डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिनके जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के तौर पर मनाया जाता है, भारत के दूसरे राष्ट्रपति और पहले उप राष्ट्रपति रहे. वे भारतीय संस्कृति और दर्शन के श्रेष्ठ आचार्य थे.
स्वामी विवेकानन्द और रवीन्द्रनाथ टैगोर के बाद भारत के सांस्कृतिक तथा आध्यात्मिक यश को बढ़ाने में उनका ही प्रमुख योगदान माना जाता है.अपने ग्रन्थों एवं असंख्य भाषणों द्वारा डॉक्टर राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन एवं संस्कृति का डंका पूरे विश्व में बजाया.
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डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का संक्षिप्त जीवन परिचय life sketch and contribution of Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म तत्कालीन मद्रास प्रांत के चित्तूर जिले में तिरूतनी नामक गांव में 5 सितम्बर, 1888 ई. को एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता वीरास्वामी तहसीलदार के दफ्तर में कर्मचारी थे. परिवार में मां सीताम्मा के अलावा पांच भाई और एक बहन भी थी.
तिरूतनी गांव शुरू से ही हिंदुओं का तीर्थ स्थान तथा शैव-भक्तों का उपासना केन्द्र रहा है. इसी कारण उनकी विचारधारा शैव तत्त्वों की ओर प्रभावित हुई तथा धर्म के बाह्य रूप के अतिरिक्त धर्म के वास्तिक अर्थ ‘चिरन्तन सत्य, की प्राप्ति के लिए वह प्रयत्नशील रहने लगे. 10 वर्ष की अवस्था में ही राधाकृष्णन स्वामी विवेकानन्द के विचारों को समझने का प्रयास प्रारम्भ कर दिया था.
डॉ. राधाकृष्णन का पुस्तकीय ज्ञान इतना अपार था कि मित्र उनको ‘वाकिंग एनसाइक्लोपीडिया’ अर्थात् ‘चलता फिरता विश्व कोष’ कहा करते थे. स्वामी रामतीर्थ की भांति राधाकृष्णन् का प्रारम्भ से यही विश्वास रहा कि दर्शन कोई सूक्ष्म अव्यावहारिक वस्तु नहीं है, अपितु यह सार्वजनिक जीवन का ही एक अंग है.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने विभिन्न दर्शनों की सुन्दर विवेचचना की है. फिर भी उनके ग्रन्थों मे इस बात की स्पष्ट झलक दिखाई देती है कि शंकराचार्य के अद्धैतवाद पर उनकी पर्याप्त आस्था थी.
डॉ. राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रोफेसर और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उप कुलपति रहे. वे भारत के स्वतंत्र होने के बाद इंग्लैंड और रूस में भारत के राजदूत रहे. भारत में गणतंत्र स्थापित होने पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन प्रथम उपराष्ट्रपति बने.
बाबू राजेन्द्र प्रसाद के बाद उन्होंने देश के राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया. राधाकृष्णन एक कुशल वक्ता तथा स्वतन्त्र विचारक थे. वह अपने धाराप्रवाह भाषणों से उच्च मेधा के श्रोताओं में भी अमिट छाप छोड़ते थे.
एस राधाकृष्णन का आरम्भिक जीवन एवं शिक्षा Early Life and Education
जिस समय राधाकृष्णन का जन्म हुआ, उस समय देश में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की असफलता के कारण निराशा का वातावरण था. साथ ही मैकाले की शिक्षा नीति के कारण देश का नवशिक्षित समुदाय पश्चिमी विचारधारा की ओर प्रभावित हो रहा था. लोग भारतीय सभ्यता को हेय समझने लगे थे.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन् ने प्रारम्भिक शिक्षा ईसाई मिशनरी स्कूल में प्राप्त की. वहां जब ईसाई धर्म प्रचारक भारतीय सभ्यता के बारे में उलटी-सीधी बातें बोलते थे, तो उन्हें यह बिलकुल उचित नहीं लगता था. परिणामस्वरूप उनकी रूचि भारतीय संस्कृति के गम्भीर अध्ययन की ओर बढ़ती गई.
डॉ. राधाकृष्णन ने 1903 में मैट्रिक की परीक्षा पास की. इसके बाद 1905 में इण्टरमीडिएट परीक्षा में प्रथम श्रेणी में पास हुए. उन्होंने मद्रास-क्रिश्चियन काॅलेज से एम. ए. की डिग्री प्राप्त की. प्रारम्भ से ही उनकी रूचि संस्कृत भाषा तथा भारतीय दर्शन शास्त्र के प्रति थी. उन्हीं दिनों राधाकृष्णन ने ‘वेदान्त में आचार-नीति’ शीर्षक से एक खोजपूर्ण निबन्ध लिखा था, जिसकी देश-विदेश तक भूरि-भूरि प्रशंसा हुई थी.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का पारिवारिक जीवन 10 lines on Dr. Sarvepalli Radhakrishnan
राधाकृष्णन का विवाह मात्र 16 वर्ष की आयु में ही सिवाकामुअम्मा के साथ हुआ. सिवाकामुअम्मा एक स्टेशन मास्टर की बेटी थीं और विवाह के समय उनकी आयु मात्र 10 वर्ष थी. शादी के तीन वर्ष बाद सिवाकामुअम्मा ने उनके साथ रहना शुरू किया. सिवाकामू ने औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी, फिर भी तेलुगू भाषा की उन्हें अच्छी समझ थी.
