वल्लभभाई पटेल जिन्हें लौह पुरुष के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, भारत के पहले गृहमंत्री और राजनेता थे, जो लौह पुरुष के रूप में विख्यात हुए. स्वतंत्र भारत में रियासतों का एकीकरण करने के लिए उन्हें vallabhbhai patel also known as Bismark of India भारत का बिस्मार्क भी कहा गया.
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वल्लभ भाई पटेल संक्षिप्त जीवनी Brief Biography of Vallabh Bhai Patal
सरदार वल्लभभाई पटेल भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे. सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1872 में गुजरात के खेड़ा जिले के कारमसद गांव में हुआ था. उनके अतुल शौर्य, अपूर्व साहस और अद्भुत कार्य-शक्ति ने ही उन्हें एक योद्धा के आसन से उठाकर सरदार बनाया है. वल्लभभाई पटेल उन व्यक्तियों में से थे, जो कहते कम और करते अधिक थे.
बैरिस्टरी की परीक्षा पास करने के बाद आप महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए और 1916 से आपने देश सेवा के लिए अपना समय देना शुरू किया. 1918 के खेड़ा सत्याग्रह, 1928 के बारदोली सत्याग्रह, 1930 के नमक सत्याग्रह, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के पहले गृह मंत्री बनाए गए. सरदार पटेल ने अपनी पूरी और संगठन शक्ति का अद्भुत परिचय देते हुए भारत की देशी रियासतों का एकीकरण किया. 15 दिसम्बर, 1950 को 75 वर्ष की अवस्था में बम्बई में आपका निधन हो गया. सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति में वडोदरा (गुजरात) के निकट 182 मीटर ऊंची स्टैच्यू ऑफ यूनिटी का निर्माण करवाया गया है.
वल्लभभाई पटेल का आरम्भिक जीवन एवं शिक्षा Early Life & Education of Vallabhbhai Patel
सरदार वल्लभभाई पटेल के पिता झवेर भाई थे जो एक साधारण जमींदार थे. उन्होंने सन् 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजो के विरुद्व अपने पिता के साथ वीरता का परिचय दिया था. वल्लभभाई पटेल की प्रारम्भिक शिक्षा नाडियद, पेटलाड और बोरसाड में हुई. इन दिनों में भी वे अपना खर्च खुद ही उठाया करते थे.
अपने विद्यार्थी जीवन में वे बड़े नटखट और अपने मित्रों के बने-बनाए सरदार थे. कई बार अध्यापकों से भी उनका झगड़ा हो जाया करता था. माता-पिता उच्च शिक्षा दिलाने में असमर्थ थे, इसलिए वल्लभभाई ने मैट्रिक की परीक्षा अपेक्षाकृत देरी से 22 वर्ष की उम्र में पास की.
इसके पश्चात् मुख्तारी की परीक्षा उत्तीर्ण की और पहले गोधरा तथा उसके बाद ओरसद में मुख्तारी का कार्य आरम्भ कर दिया. इस दौरान ही पटेल अपनी पत्नी झवेरबा को भी उनके मायके से ले आए और गोधरा में ही रहना शुरू कर दिया.
सरदार पटेल 1916 में लन्दन गए और वहां जाकर मिडिल टेम्पल इन ऑफ कोर्ट मे दाखिया लिया. पटेल ने वहां प्रथम श्रेणी में बैरिस्टरी की परीक्षा पास की. आपको पचास पौंड छात्रवृत्ति भी मिली. लन्दन में आप बड़ा सादा जीवन व्यतीत करते थे.
विलायत से जब वल्लभभाई भारत लौटे तो एक परीक्षक ने इन्हें चीफ जस्टिस स्कॉट के नाम पर एक पत्र दिया, जिसमें लिखा था कि ऐसे योग्य व्यक्ति को न्याय विभाग में कोई ऊंची पदवी मिलनी चाहिए. भारत आकर वल्लभभाई ने अहमदाबाद में वकालत प्रारम्भ कर दी. उनकी असाधारण योग्यता तथा प्रतिभा के कारण कुछ ही दिनों में उनकी गणना नगर के प्रसिद्ध बैरिस्टरों में होने लगी.
