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Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi – बाल गंगाधर तिलक की जीवनी

Bal Gangadhar Tilak Biography in Hindi - बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने महात्मा गांधी से भी पहले भारतीयों को आजादी की कीमत समझाई और इसे प्राप्त करने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया.

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के गरम दल का प्रतिनिधित्व किया. भारत की जनता को तत्कालीन ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध एकजुट करने के लिए उन्होंने  नारा दिया था- स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर रहेंगे. जनमानस में अपार लोकप्रियता के कारण उन्हें लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक भी कहा जाता है.

Table of Contents

बाल गंगाधर तिलक की संक्षिप्त जीवनी Short Biography of Bal Gangadhar Tilak in Hindi

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी में हुआ. लोकमान्य तिलक ने अपने जीवन के 50 वर्षों की अनवरत साधना, कठिन तपश्चर्या तथा महान त्याग के द्वारा भारतीय स्वाधीनता के भव्य भवन की नींव रखी.

लोकमान्य तिलक जहां कर्मठ और साहसी सेनानी थे, वहां पूरे विचारक राजनीतिज्ञ भी थे. वे अपने निर्दिष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए जीवन के अन्तिम क्षण तक प्रयत्नशील रहे. उनकी राजनीति का सार था- षठे शाठयम् समाचरेत् अर्थात् जैसे को तैसा. उन्होंने जीवन-पर्यन्त इस सिद्धान्त को निभाया.

लोकमान्य अपनी संस्कृति, रीति-नीति तथा आचार के प्रति पूर्ण श्रद्धा रखते थे. जनता के लिए उनके हृदय में आदर और प्रेम था और यही उनकी लोकप्रियता का प्रमुख कारण था. तिलक ने ही भारतीय जनता के समक्ष सबसे पहले ‘स्वराज्य’ शब्द का अर्थ प्रतिपादित किया.

बाल गंगाधर तिलक का आरम्भिक जीवन एवं शिक्षा Early Life and Education

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के पिता गंगाधर रामचन्द्र तिलक पूना जिले के स्कूलों के डिप्टी इन्सपेक्टर थे. बाल गंगाधर बचपन से ही बड़े मेधावी तथा प्रखर बुद्धि के थे. आठ वर्ष की आयु में ही उन्होंने भिन्न तक गणित, रूपावली, समास-चक्र तथा आधा अमरकोष कंठस्थ कर लिया था.

वे दस वर्ष के थे, जब उनके पिता  पूना आ गए. यहां उन्होंने पूना के सिटी स्कूल में प्रवेश  लिया. 1872 में मैट्रिक की परीक्षा पास करके 1876 में डेक्कन कॉलेज से गणित और संस्कृत विषयों से स्नातक की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए. 1879 में बम्बई विश्वविद्यालय से एल.एल.बी. की परीक्षा पास की.

कॉलेज जीवन से ही उनकी रुचि सार्वजनिक कार्यों की ओर हो गई थी. इसी कारण तिलक ने निश्चय कर लिया था कि जीवन भर सरकारी नौकरी न करके देश सेवा का कार्य ही करता रहूंगा.

बाल गंगाधर तिलक का सार्वजनिक जीवन Public Life of Bal Gangadhar Tilak

शिक्षक के तौर पर योगदान

शिक्षा समाप्ति के साथ ही तिलक के सार्वजनिक कार्यों का आरम्भ हो गया. सर्वप्रथम उनका ध्यान शिक्षा प्रसार की ओर गया. बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजी भाषा को उदारवादी और लोकतांत्रिक विचारों के प्रसार के लिए सशक्त माध्यम मानते थे. इसलिए उन्होंने  1 जनवरी 1880 को न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की. अल्पकाल में ही यह स्कूल पर्याप्त उन्नति कर गया.

24 अक्टूबर, 1884 को बाल गंगाधर तिलक ने डेक्कन एजूकेशन सोसायटी की  स्थापना की. इस प्रकार अपने अथक परिश्रम द्वारा लोकमान्य ने महाराष्ट्र में शैक्षणिक क्रांति उत्पन्न कर दी.

डेक्कन एजूकेशन सोसायटी के आजीवन सदस्यों से अपेक्षा की जाती थी कि वे निस्वार्थ सेवा कर आदर्श प्रस्तुत करेंगे. लेकिन, जब तिलक को यह पता चला कि कुछ सदस्य संस्था से अलग जाकर शिक्षण कार्य से धन कमा रहे हैं तो उन्होंने व्यथित होकर संस्था ही छोड़ दी.

