ़ाई जारी रखी.
इसी दौरान उन्होंने कोर्समैच नाम से एक प्रोग्राम तैयार किया, जिससे छात्र अपनी पसंद से क्लास का चयन कर सकते थे और ग्रुप स्टडी के जरिए एक-दूसरे की मदद कर सकते थे.
इसी दौरान मार्क ने फेसमैश के नाम से एक अन्य प्रोग्राम तैयार किया, जिसमें फोटो देखकर सर्वश्रेष्ठ का चयन छात्र कर सकते थे. मार्क जुकरबर्ग के सहपाठी रहे एरी हासित बताते हैं कि यह वेबसाइट उन्होंने सिर्फ मजे के लिए बनाई थी. उन्होंने बताया कि यूनिवर्सिटी में हमारे पास फेसबुक नाम से एक किताब हुआ करती थी, जिसमें छात्रावास में रहने वाले सभी छात्र व छात्राओं की तस्वीरें और जानकारी दर्ज होती थीं.
शुरुआत में मार्क ने जो साइट बनाई उस पर दो छात्र व दो छात्राओं की तस्वीरें अपलोड कीं, जिनमें से वेबसाइट पर जाने वाले विजिटर को बेहतरीन का चयन करना था, इसके बाद उसे रैंकिंग दी जाती थी.
यह साइट करीब एक साप्ताहांत तक चली, लेकिन सोमवार की सुबह तक कॉलेज ने इसे बंद कर दिया क्योंकि इसकी लोकप्रियता के चलते विद्यार्थी इंटरनेट का ज्यादा प्रयोग कर रहे थे और हार्वर्ड का नेटवर्क इससे प्रभावित हो रहा था.
इस दौरान कुछ विद्यार्थियों ने कॉलेज प्रशासन को शिकायत की, कि वेबसाइट पर उनकी तस्वीरें बिना अनुमति के अपलोड की गई हैं. इसे लेकर मार्क को सार्वजनिक तौर पर माफी भी मांगनी पड़ी थी.
मार्क जुकरबर्ग, फेसबुक और विवाद
जनवरी, 2004 में मार्क जुकरबर्ग ने एक नई वेबसाइट के लिए कोड लिखना शुरू किया. चार फरवरी 2004 को उन्होंने दी फेसबुक नाम से वेबसाइट लांच की लेकिन इसके छह दिन बाद ही हावर्ड यूनिवर्सिटी में उनके सीनियर रहे केमरन व टेलर विंकलोव्स और दिव्य नरेन्द्र ने दावा किया कि मार्क ने उन्हें विश्वास में लेकर उनका आइडिया चुराया है.
उन तीनों के अनुसार मार्क ने उनका आइडिया चुराकर एक प्रतिस्पर्धी प्रोग्राम तैयार किया है. उन्होंने मार्क की शिकायत दी हावर्ड क्रिमसन को भी की, जिसकी जांच के जल्द आदेश जारी कर दिए गए. फेसबुक की आधिकारिक लांचिंग के बाद इन तीनों ने मार्क जुकरबर्ग के खिलाफ कानूनी कारवाई शुरू कर दी थी.
बाद में उनके बीच समझौता हुआ और मार्क को उन तीनों को फेसबुक के 1.2 मीलियन शेयर देने पड़े, जिनकी कीमत करीब 300 मीलियन अमरीकी डॉलर आंकी गई. इसके बाद मार्क ने अपने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए हावर्ड यूनिवर्सिटी बीच में ही छोड़ दी. 28 मई, 2017 को हावर्ड यूनिवर्सिटी ने मार्क को मानद डिग्री प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया.
स्टूडेंट डिक्शनरी से निकला फेसबुक
मार्क जुकरबर्ग को फेसबुक जैसा प्रोग्राम तैयार करने की प्रेरणा अपने स्कूल से मिली. वर्ष 2002 में मार्क जुकरबर्ग जब फिलिप्स एक्सेटर एकेडमी में पढ़ाई कर रहे थे, तब वहां दी फोटो एड्रेस बुक के नाम से एक किताब विद्यार्थियों को दी जाती थी, जिसमें सभी छात्र-छात्राओं के नाम पते, फोन नम्बर व अन्य जानकारी दर्ज होती थी. यह स्टूडेंट डिक्शनरी के तौर पर भी बेहद प्रचलित थी. विद्यार्थी इसे दी फेसबुक के नाम से जानते थे.
