प्लेटो के नाम से ही एक ऐसी मूर्ति आंखो के सामने जीवंत हो उठती है जो विद्वता से भरा हुआ है. एक ऐसा व्यक्ति जिसने दुनिया को इतने नये विचार दिये, जिनकी मीमांषा आज तक हो रही है.
प्लेटो ने आधुनिक दुनिया को बहुत कुछ ऐसा दिया जो दर्शन और विचार के क्षेत्र में एक अलग आयाम पैदा करता है. प्लेटो ने दुनिया को समझने का नया नजरिया दिया, जिसपर चलकर दुनिया ने आधुनिकता के इस नये परिवेश में प्रवेश किया.
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प्लेटो का आरंभिक जीवन
प्लेटो का जन्म 21 मई 429 ईसापूर्व ग्रीस के एथेन्स शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम अरिस्टन था और उनका सम्बन्ध ग्रीस के राजघराने से था. उनकी माता का नाम पिरिकश्योनी था, उनका सम्बन्ध ग्रीस के प्रमुख साहित्यकार सोलन और उनके सामन्त परिवार से था.
प्लेटो का परिवार ग्रीस के सभ्रान्त परिवारों में से एक माना जाता था. हालांकि इस सम्बन्ध में कोई समकालीन दस्तावेज नहीं मिलता है, यह सब संदर्भ बाद में लिखे गये ग्रंथों से लिये गये हैं.
धनी परिवार में जन्म लेने के कारण उनका लालन-पालन सुख से हुआ. वह शरीर से सबल एवं सुंदर युवक था. प्लेटो को बचपन से ही बेहतरीन साहित्य पढ़ने को मिला. उसका जन्म जिस काल में हुआ, उसे ग्रीस का स्वर्ण युग कहा जाता है.
उस दौर में ग्रीस में साहित्य और कला का विकास अपने चरम पर था. महान साहित्य की रचना हो रही थी और दुनिया के रंगमंच पर सभी महान कलाकारों का सम्बन्ध ग्रीस से जुड़ा हुआ था.
प्लेटो का सुकरात से परिचय
प्लेटो के जीवन पर सबसे बड़ा प्रभाव उनके गुरू सुकरात का ही पड़ा. उनके दिखाये मार्ग और विद्या के बल पर ही प्लेटो ने उस दर्शन को जन्म दिया, जिसे आज तक परिभाषित और नये तरीके से उद्घाटित किया जा रहा है.
प्लेटो को अपने जीवन के शुरूआती दौर में साक्रेटिस यानि सुकरात का परिचय प्राप्त हुआ और इस परिचय ने उसके जीवन को सम्पूर्णतया परिवर्तित कर दिया. साक्रेटिस के सत्संग से वह ज्ञान का प्रगाढ़ उपासक बन गया.
गुरू साक्रेटिस के प्रति उसकी श्रद्धा भक्ति कितनी अगाध थी इसका पता उसके इस कथन से चलता हैः ‘ईश्वर का धन्यवाद है कि मेरा जन्म एक ग्रीक के रूप में हुआ, बर्बर के रूप में नही, मुक्त पुरूष के रूप में, क्रीत दास के रूप में नहीं, पुरूष के रूप में, स्त्री के रूप में नही, किन्तु सब से बढ़ कर धन्यवाद इस लिए कि मेरा जन्म साक्रेटिस के युग में हुआ है.’
प्लेटो पर सुकरात का प्रभाव
प्लेटो जब 28 वर्ष का था तो साक्रेटिस की मृत्यु हो गई. गुरू के शान्तिपूर्ण जीवन का अन्त जिस दुःखद रूप मे हुआ उसकी छाप शिष्य की विचारधारा पर अमिट रूप मे पड़े बिना नही रही. गणतन्तत्र के इस विकृत रूप को देखकर उसके मन में गणतन्त्र तथा साधारण जनो के प्रति घोर अश्रद्धा एवं घृणा उत्पन्न हो गयी.
उसने संकल्प कर लिया कि गणतन्तत्र का उच्छेद करके उसके स्थान पर ज्ञानियो एवं श्रेष्ठ पुरूषो का पता लगाया जा सकता है और तब उन्हें देष का शासन भार ग्रहण करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है.
