essay on Barsat ki Raat in hindi- कच्चे घर में बरसात की एक रात

कच्चे घर में बरसात की एक रात पर निबन्ध

बरसात की रात पर अपने अनुभव विषय पर निबंध लिखने के लिए अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं और स्कूली पाठ्यक्रम में पूछा जाता है. हम यहां आपको कच्चे घर में बरसात की रात पर एक काल्पनिक निबंध प्रस्तुत कर रहे हैं।

भारत वर्ष एक प्रधान देश है. यहां की अधिकांश जनसंख्या गांवों में रहती है. गांवों की दशा अत्यन्त ही दीन है. खाने, पीने, रहने आदि दैनिक उपभोग की वस्तुएं उनको आसानी से उपलब्ध नहीं होती हैं तथा रहने को कच्चे घर एवं खाने को मोटा अनाज ही उनकी जिन्दगी बसर करने के साधन है. गांवों की अधिकांश जनंसख्या गरीब है. वहां न आधुनिक फैशन है न ही पक्के मकान उन्हें रहने के लिए उपलब्ध हैं.

मुझे किसी आवश्यक कार्यवश अपन मामाजी के यहां जाना पड़ा. मेरे मामाजी एक छोटे से गांव में कृषि के सहारे अपने परिवार का पेट पालते हैं. गांवों की दशा बरसात के दिनों में अत्यन्त ही दयनीय हो जाती है. गांव एक टापू समान दृष्टिगोचर हो रहा था. कीचड़ और गन्दगी का साम्राज्य था.

घर पहुंचते-पहुंचते सभी कपडे़ कीचड़-मिट्टी में लथ-पथ हो चुके थे. जूतों को खोलकर हाथ में ले जाना पड़ा. चुस्त पेंट को बचाने का तरीका कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्योंकि उसे ऊपर तो उठा नहीं सकता था. घर जाकर जरा चैन की साँस ली.

आवश्यक कार्य-कलापों के बाद सोने की तैयारी हुई. आसमान कुछ साफ-साफ सा ही था, अतः मैंने बाहर ही सोने का आग्रह किया. काफी विचार-विमर्श होने के बाद मैंने बाहर सोने का निश्चय किया, क्योंकि प्रबन्ध नहीं था. अचानक बादलों की गर्जना हुई और बिजली कड़कड़ाहट से मेरी आंखे खुल गई. कुछ बूंदा-बूंदी भी शुरू हो गई थी.

बरसात की एक रात पर निबन्ध

मामाजी को जगाकर अन्दर सोने के लिए प्रबन्ध किया गया; परन्तु अन्दर पहुंचते ही मुझे अटपटा सा अनुभव होने लगा. बिजली की चकाचौंध घर के छप्पर में से होकर दिखलाई पड़ रही थी. घर का अन्धेरा मुझे सुहा नहीं रहा था.

मैं दीपक को जलता ही रखना चाहता था कि हवा के तेज झौंके से दीपक गुल (बुझ) हो गया. बड़ी कठिनाई से अन्धेरे में दियासलाई की तलाष की; परन्तु वह जलने योग्य नहीं थी. कई तीलियां बेकार करने के बाद भी नहीं जलीं तो मैनें उसको बिस्तर के नीचे रख दिया.

वर्षा तेज हो रही थी. ज्यों-ज्यो वर्षा बढ़ती जा रही थी. मेरी परेशानी भी बढ़ती जा रही थी. बरसात का पानी टप-टप कर चारपाई पर गिरना शुरू हुआ, मेरी नींद खराब हो गई. थोड़ी देर में चारों तरफ टपाटप बारिश होने लगी. मामाजी ने मेरी चारपाई सुरक्षित स्थान पर बिछा दी थी इसलिए मैं कुछ सुरक्षित था, परन्तु जब वर्षा और ज्यादा हुई तो एक टपका मेरे कान के पास आकर गिरा.

डर की वजह से करवट लेकर सा रहा था और अन्दर की गर्मी के कारण कुछ ओढ़ भी नहीं रखा था. धीरे-धीरे मेरे ऊपर टपकों ने आक्रमण सा कर दिया. जहां पर भी सिमटकर टपके से बचने के लिए मोर्चा लेता, वहीं पर टपका आक्रमण कर देता.

गर्मी की अधिकता के कारण मैंने द्वार खोल दिया, उसमें से भी नन्हीं बौछारें शुरू हुई. थोड़ी देर तो अच्छा लगा पर कुछ देर बाद असह्म लगा. मैं किवाड़ बन्द करने का इरादा कर ही रहा था. कि कुत्ता बरसात से बचने के लिए मेरे पास आकर सो गया.

मैंने गांव के भूतों के किस्से सुन रखे थे. मैं डर से कांपने लगा, परन्तु उसके भौंकने से ज्ञात हुआ कि कुत्ता है. मैंने उसको भगाया. कूंकूं करता बरसात में बेचारा भीगता हुआ भाग गया. बारिश से मैं बिल्कुल भीग चुका था. कान पर आकर मच्छर भिनभिन करते व डंक मार जाते. कभी-कभी तो मोटे कीड़े मेरे शरीर पर चढ़कर दौड़ लगाते थे.

बड़ी मुश्किल से उनको पकड़ कर फेंकता था. वर्षा धीमी हो गई, परन्तु उमस बहुत थी. जी व्याकुल होने लगा. थोड़ी देर में बरसात बन्द हो गई. आसमान में तारे झिलमिलाने लगे. मैंने अपनी चारपाई उठाई और बाहर जाकर सो गया. थोड़ी नींद ली होगी की अचानक मामाजी ने आकर जगा दिया.

मैंने देखा कि सूर्य उदय हो चुका था. मैंने आवश्यक बात-चीत कर जाने का प्रस्ताव रखा. मामाजी ने एक दिन और रुकने का आग्रह किया परन्तु रात भर टपा-टप और उमस को सहन करने की क्षमता प्रायः समाप्त हो चुकी थी. एक ही दिन में मुझे मजबूरन वापस आना पड़ा.

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