निजी स्कूलों में विद्यार्थियों को एक-दूसरे से जोड़ने के लिए यह प्रयोग काफी कारगर रहा था. स्कूल के बाद भी वे एक-दूसरे के सम्पर्क में रहें, इसलिए यह किताब उन्हें दी जाती थी. मार्क जुकरबर्ग ने फेसबुक को पहले हावर्ड यूनिवर्सिटी में जारी किया और बाद में इसे अन्य स्कूलों व कॉलेजों में भी प्रयोग के तौर पर जारी किया.
अपने रूममेट डस्टिन मोस्कोविट्ज की सहायता से मार्क ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी, न्यूयार्क यूनिवर्सिटी, स्टेनफोर्ड, डार्टमाउथ और पेंसिलवेनिया यूनिवर्सिटी समेत अन्य विश्वविद्यालयों में फेसबुक का प्रचार प्रसार किया. मार्क, मोस्कोविट्ज और उनके कुछ दोस्त कैलिफोर्निया में सिलिकोन वैली स्थित पालो ऑल्टो में शिफ्ट हो गए, जहां उन्होंने एक छोटा घर किराए पर लेकर फेसबुक का ऑफिस शुरू किया. इसके बाद एक इनवेस्टर की मदद से फेसबुक के आधिकरिक ऑफिस की स्थापना की गई.
मार्क के अनुसार कई बड़े कॉर्पोरेशन हाऊस ने उनकी कम्पनी खरीदने का ऑफर उन्हें दिया, लेकिन उन्होंने इसे खारिज कर दिया. मार्क ने कहा, यह सिर्फ पैसों की बात नहीं है, मेरे और मेरे सहयोगियों के लिए लोगों को एक-दूसरे से जोडऩे के लिए एक खुला मंच देना ज्यादा महत्वपूर्ण है. फेसबुक एक ऐसा ही मंच है जहां दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने में बैठे लोग भी एक-दूसरे से बात कर सकते हैं और अपने विचार साझा कर सकते हैं.
इस बीच मार्क के सहपाठी और रूममेट एडुअर्डो सेवेरिन ने फेसबुक व उन पर कानूनी दावा ठोक दिया. सेवेरिन ने फेसबुक के कोफाउंडर के तौर पर अपना नाम सार्वजनिक करने और अपना हिस्सा लेने के लिए यह दावा ठोका.
मार्क व सेवेरिन के बीच कोर्ट के बाहर ही समझौता हो गया. इस समझौते के तहत मार्क ने सेवेरिन को फेसबुक का कोफाउंडर घोषित किया और बड़ी रकम भी दी, जिसकी घोषणा नहीं करने के लिए एक नॉन-डिस्क्लोजर कांट्रेक्ट साइन किया गया.
मार्क जुकरबर्ग का वैवाहिक जीवन Mark Zuckerberg Personal Life
मार्क जुकरबर्ग की मुलाकात हावर्ड यूनिवर्सिटी में प्रीसिलिया चान से हुई जो कि मैडिकल स्टूडेंट थी. एक पार्टी में इन दोनों की मुलाकात हुई जो बाद में गहरी दोस्ती में बदल गई.
19 मई, 2012 को मार्क और चान ने अपने नौ साल पुराने रिश्ते को नाम दिया और विवाह बंधन में बंध गए. एक दिसम्बर, 2015 को इस दम्पत्ति के घर बेटी मैक्सिमा चान जुकरबर्ग के रूप में पहली संतान ने जन्म लिया. अगस्त, 2017 में मार्क और चान की दूसरी बेटी का जन्म हुआ.
मार्क जुकरबर्ग पर फिल्म भी बनी
मार्क जुकरबर्ग के फेसबुक की खोज के समय और संघर्ष पर एक फिल्म भी बन चुकी है. दी सोशल नेटवर्क नाम की यह फिल्म एक अक्टूबर, 2010 को रिलीज हुई. इस फिल्म के आने के बाद मार्क ने एक साक्षात्कार में कहा कि मैं यही दुआ करता हूं कि जब तक मैं जीवित हूं मेरे जीवन पर कोई और फिल्म न बने. इसके अलावा मार्क पर लिखी किताब दी एक्सिडेंटल बिलेनियर्स पर भी फिल्म बन चुकी है.
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