उस समय तक बाल गंगाधर तिलक की  विद्वता की छाप अनके  विद्धानों के मन पर  अंकित हो चुकी थी. इन्हीं दिनों उन्होंने उन्होंने  ओरिएंटल सोसायटी के लिए ज्योतिष शास्त्र के आधार  पर एक निबन्ध लिखा.

जिसकी देश-विदेशों में बड़ी चर्चा फैली. इस निबन्ध में वेदों की प्राचीनता सिद्ध की गई थी. यह निबन्ध बाद में पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित  हुआ. इस निबन्ध के कारण मैक्समूलर जैसे प्रतिष्ठित विद्वानों के हृदय में भी तिलक के लिए श्रद्धा का भाव उत्पन्न हो गया था.

पत्रकारिता में बाल गंगाधर तिलक का योगदान

शिक्षा-सम्बन्धी कार्यों  के साथ ही लोकमान्य तिलक ने जनता में नव चेतना एवं नव जागृति उत्पन्न करने के लिए दो साप्ताहिक पत्र भी निकाले. पहला ‘केसरी’ समाचार पत्र मराठी भाषा में था, जिसका सम्पादन तिलक के मित्र आगरकर करते थे. दूसरा समाचार पत्र ‘मराठा’ अंग्रेजी भाषा में था,  जिसका सम्पादन स्वयं लोकमान्य करते थे.

वर्ष 1881 में ‘केसरी’ और ‘मराठा’ में कोल्हापुर रियासत के सम्बन्ध में कुछ आपत्तिजनक लेख प्रकाशित करने के अपराध में आगरकर और तिलक को 4-4 मास कारावास की सजा हुई. इस सजा से तिलक और आगरकर का नाम जनता में प्रसिद्ध हो गया और दोनों के प्रति लोगों में श्रद्धा भाव बढ़ गया.

गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत Celebration of Ganesh Utsav and Shivaji Utsav

1893-94 में बाल गंगाधर तिलक ने महाराष्ट्र में जागृति उत्पन्न करने के लिए दो नए उत्सवों की परिपाटी चलाई. पहला ‘गणेश उत्सव’ और दूसरा ‘शिवाजी उत्सव’. ये दोनों उत्सव सार्वजनिक रूप से मनाये जाते थे. हजारों की संख्या में लोग इन उत्सवों पर एकत्र होते थे और राजनीतिक विषयों पर वाद-विवाद एवं भाषण आदि होते थे. आज भी ये उत्सव महाराष्ट्र में उसी उत्साह के साथ मनाये जाते हैं.

बाल गंगाधर तिलक – प्लेग कानून के विरोध में राजद्रोह का मुकदमा

वर्ष 1895 में तिलक को बम्बई प्रान्तीय विधान परिषद का सदस्य चुना गया. 1896 में महाराष्ट्र में घोर अकाल पड़ा, आपने अकाल-पीड़ितों की भरसक सहायता की. अकाल के बाद 1897 में प्लेग की महामारी फैल गई. इसके बाद, ब्रिटिश हुकूमत ने महामारी कानून,1897 लागू कर दिया.

इस कानून में प्लेग ड्यूटी पर लगाए गए गोरे सिपाहियों को बेहिसाब अधिकार दिए गए थे. वे किसी की भी जांच करने और तलाशी लेने के अलावा हिरासत में ले सकते थे और उन्हें अलग रहने को मजबूर कर सकते थे. 13 जून, 1897 को शिवाजी उत्सव के दौरान बाल गंगाधर तिलक ने अपने भाषण में महामारी कानून की भरसक आलोचना की. कार्यक्रम में शिवाजी पर एक कविता भी पढ़ी गई.

15 जून, 1897 को केसरी में यह भाषण और कविता प्रकाशित होते ही बवाल मच गया.  एक सप्ताह बाद रात को घर लौटते समय प्लेग राहत कमेटी के अध्यक्ष डब्ल्यू. सी. रैंड और उनके एक सहयोगी की हत्या हो गई.

ब्रिटिश सरकार ने बाल गंगाधर तिलक पर राजद्रोह का अभियोग चलाया, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 18 माह की कड़ी कैद की सजा दी गई. किन्तु अध्यापक मैक्समूलर, सर विलियम हलटर तथा दादाभाई नौरोजी के प्रयत्नों से वे सजा की अवधि पूरी होने से 6 माह पूर्व ही छोड़ दिये गए.

