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चेटीचंड क्यों मनाया जाता है?

चेटीचंड-chetichand

चेटीचंड सिंधी समाज का प्रमुख त्योहार है। पाकिस्तान के सिंध क्षेत्र में रहने वाले हिंदुओं और वहां से प्रवास कर भारत आए सिंधी हिंदुओं में यह त्योहार बहुत महत्व रखता है। यह सिंध क्षेत्र के हिंदुओं के लिए नववर्ष की शुरूआत होती है। चैत्र शुक्ल की द्वितीया तिथि के चंद्रमा से शुरू होने का कारण इसका नाम चैत्रचंद्र था जो कालान्तर में बदलकर चेटीचंड हो गया।

कौन है भगवान झूलेलाल?

चेटीचंड को भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस के तौर पर मनाया जाता है। सिंधी हिंदू समाज में भगवान झूलेलाल को अवतारी पुरूष माना जाता है। भगवान झूलेलाल को उनकी लीलाओं के आधार पर ढेरों नामों से पुकारा जाता है जैसे घोड़ेवारो, जिन्दपीर, उदेरोलाल, लालसाँई, ज्योतिनवारो, अमरलाल और पल्लेवारो। सिंधी हिंदु समाज भगवान जल और ज्योति का अवतार मानते हैं।

चेटीचंड की कहानी

चेटीचंड को भगवान झूलेलाल के अवतरण दिवस के तौर पर भी जाना जाता है। चेटीचंड के पीछे एक प्राचीन कथा है जो इस प्रकार है। माना जाता है कि सन 1007 में पाकिस्तान के सिंध प्रांत में एक मुगल बादशाह शासन करता था जिसका नाम मिरखशाह था। मिरखशाह ने सिंध के ठट्टा शहर में राज करता था और बलपूर्वक इस्लाम ग्रहण करवाता था।

उसके जुल्मों से तंग आकर उसके शहर के लोग सिंधु नदी के किनारे एकत्रित हुए और उन्होंने भगवान को याद किया। इस पूजा प्रार्थना और तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने मछली पर सवार होकर दर्शन दिए। भगवान ने आकाशवाणी की। भगवान ने कहा कि हिंदू धर्म के रक्षार्थ मैं आज से ठीक सात दिन बाद नसरपुर के ठाकुर श्री रतन राय और देवकी जी के ​यहां मैं जन्म लूंगा। इस ईश्वरीय घोषणा के बाद चैत्र शुक्ल द्वितीया संवत् 1007 को रतन राय जी के घर एक सुंदर और विलक्षण बालक ने जन्म लिया। इस बालक का नाम उदयचंद रखा गया, जिन्हें सिंधी में उदेरोलाल भी कहा जाता है।

यह बात जुल्मी मिरखशाह को भी पता चली कि रतन राय जी के घर एक विलक्षण बालक ने जन्म लिया है। इस खबर से वह डर गया और उसने इस नन्हें बालक को मारने के लिए कई यत्न किए लेकिन उसकी कोई भी योजना सफल नहीं हो पाई।

बादशाह ने अपने सेनापति को बालक उदेरोलाल को समाप्त करने के लिए भेजा लेकिन पूरी फौज की ताकत खत्म हो गई और उन्हें झूलेलाल ने दिव्य सिंहासन पर बैठकर दर्शन​ दिए। सेना​पतियों ने इस घटना का विवरण मिरखशाह को दिया।

भगवान झूलेलान ने मिरखशाह को संदेश भेजा कि शांति ही परमसत्य है लेकिन उसने भगवान झूलेलाल से लड़ने के लिए फौज तैयार कर ली। भगवान झूलेलाल ने एक वीर सेना का संगठन किया और मिरखशाह को हरा दिया। हारे हुए मिरखशाह ने भगवान झूलेलाल से शरण मांगी।

भगवान झूलेलाल ने उसे माफ कर दिया और संवत् 1020 भाद्रपद की शुक्ल चतुर्दशी के दिन वे अन्तर्धान हो गए।

कैसे मनाते है चेटीचंड?

सिंधी समाज के लोग चेटीचंड के दिन एक लकड़ी का मंदिर बनाकर उसमें एक लोटे से जल और ज्योति प्रज्वलित करते हैं। इस मंदिर को श्रद्धालु चेटीचंड के दिन अपने सिर पर उठाते हैं, जिसे बहिराणा साहब भी कहा जाता है। भगवान झूलेलाल की आरती और उनके संदेशों को गाया जाता है।

इस दिन एक शोभा यात्रा निकाली जाती है जिसे छेज कहते हैं, यह एक तरह की नृत्य यात्रा होती है जिसमें श्रद्धालु नाचते हुए भगवान झूलेलाल की महिमा गाते हैं। चेटीचंड के दिन भगवान झूलेलाल को स्वादिष्ट पकवानों का भोग चढ़ाया जाता है। मीठे चावल पकाए जाते हैं, जिसे ताहिरी कहा जाता है। उबले हुए नमकीन छोल और शरबत को प्रसाद के तौर पर वितरित किया जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है।

भगवान झूलेलाल की आरती

ॐ जय दूलह देवा, साईं जय दूलह देवा।
पूजा कनि था प्रेमी, सिदुक रखी सेवा।। ॐ जय…

तुहिंजे दर दे केई सजण अचनि सवाली।
दान वठन सभु दिलि सां कोन दिठुभ खाली।। ॐ जय…

अंधड़नि खे दिनव अखडियूँ – दुखियनि खे दारुं।
पाए मन जूं मुरादूं सेवक कनि थारू।। ॐ जय…

फल फूलमेवा सब्जिऊ पोखनि मंझि पचिन।।
तुहिजे महिर मयासा अन्न बि आपर अपार थियनी।। ॐ जय…

ज्योति जगे थी जगु में लाल तुहिंजी लाली।
अमरलाल अचु मूं वटी हे विश्व संदा वाली।। ॐ जय…

जगु जा जीव सभेई पाणिअ बिन प्यास।
जेठानंद आनंद कर, पूरन करियो आशा।। ॐ जय…

भगवान झूलेलाल के संदेश

ईश्वर अल्लाह हिक आहे।
अर्थ: ईश्वर अल्लाह एक हैं।

कट्टरता छदे, नफरत, ऊंच-नीच एं छुआछूत जी दीवार तोड़े करे पहिंजे हिरदे में मेल-मिलाप, एकता, सहनशीलता एं भाईचारे जी जोत जगायो।
अर्थ: विकृत धर्माधता, घृणा, ऊंच-नीच और छुआछूत की दीवारे तोड़ो और अपने हृदय में मेल-मिलाप, एकता, सहिष्णुता, भाईचारा और धर्म निरपेक्षता के दीप जलाओ।

सभनि हद खुशहाली हुजे।
अर्थ:सब जगह खुशहाली हो।

सजी सृष्टि हिक आहे एं असां सभ हिक परिवार आहियू।
अर्थ:सारी सृष्टि एक है, हम सब एक परिवार हैं।

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