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essay on north korea-facts and history उत्तर कोरिया का विवाद

essay on north korea-facts and history उत्तर कोरिया का विवाद

उत्तर कोरिया:पुराना विवाद, नये प्रतिबंध

उत्तर कोरिया दक्षिण कोरिया और अमेरिका को अपना प्रबल शत्रु मानता है और समय समय पर वह इन दोनों के खिलाफ कोई न कोई बयान देता ही रहता है जिससे इस क्षेत्र में लगातार अस्थिरता की स्थिती बनी रहती है।

लगातार बढ़ रहे अंतराष्ट्रीय दबाव को कम करने के लिए उत्तर कोरिया के रूख में समय के साथ नरमी आई है और ​तानाशाह किम जोंग उन ने अपने अड़ियल रवैये को छोड़ते हुए अपने प्रबल प्रतिद्वंद्वी और शत्रु दक्षिण कोरिया की यात्रा कर नये युग की शुरूआत की है. इस यात्रा के प्रतीक के तौर पर दक्षिण और उत्तर कोरिया के सीमा पर प्रतीक के तौर पर एक पेड़ भी लगाया गया.

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने भी सिंगापुर में उत्तर कोरिया के परमाणु अप्रसार कार्यक्रम को लेकर 12 जून को अपनी सहमति दे दी थी लेकिन किम जोंग उन ने इस प्रस्तावित बैठक से पहले चीन की यात्रा कर अमेरिका को चिढ़ाने का ​काम किया. ट्रंप प्रशासन को यह नागवार गुजरा है. उत्तर कोरिया ने अपने परमाणु कार्यक्रम को रोकने की दिशा में कदम आगे बढ़ाते हुए अपनी पुंग्ये री परमाणु परीक्षण केन्द्र को ढहा दिया है.

अमेरिका ने एक बार तो 12 जून को प्रस्तावित बैठक के रद्द होने की घोषणा की दी लेकिन बाद में इसकी संभावना से इंकार भी नहीं किया है. उत्तर कोरिया के इस बदले रूख के पीछे एशिया में चीन की स्थिति को कमजोर होने से आंका जा रहा है. दक्षिण और उत्तर कोरिया के बीच होने वाले तनाव से चीन को फायदा मिलता रहा है और उत्तर कोरिया की आड़ में वह अमेरिका को परोक्ष चुनौती देता रहा है.

कोरिया का इतिहास

कोरिया मूलत: एक प्रायद्वीप है जो मंचूरिया और रूस से दक्षिण में 525 मील के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसके उत्तर में यालू और टुमेन नदियां बहती हैं। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग इस भूभाग को कोजोन के नाम से भी संबोधित करते हैं, जिसका अर्थ होता है सुबह की शांति।

वर्तमान में कोरिया के दो हिस्से हो गए हैं—उत्तरी कोरिया और दक्षिणी कोरिया। भौगोलिक स्थिति की वजह से इतिहास में चीन और जापान दोनों ही इस प्रायद्वीप पर अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए लड़ते रहे।

आखिर में जापान को इसमें सफलता मिली और उसने कोरिया को अपने साम्राज्य का हिस्सा बना लिया जो दूसरे विश्व युद्ध तक कायम रहा। दूसरे विश्व युद्ध में जापान की हार के बाद कोरिया से जापान का शासन खत्म हो गया।

दिसम्बर 1943 में चीन&ब्रिटेन और अमेरिका ने काहिरा कॉफ्रेंस में घोषणा कर दी की जल्दी ही वे कोरिया को एक राष्ट्र के तौर पर स्वतंत्र कर देंगे।

विवाद की शुरूआत

1944 में चुगकिंग में एक कोरियन सरकार की स्थापना कर दी गई और किम कू को देश का राष्ट्रपति बनाया गया। इसके बाद 1945 में पोट्सडैम में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया।

इस सम्मेलन में कोरिया को एक काहिरा सम्मेलन के शर्तों के अनुरूप एक राष्ट्र के तौर पर स्वतंत्र करने के निर्णय पर मुहर लगा दी गई। दूसरे विश्व युद्ध में कोरिया ने जापान के खिलाफ संघर्ष में रूस का साथ दिया था और रूस ने वादा किया था कि वह युद्ध के पश्चात कोरिया को स्वतंत्र करने में सहायता करेगा।

अपने इस सहायता को पूरा करने के लिए रूस की सेनाओं ने उत्तर की तरफ से कोरिया में प्रवेश किया। इसके चार दिन बाद ही दक्षिण दिशा की तरफ से अमेरिका की सेनाओं ने कोरिया की सीमाएं लांघ ली। इससे एक बंटवारा पैदा हो गया और देश को अमेरिका और रूस के प्रभाव वाले क्षेत्रों में बांट दिया गया।

रूस के प्रभाव वाला क्षेत्र उत्तरी कोरिया कहलाया और अमेरिका के प्रभाव वाला क्षेत्र दक्षिण कोरिया कहलाया। आखिर में मित्र राष्ट्रो ने हस्तक्षेप किया और इस समझौते पर पहुंचा गया कि 38 वीं समानान्तर रेखा के उत्तरी तरफ रूसी सेनाएं रहेंगी और दक्षिण की तरफ अमेरिका सेना। इस समझौते का स्वरूप सामयिक रखा गया और उम्मीद जताई गई कि समय के साथ यह समझौता खारिज हो जाएगा।

इस समझौते के साथ ही अमेरिका और रूस ने अपने क्षेत्रों में शासन की शुरूआत कर दी। 1945 में कोरिया में स्थापित की जाने वाली शासन प्रणाली को लेकर स्थिती साफ करने के लिए एक सम्मेलन का आयोजन किया गया।

