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Biography of Krishna Dev Rai in Hindi – कृष्णदेव राय की जीवनी

Biography of Krishna Dev Rai in Hindi - कृष्णदेव राय की जीवनी

Krishna Dev Rai Biography – कृष्णदेव राय की जीवनी

कृष्ण देव राय सोलहवीं शताब्दी में दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य के एक महान शासक थे. कृष्ण देवराय की ख्याति उत्तर के चंद्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, हर्षवर्धन और महाराजा भोज से कम नहीं है. बाबर ने अपनी आत्मकथा बाबरनामा में कृष्णदेव राय को तत्कालीन भारत का सबसे शक्तिशाली राजा बताया है.

राजा कृष्णदेव राय की संक्षिप्त जीवनी – Short Biography of Sri Krishnadevaraya in Hindi

कृष्णदेव राय विजयनगर साम्राज्य के महानतम शासक थे. उन्होंने ईसवी वर्ष 1509 से 1529 तक शासन किया. संगम वंश के शासक कृष्णदेवराय के शासन काल में विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत की सबसे बड़ी सामरिक शक्ति के रूप में उभरा.

कृष्णदेव राय ने आंध्रभोज, आंध्र पितामह और अभिनव भोज उपाधियां धारण की थीं. मुगल सम्राट अकबर ने कृष्ण देवराय के जीवन से बहुत कुछ सीख लेकर अनुसरण किया था. कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 में जहर दिए जाने के बाद बीमार पड़ने के कारण हुई.

विजयनगर साम्राज्य के सबसे यशस्वी सम्राट कृष्ण देवराय की ख्याति उत्तर के चंद्रगुप्त मौर्य, पुष्यमित्र, चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंदगुप्त, हर्षवर्धन और महाराजा भोज से कम नहीं है.

जिस तरह उत्तर भारत में महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी महाराज, बाजीराव और पृथ्वीराज चौहान ने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया था, उसी तरह दक्षिण भारत में राजा कृष्ण देवराय और उनके पूर्वजों ने अपनी मातृभूमि की रक्षा और सम्मान को बचाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था.

विजयनगर साम्राज्य का इतिहास – History of Vijayanagara Empire

विजयनगर एक महान साम्राज्य था, जो लगभग 1350 ई. से 1565 ई. तक रहा. कृष्णदेवराय ने इसे विस्तार दिया और मृत्यु पर्यन्त तक अक्षुण्ण बनाए रखा. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना इतिहास की एक कालजयी घटना है. ‘विजयनगर’ का अर्थ होता है-जीत का शहर.

राज्य की प्रमुख राजधानी का नाम विजयनगर था, जिसके प्राचीन अवशेष आज भी हम्पी नगर में देखे जा सकते हैं. हम्पी के मंदिरों और महलों के खंडहरों को देखकर जाना जा सकता है कि यह नगर कितना भव्य रहा होगा. इसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर में शामिल किया है.

जिस तरह वर्तमान में न्यूयार्क, दुबई और हांगकांग विश्व व्यापार और आधुनिकता के शहर है, वैसे ही उस काल में हम्पी हुआ करता था. भारतीय इतिहास के मध्यकाल में दक्षिण भारत के विजयनगर साम्राज्य को लगभग वैसी ही प्रतिष्ठा प्राप्त थी, जैसी कि प्राचीनकाल में मगध, उज्जयिनी या थानेश्वर के साम्राज्य को प्राप्त थी.

विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक – Founders of Vijaynagara Empire

इतिहासकारों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का ने 1336 ईस्वी में की थी. जिस तरह चंन्द्रगुप्त मौर्य के साथ आचार्य चाणक्य, पुष्यमित्र शुंग के साथ महर्षि पतंजलि, वीर शिवाजी के साथ समर्थ रामदास थे, उसी प्रकार हरिहर और बुक्काराय के साथ स्वामी विद्यारण्य थे.

पहले दोनों भाई वारंगल के ककातियों के सामंत थे. बाद में कर्नाटक में काम्पिली राज्य में मंत्री बने. जब एक मुसलमान विद्रोही को शरण देने पर मुहम्मद तुगलक ने काम्पिली को रौंद डाला, तो इन दोनों भाइयों को भी बंदी बना लिया गया. इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया और तुगलक ने इन्हें वहीं विद्रोहियों को दबाने के लिए मुक्त कर दिया.

तब मदुरै के एक मुसलमान गवर्नर ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था और मैसूर के होइसल और वारगंल के शासक भी स्वतंत्र होने की कोशिश कर रहे थे. हरिहर और बुक्काराय मुस्लिम बनकर जब वापस लौटे तो उनकी मुलाकात स्वामी विद्यारण्य से हो गई. कुछ समय बाद ही हरिहर और बुक्का ने अपने नए स्वामी और धर्म को छोड़ दिया.

उनके गुरू विद्यारण्य के प्रयत्न से उनकी शुद्धि हुई और उन्होंने विजयनगर में अपनी राजधानी स्थापित की. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में हरिहर प्रथम को दो ब्राह्मण आचार्यों माधव विद्याराय और उसके ख्यातिप्राप्त भाई वेदों के भाष्यकार सायण से भी मदद मिली थी. हरिहर प्रथम को दो समुद्रों का अधिपति कहा जाता था.

हरिहर और बुक्का राय ने अपने पिता के नाम से संगम वंश की शुरुआत की. विजयनगर साम्राज्य की स्थापना दक्षिण भारतीयों के विरूद्ध होने वाले राजनीतिक तथा सांस्कृतिक आंदोलन के परिणामस्वरूप हरिहर एवं बुक्का द्वारा तुंगभद्रा नदी के उत्तरी तट पर स्थित अनेगुंडी दुर्ग के सम्मुख की गई.