प्लेटो ने अपने गुरू साक्रेटिस की प्राण रक्षा के लिए जो प्रयत्न किये थे इससे ग्रीस के नेताओ को उस पर सन्देह हो गया था. उसके मित्रों ने उससे आग्रह किया कि एथेन्स में रहना उसके लिए ठीक नहीं इसलिए वह इस नगर को छोड़ दे. विदेश भ्रमण से उसके ज्ञान एवं अनुभव में भी वृद्धि होगी. मित्रों के इस आग्रह को मान कर ईसा पूर्व 399 मे उसन एथेन्स को छोड़ दिया.
प्लेटो की यात्रायें
प्लेटो पहले मिश्र पहुंचा. उस समय मिश्र एक सभ्य एवं उन्नतिशील देश समझा जाता था. पुरोहित वर्ग के हाथ में देश का शासन था. पुरोहितों के मुंह से यह सुन कर कि ग्रीस एक शिशु राष्ट्र है और उसकी परम्परागत प्रथाओं में अभी तक स्थिरता नहीं आई है और न संस्कृति में गम्भीरता, उसके स्वाभिमान पर चोट पहुंची. किन्तु विद्वान पुरोहितों की इस जाति को जो उस समय कृषिप्रधान मिश्र देष पर शासन कर रही थी-वह भूल नही सका.
इसकी स्मृति उसके मानस में जीवित रही जिसकी प्रभाव उसके यूटोपिया ग्रन्थ पर पड़े बिना नहीं रहा. मिश्र से वह सिसली और फिर वहां से इटली गया. वहां कुछ समय के लिए वह पाइथोगोरस द्वारा बनाये गये एक सम्प्रदाय में सम्मिलित हो गया.
इस सम्प्रदाय मे रहते हुए उसकी इस धारणा को और भी पुष्टि मिली कि समाज मे विद्वानों का एक ऐसा विषिष्ट वर्ग होना चाहिये जिनके जीवन का आदर्श होगा सादा जीवन और उच्च विचार और इस जीवनदर्शन से प्रेरित हो कर ही वे नये शासन की स्थापना करेगे.
बारह वर्षों तक प्लेटो भ्रमण करता रहा और इस काल मे जहां कहीं जिस रूप ज्ञानार्जन करने का सुयोग प्राप्त हुआ उसने उससे लाभ उठाया. ज्ञान पिपासा लेकर वह प्रत्येक स्थान मे गया और अपने ज्ञान को समृद्ध किया. कहा जाता है कि आध्यात्मिक ज्ञान के लिए वह भारत भी आया था और गंगा तट पर तपस्वियो के संग में रह कर साधनाा की थी.
प्लेटो का साहित्य सृजन
पूरी दुनिया घूमने के बाद प्लेटो ई. पू. 387 में एथेन्स लौटा. इस समय उसकी अवस्था चालीस वर्ष की हो चुकी थी. अनेक देशों का भ्रमण करने तथा अनेक जातियों के सम्पर्क में आने से उसके ज्ञान में परिपक्वता आ गई थी.
अब वह एक साथ ही दार्शनिक एवं कवि था. दर्शन के गूढ़ तत्वों को जिस प्रकार का काव्यात्मक रूप प्लेटो ने दिया वैसा उससे पहेले और किसी ने नही दिया था. यही कारण है कि उसके लेखों को समझने में पाठको को कठिनाई होती है.
दर्षन एवं काव्य, विज्ञान एवं कला का सम्मिश्रण इस रूप में हुआ है कि यह कहना कठिन हो जाता है कि लेखक कविता की शैली में बोल रहा है कि लेख की शैली में. प्लेटो का सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है ‘दि रिपब्लिक’.
यह एक सम्पूर्ण पुस्तक है जिसमें धर्म, दर्शन, आचार शास्त्र, मनोविज्ञान, राजनीति, शिक्षण शास्त्र, कला विवेचन सब कुछ है. इतना ही नही बल्कि इसमे साम्यवाद, समाजवाद, नारियों के अधिकार, संतति-निरोध और यूजिनिक्स जैसे विषय भी मिलेगे.
रूसो और फ्रायड के सिद्धान्तों का आभास भी यहां देखने को मिलेगा. पण्डितों के लिये यह ग्रन्थ विश्व ज्ञान भण्डार है. एमर्सन ने लिखा हैः ‘प्लेटो दर्शन है और दर्शन प्लेटो है.’ प्लेटो के आखिरी दिनों में यूनान की सभ्यता एवं संस्कृति अपनी संजीवता को खो कर पतन की अग्रसर हो रही थी. जाति को इस अराजक अवस्था से बचाने के लिए भावुक प्लेटो ने अत्याचारी राजाओं के राजत्व को आशीर्वाद दिया.