रूस और अमेरिका ने अपनी—अपनी शासन पद्धतियों के अनुकूल अपनी योजनाएं प्रस्तुत की। इस पर एक नया विवाद खड़ा हो गया। इस विवाद को हल करने के लिए एक दोनो देशों की अगुआई में एक कमीशन का निर्माण किया गया जिसमें फैसला किया गया कि कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर ही कोरिया में शासन पद्धति की स्थापना की जाएगी और अगले पांच सालों तक रूस और अमेरिका द्वारा अपने क्षेत्रों पर शासन चलाने की बात की गई।

कमीशन ने 1946 में सियोल में जैसे ही काम करने की शुरूआत की वैसे ही एक बार फिर रूस और अमेरिका के मतभेद सामने आ गए और कमीशन असफल हो गया। इसके बाद दोनों देशों ने अपने अपने क्षेत्रों में अपने शासन के अनुरूप लोकप्रिय सरकारों का गठन कर दिया।

उत्तरी कोरिया में राजनीतिक दल न्यू पीपल्स पार्टी का गठन किया गया और कम्युनिस्ट सरकार का गठन कर कोरियन कैबिनेट का निर्माण किया गया, जिसके प्रधानमंत्री किम इल सूंह बनाए गए।

उत्तरी कोरिया बनाम दक्षिण कोरिया

उत्तरी कोरिया में रूस ने चुनाव करवा कर लोकप्रिय सरकार का गठन कर दिया और शासन व्यवस्था में कभी भी प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं किया। इसके उलट 1946 में अमेरिका ने दक्षिण कोरिया में एक सैनिक सरकार का संगठन किया। जिसमें आम जनता का प्रत्यक्ष योगदान न के बराबर था।

ऐसी स्थिति में दक्षिण कोरिया में असंतोष फैला। आखिर में जनता की सुननी पड़ी और सहयोग से साल 1950 में दक्षिण कोरिया ने खुद को आजाद देश घोषित कर दिया, पर उत्तर कोरिया को उनकी यह आजादी बिलकुल रास नहीं आई।

उसने सोवियत संघ और चीन की मदद से तुरंत दक्षिण कोरिया पर आक्रमण कर दिया। इस टकराव से कोरियाई युद्ध भड़क उठा जो तीन साल तक चला। अमरीका ने इस युद्ध में तुरंत हस्तक्षेप किया। उसे डर था कि कहीं यहां साम्यवादी गुट का कब्जा हो गया तो इसका विश्वव्यापी प्रभाव पड़ सकता है।

अगर अमरीका दक्षिण कोरिया के आगे घुटने टेक देता तो एशिया में साम्यवाद का विस्तार हो सकता था और इसका खतरा वे नहीं उठाना चाहते थे। साल 1953 में काफी संघर्ष के बाद कोरियाई युद्धविराम समझौते पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किया। 38 पैरेलल के साथ ही सैन्य रहित क्षेत्र (डीएमजेड) की स्थापना की गई।

लेकिन यह कदम शांति स्थापित करने में लगभग नाकाम साबित हुआ। दोनों सरहदों पर तनाव कायम रहे। बाद के सालों में उत्तर कोरिया चीन और सोवियत संघ की मदद से और दक्षिण कोरिया अमेरिका की मदद से तरक्की करता गया।

दक्षिण कोरिया में औद्योगिकीकरण और आर्थिक तरक्की में बढोत्तरी होने लगी सीमा पार के तनाव भी बढने लगे। 1970 के दशक में दक्षिणी कोरिया तो वाकई अमीर मुल्क बन गया लेकिन उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था लड़खड़ाना शुरू हो गई। 1990 में सोवियत संघ के पतन के बाद इससे मिलने वाली मदद को बड़ा झटका लगा। 1992 में चीन के आने से उत्तर कोरिया और भी अलग-थलग पड़ने लगा।

उत्तरी कोरिया में तानाशाही की शुरूआत किम जोंग-इल से होती है जिसने पिता की मृत्यु के बाद 1994 में सत्ता की बागडोर अपने हाथ में ली थी। वह सत्तारूढ़ वर्कर्स पार्टी के महासचिव और राष्ट्रीय रक्षा आयोग के अध्यक्ष रहे।

किम जोंग इल ने 2006 में पहला परमाणु परीक्षण कर अपने देश को परमाणु संपन्न देशों की कतार में खड़ा कर दिया। सितंबर 2010 में किम जोंग इल ने अपने तीसरे बेटे बीस वर्षीय किम जोंग उन को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

किम जोंग-इल ने हमेशा अपना ध्यान सेना पर ही रखा। उनके नियंत्रण में उत्तर कोरिया ने दुनिया की सबसे बड़ी सेनाओं में से एक सेना का गठन किया। किम जोंग इल को डियर लीडर के नाम से खुद को संबोधित करवाना पसंद था। किम जोंग उन ने ने पिता की मौत के बाद 2011 में सत्ता संभाली।

इस तानाशाह ने अपने पिता की नीतियों को ही आगे बढ़ाते हुए सैनिक हलचल को लगातार बनाए रखा और हाल ही में हाइड्रोजन बम के सफल परीक्षण का दावा किया।

उत्तरी कोरिया अपनी हरकतों से लगातार पूरी दुनिया को डरा कर रखता है और क्षेत्रीय ताकतों को खतरा बताते हुए लगातार अंतरराष्ट्रीय नियमों की अनदेखी कर रहा है। आने वाला समय बताएगा कि यह राष्ट्र कब तक अंतरराष्ट्रीय दबाव को झेल पाता है।

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