वल्लभभाई पटेल का पारिवारिक जीवन Vallabhbhai Patel in hindi
वल्लभभाई पटेल का विवाह कम आयु में ही झवेरबा के साथ हो गया था. उनकी दो सन्तान थीं एक पुत्र दयाभाई पटेल और पुत्री मणिबेन. गोधरा में रहने के दौरान वे अपने परिवार के साथ-साथ कारमसद में अपने पैतृक घर की जिम्मेदारी भी उठाते थे.
पाई-पाई जोड़कर जब उन्होंने वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड के पास और टिकट का इंतजाम किया तो उस पर वी.जे. पटेल का नाम लिखा था. संयोग से उनके छोटे भाई का नाम विट्टळभाई झवेरभाई पटेल था, जिसका संक्षिप्त नाम भी उनके नाम की तरह ही वी.जे. पटेल होता था. वल्लभभाई ने कहा कि छोटे भाई के होते बड़ा भाई खुद पढ़ने चला जाए, ये ठीक नहीं होगा. बिना विचलित हुए वल्लभभाई पटेल ने अपने भाई विट्ठलभाई पटेल को इंग्लैंड पढ़ने भेज दिया. वल्लभभाई को पढ़ाई के लिए विदेश जाने का मौका इसके बाद 1916 में मिला, जैसा कि ऊपर बताया गया है.
सन् 1909 में वल्लभभाई की पत्नी झवेरबा का कैंसर की बीमारी से देहान्त हो गया. किन्तु आप इस दुःखद घटना से तनिक भी विचलित न हुए. पत्नी की मृत्यु का समाचार वल्लभभाई को अदालत में एक पर्ची के माध्यम से मिला.
पटेल ने उस पर्ची को पढ़ा और चुपचाप जेब में रख लिया. अदालत की कार्यवाही पूरी हो जाने के बाद ही उन्होंने अपने साथियों को पत्नी के निधन के बारे में बताया. पत्नी के गुजर जाने के बाद पटेल ने दोबारा विवाह भी नहीं किया.
वल्लभभाई पटेल का राजनीतिक करिअर Political Career of Vallabhbhai Patel
सरदार पटेल जब अहमदाबाद में वकालत करते थे, तब गांधी जी ने राजनीतिक क्षेत्र में अपना कार्य आरम्भ कर दिया था. गांधी जी देशभर का भ्रमण करते हुए अहमदाबाद पहुंचे और वहां उनके कई व्याख्यान हुए. सरदार पटेल पर गांधी जी के व्याख्यानों का विशेष प्रभाव पड़ा और उनके हृदय में गांधी जी के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होने लगी.
सन् 1916 में वल्लभभाई पटेल ने अपना समय देशसेवा के लिए देने का निश्चय किया. उस वर्ष गोधरा में गांधी जी की प्रधानता में राजनीतिक सम्मेलन हुए, जिसमें बेगार निवारण समिति बनाई गई और सरदार पटेल को उसका अध्यक्ष चुना गया.
गांधी जी इसके बाद चम्पारन चले गए और इस समिति का सब कार्य वल्लभभाई पटेल को करना पड़ा. इस कार्य में पटेल को शानदार सफलता प्राप्त हुई और उन्होंने बेगार प्रथा बन्द करवा दी. गांधी जी ने इस सफलता मे प्रसन्न होकर सरदार की बड़ी प्रशंसा की थी.
1918 में गांधी जी ने खेड़ा के किसानों की दयनीय अवस्था देखकर वहां सत्याग्रह करने का निश्चय किया. उस समय सबसे पहले आपने ही गांधी जी का साथ दिया. उन्होंने गांव-गांव में घूमकर किसानों में जागृति उत्पन्न की और उन्हें अपने अधिकार लेने को तैयार किया. सत्याग्रह बड़े जोरों से छिड़ा और अन्त में सरकार को झुकना पड़ा.
कुछ ही दिनों पश्चात् गांधी जी ने रौलट एक्ट के विरुद्ध सत्याग्रह आरम्भ कर दिया. सरदार पटेल ने भी उसमें साहसपूर्वक भाग लिया. गांधी जी ने जब असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया, उसमें भी सरदार पीछे न रहे. गांधी जी के जेल चले जाने के पश्चात् भी आपने बर्मा का दौरा किया और गुजरात विद्यापीठ के लिए 10 लाख की भारी रकम एकत्रित की.
