फैज अहमद फैज हम देखेंगे-Faiz Ahmad Faiz Biography

फैज अहमद फैज की जीवनी और उनकी नज्म हम देखेंगे

फैज अहमद फैज और उनकी नज्म हम देखेंगे को लेकर फिलहाल एक विवाद और बहस छिड़ गई है. उनकी यह नज्म को भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत मकबूल हुई और मुशायरो, महफिलों में इसे बहुत सुना गया.

विरोध की यह नज्म सत्ता के साथ संघर्ष के दौरान अक्सर गुनगुनाई गई. इस नज्म की तरह उनकी जिंदगी भी कई विवादों से भरी रही. यहां हम उनकी जिंदगी की प्रमुख झलकियां दे रहे हैं.

फैज अहमद फैज का आरंभिक जीवन

फैज अहमद फैज का जन्म भारत के सियालकोट के 13 फरवरी, 1911 को हुआ. यह वह समय था जब भारत में आजादी का आंदोलन अपने चरम पर था और भारतीय परिदृश्य पर महात्मा गांधी का उदय हो चुका था.

उनके युवा होने तक भारत की आजादी की लड़ाई अपने निर्णायक दौर में पहुंच चुकी थी और साथ ही पाकिस्तान की मांग भी मोहम्मद अली जिन्ना के माध्यम से पूरी दुनिया में गूंज रहा था.

फैज की आरंभिक शिक्षा उर्दू, अरबी और फारसी में हुई. उनके पिता बैरिस्टर थे इसलिये उन्होंने फैज को एक स्कॉटिश मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलवा दिया ताकि ता​त्कालीन अंग्रेजी शिक्षा से भी उनके लड़के का परिचय हो जाये.

अपनी उच्च शिक्षा के लिये फैज ने लाहौर विश्वविद्यालय में दाखिला ले लिया और यहीं से उन्होंने अंग्रेजी और फारसी में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की. उस समय तक उन्हें शायरी से प्रेम हो चुका था और उन्होंने इसे बतौर शौक शुरू भी कर दिया.

फैज अहमद और मार्क्सवाद

फैज अहमद फैज ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एमओ कॉलेज में लेक्चरर हो गये और पढ़ाने के साथ ही लिखने का काम भी करने लग गये. यहीं पर उनकी मुलाकात सज्जाद जहीर के साथ हुई.

सज्जाद जहीर एक मार्क्सवादी थे और उनसे सम्पर्क में आने के बाद फैज भी मार्क्स के विचारों से प्रभावित हो गये. फैज अहमद ने सज्जाद जहीर के साथ मिलकर पंजाब में प्रगतिशील लेखक संघ के पंजाब शाखा की स्थापना की.

प्रगतिवादी लेखक संघ मार्क्सवाद से प्रभावित लेखकों का संगठन माना जाता था. यहीं से उन्होंने उर्दू के साहित्यिक मासिक अदब-ए-लतीफ नाम की पत्रिका संपादित की. इस पत्रिका का संपादन उन्होंने करीब दस वर्षों तक किया.

फैज अहमद फैज की शायरी

इसी पत्रिका में काम करते हुये उन्होंने अपनी शायरी का पहला संकलन नक्श—ए—फरियादी के नाम से प्रकाशित किया. हालांकि उस वक्त उनकी इस किताब को कोई खास पहचान नहीं मिली.

इस वक्त उर्दू शायरी में राष्ट्रीय जेहन में आलम्मा इकबाल छाये हुये थे. उनके अलावा फिराक गोरखपुरी और साहिर लुधयानवी ने प्रेम की कविताओं से युवाओं का दिल जीत रखा था.

फैज अहमद की शायरी को मकबूली आजादी के बाद पाकिस्तान जाने के बाद ही मिली. उनकी शायरी में क्रांति के नये स्वर थे जिन्होंने ताजा-ताजा आजाद हुये मुल्क की आवाम को आवाज दिया. उनकी मशहूर रचनाओं में ज्यादातर विरोध की नज्में ही थीं.

बोल की लब आजाद हैं तेरे और हम देखेंगे एक कल्ट बन गई. प्रेम की उनकी कविताओं में ‘और भी गम है जमाने में मोहब्बत की सिवा’ और ‘मुझ से पहली मोहब्बत मेरे महबूब न मांग’ बहुत सुनी गई.

फैज अहमद फैज ने नक्श ए फरियादी के बाद अपनी दूसरी किताब दस्त ए सबा के नाम से प्रकाशित करवाया. यह उनके लोकप्रिय कविताओं का संग्रह था.

व्यवस्था विरोधी की वजह से फैज को अपना कुछ समय जेल में भी गुजारना पड़ा. इस दौरान भी उन्होंने ढेरों रचनायें की जिनको उन्होंने अपनी तीसरी पुस्तक जिन्दान नाम यानी जेल डायरी में प्रकाशित करवाया. उनकी आखिरी पुस्तक गुबार ए अय्याम थी जो उनकी मृत्यु के बाद प्रकाशित हुई.