इस अभियोग की सुनवाई के दौरान बाल गंगाधर तिलक की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई और लोग उन्हें आदर  से लोकमान्य कहने लगे. वर्ष 1898 के बाद कांग्रेस में भी उनका प्रभाव बढ़ने लगा. लोकमान्य तिलक उग्र विचारों के नेता थे, अतः कांग्रेस की नरम नीति आपको पसन्द नहीं थी.

बंगाल विभाजन का विरोध

1905 में लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया तो लोकमान्य तिलक ने इसका जमकर विरोध किया. उन्होंने विभाजन को रद्द करने की मांग को लेकर ब्रिटेन में बनी वस्तुओं की होली जलाई. उनके इस कदम ने शीघ्र ही राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया. बंग-भंग के कारण देश के राजनीतिक आन्दोलन में विशेष चेतना का संसार हुआ.

उन्होंने ब्रिटिश शासन के प्रभाव को कम करने और स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लोगों को बलिदान देने के लिए तैयार करने के उद्देश्य से सविनय अवज्ञा की शुरुआत की. आगे चलकर, महात्मा गांधी ने तिलक के इन दो कदमों को अपने अहिंसक आंदोलन का महत्वपूर्ण हथियार बनाया.

बाल गंगाधर तिलक द्वारा गरम दल की स्थापना

तिलक ने कांग्रेस में एक गरम दल की स्थापना की और उसका नेतृत्व स्वयं करने लगे. 1907 में सूरत में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ. इसमें उन्होंने कांग्रेस को अपने बताए मार्ग पर चलने के लिए राजी करने का प्रयास किया. लेकिन, कांग्रेस में उस समय तक नरम पंथियों का प्रभाव था. इस कारण नरम दल और तिलक के गरम दल  में अलगाव हो गया. इस तरह गरम दल कांग्रेस से अलग हो गया.

मांडले में छह साल की कैद  Tilak Jailed for 6 years in Mandalay

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चक्रवर्ती ने एक वाहन पर बम फेंका. वे मुजफ्फरपुर के सेशन जज डगलस को मारना चाहते थे. लेकिन, उस वाहन में एक अंग्रेज बैरिस्टर की पत्नी और बेटी सवार थे, जो बम धमाके में मारी गईं. इस घटना के बाद,  सरकार ने  गरम दल के नेताओं की धर पकड़ शुरू कर दी.

तिलक को भी गिरफ्तार कर लिया गया. 12 मई और 3 जून 1908 को प्रकाशित दो आलेखों के लिए उन पर राजद्रोह का अभियोग लगाया गया.  तिलक को 6 वर्ष के निर्वासन एवं एक हजार रुपए जुर्माने की सज्ञा दी गई.

गीता रहस्य की रचना

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक छह वर्ष तक बर्मा की मांडले  जेल में रहे, जहां उन्हें अनेक यातनाएं सहन करनी पड़ीं. जेल में ही उन्होंने अपना प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘गीता रहस्य’ लिखा. ‘गीता रहस्य’ में कर्मयोग की श्रेष्ठता को प्रमाणित किया गया है. अभी वे जेल में ही थे कि उनकी पत्नी का देहान्त हो गया. 1914 में तिलक जेल से रिहा किये गए.

होमरूल लीग की स्थापना

1914 में प्रथम महायुद्ध प्रारम्भ हो जाने से देश में अशान्ति की लहर दौड़ गई. इसी समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने एनी बेसेंट और लाला लाजपत राय के साथ होम रूल लीग की स्थापना की और देश में स्वराज्य का नारा बुलन्द किया.

उन्होंने पूरे देश का विस्तृत भ्रमण करके राष्ट्र की सोई हुई शक्ति को पुनः जागृत किया. उस समय राष्ट्र के कोने-कोने में तिलक का यह ललकार गूंज रही थी, – स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूंगा.

उस समय कांग्रेस के नरम दल में गांधी जी का प्रभाव था. गांधी जी महायुद्ध में ब्रिटिश सरकार को बिना किसी शर्त के सहायता देने के पक्ष में थे. तिलक ने इसका विरोध किया. उनका कहना था कि ब्रिटिश सरकार की नीयत का कोई भरोसा नहीं, अतः सरकार हमें जितने अधिकार देगी, उतनी ही उसकी सहायता की जाये. इस बात पर गांधी जी और लोकमान्य में मतभेद हो गया. किन्तु लोकमान्य तिलक अपने सिद्धान्त पर अटल रहे.

