all about Indian Monsoon in hindi- मानसून के बारे में जानकारी

मानसून के बारे में जानकारी और आने का समय

भारत में मानसून को इस देश की जीवनरेखा कहा जाता है. भारतीय मानसून पर ही भारत की कृषि का सारा दारोमदार टिका होता है. अपनी अनियमितता के कारण भारतीय मानसून को जुआ भी कहा गया है. भारतीय मानसून क्या है और मौसम चक्र में किस तरह काम करता है, इसकी समझ हमारे मौसम ​वैज्ञानिकों को हो चुकी है. इसी समझ के आधार पर हर साल मानसून के मजबूत और कमजोर होने का पूर्वानुमान लगाया जाता है. मानसून 2019 के औसत होने का अनुमान है, इस बार मानसून 7 जून को भारत में प्रवेश करेगा.

क्या होता है मानसून?

मौसम विज्ञान की बात करें तो मानसून एक प्रकार की सामयिक पवन है जो एक निश्चित समय अंतराल में विशेष क्षेत्र में बहती है. मानसून शब्द की उत्पति अरबी शब्द मौसम से हुई है. मानसून ऐसी पवन का नाम है जिसकी दिशा और प्रवाह में मौसम के साथ परिवर्तन होता है. इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग अरब सागर में बहने वाली हवा के लिए किया गया था.

वर्तमान में ऐसी सभी हवायें जो मौसम के हिसाब से अपनी दिशा और प्रवाह को ​परिवर्तित करने में सक्षम है, मानसून कहलाती हैं. आमतौर पर मानसूनी हवायें उष्ण कटिबंधिय इलाकों में ही चलती हैं. भारत के अलावा पश्चिम अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका और आस्ट्रेलिया में भी मानसून हवायें चलती हैं.

भारतीय मानसून कैसे काम करता है?

भारत में आमतौर पर जून से सितम्बर को वर्षा का मौसम माना गया है. इस अवधि में पूरे देश में दक्षिण—​पश्चिम मानसून से बरसात होती है. मानसून से पहले उत्तर भारत में भीषण गर्मी के कारण हवायें गर्म और सुव्यवस्थित हो जाती है और कम वायुदाब का क्षेत्र बनता है.

इस निम्न वायुदाब के कारण दक्षिण—पूर्वी हवायें जो मकर रेखा की ओर से चलते हुए भूमध्य रेखा का पार करती है, भारत की तरफ प्रवाहित होने लगती हैं. यह हवायें समय के साथ पूरे भारत, अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में फैल जाती हैं.

इन हवाओं की रफ्तार 30 किलोमीटर प्रति घंटा तक होती है. समुद्र के ऊपर से गुजरते वक्त यह ढेर सारी आर्द्रता सोख लेती हैं. जब यह हवायें भारत में प्रवेश करती हैं तो दो भागों में बंट जाती है. इन्हें क्षेत्र के अनुसार बंगाल की खाड़ी का मानूसन और अरब सागर का मानसून कहा जाता है.

बंगाल की खाड़ी का मानसून

बंगाल की खाड़ी का मानसून भारत में भूमध्य रेखा से पूर्व की ओर से प्रवेश करता है. यह हवायें भारत में बरसात करने से पहले म्यांमार के अराकानयोमा और पीगूयोमा पर्वतमालाओं पर बरसात करते हैं. यहां इतनी अधिक बरसात होती है कि म्यांमार में बाढ़ के हालात बन जाते हैं. इसके बाद यह मानसून उत्तर दिशा में मुड़ जाती है और भारत में गंगा के डेल्टा क्षेत्र में बारिश करना शुरू कर देती हैं.

पहले यह खासी पहाड़ियों पर वर्षा करती हैं और इसके बाद भारत के सर्वाधिक वर्षा वाले स्थानों चेरापूंजी और मासिनराम में भारी वर्षा करती हैं. खासी पहाड़ियों पर बरसात करने के बाद बंगाल की खाड़ी का Monsoon दो भागों में विभक्त हो जाता है.

पहली शाखा हिमालय पर्वतमाला की तराई में बारिश करती है और दूसरी शाखा से असम में बरसात होती है. हिमालय की शाखा इसके बाद पश्चिम की ओर बढ़ती जाती है और दूरी के साथ ही बरसात की मात्रा भी कम होती जाती है.

अरब सागर का मानसून

अरब सागर का मानसून भारत में भूमध्य रेखा के दक्षिण से भारत में प्रवेश करती है. अरब सागर का मानसून भारत में सबसे पहले पश्चिमी घाट से टकराता है. इसकी वजह से पश्चिमी तटीय मैदानों में भारी बारिश होती है.

केरल का मानसूनऔर तमिलनाडू का Monsoon से बाढ़ के हालात पैदा हो जाते हैं. अरब सागर की ही एक शाखा महाराष्ट्र में नर्मदा और ताप्ती नदियों की घाटीमें प्रवेश करती है. इस शाखा से छोटा नागपुर के पठार में बारिश होती है. आगे चलकर यह शाखा बंगाल की खाड़ी के मानसून से मिल जाती है. 

अरब सागर के मानसून की दूसरी शाखा सिन्ध नदी के डेल्टा क्षेत्र से आगे बढ़ती हुई राजस्थान में बारिश करती है. इसके बाद इसका सामना हिमालय पर्वत से होता है. राजस्थान में अरब सागर के मानसून से कम ही बरसात हो पाती है क्योंकि उसके मार्ग में कोई अवरोधक नहीं आता है.

भारत में वर्षा वाले स्थान

भारत में सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान मेघालय का मासिनराम है और इसके बाद सर्वाधिक वर्षा चेरापूंजी में दर्ज की जाती है. देश में वर्षा के वितरण के आधार पर क्षेत्रों को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है.

1. अधिक वर्षा वाले क्षेत्र

पश्चिमी घाट पर्वत का पश्चिमी तटीय भाग, हिमालय पर्वतमाला की दक्षिणवर्ती तलहटी के राज्य जिसमें असम, अरूणाचल प्रदेश, मेघालय, सिक्किम, पश्चिम बंगाल का उत्तरी भाग, पश्चिमी तट का कोंकण, मलाबार तट और मणिपुर शामिल हैं. यहां वार्षिक वर्षा की मात्रा 200 सेमी से अधिक तक दर्ज की जाती है.

2. मध्यम वर्षा वाले क्षेत्र

इसमें पश्चिमी घाट का पूर्वोतर ढाल, पश्चिम बंगाल का दक्षिण—पश्चिम क्षेत्र, उड़ीसा, बिहार, दक्षिण—पूर्वी उत्तर प्रदेश, जम्मू—कश्मीर का कुछ क्षेत्र और पंजाब शामिल है. इन क्षेत्रों में 100 से 200 सेमी तक वर्षा रिकॉर्ड की गई है.

3.कम वर्षा वाले क्षेत्र

इसमें मध्य प्रदेश, दक्षिण भारत का पठारी भाग, गुजरात, उत्तर—दक्षिण आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, पूर्वी राजस्थान, दक्षिणी पंजाब, हरियाणा और दक्षिणी उत्तर प्रदेश आते हैं. यहां 50 से 100 सेमी तक औसत वर्षा दर्ज की जाती रही है. इनमें अक्सर अकाल पड़ता है.

4. सूखा ग्रस्त क्षेत्र

इसमें कच्छ, पश्चिमी राजस्थान और लद्दाख जैसे क्षेत्र आते हैं जहां 50 सेमी से भी कम बरसात होती है और वर्ष भर सूखा पड़ा रहता है. 

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