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Biography of Mahashay Dharampal Gulati (MDH Owner)-महाशय धर्मपाल गुलाटी

Biography of Mahashay Dharampal Gulati (MDH Owner)-महाशय धर्मपाल गुलाटी

महाशय धर्मपाल गुलाटी की जीवनी- Dharampal Gulati biography in hindi

महाशय धर्मपाल गुलाटी एक उद्यमी तथा समाजसेवी थे. दुनियाभर में अपने मसालों के जायकों के लिए पहचाने जाते थे. विज्ञापन में मसाले की दुनिया के बादशाह ‘मसाला किंग’ के नाम से जाने जाते थे. इन्हें विश्वप्रसिद्ध MDH (महाशिया दी हट्टी) मसाला कम्पनी समूह की स्थापना की थी.आज भारत के अलावा दुबई और लंदन में भी MDH मसलों का कारोबार है. महाशय धर्मपाल का कहना था कि

जो खिलाने में मजा है वो खाने में नहीं – महाशय धर्मपाल गुलाटी

महाशय धर्मपाल गुलाटी की संक्षिप्त जीवनी- Short Biography of Mahashay Dharampal Gulati

मसालों की दुनिया के बादशाह “मसाला किंग” कहे जाने वाले बुजु्र्ग महाशय धर्मपाल गुलाटी दुनियाभर में अपने मसालों के जायकों के लिए पहचाने जाते थे. 95 साल के मसाला किंग की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव भरी रही.

महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नीलाल की सियालकोट (पाकिस्तान) में ‘महाशय दी हट्टी’ नाम से दुकान थी. भारत पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त परिवार सियालकोट से दिल्ली के करोलबाग में आकर बसा था.

जब धर्मपाल करोलबाग पहुंच थे तो उनकी जेब में 1500 रुपये ही थे. पिता से मिले इन 1500 रुपये में से 650 रुपये का धर्मपाल गुलाटी ने घोड़ा और तांगा खरीद लिया और इस तरह धर्मपाल गुलाटी, तांगवाला बन गए. वे अपना तांगा दिल्ली के कुतुब रोड पर दौड़ाया करते थे.

पर इस काम में महाशय का मन ज्यादा दिन तक नहीं लगा और उन्होंने अपने पुश्तैनी व्यापार मिर्च मसालों के धंधे को जिसका नाम full form of mdh spices महाशियां दी हट्टी था को फिर से शुरू करने का निश्चय किया जो आज मसालों mdh products की दुनिया में MDH के नाम से एक बड़ा ब्रांड बन चुका है.

  • नाम – महाशय धर्मपाल गुलाटी
  • प्रचलित नाम – मसाला किंग, MDH वाले बाबा
  • जन्म – 27 मार्च 1923
  • जन्म स्थान – नवसारी, सिओलकोट (पाकिस्तान)
  • पिता – महाशय चुन्नीलाल
  • माता – चानना देवी
  • पत्नी – लीलावती
  • मृत्यु – 3 दिसम्बर, 2020

महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म Birth of Dharampal Gulati

महाशय धर्मपाल गुलाटी का जन्म अविभाजित भारत के सियालकोट (पाकिस्तान) के मोहल्ला मियानपुरा में 27 मार्च, 1923 को हुआ था. महाशय धर्मपाल गुलाटी के पिता महाशय चुन्नीलाल मिर्च मसालों की एक दुकान चलाते थे, जिसका नाम महाशियां दी हट्टी था.

सियालकोट के बाजार पंसारिया में चुन्नीलाल की मसालों की दुकान जम चुकी थी. पूरे सियालकोट में उनकी देगी मिर्च की धूम थी. महाशय चुन्नीलाल के पांच बेटियों औऱ तीन बेटों का भरा पूरा परिवार था.

महाशय धर्मपाल गुलाटी का आरम्भिक जीवन- Early Life of Dharampal Gulati

वर्ष 1933 में, उन्होंने 5 वीं कक्षा पूरी करने से पहले स्कूल छोड़ा था.सात साल के धर्मपाल का मन पढ़ाई में कम पतंगबाजी और कबूतरबाजी में ज्यादा रमता था. पढाई से दूर भागने वाले महाशय धर्मपाल को पहलवानी का भी शौक था.

1937 में, उन्होंने अपने पिता की मदद से मिरर दिखने का एक छोटा सा व्यवसाय स्थापित किया और इसके बाद साबुन व्यापार और अनेको नौकरियां और व्यापार किये पर उनका मन इनमें से किसी भी व्यवसाय में नहीं लगा.