1923 में नागपुर में कांग्रेसी झंडे की मान-मर्यादा की रक्षा के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता पड़ी. इस आन्दोलन का अध्यक्ष सरदार पटेल को बनाया गया. उन्होंने इस कार्य को ऐसी विलक्षणता से किया कि कही तनिक भी गड़बड़ न हुई. अन्त में सरकार को झुकना पड़ा और सरदार की विजय हुई. इस विजय से उनका यश दूर-दूर तक फैल गया.
इसके बाद. सरदार पटेल ने बोरसाड में सत्याग्रह किया. सरकार ने उस तालुके के लोगों पर इस अपराध पर दो लाख चालीस हजार रूपये का कर लगा दिया कि वे अपराधी जाति के लोगों को आश्रय देते थे.
सरदार पटेल के प्रयत्न से यह कर हटा दिया गया. इस प्रकार आणंद तालुके में सत्याग्रह करके आपने वहां के लागो का कर क्षमा कराया था. वल्लभभाई पटेल 1924 से 1928 तक अहमदाबाद म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन रहे और इस पद पर रहकर उन्होंने जनता की सेवा की.
बारदोली में वल्लभभाई से बने सरदार पटेल Vallabhbhai to Sardar Patel
सरदार पटेल को सबसे अधिक ख्याति बारदोली-सत्याग्रह के कारण मिली . 1928 में सरकार ने बारदोली तालुके के किसानों का लगान उनके विरोध करने पर भी 22 प्रतिशत बढ़ा दिया. इससे किसानों में असन्तोष फैल गया और उन्होंने सत्याग्रह करने का निश्चय कर लिया. सरदार पटेल को आन्दोलन का नेता बनाया गया.
उन्होंने किसानों को बताया कि सत्याग्रह करना कोई खेल नहीं है. इसके लिए उन्हें अनेक कष्ट सहन करने पड़ेंगे. किसानों ने उन्हें वचन दिया कि हम सब कुछ सहन कर लेगें, किन्तु पीठ नहीं मोड़ेंगे. जब किसानो की दृढ़ता का निश्चय हो गया तो 12 फरवरी को बारदोली में सत्याग्रह का डंका बजा दिया गया. सरकार के भीषण दमन और अत्याचार करने पर भी सत्याग्रह बराबर चलता रहा.
अन्त में सरकार को मुंहकी खानी पड़ी और समझौता हो गया. 12 अगस्त को समस्त तालुके में विजयोत्सव मनाया गया. बारदोली सत्याग्रह के दौरान ही वल्लभभाई पटेल को आंदोलनकर्ताओं ने सरदार उपनाम से सम्बोधित करना शुरू किया. आंदोलन की सफलता के बाद आप न केवल गुजरात के बलिक सम्पूर्ण भारत के सरदार बन गए.
1930 में महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह प्रारम्भ किया. सरदार ने इसमें पूर्ण रूप से भाग लिया. इन्हें गिरफ्तार करके तीन माह की कैद की सजा दी गई. कारागार में इन्हें अनेक कष्ट सहन करने पड़े. जेल से मुक्त होते ही वे फिर देश सेवा में लग गए.पटेल को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष चुना गया और बंबई में एक सत्याग्रह का नेतृत्व करते हुए उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया.
सरदार पटेल को 1931 में कराची अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया. सरदार ने अपने अध्यक्ष पद से बड़ा हृदय स्पर्शी भाषण दिया. इसी अधिवेशन में भगतसिंह की फांसी पर शोक प्रस्ताव पास किया गया. इसके पश्चात् सन् 1942 तक वे देश के समस्त राजनीतिक कार्यों में तन्मयता के साथ भाग लेते रहे. कई बार जेल गए और कई बार छोड़े गए.
कौंसिलों में चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस ने जो संसदीय बोर्ड बनाया, उसका अध्यक्ष सरकार पटेल को बनाया गया. कांग्रेस की शानदार विजय हुई और सात प्रान्तों में कांग्रेस राज स्थापित हो गया. सरदार पटेल ने बड़ी योग्यतापूर्वक कांग्रेसी मंत्रिमंडल का संचालन किया.
