साध्वी प्रज्ञा भारती को भोपाल से जैसे ही भाजपा ने एमपी का टिकट दिया, वैसे ही उनके बारे में पूरे देश में चर्चा होने लगी. मध्यप्रदेश के एक छोटे से गांव से आने वाली साध्वी प्रज्ञा इससे पहले मालेगांव बम ब्लास्ट में आरोपी बनने के कारण चर्चा में आई थी.
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साध्वी प्रज्ञा का आरंभिक जीवन
साध्वी प्रज्ञा का वास्तविक नाम प्रज्ञा सिंह ठाकुर है. इनका जन्म मध्यप्रदेश के भिंड जिले के कछवाहा गांव में हुआ. इनके पिता पेशे से आयुर्वेदिक डाॅक्टर और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता थे. पिता की वजह से प्रज्ञा ठाकुर को भी आरएसएस से जुड़ने का मौका मिला. प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने इतिहास में स्नातकोतर की उपाधि प्राप्त की.
साध्वी प्रज्ञा का राजनीतिक जीवन
साध्वी प्रज्ञा के जीवन में एक बड़ा बदलाव तब आया जब वे अपने गुरू अवधेशानंद गिरी से मिली. वे उनसे बहुत प्रभावित हुई और जल्दी ही उन्होंने सन्यास लेने का मानस बना लिया.
प्रज्ञा सिंह ठाकुर को दिक्षा लेने के बाद साध्वी प्रज्ञा भारती का नाम दिया गया. अपनी भाषण कला के कारण ही जल्दी ही वे मध्यप्रदेश में लोकप्रिय चेहरा बन गई. हिंदुत्व को लेकर दिये जाने वाली अपनी उत्तेजक भाषणों की वजह से उन्हें पूरे मध्यप्रदेश में भाजपा और संघ के कार्यक्रमों में बुलाया जाने लगा.
वे भाजपा और संघ की प्रमुख प्रचारक बन गई. इसके अलावा वे विश्व हिंदु परिषद की महिला इकाई दुर्गा वाहिनी के लिये भी काम करती रहीं. साध्वी प्रज्ञा ने अपने काम को आगे बढ़ाने के लिए अपने संगठन भी बनाये जिनमें जय वंदे मातरम जन कल्याण समिति और राष्ट्रीय जागरण मंच प्रमुख थे.
साध्वी प्रज्ञा ने वर्ष 2019 में हुये लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह को 3 लाख 65 हजार 822 मतों के भारी अंतर से हराया. लोकसभा सदस्य बनने के बाद उन्हें संसदीय रक्षा समिति में शामिल किया गया लेकिन सदन में नाथूराम गोडसे के पक्ष में दिये गये अपने बयान की वजह से उन्हें इस समिति से बाहर कर दिया गया.
साध्वी प्रज्ञा और मालेगांव बम विस्फोट
साध्वी प्रज्ञा के जीवन में उस वक्त तूफान आया जब उनका नाम मालेगांव बम विस्फोट में आया. मालेगांव में बम विस्फोट के लिए जिस मोटर साईकिल का उपयोग किया गया था, वह मोटरसाईकिल साध्वी प्रज्ञा के नाम पर रजिस्टर्ड थी.
इस बात को आधार बनाते हुए 24 अक्टूबर 2008 को एनआइए के अधिकारियों ने साध्वी प्रज्ञा को हिरासत में लिया और उन पर अत्याचार का भीषण दौर शुरू हुआ जिसका जिक्र उन्होंने अपने एक टीवी साक्षात्कार के दौरान किया. उन पर आतंकवाद पर बनाये गये महाराष्ट्र के विशेष कानून मकोका के तहत मामला दर्ज किया गया.
उन पर इस ब्लास्ट में उनके सहयोगी माने जाने वाले आरएसएस कार्यकर्ता सुनील जोशी की हत्या का भी आरोप लगा है. 9 साल तक विभिन्न प्रकार की जांच होने के बाद भी साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ कोई ऐसा सबूत नहीं मिला जिससे वह अपराधी साबित हो सके.
ऐसे में मालेगांव बम ब्लास्ट केस में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में और बीमारी के इलाज के लिए जमानत दे दिया. इससे पहले जेल में ही साध्वी प्रज्ञा कई शारीरिक परेशानियों से जूझती रहीं. उन्हें स्तन कैंसर हो गया जिसके इलाज के लिए उन्होंने कोर्ट में जमानत की अर्जी दाखिल की जिसे कोर्ट ने नामंजूर कर दिया.
क्या था मालेगांव बम विस्फोट मामला
महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित मालेगांव में 29 सितम्बर 2008 को एक मोटरसाईकिल में बम विस्फोट हुआ. इस बम विस्फोट में 7 लोगों की जान गई और 40 लोग घायल हुये. इस मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई. एनआईए ने इस मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर के साथ स्वामी असीमानंद और लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित को मुख्य आरोपी बनाया.
एनआईए ने अपनी जांच में इस बात को साबित करने की कोशिश की थी कि इस घटना को अभिनव भारत नाम की संस्था ने अंजाम दिया. स्पेशल कोर्ट ने सभी आरोपियों पर मकोका लगाया जिसे बाॅम्बे हाईकोर्ट ने यथावत रखा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपियों पर से मकोका हटा दिया. आखिर में लंबे संघर्ष के बाद सभी आरोपियों को जमानत मिल गई.
प्रज्ञा ठाकुर के नाथुराम गोडसे बयान पर विवाद
प्रज्ञा सिंह ठाकुर को जब भारतीय जनता पार्टी ने भोपाल से अपना संसदीय उम्मीदवार बनाया तब प्रचार के दौरान उन्होंने महात्मा गांधी हत्यारे नाथूराम गोडसे की प्रशंसा की और उन्हें देशभक्त् बताया. उनके इस बयान का काफी विरोध हुआ और विपक्षी पार्टियों ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया. भारतीय जनता पार्टी ने उनके इस बयान से किनारा कर लिया और उन्हें सार्वजनिक तौर पर माफी मांगनी पड़ी. इसके बाद हुये चुनावों में उन्हें भारी अंतर से जीत मिली.
इस विवाद को एक बार फिर हवा तब मिली जब संसद के पटल पर बयान देते हुये साध्वी प्रज्ञा यानी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने गोडसे को एक देशभक्त बताया. उनके इस बयान को तुरंत सदन की कार्यवाही से बाहर कर दिया गया और भाजपा ने जवाबी कार्रवाई करते हुये उन्हें संसदीय रक्षा समिति से बाहर कर दिया. साथ ही पूरे शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा पार्लियामेंट्री कमेटी की बैठकों से भी उन्हें निष्काषित कर दिया.
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