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thug of hindostan -हिंदुस्तान के ठगों का इतिहास, कहानियां और रोचक जानकारी
thug of hindostan- ठग्स ऑफ हिंदोस्तान फिल्म में आमिर खान और अमिताभ बच्चन की बेहतरीन अदाकारी के साथ ही भारत के सबसे दुर्दांत हत्यारों के बारे में लोगों को जानने का मौका मिला है. भारत में रहने वाली thug ठग जाती के बारे में आज भी अनेक किस्से और कहानियां सुनाई जाती है.
thugs ठगों ने लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा और उनका इतिहास इतना रक्तरंजित है कि अमेरिका के माफिया उनके सामने नौसिखीया नजर आते हैं. इस आलेख में हम भारत के ठगों के बारे में आपको रोचक और तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध करवाने का प्रयास कर रहे हैं.
History of Thugs-भारत के ठगों का इतिहास ठग आफ हिंदोस्तान
भारत में ठगों का इतिहास बहुत पुराना है और सही तरीके से यह नहीं बताया जा सकता कि इसने एक जातिगत व्यवसाय का रूप धारण कब किया लेकिन मशहूर ठग भारत में 7वीं शताब्दी के बाद से ही दिखाई देते हैं. यह भी माना जाता है कि ठगों का ज्यादा प्रभाव भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के बाद से ही बढ़ा. ज्यादातर ठगों का कोई न कोई संपर्क अफगानिस्तान से रहा है.
thug word origin
वैसे ठग शब्द संस्कृत शब्द स्थग से बना है, जिसका मतलब होता है हत्यारा. thuggee ठग पेशा कालांतर में जाति में बदल गया और बाप से बेटे को यह विरासत के तौर पर मिलने लगा. अफगानिस्तान, पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर का इलाका ठगों के प्रभाव में लगभग 300 सालों तक रहा, जब तक एक अंग्रेज अधिकारी कर्नल विलियम हेनरी स्लीमन ने इनका उन्मूलन न कर दिया.
दुर्दांत हत्यारे थे ठग thug meaning
विलियम एच. स्लीमन के पोते जेम्स स्लीमन ने ठगों के उन्मूलन के अपने अभियान पर एक पुस्तक ठग और अ मिलियन मर्डर्स लिखी, जिसमें उन्होंने कई मशहूर ठगों के इकबालिया बयान का जिक्र किया है. वे किताब में लिखते हैं कि उनका सामना बहराम खान नाम के एक ठग से हुआ जिसने अपने 40 साल की ठगी में 936 लोगों की हत्या की थी. ऐसे ही दूसरे ठग रमजान खान और फुत्ते खां थे जिनके नाम 604 और 508 लोगों की हत्या का इलजाम था.
इन ठगों को हत्या की संख्या के आधार पर ही अपनी जाति में इज्जत और ओहदा मिलता था. इसलिए हर ठग ज्यादा से ज्यादा लोगों की हत्या करना चाहता था, ताकि ठग समाज में वह ज्यादा बड़ा मुकाम हासिल कर सके.
कौन होते थे ठगों के शिकार thug life
ठग ज्यादातर सफर कर रहे यात्रियों को अपना शिकार बनाते थे. ये अपना शिकार रास्ते में पड़ने वाले सरायों और धर्मशालाओं में से चुनते थे. ठग जाति में ज्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय से थे लेकिन शिकार चुनने के मामले में वे कोई धार्मिक बाध्यता नहीं रखते थे. उनका शिकार किसी भी जाति धर्म का होता था. उन्होंने जितने मुस्लिम मुसाफिरो की हत्या की उतने ही हिन्दू यात्रियों की भी. ठग धावा बोलकर या लड़कर शिकार नहीं करते थे. वे शिकार को पहले अपने भरोसे में लेते थे, उनसे मित्रता करते थे और जब व्यक्ति को उन पर भरोसा हो जाता था तो वे सुनसान स्थान पर ले जाकर उसकी हत्या कर उसका धन लूट लेते थे.