उसका विश्वास था कि क्षात्र-शक्ति द्वारा जड़ता पर आघात करने से ही उसका विध्वंस-साधन हो सकेगा. किन्तु यह नही हो सका. अत्याचारियों के राज्यकाल में यूनान की अवस्था बिल्कुल नष्ट-भ्रष्ट हो गई थी.
अन्याय एवं अत्याचारों के विरूद्ध सर्वत्र हाहाकार मचा हुआ था और विद्रोह की भावना उग्र से उग्रतर हो रही थी सोलन और पेरिक्लिस ने अपनी साधना से जिस यूनान की सृष्टि की थी वह यूनान आज का रह गया था. ?
प्लेटो का स्वदेश-प्रेम अन्याय एवं अत्याचार के विरूद्ध विद्रोह कर उठा. एक और युनान के अभिजात वर्ग का निष्ठुर लोभ और दूसरी और सर्वहारा का कातर क्रन्दन. प्लेटो की श्रेणी मनोवृत्ति अभिज्ञात वर्ग की समर्थक थी सही, किन्तु उसका भावुक मन अत्याचार-पीड़ितों की पुकार पर रो उठा. उसका परिणाम हुआ उसके इस द्वन्द्व से हो उसके कल्पना-लोक ‘यूटोपिया’ का जन्म हुआ.
प्लेटो के आदर्श राज्य की धारणा-यूटोपिया
प्लेटो के यूटोपिया यानि आदर्श राज्य में एक दार्शनिक राजा होगा. वह अनासक्त भाव से राज्य करेगा और प्रजा उस राज्य में निश्चिन्त होकर वास करेगी. वहां साम्राज्यवाद नही, गणतंत्र के नाम पर श्रेणी विशेष का एकाधिपत्य नहीं और शक्तिमानों के भार को ढोने वाले दीन-दुर्बल मनुष्यों का निवास नहीं होगा. वहां सब लोग परिश्रम करेगे जिससे समाज में असामंजस्य न होगा.
आदिम समाज की तरह संपति पर सब मनुष्यों का अधिकार होगा. अवकाश के समय का उपयोग लोग साहित्य, संगीत, कला आदि की चर्चा एवं साधना में करेगे. पुरूष और नारी के प्रजनन-सबन्ध के ऊपर कठोर निरीक्षण होगा.
प्लेटो के आखिरी संघर्षपूर्ण दिन
प्लेटो के आकर्षक विचारों की वजह से बड़ी संख्या में उसके अनुयायी बन गये. अपने आखिरी दिनों में प्लेटो को उनके नियंत्रण में रहना पड़ा. ऐसे में प्लेटो के शिष्यों ने भी उसके मतवाद को विकृत किया और उस महापुरूष को भी कलंकित किया. प्लेटो के जीवनकाल में ही यह बात देखी गई. उसका शिष्य डायजेनिस अत्याचारी शासक बन कर शासन-कार्य चलाता था.
सिराकाज के सीजर के साथ प्लेटो के दार्शनिक राजा की क्या कोई तुलना हो सकती थी? प्लेटो को अपनी भूल मालूम हो गई थी. और इसलिए वह अन्त में मनुष्य-द्वेषी बन गया था. मनुष्यता पर उसका विश्वास बिलकुल नहीं रह गया था. स्वभाव से विद्रोही होने पर भी वास्तविक क्षेत्र में उसका विद्रोह सफल नहीं हुआ. पराजित मन लेकर ही वह मनुष्य विद्वेषी बना था.
प्लेटो की मृत्यु
प्लेटो की मृत्यु को लेकर कोई निश्चित तथ्य सामने नहीं आता है. कुछ संदर्भ यह बताते हैं कि उसकी मृत्यु 81 साल की उम्र में उसी दिन हुई जिस दिन उसका जन्म हुआ था तो कुछ उसकी मृत्यु की उम्र 82 से 84 साल तक बताते हैं.
कुछ संदर्भ बताते हैं कि उसकी मृत्यु एक शादी के दावत के दौरान हुई तो कोई यह बताता है कि एक लड़की की बांसुरी के धुन सुनते हुये उसके प्राण निकले. कुछ संदर्भ यह भी बताते हैं कि उसकी मृत्यु नींद में ही हो गई. जो भी हो प्लेटो ने एक लंबा जीवन जीया और अपने देश यूनान की सेवा की.
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