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Maa Shailputri pooja vidhi navratri-माँ शैलपुत्री पूजा विधि

Maa Shailputri pooja vidhi navratri-माँ शैलपुत्री पूजा विधि

इस नवरात्र कैसे करें मां शैलपुत्री की पूजा?

नवदुर्गाओं का प्रथम रूप माँ शैलपुत्री दरअसल मां पार्वती का ही एक स्वरूप हैं। इनकी अराधना से जीवन में सुख और समृद्धि का संचार होता है। मां शैलपुत्री की पूजा विधि इनके स्वभाव की तरह ही सरल और सहज हैं।

नवरात्रि का पहले दिन इन्ही की पूजा होती है,नौ दुर्गाओं में माँ शैलपुत्री का पहला स्वरूप है, शैलराज हिमालय के यहाँ पुत्री के रूप में उत्पन्न होने का कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा ,ये पार्वती और हेमवती के नाम से भी जानी जाती है, माँ शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल और बायें हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है.

इस रूप में माँ की सवारी गाय है, अपने पूर्व-जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थी. तब इनका नाम सती था और उस रूप में इनका विवाह शंकर जी के साथ हुआ था.

Shardiya Navratri 2021: में कलश स्थापना मुहूर्त

Shardiya Navratri 2021: शारदीय नवरात्रि की शुरूआत आश्विन माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। वर्ष 2021 शारदीय नवरात्र गुरुवार, 07 अक्टूबर दिन से आरंभ होगा। कलश स्थापना या घटस्थापना के साथ नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। नवरात्र 2021 में 7 अक्टूबर, 2021 से शुरू होकर 15 अक्टूबर, 2021 तक चलेगा।

शारदीय नवरात्रि 2021 में घट स्थापना के लिए शुभ मुहूर्त प्रात: 06 बजकर 17 मिनट से सुबह 07 बजकर 07 मिनट के बीच रहेगा।

माँ शैलपुत्री की पूजा विधि

शारदीय नवरात्र में कलश स्थापना के साथ ही माँ दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है. प्रथम दिन दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है. इनकी पूजा में सभी नवग्रहों, दिक्पालों, तीर्थों, नदियों,  नगर देवता, दिशाओं, सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता है और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना सहित उनका आहवान किया जाता है.

दुर्गा को मातृ शक्ति का स्वरूप मानकर पूजते हैं . अत: प्रथम पूजन के दिन “शैलपुत्री” के रूप में  माँ भगवती दुर्गा दुर्गतिनाशिनी की पूजा फूल, अक्षत, रोली, चंदन से होती हैं.

मां शैलपुत्री का मंत्र

“जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी, दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा, स्वधा नामोस्तुते”

इस  मंत्र को जाप कर  कलश स्थापना के पश्चात माँ  का आह्वान किया जाता है कि हे दुर्गा मां हमने आपका स्वरूप जैसा सुना है उसी रूप में आपकी प्रतिमा बनवायी है और आप उसमें प्रवेश कर हमारी पूजा अर्चना को स्वीकार करें.

मां शैली पुत्री का ध्यान मंत्र

कलश की स्थापना के बाद हम मां शैल पुत्री का ध्यान करेंगे। उनका ध्यान करने के लिए एक मंत्र का उपयोग किया जाता है। इस मंत्र का हिंदी अनुवाद भी हम यहां दे रहे हैं। अगर आपको यह मंत्र पढ़ने में कठिनाई हो रही है तो आप हिंदी में इस मंत्र का उच्चारण कर सकते हैं। मां शैलपुत्री भाषा की नहीं भावना और भक्ति पर प्रसन्न होती है।

वंदे वांच्छित लाभाया चंद्रार्ध कृत शेखराम्.

वृषारूढां शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनीम्॥

पूणेंदुनिभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा.

पटांबर परिधानां रत्नकिरीटां नानालंकार भूषिता॥

प्रफुल्ल वदनां पल्लवाधरां कांत कपोलांतुंग कुचाम्.

कमनीयां लावण्यां स्मेरमुखीक्षीण मध्यांनितंबनीम्॥

भावार्थ : मस्तक पर चद्रंमा को धारण करने वाली और वांछित लाभ देने वाली मां शैलपुत्री की मैं पूजा करता हूं। वृष पर सवार, त्रिशूल धारण करने वाली यशस्वी शैलपुत्री को मैं नमस्कार करता हूं। मूलाधार पर स्थित प्रथम दुर्गा त्रिनेत्र को, जिनका परिधान पटाबंर का बना हुआ है, जो रत्नों के मुकुट और विविध अलंकारों से विभूषित हो रही है। जिनका स्वरूप अति सुंदर है, ऐसी देवी की मैं अराधना करता हूं।