लखनऊ पैक्ट पर हस्ताक्षर

1916 में तिलक फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए और उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना के साथ ऐतिहासिक लखनऊ पैक्ट पर हस्ताक्षर किए. इस पैक्ट के अनुसार कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए ब्रिटिश हुकूमत पर दबाव बनाने का फैसला लिया.

ब्रिटेन की लेबर पार्टी से संबंध सुधार

बाल गंगाधर तिलक 1918 में दिल्ली में हुए कांग्रेस अधिवेशन में सभापति चुन गये. इसी बीच वे इंडियन होम रूल लीग के अध्यक्ष के तौर पर इंग्लैंड चले गए. उन्होंने ब्रिटेन की राजनीति में लेबर पार्टी की बढ़ती भूमिका को महसूस किया और इसके नेताओं के साथ मजबूत सम्बन्ध स्थापित किए.

वास्तव में तिलक एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ थे. परिस्थिति से लाभ उठाना वे भली प्रकार से जानते थे. यह बात 1947 में एक बार फिर साबित हो गई, जब ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार के समय में भारत स्वतंत्र हुआ.

1919 में कांग्रेस के अमृतसर अधिवेशन में वे सम्मिलित हुए, जहां उनका भाषण बड़ा तर्कपूर्ण एवं प्रभावशाली था. उन्होंने सरकारी सुधारों की कटु आलोचना की.  तिलक ने वर्ष 1920 में डेमोक्रेटिक स्वराज्य पार्टी की स्थापना की, जिसका उद्देश्य मांटेग्यू सुधार योजना के सम्बन्ध में कार्य योजना तैयार करना था.

बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु Death of Bal Gangadhar Tilak

तिलक 1920 में एक मुकदमे के सम्बन्ध में बम्बई गए, किन्तु वहां जाकर बीमार हो गए. उनकी बीमारी से पूरे देश में चिन्ता फैल गई. बड़े-बड़े योग्य डॉक्टरों की चिकित्सा से भी लाभ न हुआ. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का 21 जुलाई 1920 को रात साढे़ बारह बजे निधन हो गया.  भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इस साहसी सेनानी की मृत्यु का समाचार सुनकर पूरा देश दुख में डूब गया.

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को श्रद्धांजलि देते हुए महात्मा गांधी ने  उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा. जवाहर लाल नेहरू ने कहा कि सच्चे अर्थों में बाल गंगाधर तिलक भारतीय क्रांति के जनक थे.

बाल गंगाधर तिलक के कथन – Quotes of Bal gangadhar tilak

“स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!” – बाल गंगाधर तिलक

“स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। मेरे पास होना चाहिए।” – बाल गंगाधर तिलकी

“समस्या संसाधनों या क्षमता की कमी नहीं है, बल्कि इच्छाशक्ति की कमी है।” – बाल गंगाधर तिलक

“यदि भगवान को अस्पृश्यता के साथ रखा जाता है, तो मैं उन्हें भगवान नहीं कहूंगा।” – बाल गंगाधर तिलक

“भूविज्ञानी पृथ्वी के इतिहास को उस बिंदु पर ले जाता है जहां पुरातत्वविद् इसे छोड़ देते हैं और इसे और प्राचीनता में ले जाते हैं।” – बाल गंगाधर तिलक

“धर्म और व्यवहारिक जीवन अलग नहीं है। सन्यास लेना जीवन का परित्याग करना नहीं है। वास्तविक भावना केवल अपने लिए काम करने के बजाय देश, अपने परिवार और एक साथ काम करने की है। इससे आगे का कदम मानवता की सेवा करना है। अगला कदम भगवान की सेवा करना है।” – बाल गंगाधर तिलक

“यदि हम अतीत में किसी भी राष्ट्र के इतिहास का पता लगाते हैं, तो हम अंत में मिथकों और परंपराओं के दौर में आ जाते हैं, जो अंततः अभेद्य अंधकार में मिट जाता है।” – बाल गंगाधर तिलक

“जीवन एक ताश के खेल की तरह है। सही पत्ता चुनना हमारे हाथ में नहीं है। लेकिन हाथ में आए पत्तों के साथ अच्छा खेलना हमारी सफलता निर्धारित करता है।” – बाल गंगाधर तिलक

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