ठगों का मूल उद्देश्य हत्या ही होता था क्योंकि वे मौका मिलने पर गरीब भिखारियों तक को मार डालते थे. इन ठगों में महिला शिकार को लेकर एक सिद्धांत था. वे अपनी महिला शिकारों के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं करते थे. महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करना ठग जाति में अच्छा नहीं माना जाता था.
कैसे फंसाते थे ठग अपना शिकार thugs of india
ये ठग हमेशा समूह में अपना शिकार किया करते थे. वे एक भेड़ियों के झुंड की तरह थे, जो शिकार के अनुसार अपनी रणनीति तय करते थे. इस झुंड का एक मुखिया होता था जो शिकार की हत्या किया करता था. उसके पास ही रूमाल हुआ करता था, जिससे वह शिकार का गला घोंटता था. बाकी सदस्य शिकार को काबू में करते थे और ऐसी जगहों पर वार करते थे जिससे शिकार बेबस और कमजोर हो जाता था.
ये बड़े अच्छे अभिनेता होते थे. ये इतिहास के भी अच्छे जानकार होते थे. स्लीमन अपनी पुस्तक में इनके शिकार की एक घटना का वर्णन करते हैं. वे बताते हैं कि अमीर व्यापारी जो कि अपने साथ एक सुरक्षा दस्ता लेकर चल रहा था, उसे लूटने के लिए ठगों का समूह गरीब होने का अभिनय करने लगा और व्यापारी से दयालुता की उम्मीद करते हुए उन्हें अपने दल में शामिल करने का आग्रह करते हैं.
कुछ दिन की यात्रा में वे दल का इतना सहयोग करते हैं कि दल उनपर विश्वास करने लगता है. वे सिपाहियों से मित्रता कर लेते हैं. वे खानसामे की पूरी सहायता करते हैं ताकि रसोई का काम उन्हें मिल जाए. ऐसा हो जाने पर वे रात के समय भोजन में बेहोशी की दवा मिला देते हैं और जब दल भोजन करके बेहोश हो जाता है, तो ठग सारा माल लूटने से पहले पूरे दल की गला दबाकर हत्या कर देते हैं.
ठग करते थे कोड भाषा का इस्तेमाल
ठग अपने शिकार को चिन्हित करने से लेकर उसकी हत्या करने तक की सारी योजना की बातचीत कूट भाषा में किया करते थे. जैसे, शिकार को मारने का सिग्नल था- तबक ले आओ. तबक का मतलब तम्बाकू होता है. वे अपने शिकारों की हत्या करने के बाद निश्चित स्थानों पर दफनाते थे जिन्हें वे बेल्स कहते थे. यह उनके शिकारों की कब्रगाह हुआ करती थी. वे अपने शिकारों को दफनाने से पहले कई टुकड़ों में काट दिया करते थे ताकि शरीर फूले नहीं और दफनाई हुई लाशों की वजह से जमीन ऊपर की ओर न उठ जाए.
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दफनाने के लिए कब्र खोदने से पहले वे जमीन पर अपना टेंट लगा लिया करते थे. टेंट के अंदर ही खुदाई करते थे. शिकार को दफनाने के बाद कई दिनों तक वे उसी टेंट में रहते थे और बिना किसी परेशानी के उस कब्र पर तब तक खाया और सोया करते थे जब तक जमीन सामान्य न दिखने लग जाए.
हत्या के लिए करते थे विशेष रूमाल का इस्तेमाल
ये ठग हत्या के लिए एक विशेष रूमाल का इस्तेमाल करते थे, जो करीब 30 इंच लम्बा होता था, जिसके दोनों सिरों पर एक सुव्यवस्थित गांठ लगी रहती थी. इन गांठों की मदद से वह अपनी पकड़ मजबूत बनाता था. गले के चारों ओर वे इसे तीन बार लपेटते थे और शिकार का गला घोंटते थे. इस प्रक्रिया को वे लकड़ी के गट्ठर को बांधना कहते थे.