फैज अहमद फैज की नज्म — बोल की लब आजाद हैं तेरे

faiz ahmed faiz poetry pdf- बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक् तेरी है
देख के आहंगर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने
फैला हर एक ज़न्जीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है
जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहने है कह ले

फैज अहमद फैज की नज्म— हम देखेंगे

faiz ahmed faiz poetry pdf – हम देखेंगे

लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो लोह-ए-अज़ल [विधि के विधान] में लिखा है
जब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां [घने पहाड़]
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महकूमों[रियाया या शासित] के पाँव तले
ये धरती धड़-धड़ धड़केगी
और अहल-ए-हकम[सताधीश
सत्ताधारियों के प्रतीक] के सर ऊपर
जब बिजली कड़-कड़ कड़केगी
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत[पुतले] उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा[साफ़ सुथरे लोग], मरदूद-ए-हरम[धर्मस्थल में प्रवेश से वंचित लोग]
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे

बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो ग़ायब भी है हाज़िर भी
जो मंज़र[दृश्य] भी है नाज़िर[साक्षात] भी
उट्ठेगा अन-अल-हक़[मैं ही सत्य हूँ] का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा[आम जनता]
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो

फैज अहमद के पाकिस्तान जाने की आलोचना

फैज अहमद फैज का कम्यूनिस्ट पार्टी से अटूट संबंध रहा और पाकिस्तान जाने के बाद वहां वे पाकिस्तान कम्यूनिस्ट पार्टी के शुरूआती सदस्यों में से एक रहे.

जब भारत आजाद हुआ और भारत के साथ ही पाकिस्तान का भी जन्म हुआ. इस समय भारत में पाकिस्तान को लेकर मुसलमानों में भी दो राय थी.

भारत के डॉ. अबुल कलाम आजाद जैसे मुसलमान पाकिस्तान को स्वीकार करने को तैयार नहीं थे और वे भारत को ही अपना मुल्क मानते थे तो दूसरी तरफ मोहम्मद अली जिन्ना के टू नेशन थ्योरी को मानने वाला भी एक बड़ा वर्ग था जो यह मानता था कि हिन्दु और मुसलमान कभी एक साथ नहीं रह सकते हैं.

1941 में फैज अहमद फैज ने एक अंग्रेज महिला एलिस जॉर्ज faiz ahmed faiz wife से शादी की और वे दिल्ली में आकर बस गये. faiz ahmed faiz daughter इस शादी से फैज को दो बेटियां सलीमा अैर मोनीजा हुई. सलीमा का जन्म 1942 में हुआ और मोनीजा का जन्म 1945 में हुआ. यहीं पर वे ब्रिटिश भारतीय सेना में दाखिल हो गये और जल्दी ही कर्नल के पद तक पहुंच गये.

विभाजन के बाद जब फैज के सामने भारत और पाकिस्तान में से किसी एक को चुनने का प्रश्न आया तो उन्होंने फौज से इस्तीफा दे दिया और पाकिस्तान चले आये. उनके इस कदम की आज भी आलोचना होती है क्योंकि वे स्वयं को एक ए​थिस्ट मानते थे लेकिन उन्होंने धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान को अपने वतन के तौर पर चुना.

पाकिस्तान में फैज अहमद फैज का संघर्ष

पाकिस्तान आने के बाद भी फैज अहमद फैज के जीवन का संघर्ष कम नहीं हुआ. पाकिस्तान पहुंचने के बाद उन्होंने पाकिस्तान टाइम्स और इमरोज के संपादक के तौर पर काम करना शुरू कर दिया.

इन अखबारों को व्यवस्था विरोधी होने का इल्जाम लगा. उन पर बड़ी मुसीबत तब आई जब उन पर लियाकत अली खान की सत्ता के तख्तापलट का इल्जाम लगा. इस वजह से उन्हें करीब 4 साल जेल में बिताने पड़े.

लियाकत अली खान के अपदस्थ होने के कुछ समय बाद 1955 में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया. इसके बाद वे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो के साथ उनके दोस्ताना संबंध रहे. भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान उन्होंने पाकिस्तानी सरकार के समर्थन में कई लेख लिखे और सूचना मंत्रालय का काम संभाला.

जनरल जिया उल हक ने पाकिस्तान में जब सैनिक शासन स्थापित किया तो उन्होंने उसका पुरजोर विरोध किया और अपनी नज्म हम देखेंगे उन्होंने जिया उल हक के विरोध में लिखी. उन्होंने युरोप, अल्जीरिया और मध्यपूर्व में भी काम किया. लेबनान के बेरूत शहर में वे लंबे समय तक रहे.

फैज अहमद फैज को मिले सम्मान और पुरूस्कार

फैज अहमद फैज को अपने जीवन में ढेरों सम्मान और पुरस्कार मिले. एक बार उन्हें नोबेल के लिये भी ना​मित किया गया लेकिन अंतिम चयन में उन्हें स्थान नहीं मिला.

पाकिस्तान ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान निशान ए इम्तियाज से 1990 में नवाजा. इसके अलावा उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार, निगार पुरस्कार और एचआरसी शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया.

फैज अहमद फैज की मृत्यु

फैज अहमद फैज ने का 20 नवम्बर 1984 को 73 साल की उम्र में पाकिस्तान के लाहौर में इंतकाल हो गया. पूरी दुनिया में उनके निधन को प्रमुखता से उल्लेखित किया गया.

अपनी नज्मों और गजलों की वजह से फैज को पूरे उपमहाद्वीप में याद किया जाता है. उन्होंने अपनी क्रांति की नज्मों से युवाओं को प्रेरणा दी और जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिये शब्द दिये.

यह भी पढ़ें:

उर्दू का इतिहास और उर्दू पर शेर

ह​बीब जालिब की जीवनी और उनकी नज्म ‘हम नहीं मानते’

शेहला राशिद की जीवनी और उनके जुड़े विवाद

शाह बानो केस जिसने भारतीय राजनीति की दिशा बदल दी

Leave a Reply