इसके बाद वे अपने पिता के व्यवसाय में ही उनका हाथ बंटाने लगे. देश के विभाजन के बाद, वह भारत आए और दिल्ली पहुंच कर मसाला व्यवसाय में सफलता ​हासिल की.

टीवी विज्ञापन से मशहूर हुए महाशय धर्मपाल गुलाटी

96 साल की उम्र में आज भी जब महाशय धर्मपाल गुलाटी टीवी विज्ञापन में आते थे तो लोग इस उम्र में भी उन्हें देख कर स्वस्थ रहने का राज खोजते थे.

क्या था MDH वाले गुलाटी जी के सेहत का राज

महाशय धर्मपाल के फिटनेस का राज अनुशासित और संयमित जिंदगी के कड़े नियम थे. वह सुबह सूर्योदय के समय बिस्तर छोड़ देते थे और लगभग पांच बजकर सैर के लिए घर से निकल पड़ते थे.

सूरज की पहली किरण से पहले ही महाशय धर्मपाल पार्क में सैर के लिए पहुंचते थे. उनकी सैर का ये सिलसिला सालों से इसी तरह चला. सैर के दौरान ही महाशय धर्मपाल योगा और वर्जिश भी करते थे. धर्मपाल शुद्ध संतुलित भोजन और संयमित जीवन को ही अपनी फिटनेस का राज बताते थे.

युं बने मसाला किंग

विभाजन के समय सियालकोट का ये संपन्न परिवार जब भारत आया तो इनके पास कुछ नहीं था. किसी तरह दिल्ली पहुंचने के बाद साल 1948 में धर्मपाल ने अपना तांगा ख़रीदा और पर 2 महीने बाद ही तागे का धंधा छोड़ कर करोलबाग की अजमल खां रोड पर एक छोटी सी दुकान बना ली.

सियालकोट की एक बड़ी और दुकान से उठ कर अब धर्मपाल का पूरा परिवार एक छोटे से खोखे में आ गया था. मेहनती और व्यापार में निपुण धर्मपाल ने अखबारों में विज्ञापन देने शुरु किये “सियालकोट की देगी मिर्च वाले अब दिल्ली में है” जैसे-जैसे लोगों को पता चला धर्मपाल का कारोबार तेजी से फैलने लगा और 60 का दशक आते-आते महाशियां दी हट्टी करोलबाग में मसालों की एक मशहूर दुकान बन चुकी थी. मसालों की शुद्धता गुलाटी परिवार के धंधे की बुनियाद थी.

यही वजह थी कि धर्मपाल ने मसाले खुद ही पीसने का फैसला कर लिया. लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था. महाशय की ये मुश्किल ही उनकी कामयाबी की वजह बन गई. गुलाटी परिवार ने 1959 में दिल्ली के कीर्ति नगर में मसाले तैयार करने की अपनी पहली फैक्ट्री लगाई थी. जिसका सालाना करोडों रुपयों का टर्न ओवर है.

महाशय धर्मपाल का वैवाहिक जीवन -Dharampal Gulati wife

देश में चारों तरफ जब आजादी का आंदोलन पूरे उफान पर था. उस दौर में 18 बरस की उम्र में धर्मपाल जी का विवाह लीलावती के साथ हुआ. शादी के बाद नई जिम्मेदारी को धर्मपाल बखूबी निभाया. 1992 में महाशय धर्मपाल की पत्नी लीलावती का निधन हो गया.

महाशय धर्मपाल गुलाटी का सामाजिक कार्य

साल 1975 में, सुभाष नगर, नई दिल्ली में एक छोटे 10 बिस्तरों का अस्पताल शुरू किया. समाज सेवा के काम को आगे बढ़ाते हुए महाशय ने, महाशय धर्मपाल के ट्रस्ट के जरिये दिल्ली में स्कूल, अनाथ आश्रमों अस्पताल गौशाला और अनेको सामाजिक कामों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।

MDH कंपनी

मसालों का एक लंबा और प्राचीन इतिहास है, खासकर भारत में, जहां वे जीवन और विरासत का हिस्सा हैं. MDH करोड़ों रुपये के मसालों का निर्माण आधुनिक मशीनों द्वारा करता है. 1000 से अधिक स्टॉकिस्ट और 4 लाख से अधिक खुदरा डीलरों के नेटवर्क के माध्यम से पूरे भारत और विदेशों में MDH मसाले बेचे जाते हैं.

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