ठगों की कुदाली बताती थी अगले शिकार की दिशा
एक शिकार करने के बाद अगला शिकार खोजने के लिए ठगों में एक रिवाज प्रचलित था, जिसे कुदाली रिवाज कहते थे. लगभग ढाई किलोग्राम की कुदाली जो सात इंच लम्बी होती थी, इसे ठग बहुत ही श्रद्धा के साथ बनाते थे. इसे कुसी भी कहा जाता था. यह गैंग के सरदार के पास रहता था, जिसे सरदार अपने कमरबंद में छुपा कर रखता था.
जब वे ठगी की वारदात कर लिया करते थे, तब अंधेरे में इस कुदाली को फेंका जाता था. अगले दिन सुबह जाकर ठग यह देखा करते थे कि कुदाली का मुंह कौन सी दिशा की तरफ है. अगला शिकार खोजने के लिए वे उसी दिशा में जाया करते थे. वे इसी कुसी या कुदाली का प्रयोग अपने शिकारियों की कब्र खोदने के लिए भी करते थे.
हत्या के बाद मनाते थे उत्सव
ठग इतने निर्दयी थे कि वे हत्या करने के बाद खुशी मनाते थे और मुंह मीठा करने के लिए गुड़ खाया करते थे. इस प्रथा को गुड़ देना कहते थे. नए ठग जो इस गुड़ को चख लेते थे, उन्हें फिर जिन्दगी भर ठग ही बने रहना पड़ता था. एक तरह से नए ठगों को यह गुड़ खिलाकर ठगी करने के लिए प्रतिबद्ध कर लिया जाता था. इसे बलि का गुड़ भी कहा जाता था.
कैसे बनाए जाते थे ठग
ठगी का पेशा बाप से बेटे को विरासत में मिला करता था. नए भर्ती हुए ठगों को बिकुरिया कहा जाता था. जब उन्हें थोड़ा समय हो जाता, तो उन्हें शिकार को दफनाने का काम दे दिया जाता, इन्हें लूघा कहा जाता था.
शिकार दफनाने का काम जब वे आधे घंटे से भी कम समय में करना सीख जाते थे, तो उन्हें शिकार को दबोचने का प्रशिक्षण दिया जाता था. शिकार को दबोचने वाले ठग शम्सिया कहलाते थे. सबसे बेहतर शम्सिया को आगे चलकर ठगों का सरदार बनने का मौका मिलता था, जिसके पास शिकार की हत्या करने का अधिकार होता था. इन्हें भुरतोती कहा जाता था. ये ठगों को मिलने वाली सबसे बड़ी उपाधि थी.
ठगों का इतिहास History of thugs in hindi
ठगों का प्रारम्भिक इतिहास तो ठीक-ठीक किसी को नहीं मालूम है. लेकिन ग्रीस के इतिहास में पहले पहल इसका वर्णन मिलता है. हेरोडोटस की इतिहास की सातवीं किताब में जेरक्सस की सेना में 8 हजार घोड़े एक ठग द्वारा दिया जाना बताया गया है. इस आधार पर यह माना जा सकता है कि ठगों का मूल स्थान फारस रहा होगा.
भारत में ठगों का लिखित वर्णन फिरोजशाह के इतिहास ग्रंथ में मिलता है, जिसे जियाउद्दीन बर्नी ने 1356 में लिखा था. वे लिखते हैं कि 1290 ईस्वी में दिल्ली में एक हजार ठग पकड़े गए लेकिन उनके अपराध को साबित नहीं किया जा सका और उन्हें छोड़ना पड़ा. ये ठग दिल्ली छोड़कर बंगाल की तरफ चले गए और अगले 500 साल तक बंगाल ठगों का गढ़ बना रहा.
ठगों का अगला वर्णन भारत के इतिहास में अकबर के शासनकाल में मिलता है, जब अकबर की सेना ने इटावा से 500 ठगों को गिरफ्तार किया. 1666 में भारत की यात्रा करने वाला फ्रांसीसी यात्री थेवनॉट लिखता है कि यात्रा के दौरान उन्हें चेतावनी दी गई कि शेर, चीतों और भालुओं, डाकुओं से ज्यादा उन्हें ठगों से सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि बाकी सबसे तो बचने की संभावना भी है, ठगों के हाथ पड़ जाने पर आपको कोई नहीं बचा सकता.