वे अंग्रेजी भी समझती थीं. उनकी छह संतानें हुईं, जिनमें पांच बेटियां और एक पुत्र सर्वपल्ली गोपाल थे. सर्वपल्ली गोपाल ने आगे चलकर इतिहासकार के रूप में ख्याति अर्जित की. उन्होंने डॉ. राधाकृष्णन की जीवनी राधाकृष्णनः ए बायोग्राफी और जवाहरलाल नेहरू की जीवनी जवाहरलाल नेहरूः ए बायोग्राफी शीर्षक से लिखीं.
डॉ. राधाकृष्णन का शिक्षण करियर Teaching Career of Dr. Radhakrishnan
एम.ए. की परीक्षा पास करने के पश्चात् सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास प्रेसीडेन्सी काॅलेज में दर्शन शास्त्र प्रोफेसर नियुक्त किये गए. उन्होंने अपनी विलक्षण प्रतिभा तथा शिक्षा-पद्धति से दर्शन जैसे नीरस और गूढ़ विषय को भी सरस तथा सरल कर दिखाया.
जून 1926 में इंगलैंड के कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में ब्रिटिश साम्राज्य के अन्तर्गत विश्वविद्यालयों का एक सम्मेलन हुआ. राधाकृष्णन उसमें भारतीय प्रतिनिधि के रूप के रूप में सम्मिलित हुए. इंगलैंड में उन्होंने अनेक स्थानों पर आध्यात्मिक विषयों पर भाषण दिये, इससे उनकी अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति और भी बढ़ गई.
इसके बाद वे अमरीका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने गए. वहां उन्होंने जो भाषण दिए, उनका संग्रह ‘फ्यूचर ऑफ सिविलाइजेशन’ के नाम से प्रकाशित हुआ.
अब समस्त यूरोप में राधाकृष्णन् की ख्याति फैल चुकी थी. अमरीका से लौटने के बाद वर्ष 1936 में डॉ. राधाकृष्णन इंग्लैण्ड के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय’ में दर्शन के शिक्षक नियुक्त किये गए. यह पहला अवसर था, जब भारत के विद्धान् को इंगलैंड में इतना सम्मान प्राप्त हुआ था. कुछ समय इंगलैंड में रहने के बाद आप भारत लौट आए.
1939 में उन्हें ‘काशी विश्वविद्यालय’ में उपकुलपति का सम्मानपूर्ण पद प्रदान किया गया, किन्तु महामना मालवीय जी की मृत्यु के पश्चात् उन्होंने इस पद से त्याग-पत्र दे दिया.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का राजनीतिक जीवन Political Career of S. Radhakrishnan
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की एक बड़ी विशेषता यह है कि राष्ट्रीय आन्दोलन में प्रत्यक्ष भाग न लेने पर भी वे राष्ट्रीय नेताओं के घनिष्ठ मित्र रहे. गांधी जी पर तो आपकी परम श्रद्धा थी. पं. जवाहरलाल नहेरू की अध्यक्षता में जो कांग्रेस संयोजक समिति बनी थी, उसके आप शिक्षा व संस्कृति विभाग के अध्यक्ष रहे.
1947 में भारत के स्वतंत्र होने पर आपको संविधान निर्मात्री सभा का सदस्य बनाया गया. इसके पश्चात् आपको इंगलैंड में भारत का राजदूत नियुक्त किया गया. जब श्रीमती विजलक्ष्मी पंडित को अमरीका में राजदूत नियुक्त किया गया तो आपको उनके स्थान पर रूस में राजदूत बनाया गया.
भारत में स्वतन्त्र गणतन्त्र होने के उपरान्त 1952 में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया. 1954 में उन्हें भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया. 14 मई 1962 को उन्हें भारत का द्वितीय राष्ट्रपति चुना गया. वे 13 मई 1967 तक इस पद पर रहे.