बादामी, उदयगिरि एवं गूटी में बेहद शक्तिशाली दुर्ग बनाए गए थे. हरिहर ने होयसल राज्य को अपने राज्य में मिलाकर कदम्ब एवं मदुरा पर विजय प्राप्त की थी. हरिहर के बाद बुक्का सम्राट बना. उसने तमिलनाडु का राज्य विजयनगर साम्राज्य में मिला लिया.

दक्षिण भारत की कृष्णा नदी की सहायक तुंगभद्रा नदी इस साम्राज्य की प्रमुख नदी थी. कृष्णा नदी को विजयनगर तथा मुस्लिम बहमनी राज्य की सीमा मान लिया गया. इस साम्राज्य में बौद्ध, जैन और हिन्दू खुद को मुस्लिम आक्रमणों से सुरक्षित मानते थे.

पंद्रहवी शताब्दी के अंतिम वर्षों में विजयनगर साम्राज्य में संगम वंश की स्थिति डांवाडोल होने लगी और अराजकता का माहौल बनने लगा. 1485 ई. में संगम वंश के विरुपाक्ष द्वितीय के पुत्र ने ही उसकी हत्या कर दी थी. इस परिस्थिति में ‘सालुव नरसिंह’ के सेनापति नरसा नायक ने विजयनगर साम्राज्य पर आधिपत्य कर लिया और सालुव नरसिंह को राजगद्दी पर बिठाया। ‘सालुव नरसिंह’ ने सालुव वंश की स्थापना की.

6 साल शासन करने के बाद वर्ष 1491 में सालुव नरसिंह की मृत्यु हो गई. इसके बाद सालुव नरसिंह के नाबालिग बेटे इम्माडि नरसिंह को उत्तराधिकारी बनाया गया और सेनापति नरसा नायक को उसका संरक्षक नियुक्त किया गया.

इम्माडि नरसिंह अल्पायु था, इसलिए नरसा नायक विजयनगर का संरक्षक बन गया और साम्राज्य की बागडोर अपने हाथ में ली. 1503 ई. में नरसा नायक की मृत्यु हो जाने पर उसका बेटा और कृष्णदेव राय का बड़ा भाई वीर नरसिंह विजयनगर साम्राज्य का संरक्षक बन गया. इस बीच 1505 में वीर नरसिंह ने सालुव वंश के कैदी नरेश इम्माडि नरसिंह की हत्या कर स्वयं विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर तुलुव वंश की स्थापना की.

कृष्ण देवराय का इतिहास – History of Krishna Dev Rai in Hindi

कृष्ण देवराय का जन्म 16 फरवरी 1471 ईस्वी को कर्नाटक के हम्पी में हुआ. उनके पिता ‘सालुव नरसिंह’ के सेनापति नरसा नायक और माता नागला देवी थी. राजा कृष्ण देवराय के पूर्व उनके बड़े भाई वीर नरसिंह (1505-1509 ई.) राज सिंहासन पर विराजमान थे.

नरसिंह का पूरा शासनकाल आन्तरिक विद्रोह एवं आक्रमणों से प्रभावित रहा. वीर नरसिंह के देहांत के बाद 8 अगस्त 1509 ई. को कृष्ण देवराय का विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर राजतिलक किया गया.

कुछ लोग यह भी मानते हैं कि वे 1510 ई. में विजयनगर की गद्दी पर बैठे थे. कृष्णदेव राय की मृत्यु 1529 में जहर दिए जाने के बाद बीमार पड़ने के कारण हुई. मृत्यु से पहले कृष्णदेव राय बेलगाम पर हमले की तैयारी कर रहे थे, जो उस वक्त आदिल शाह के कब्जे में था. मृत्यु से पूर्व कृष्ण देव राय ने अपने सौतेले भाई अच्युत देव राय को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था.

Sri Krishnadevaraya’s Astadiggajas – कृष्णदेव राय के दरबारी

अवंतिका जनपद के महान राजा विक्रमादित्य ने नवरत्न रखने की परम्परा की शुरूआत की थी. इस परम्परा का अनुसरण कई राजाओं ने किया. कृष्णदेवराय के दरबार में तेलुगु साहित्य के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे जिन्हें अष्ट दिग्गज कहा जाता था. कृष्णदेव राय के दरबारी के नाम इस प्रकार हैं. – अल्लसीन पेड्डना, तेनालीराम रामकृष्ण, नंदितिम्मन, यादय्यगी मल्लन, घूर्जर्टि, भट्टमूर्ति, जिंग्लीरन्न और अच्युलराजु रामचंद्र.

कृष्णदेव राय का साहित्य में योगदान – Krishnadevraya Contribution in Literature

कृष्णदेवराय कन्नड भाषी क्षेत्र में जन्मे ऐसे महान राजा थे, जिनकी मुख्य साहित्यिक रचना तेलुगु भाषा में रचित थी. कृष्ण देवराय तेलुगु साहित्य के महान विद्वान थे उन्होंने तेलुगु के प्रसिद्ध ग्रन्थ अमुक्त माल्यद की रचना की. उनकी यह रचना तेलुगु के पांच महाकाव्यों में से एक है. कृष्णदेवराय ने संस्कृत भाषा में नाटक जाम्बवती कल्याणम् और ऊषा परिणय की रचना की थी.

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