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Brahmacharini Mata navratri pooja vidhi – ब्रह्मचारिणी माता की पूजा विधि

ब्रह्मचारिणी देवी का फोटो- brahmacharini images

माँ ब्रह्माचारिणी की पूजा विधि

माँ दुर्गा की नव शक्तियों का दूसरा स्वरूप ब्रह्मचारिणी का है. देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय है. मां दुर्गा की नौ शक्ति स्वरूपों में से द्वितीय शक्ति देवी ब्रह्मचारिणी हैं. ब्रह्माचारिणी अर्थात तप की चारिणी-तप का आचरण करने वाली. ब्रह्माचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है.

इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डलु रहता है. देवी ब्रह्मचारिणी साक्षात ब्रह्म का स्वरूप हैं अर्थात तपस्या का मूर्तिमान रूप हैं. इस देवी के कई अन्य नाम हैं जैसे तपश्चारिणी, अपर्णा और उमा इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान ’चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित साधक मां ब्रह्मचारिणी जी की कृपा और भक्ति को प्राप्त करता है.

माँ दुर्गा का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्त फल देने वाला है. इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. जीवन के कठिन संघर्षाें में भी उसका मन पथ से विचलित नहीं होता.

माँ ब्रह्माचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है. इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में स्थित होता है. इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है.

नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना का की जाती है  है. देवी दुर्गा का यह दूसरा रूप भक्तों एवं सिद्धों को अमोघ फल देने वाला है. देवी ब्रह्मचारिणी की उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार, संयम की वृद्धि होती है. माँ ब्रह्मचारिणी की कृपा से मनुष्य को सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है. तथा जीवन की अनेक समस्याओं एवं परेशानियों का नाश होता है.

ब्रह्मचारिणी माता का मंत्र – brahmacharini mantra

ब्रह्मचारिणी मंत्र के साथ मां के पूजा की शुरूआत करनी चाहिए। इस मंत्र का पाठन संस्कृत में करना चाहिए। अगर आप संस्कृत में नहीं पढ़ सकते हैं तो आपकी सुविधा के लिए हम इसका हिंदी भावार्थ भी यहां दे रहे हैं। मां भाषा की नहीं भाव और भक्ति पर प्रसन्न होती है। आप हिंदी भावार्थ का मनन करके भी मां की अराधना कर सकते हैं।

दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

भावार्थ: एक हाथ में माला और एक हाथ में कमण्डल धारण करने वाली हे ब्रह्मचारिणी मां मुझ पर प्रसन्न होकर मेरी पूजा स्वीकार करें।

माँ ब्रह्मचारिणी मंत्र (Maa brahmacharini mantra)

माँ ब्रह्मचारिणी मंत्र की मदद से मां का आवाहन करें कि वे आपके पूजा स्थल पर अवतरित हो और आपके प्रसाद और भोग को ग्रहण कर आपको अनुग्रहित करे। इस मंत्र की सहायता से यह करें।

वन्दे वांछित लाभायचन्द्रार्घकृतशेखराम्।
जपमालाकमण्डलु धराब्रह्मचारिणी शुभाम्॥

गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम।
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालंकार भूषिताम्॥

परम वंदना पल्लवराधरां कांत कपोला पीन।
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

माँ ब्रह्मचारिणी बीज मंत्र – brahmacharini Beej mantra

ओम ब्रां ब्रीं ब्रौं ब्रह्मचारिणीय नमः

माँ ब्रह्मचारिणी कवच – Brahmacharini Kavach

त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥

पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी

माँ ब्रह्मचारिणी स्तोत्र

तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥

माता ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि – Pooja Vidhi Brahmacharini Mata

देवी ब्रह्मचारिणी जी की पूजा  में सर्वप्रथम आपने जिन देवी-देवताओ एवं गणों व योगिनियों को कलश में आमंत्रित किया है उनकी फूल, अक्षत, रोली, चंदन, से पूजा करें उन्हें पंचामृत से स्नान करायें व देवी को जो कुछ भी प्रसाद अर्पित कर रहे हैं उसमें से एक अंश इन्हें भी अर्पण करें.

प्रसाद के पश्चात आचमन और फिर पान, सुपारी भेंट कर इनकी प्रदक्षिणा करें. कलश देवता की पूजा के पश्चात इसी प्रकार नवग्रह, दशदिक्पाल, नगर देवता, ग्राम देवता, की पूजा करें.

माँ  ब्रह्माचारिणी को कमल काफी पसंद है इसलिए  उनको कमल की  माला पहनायें. प्रसाद और आचमन के पश्चात् पान सुपारी भेंट कर प्रदक्षिणा करें और घी व कपूर मिलाकर देवी की आरती करें. अंत में क्षमा प्रार्थना करें.

ब्रह्मचारिणी आरती – Brahmacharini aarti in hindi

मां ब्रह्मचारिणी देवी की आरती पूजा समाप्ति पर गाई जाती है। इसके बाद जोत का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। बंधु बांधवों सहित मां की आरती का गायन भक्तिभाव से करने पर घर में सुख और समृद्धि का वास होता है

जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो ​तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।

ब्रह्मचारिणी माता की कथा – ब्रह्मचारिणी full story in hindi

माँ ब्रह्माचारिणी अपने पूर्वजन्म में जब ये हिमालयके घर पुत्री-रूपमें उत्पन्न हुई थीं तब नारद के उपदेश से इन्होंने भगवान शंकर जी को पति-रूप में प्राप्त करने के लिये अत्यन्त कठिन तपस्या करनी पड़ी थी.

इसी  तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नामसे अभिहित किया गया. एक हजार वर्ष से अधिक समय तक  उन्होंने केवल फल-मूल खाकर व्यतीत किये थे. कई सौ वर्षाें तक केवल शाकपर निर्वाह किया था.

फिर  कठिन उपवास रखते हुए खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के भयानक कष्ट सहे. इस कठिन तपश्चर्या के पश्चात् तीन हजार वर्षाे तक केवल जमीन पर टूटकर गिरे हुए बेलपत्रों को खाकर वह अहर्निश भगवान शंकर की आराधना करती रहीं.

इसके बाद उन्होंने सूखे बेलपत्रों को भी खाना छोड़ दिया. कई हजार वर्षाें तक वह निर्जल और निराहार तपस्या करती रहीं और उनके खाना छोड़ देने के कारण उनका एक नाम ‘अपर्णा’ भी पड़ गया था.

कई हजार वर्षाें की इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का वह पूर्व जन्म का शरीर एकदम क्षीण हो उठा वह अत्यन्त ही कृशकाय हो गयी थी. उनकी यह दशा देखकर माता मैना अत्यन्त दुखित हो उठीं. उन्होंने उन्हें इस कठिन तपस्या से विरत करने के लिये आवाज दी ‘उमा’ तब से देवी ब्रह्माचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम ‘उमा’ भी पड़ गया था.

उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया. देवता ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे. अन्त में पितामह ब्रह्माजी ने आकाशवाणी के द्वारा उन्हें सम्बोधित करते हुए प्रसन्न स्वरों में कहा- ‘हे देवि! आजतक किसी ने ऐसी कठोर तपस्या नहीं की थी.

ऐसी तपस्या तुम्हीं से सम्भव थी. तुम्हारे इस अलौकिक कृत्य की चतुर्दिक् सराहना हो रही है. तुम्हारी मनोकामना सर्वतो भवेन परिपूर्ण होगी. भगवान चन्द्रमौली शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे. अब तुम तपस्या से विरत होकर घर लौट जाओ. शीघ्र ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं.

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