17 अप्रेल 1975 को डॉ सर्वेपल्ली राधाकृष्णन का चेन्नई में 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. मृत्यु से कुछ माह पूर्व ही उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त टेम्पलटन पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
5 सितम्बर को शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं? Sarvepalli Radhakrishnan essay
डॉ. राधाकृष्णन जब राष्ट्रपति बने तो उनके कुछ शिष्यों और मित्रों ने 5 सितम्बर 1962 को उनका जन्मदिवस समारोह धूमधाम से मनाने की अनुमति मांगी. इस पर डॉ. राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिवस मनाने के बजाय इस दिन को शिक्षक दिवस के रूप में याद रखा जाए, तो मुझे ज्यादा खुशी होगी. इसके बाद से ही शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए वर्ष 1962 से सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन की लिखी पुस्तकें Sarvepalli Radhakrishnan books
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन तथा अन्य विषयों पर बहुत सी पुस्तकें लिखी हैं. उनके ग्रन्थों काे पश्चिमी देशों में विशेष ख्याति मिली . ‘रवि ठाकुर का दर्शन’, ‘आज के दर्शन पर धर्मों का प्रभाव’, ‘वेदान्त का इतिहास’, ‘द हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ’ में उन्होंने प्रमाणपूर्वक यह सिद्ध किया है कि यूनान के दर्शन पर प्राचीन भारतीय दर्शन का गहरा प्रभाव है. उन्होंने सिद्ध किया कि अरस्तु और अफलातून जैसे तत्त्ववेत्ताओं को भी भारतीय दर्शन शास्त्र में प्रचुर प्रेरणा प्राप्त हुई थी.
राधाकृष्णन् ने यह सिद्ध करने का भी प्रयत्न किया है कि शंकर के अद्धैतवाद, रामानुज के विशिष्टाद्वैतवाद, निम्बार्क के द्वैताद्वैतवाद, भास्कराचार्य के शुद्धाद्वैतवाद अथवा पुष्टिवाद में बाहरी भिन्नता होने पर भी मूलतः ये सभी सिद्धान्त एक ही हैं.
डॉ. राधाकृष्णन का दर्शन
राधाकृष्णन के अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के प्रति स्वाभिमानी होते हुए भी दूसरी संस्कृतियों के प्रति द्वेष की भावना उनमें नहीं थी. उनका मानना था कि सांस्कृतिक समन्वय से विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है तथा यही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के सच्चे सिद्धान्तों के अनुरूप है.
आपका विश्वास था कि वैज्ञानिक प्रगति से प्रत्येक राष्ट्र एक दूसरे पर आश्रित हो गया है, अतः संसार को परिवार के रूप मे देखने में ही कल्याण है. इसी मार्ग से धर्म, समाज तथा परिवार की उन्नति सम्भव है.
समाज की उन्नति तथा उसके नव-निर्माण के सम्बन्ध में राधाकृष्णन् की विचारधारा अत्यन्त सूक्ष्म तथा मौलिक है. उनका कहना था कि ‘समाज का उत्थान उन व्यक्तियों द्वारा होगा, जिनका व्यक्तित्व गहन है तथा जिनके जीवन में सत्यता है.
सुखमय पारिवारिक जीवन से ही उन्नतिशील समाज का जन्म होता है’. जीवन के प्रत्येक दृष्टिकोण के सम्बन्ध में राधाकृष्णन की विचारधारा दार्शनिक होने के साथ-साथ नवीन एवं मौलिक थी.
मार्च, 1947 में जब दिल्ली में एशियाई देशों का सम्मेलन हुआ तो उसमें उन्होंने बताया था कि भौतिकवाद में विश्वास रखने से विश्व शान्ति नहीं हो सकती. विश्व शान्ति का एकमात्र मार्ग अध्यात्मवाद ही है.
एस. राधाकृष्णन के कथन Dr. Sarvepalli Radhakrishnan quotes on Teachers and God
“ज्ञान हमें शक्ति देता है, प्रेम हमें पूर्णता देता है।”
“जब हम सोचते हैं कि हम सब जानते हैं कि हम सीखना बंद कर देते हैं।”
“किताबें वह माध्यम हैं जिनके द्वारा हम संस्कृतियों के बीच सेतु का निर्माण करते हैं।”
“सच्चे शिक्षक वे हैं जो हमें अपने लिए सोचने में मदद करते हैं।”
“भगवान हम में से प्रत्येक में रहते हैं, महसूस करते हैं और पीड़ित होते हैं, और समय के साथ, उनके गुण, ज्ञान, सौंदर्य और प्रेम हम में से प्रत्येक में प्रकट होंगे।”
“सच्चा धर्म एक क्रांतिकारी शक्ति है: यह उत्पीड़न, विशेषाधिकार और अन्याय का कट्टर दुश्मन है।”
“धर्म व्यवहार है न कि केवल विश्वास।”
“ज्ञान और विज्ञान के आधार पर ही आनंद और सुख का जीवन संभव है।”
“शिक्षा का अंतिम उत्पाद एक स्वतंत्र रचनात्मक व्यक्ति होना चाहिए, जो ऐतिहासिक परिस्थितियों और प्रकृति की प्रतिकूलताओं से लड़ सके।”
“शिक्षकों को देश में सबसे अच्छा दिमाग होना चाहिए।”
“परम आत्मा पाप से मुक्त है, बुढ़ापे से मुक्त है, मृत्यु और शोक से मुक्त है, भूख और प्यास से मुक्त है, जो कुछ भी नहीं चाहता है और कुछ भी कल्पना नहीं करता है।”
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