मां शैलपुत्री स्तोत्र

मां शैलपुत्री का ध्यान करन के बाद उनके स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। हम यहां आपको शैलपुत्री माता स्तोत्र उपलब्ध करवा रहे हैं। अगर आपको संस्कृत पाठ करने में कठिनाई का अनुभव हो रहा हो तो इस स्तोत्र का हिंदी भावार्थ भी यहां दिया जा रहा है। उसका भी पठन किया जा सकता है।

प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥
त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम।
सौभाग्यारोग्यदायनीशैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥
चराचरेश्वरीत्वंहिमहामोह विनाशिन।
भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्रीप्रणमाभ्यहम॥

भावार्थ: भवसागर से तारने वाली प्रथम दुर्गा।
धन, ऐश्वर्य देने वाली शैलपुत्री को प्रणाम करता हूं।
तीनों लोकों की जननी आप ही परमानंद प्रदान करने वाली हैं।
सौभाग्य और आरोग्य प्रदान करने वाली शैलपुत्री को प्रणाम करता हूं।
चर और अचर सबकी ईश्वर महा मोह का नाश करने वाली हैं।
भोजन और मुक्ति देने वाली शैल पुत्री को नमस्कार करता हूं।

मां शैलपुत्री कवच मंत्र

मां शैलपुत्री के कवच मंत्र का जाप करने से दुखों और व्याधियों से रक्षा होती है। इस कवच का पाठ नवरात्र के पहले दिन विशेष रूप से करना चाहिए। कवच पाठ इस प्रकार है:

ओमकार:में शिर: पातुमूलाधार निवासिनी.

हींकार,पातुललाटेबीजरूपामहेश्वरी॥

श्रीकार:पातुवदनेलज्जारूपामहेश्वरी.

हूंकार:पातुहृदयेतारिणी शक्ति स्वघृत॥

फट्कार:पातुसर्वागेसर्व सिद्धि फलप्रदा

माँ शैलपुत्री की कहानी

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत ही भव्य यज्ञ का आयोजन किया इस  यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया और यज्ञ भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया, लेकिन शंकर जी को उन्होंने इस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया.

सती को जब यह पता चला कि उनके पिता एक भव्य और विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं तो वह वहां जाने के लिए आतुर हो उठी और अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकर जी को बताई.

शंकर जी और सती के बीच काफी लंबी बात हुई और सारी बातों पर विचार करने के बाद शंकर जी ने कहा के प्रजापति दक्ष किसी कारण-वश हम से रुष्ट हैं. अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया है और उन्हें अपना अपना यज्ञ भाग भी समर्पित किया है लेकिन हमें जानबूझकर नहीं बुलाया और कोई सूचना तक नहीं भेजी है.

ऐसी स्थिति में आपका वहां जाना किसी प्रकार भी सही नहीं होगा, शंकर जी की बातों से सती को कोई बोध नहीं हुआ और अपने पिता का यज्ञ देखने वहां जाकर अपनी मां और बहनों से मिलने कि उनकी व्यग्रता किसी भी तरह से कम ना हो सकी.

उनका प्रबल आग्रह देखकर शंकर जी ने उन्हें वहां जाने की अनुमति दे दी. सती अपने पिता के घर जब पहुंची तो  देखा कि कोई भी उनसे प्रेम और आदर के साथ बात नहीं कर रहा है. सारे ही लोग मुंह फेर हुए हैं सिर्फ उनकी मां ने उन्हें स्नेह से गले लगाया और बहनों की बातों में उपहास और व्यंग्य के भाव भरे हुए थे.

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत धक्का लगा और वहां उन्होंने यह भी देखा की चतुर्दिक भगवान उनके पति शंकर जी के प्रति तिरस्कार के भाव भरा हुआ है और उनके पिता दक्ष ने भी शंकर जी के प्रति अपमान जनक वचन कहे.

यह सब देख कर सती का हृदय को बहुत ग्लानि हुई और सती क्रोध से संतप्त हो उठी ,उन्होंने मन ही मन सोचा के शंकर जी की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती की है , वह अपने पति भगवान शंकर जी के अपमान को सह ना सकी और उन्होंने अपने उस रूप को उसी क्षण वही योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया, वज्रपात जैसे इस दुख को सुनकर भगवान शंकर क्रोधित हो उठे और उन्होंने अपने गणो को भेजकर दक्ष के यज्ञ को संपूर्ण रूप से विध्वंस करा दिया.

इस तरह सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्मे में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और इस बार वह शैलपुत्री नाम से विख्यात हुई. उपनिषद की कथा के अनुसार इन्होंने ही हैमवती स्वरुप से देवताओ का गर्व- भंजन किया था.

शैलपुत्री रूप में भी इनका विवाह शिव जी का साथ हुआ था नवदुर्गाओं में प्रथम शैलपुत्री दुर्गा का महत्व और शक्तिया अनंत है. नवरात्री पूजन के प्रथम दिन इन्ही की पूजा और उपासना की जाती है ,प्रथम दिन उपासना में उपासक अपने  मन की मूलाधार चक्र में स्थित करता है और यही से उसकी योगसाधना प्रारम्भ होती है.

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