वल्लभभाई पटेल का भारत छोड़ो आंदोलन में योगदान
8 अगस्त 1942 को बम्बई में भारत छोड़ो प्रस्ताव पास किया गया. सरदार ने इस अवसर पर बड़ा जोशीला भाषण दिया था. सरकार ने अगस्त आन्दोलन का पूरी तरह दमन किया और अन्य नेताओं के साथ सरदार पटेल को भी गिरफ्तार कर लिया.
सन् 1945 में ‘शिमला कॉन्फ्रेंस’ के समय अन्य नेताओं के साथ आप भी छोड़े गए. तीन वर्ष के कारावास के पश्चात् जब उन्हें रिहा किया गया तो उन्होंने गांधी जी के ‘भारत छोड़ो’ नारे को ‘एशिया-छोड़ो’ में परिवर्तित कर दिया.
रियासतों का भारत में एकीकरण vallabhbhai patel achievements
सितम्बर 1946 मे अन्तरिम सरकार बनी और सरकार पटेल ने उप प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित किया. अपने इस कार्य-काल में उन्होंने अनेक कर्त्तव्यों का पालन करने में युवकों से भी बढ-चढ़कर उत्साह दिखाया है.
स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल ने 600 रियासतों का एकीकरण करके भारत के इतिहास में एक ऐसा उदाहरण उपस्थित कर दिया, जो विश्व के इतिहास में अन्यत्र कहीं नहीं मिलता. देशी रियासतों की जो समस्या अंग्रेजों के लिए सिर दर्द बनी रही, आपने इसे सहज ही सुलझा दिया.
आपने यह कार्य इतनी कुशलता तथा बुद्धिमत्तापूर्वक किया कि बड़े-बड़े राजनीतिज्ञ भी दांतो-तले अंगुलियां दबा गए. जिन रियासतों के शासकों ने भारत सरकार के विरूद्ध असहमति प्रकट की, उनके प्रति सरदार ने कठोर कदम उठाकर अपनी वीरता और साहस का परिचय दिया. रीवां, जैसलमेर, अलवर और हैदराबाद आदि इसके स्पष्ट उदाहरण हैं.
सरदार वल्लभभाई पटेल का निधन Death of Sardar Patel
सरदार वल्लभभाई पटेल भारत सरकार के गृह तथा रियासत विभाग को और भी सुनियोजित करना चाहते थे कि कि अचानक 15 दिसम्बर, 1950 को प्रातः काल 9 बजकर 37 मिनट पर 75 वर्ष की आयु vallabhbhai patel age में बम्बई में उनका निधन हो गया.
स्टेच्यू आफ यूनिटी- vallabhbhai patel statue
वल्लभभाई पटेल की स्मृति में भारत सरकार ने गुजरात के केवड़िया में सरदार सरोवर बांध से 3.2 किलोमीटर दूर साधूबेट में उनकी विशाल प्रतिमा vallabhbhai patel ki murti का निर्माण करवाया है। इस प्रतिमा के लिए पूरे भारत से लोहा इकट्ठा किया गया। इस प्रतिमा को स्टैच्यू ऑफ यूनिटी नाम दिया गया। जो सरदार वल्लभभाई पटेल द्वारा किए गए एकीकरण को दर्शाता है।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है, जिसकी vallabhbhai patel statue height ऊंचाई 182 मीटर (597 फीट) है जो कि स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी, यूएसए से लगभग दोगुनी है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी में 135 मीटर की एक गैलरी है जहां एक साथ 200 दर्शक इसका आनंद ले सकते हैं। इस विशाल मूर्ति के निर्माण में 46 महीनों का समय लगा। इसके निर्माण के दौरान इस बात का ध्यान रखा गया कि यह मूर्ति तेज हवाओं और भूकंप को सहन कर सके। अपनी इंजीनियरिंग के कारण यह स्टेच्यू 50 मीटर/सेकंड या 180 किलोमीटर/घंटे की गति तक हवा की गति और रिक्टर स्केल पर श्रेणी 4 तक के भूकंप को आसानी से सह सकती है।
स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण में 70,000 मीट्रिक टन सीमेंट, 6,000 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18,500 मीट्रिक टन रीइन्फोर्समेंट बार का इस्तेमाल किया गया था। इस मूर्ति पर कांस्य आवरण की मोटाई 8 मिमी है।
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