भारत से ठगों का सफाया
अंग्रेजों का शासन स्थापित होने के बाद भी बंगाल में ठगों का आतंक रहा. 1757 में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बंगाल के नवाब को हराकर बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर कब्जा कर लिया. अंग्रेजों को भी व्यापार के सिलसिले में यात्रा करनी पड़ती थी. ठगों ने अंग्रेजों को भी अपना शिकार बनाया. 1823 में उन्होंने अंग्रेजों के एक छोटे दल को मार डाला. यह खुलासा होने के बाद कि यह काम ठगों का है, अंग्रेज सरकार ने उनका उन्मूलन करने का फैसला लिया. इसके लिए sir william henry sleeman विलियम एच. स्लीमन को लगाया गया.
स्लीमन ने इस काम को पूरा करने के लिए पहले ठगों पर एक रिसर्च किया. उन्होंने ठगों को जिंदा पकड़ा और अपने सद्व्यवहार से उनका विश्वास हासिल किया ताकि वे ठगों की गुप्त विद्याओं और उनके काम करने के तरीके को जान सकें. काम की शुरूआत में ठगों को पकड़ने के बाद भी उन्हें सजा दिलाना बहुत मुश्किल काम रहा क्योंकि ठग अपने पीछे कोई सबूत या चश्मदीद गवाह नहीं छोड़ते थे.
विलियम बैंटिक उस वक्त भारत के गवर्नर जनरल थे. स्लीमन ने अपनी यह समस्या गवर्नर जनरल को बताई, इससे निपटने के लिए सरकार 1836 में नया एक्ट लेकर आई जिसमें यह व्यवस्था की गई कि व्यक्ति का संबंध किसी ठगी गैंग से होने पर भी उसे फांसी या उम्रकैद दी जा सकती थी. इस तरीके ने काम किया और 1840 में ठगी का पूरी तरह सफाया हो गया. इसी दौरान, स्लीमन का सामना बहराम खान से हुआ, जिस पर आमिर खान और अमिताभ बच्चन अभिनीत ठग्स ऑफ हिंदोस्तान फिल्म बनाई जा रही है.
क्या है ठग्स ऑफ हिंदोस्तान की कहानी Story of thug of Hindostan
ठग्स ऑफ हिंदोस्तान की कहानी कैप्टन फिलिप मिडोज टेलर द्वारा 1839 में लिखी किताब confessions of a thug in pdf कन्फेशन्स ऑफ ए ठग पर आधारित है. यह किताब एक काल्पनिक ठग किरदार आमिर अली पर केन्द्रित है जो एक खानदानी ठग था और ठगों का सरदार भी था.
इस किताब में फिलिप मीडोज टेलर खुद एक किरदार हैं जो पूरी किताब के दौरान आमिर अली का इंटरव्यू लेते हैं. इस उपन्यास में दूसरा प्रमुख किरदार इस्माइल अली का है जो आमिर अली का मुंह बोला बाप है. तीसरा प्रमुख किरदार पीर खां का है, जो आमिर अली का दायां हाथ माना जाता था लेकिन आखिर में वह ठगी छोड़कर एक फकीर बन जाता है. इसके अलावा इस किताब में बद्रीनाथ, गणेश और चीतू प्रमुख किरदार हैं. चीतू एक पिंडारी नेता है. किताब में आमिर अली का किरदार मशहूर ठग बहराम खां से प्रेरित है. इसी किताब की वजह से इंग्लैंड में ठग शब्द इतना मशहूर हो गया कि इसे अंग्रेजी शब्दकोष में जगह दे दी गई.
कौन है बहराम खां
बहराम खां भारत का सबसे कुख्यात ठग था, जिसने 931 लोगों को मौत के घाट उतारा था. इसका जन्म 1765 में हुआ और 75 साल की आयु में 1840 में इसकी मृत्यु हुई. स्लीमन ने इसे फांसी की सजा दिलवाई. बहराम खां को ठगों का राजा या बहराम जमादार भी कहा जाता था. अवध और उत्तर मध्य भारत इसका प्रमुख कार्यक्षेत्र था.
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